पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के उद्देश्य
केन्द्रीय सरकार ने, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा (सेक्षन) 6 व 25 द्वारा प्रदत्त
शक्तियों का प्रयोग करते हुये नियम बनाये जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी के जन्म
दिवस (19 नवम्बर, 1986) के दिन से सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया।
धारा 2 में पर्यावरण सम्बन्धी अनेक शब्दों को विशेष रूप से परिभाषित किया है, जो निश्चय ही
प्रशंसनीय है। संभवत: इस प्रकार पर्यावरण क्षेत्र की परस्पर विरोधी व्याख्याओं को बहुत स्पष्ट कर दिया
गया है। इसके अनुसार -
- पर्यावरण : इसमें जल, वायु और भूमि सम्मिलित हैं तथा इनसे मानव, अन्य जीवित प्राणी, पेड़-पौधे सूक्ष्म जीव व सम्पत्ति के मध्य परस्पर सम्बन्ध आते हैं।
- पर्यावरणीय प्रदूशक : इसका आशय ऐसे ठोस, द्रव तथ गैसीय पदार्थों के इतनी मात्रा में संकेन्द्रित होने से है, जिससे पर्यावरण को हानि पहुँचती है अथवा पहुँच सकती है।
- पर्यावरणीय प्रदूषण : इसका अर्थ पर्यावरण में पर्यावरण प्रदूशकों का रहना है।
- संचालन : किसी भी वस्तु के सन्दर्भ में, इसका आषय, निर्माण, प्रक्रिया, प्रबन्ध, पैकेज, भण्डारण, ढुलाई, प्रयोग, एकत्रीकरण (संचयन), विनाश, परिवर्तन, विक्रय, दूसरी जगह ले जाना सभी क्रियाकलापों से है।
- खतरनाक वस्तुएँ : इनसे आशय ऐसी वस्तुओं अथवा बनाये गये पदार्थों से है जिनके रासायनिक अथवा भौतिक रासायनिक गुणों अथवा उनके कतिपय संचालन से पर्यावरण अथवा उसमें रहने वाले मानव, अन्य जीवित प्राणी, पेड़-पौधे, सूक्ष्म जीव तथा सम्पत्ति को हानि पहुँचती हो।
- पदाधिकारी : किसी उद्योग के सन्दर्भ में यह वह व्यक्ति है जो किसी वस्तु का मालिक भी है औ उस उद्योग के ऊपर उसका नियन्त्रण है।
- निर्देशित : इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये नियमों के अनुसार निर्देशित होना।