कानून के शासन पर डॉयसी के विचार

कानून का शासन इस मान्यता पर आधारित है कि कानून के सामने सब समान हैं। यह मान्यता राजनीतिक शक्ति को निरंकुश बनने से रोकती है और समाज में सुव्यवस्था भी बनाए रखने में मदद करती है। कानून का शासन सुशासन का आधार है। यह शासन सरकार की स्वेच्छाचारिता को रोककर जनकल्याण में वृद्धि करता है। यह शासन परम्पराओं पर भी आधारित हो सकता है और संविधानिक उपबन्धों पर भी। इंग्लैण्ड में बिना मौलिक अधिकारों और न्यायिक पुनर्निरीक्षण (Judicial Review) के भी नागरिकों के अधिकार और स्वतन्त्रताएं कानून के शासन के कारण ही सुरक्षित हैं। कानून का शासन सभ्य राजनीतिक समाज की पहचान है। 

आज भारत, ब्रिटेन, अमेरिका तथा अन्य सभी सभ्य देशों में कानून के शासन का विशेष सम्मान किया जाता है। यद्यपि एक सिद्धान्त के रूप में यह इंग्लैण्ड की देन है, क्योंकि वहां इस विचार का प्रतिपादन सर्वप्रथम डायसी ने किया था। कानून के शासन का सिद्धान्त आज भी सभ्य देशों में प्रतिष्ठाजनक स्थान को प्राप्त है। इसका प्रमुख कारण इसका न्यायसंगत होना है। कानून का शासन समानता के उस सिद्धान्त पर आधारित है जो सामाजिक न्याय की मांग है। इसी कारण आज भी शासन एक महत्वपूर्ण विचार है।

कानून के शासन पर डॉयसी के विचार

डॉयसी कानून के शासन का प्रमाणित व्याख्याकार है। उससे पहले कानून के शासन की स्पष्ट व्याख्या नहीं की थी। उन्होंने कानून के शासन की व्याख्या तीन प्रकार से की है -

1. कानून ही सर्वोच्च है - डायसी के अनुसार-”साधारण कानून ही सर्वोच्च है और उस पर किसी स्वेच्छाचारी शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता। इंग्लैण्ड में किसी भी व्यक्ति को निरंकुश और स्वेच्छाचारी शक्ति प्राप्त नहीं है। अंग्रेज कानून और केवल कानून द्वारा ही संचालित होते हैं। किसी भी व्यक्ति को कानून तोड़ने का ही दण्ड मिलता है और किसी कारण से नहीं। इसका अर्थ यह है कि इंग्लैण्ड में कानून ही सर्वोच्च है। कानून द्वारा सीमित सरकार की परम्परा का निर्वहन करना ही इंग्लैण्ड के कानून का लक्ष्य है। बिना कानून के उल्लंघन के किसी को कोई दण्ड नहीं दिया जा सकता। कानून की अवज्ञा करने पर दण्ड देने का अधिकार केवल न्यायपालिका को ही है, कार्यपालिका को नहीं। 

अपराध साबित हुए बिना किसी व्यक्ति को न तो सम्पत्ति से बेदखल किया जा सकता है और न ही उसे दण्ड दिया जा सकता है। वहां पर मुकद्दमा भी सार्वजनिक रूप से चलता है ताकि जनता सम्पूर्ण कार्यवाही को देख सके। अपराधी को अपने आप को निर्दोष साबित करने का पूर्ण अधिकार होता है। 

मुकद्दमे की कार्यवाही के बाद दोष साबित होने पर सजा से बचने का कोई प्रावधान नहीं है। किसी भी अन्य संस्था को अपराधी की सजा कम करने या माफ करने का अधिकार नहीं है। अपराधी को सजा कानून की परिधि में अपराध की गम्भीरता को देखते हुए ही दी जाती है। इस प्रकार इंग्लैण्ड में कानून का शासन सरकार की बजाय कानून की सर्वोच्चता स्थापित करता है ताकि सरकार की परम्परागत स्वविवेकी और तानाशाही शक्तियों का अन्त किया जा सके। अत: कानून के शासन का प्रथम अर्थ है कि कानून ही सर्वोच्च है, उसके ऊपर कोई नहीं हो सकता।

2. कानून के सामने सब समान हैं - कानून के शासन का दूसरा अर्थ है - कानून के समक्ष समानता। डॉयसी का कहना है-”कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है बल्कि प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसकी पदवी या स्थिति कितनी भी बड़ी या महान् हो इस देश के शासन के सामान्य कानून को मानने के लिए बाध्य है तथा देश के सामान्य न्यायालय के अधिकार क्षेत्र की परिधि में आता है। जो कानून एक के लिए है वह सबके लिए है।” डॉयसी का कहना है कि सरकारी कर्मचारी या अन्य शासकीय अधिकार और स्वयं राजा भी कानून के अधीन है। उस पर आम नागरिकों की तरह मुकद्दमा चलाया जा सकता है। डॉयसी ने लिखा है-”हमारे प्रधानमन्त्री से लेकर साधारण सिपाही या कर संग्रहकर्ता तक सभी साधारण नागरिकों की तरह ही अपने गैर-कानून कार्यों के लिए कानून के सामने समान रूप से उत्तरदायी है।” 

कानून सबको समान दृष्टि से देखता है। इंग्लैण्ड में सभी नागरिकों पर मुकद्दमे साधारण न्यायालयों में ही चलाए जाते हैं अर्थात् इंग्लैण्ड में प्रशासकीय न्यायलय नहीं हैं। इंग्लैण्ड में मुकद्दमा सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध फ्रांस की तरह प्रशासकीय न्यायालयों में नहीं चलाया जाता बल्कि साधारण न्यायालयों में चलाया जाता है। एक प्रभावशाली व्यक्ति को भी समान अपराध के लिए वही सजा मिलती है जो साधारण व्यक्ति को उसी अपराध के लिए मिलती है। अर्थात् इंग्लैण्ड में समान अपराध के लिए समान सजा का नियम सभी पर लागू होता है।

3. संविधान सामान्य कानून की देन है - कानून के शासन का तीसरा अर्थ है-”संविधान के सामान्य सिद्धान्त उन न्यायिक निर्णयों का प्रतिफल है जिनके द्वारा न्यायालयों के सामने लाए गए मुकद्दमों में सामान्य नागरिकों के अधिकार व स्वतन्त्रताएं निश्चित की गई हैं।” इसका अर्थ यह है कि इंग्लैण्ड का संविधान अतिरिक्त होने के कारण नागरिकों के अधिकारों व स्वतन्त्रताओं की व्याख्या करने में असमर्थ है। इसलिए नागरिक स्वतंत्रताओं व अधिकारों का वर्णन भारत के संविधान की तरह न होकर न्यायिक निर्णयों पर आधारित है। डॉयसी ने इंग्लैण्ड की न्याय-प्रक्रिया को विश्व में सर्वोच्च माना है और उसे ही नागरिक अधिकारों का उद्गम स्रोत बताया है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि डॉयसी ने कानून के शासन की विस्तार से व्याख्या की है। उसकी दृष्टि में कानून ही सर्वोच्च है। कानून से ऊपर कोई नहीं है। कानून के सामने छोटा-बड़ा प्रत्येक व्यक्ति समान है। कानून का शासन नागरिक अधिकारों का स्रोत भी है। इंग्लैण्ड में लिखित संविधान का अभाव होने के कारण वहां पर सरकार की शक्तियों को मर्यादित करने और न्यायिक निर्णयों के द्वारा नागरिक स्वतन्त्रताओं को विकसित करने में कानून के शासन का महत्व अधिक हो जाता है।

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