व्यक्ति के शरीर में मस्तिष्क का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि व्यक्ति जो भी कार्य करता है वह अपने
मस्तिष्क के संकेत पर या मन के अनुसार करता है। जब तक हमारा मन स्वस्थ नहीं रहता है, तब तक
हम किसी भी कार्य को ठीक से नहीं कर सकते। संसार में वे ही व्यक्ति भौतिक और सामाजिक परिस्थितियों में अपने को समायोजित कर पाते
हैं जिनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है।
नलिकायुक्त ग्रंथियों में एक नलिका होती है जो कि आवश्यकता पड़ने पर ही कार्य करती है। नलिकाविहीन ग्रंथियों का शारीरिक विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ये ग्रंथियाँ सदैव क्रियाशील रहती है। शारीरिक विकास की दृष्टि से इसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। ये ग्रंथियाँ सदैव क्रियाशील रहती हैं शारीरिक विकास, रक्त की शुद्धता, रासायनिक पदार्थों का मिश्रण बुद्धि, व्यक्तित्व संगठन, आदि सभी बातों को निर्धारित करने में इन ग्रंथियों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इसलिए इन ग्रंथियों की अधिक क्रियाशीलता या शिथिलता अनेक मानसिक रोगों को जन्म देती है।
इसी प्रकार हमारा संपूर्ण स्नायुमण्डल भी व्यक्ति के व्यवहारों एवं अनुभवों का नियंत्रण व निर्धारक होता है। इनके माध्यम से ही व्यक्ति बाहरी वातावरण से समायोजन स्थापित करता है।
शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य एक दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं। इसलिए
शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत मानसिक स्वास्थ्य का अध्ययन विशेष महत्व रखता है।
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ
मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान को, ‘मानसिक आरोग्य’ नाम भी दिया गया है। मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान का अर्थ
है मन को स्वस्थ या निरोग रखने वाला विज्ञान। जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य-विज्ञान का सम्बन्ध् शरीर
के स्वास्थ्य से होता है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान का सम्बन्ध मानसिक स्वास्थ्य से होता है।
मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान के अन्तर्गत मन को स्वस्थ रखने के नियमों और उपयोग का अध्ययन किया जाता
है।
वेबस्टर डिक्शनरी में मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान का अर्थ इस प्रकार स्पष्ट
किया गया हैμफ्मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान वह विज्ञान है जिसके द्वारा हम मानसिक स्वास्थ्य को स्थिर रखते
हैं तथा पागलपन और स्नायु सम्बन्धी रोगों को पनपने से रोकते हैं। साधारण स्वास्थ्य-विज्ञान में केवल
शारीरिक स्वास्थ्य पर ही ध्यान दिया जाता है, परन्तु मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान में मानसिक स्वास्थ्य के
साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी सम्मिलित किया जाता है, क्योंकि बिना शारीरिक स्वास्थ्य के मानसिक
स्वास्थ्य सम्भव नहीं है।
मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा
1. स्ट्रेन्ज के अनुसार- ‘‘मानसिक स्वास्थ्य से तात्पर्य वैसे सीखे गए व्यवहार से होता है जो सामाजिक रूप से अनुकूली होते हैं और जो व्यक्ति को अपनी जिन्दगी के साथ पर्याप्त रूप से मुकाबला करने की अनुमति देता है।
2. हारविज तथा स्कीड के अनुसार- ‘‘मानसिक स्वास्थ्य में कई आयाम सम्मिलित होते हैं- आत्म सम्मान, अपने अंतःशक्तियों का अनुभव, सार्थक एवं उत्तम संबंध बनाये रखने की क्षमता तथा मनोवैज्ञानिक श्रेष्ठता।’’
3. कार्ल मेनिंगर के अनुसार- ‘‘मानसिक स्वास्थ्य अधिकतम खुशी तथा प्रभावशीलता के साथ वातावरण एवं उसके प्रत्येक दूसरे व्यक्ति के साथ मानव समायोजन है- वह एक संतुलित मनोदशा, सतर्क बुद्धि, सामाजिक रूप से मान्य व्यवहार तथा एक खुशमिजाज बनाए रखने की क्षमता है।’’
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
मानसिक स्वास्थ्य को एक कारक प्रभावित नहीं करता वरन् इसको प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं,
1. जैविक कारक - आइजनेक कहते हैं कि, जो मजबूत केन्द्रीय स्नायुमण्डल रखते हैं वे संघर्षपूर्ण स्थितियों पर आसानी से विजय प्राप्त कर लेते हैं और जो कमजोर तंत्र के होते हैं वे जरा सी परेशानी से घबरा जाते हैं। अत: बहुत सी बीमारियों का शिकार संतुलित भोजन के अभाव में हो जाता है। व्यक्ति के शरीर में दो प्रकार की ग्रंथियाँ पायी जाती हैं : (अ) नलिकायुक्त ग्रंथियाँ, एवं (ब) नलिकाविहीन ग्रंथियाँ।
नलिकायुक्त ग्रंथियों में एक नलिका होती है जो कि आवश्यकता पड़ने पर ही कार्य करती है। नलिकाविहीन ग्रंथियों का शारीरिक विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ये ग्रंथियाँ सदैव क्रियाशील रहती है। शारीरिक विकास की दृष्टि से इसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। ये ग्रंथियाँ सदैव क्रियाशील रहती हैं शारीरिक विकास, रक्त की शुद्धता, रासायनिक पदार्थों का मिश्रण बुद्धि, व्यक्तित्व संगठन, आदि सभी बातों को निर्धारित करने में इन ग्रंथियों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इसलिए इन ग्रंथियों की अधिक क्रियाशीलता या शिथिलता अनेक मानसिक रोगों को जन्म देती है।
इसी प्रकार हमारा संपूर्ण स्नायुमण्डल भी व्यक्ति के व्यवहारों एवं अनुभवों का नियंत्रण व निर्धारक होता है। इनके माध्यम से ही व्यक्ति बाहरी वातावरण से समायोजन स्थापित करता है।
टरमैंन तथा आइजनेक के अनुसार, स्कूलों में बालकों के दाँत खराब होना आम बात है, साथ ही शारीरिक बीमारी लगातार तनाव या कष्ट में रहना या अन्य कोई शारीरिक दोष उत्पन्न होना प्रमुख हैं।
2. मनोवैज्ञानिक कारक - मनौवैज्ञानिक कारणों में आत्ममूल्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। भावनायें भी उसके समायोजन को किसी सीमा तक प्रभावित करती हैं। यदि इन व्यक्तियों को स्नेह व सहमति मिलती है तो उसे संतोष मिलता है और वह अपने जीवन को सार्थक महसूस करता है। इसके विपरीत यदि उसे तिरस्कार मिलता है तो उसे असंतोष मिलता है। आत्मस्वीकृति के अंतर्गत कुछ मानक आदर्श तनाव से दूर रखते हैं। कुछ स्वयं को बहुत नीचा आंकते हैं, जो इन्हें मानसिक द्वन्द्वों में उलझा देती है और उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
3. बहुतत्व सिद्धांत - कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बहुत सी मानसिक तत्वों को परेशानी का कारण माना है प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक तनाव को झेलने की एक सीमा होती है कमजोर इच्छा शक्ति वाले जरा सी मुसीबत से घबरा जाते और असफलता के भय से किसी कार्य को प्रारंभ ही नहीं करते लेकिन इसके विपरीत जो व्यक्ति दृढ़ इच्छाशक्ति वाले होते हैं वे जटिल से जटिल समस्याओं से भी नहीं घबराते और निरंतर उनसे जूझते रहते हैं और अन्त में अपने उद्देश्य की प्राप्ति करते हैं।
4. वंशानुगत कारक - वंशानुक्रम के आधार पर ही संतानों में विभिन्न गुणों का विकास होता है। पैतृक के द्वारा संक्रमित इन गुणों के आधार पर ही किसी जीव में विभिन्न मानसिक व शारीरिक योग्यताएँ निर्धारित होती हैं। कुछ शोधों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि अनेक मानसिक रोगों का संबंध मानसिकता से भी होता है। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को एक स्टील वायर ही समझना चाहिए।
5. वातावरणीय कारक - मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने में वातावरण का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। जब किसी कारणवश परिवर्तन करना होता है, ऐसी परिस्थितियाँ में सांवेगिक उथल-पुथल मचा देती है।
6. आर्थिक कारक - व्यवसाय तथा घर की आर्थिक स्थिति संगी-साथियों में अपने स्थान का आभास दिलाती है। आर्थिक स्थिति न केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य को ही प्रभावित करती है बल्कि यह हमारे सामान्य स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनमें आर्थिक पहलू विशेष महत्व रखता है और अगर ऐसे समय में बालक स्वयं को प्रतिभागी नहीं बनाता वो उसे अपमानित होना पड़ता है ऐसी स्थिति में बालक किसी पर बोझ भी नहीं बनना चाहता और आर्थिक स्वतंत्रता भी चाहता है। परिणामतः: उसका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।
7. सामाजिक कारक -
(अ) घर (Home) : औद्योगिक प्रगति ने परिवार के संगठन को छिन्न-भिन्न कर दिया है। जिन घरों में माता-पिता दोनों ही नौकरी करते हैं वहाँ बालकों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। आधुनिकता की दौड़ में अलगाव और तलाक बढ़ते जा रहे हैं। इन सभी बातों का प्रभाव बालकों के मस्तिष्क पर पड़ना स्वाभाविक ही है। माता-पिता का पक्षपातपूर्ण व्यवहार भी बालक को पलायनवादी, एकाकी, विद्रोही, चोरी करने वाला बना देता है।
(स) समाज (Society) : समाज सामाजिक संबंधों का ताना-बाना है। समाज के रीति रिवाज, परम्पराओं एवं सामाजिक नियमों का व्यक्ति की जीवन शैली पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। आज के संघर्षमय जीवन में पग-पग पर व्यक्ति अपने को असुरक्षित महसूस करता है। वह समाज में अपना पद प्रतिष्ठा बनाए रखने की कोशिश करता है। असफल होने की स्थिति में उसे तनाव होता है। वह मानसिक द्वन्द्व में फॅस जाता है।
सन्दर्भ -
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