पर्यावरणीय प्रकोप क्या है? पर्यावरणीय प्रकोप के प्रकार

पर्यावरणीय प्रकोप क्या है

प्रकृति या मानव-जनित उन समस्त घटनाओं या दुर्घटनाओं को जिनके द्वारा प्रलय या विनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा जन-धन की अपार क्षति होती है, पर्यावरणीय प्रकोप कहते हैं।

पर्यावरणीय प्रकोप क्या है 

विघटनकारी प्राकृतिक घटनाओं को प्राकृतिक आपदा, पर्यावरणीय प्रकोप, पर्यावरणीय आघात, चरम घटनाएँ आदि शब्दावलियों से व्यक्ति किया जाता है। लेकिन मूल भावना सभी स्थितियों में समान है। जब भी प्रकृति या मानवजानित भौतिक घटना जैव समाज के लिये हानिकारक और विनाशक हो तो उसे प्राकृतिक प्रकोप कहा जाता है। इनकी गहनता में अन्तर को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न शब्दावलियों का प्रयोग किया जाता है। 

स्पष्ट है कि भौतिक या पर्यावरणीय तत्त्वों से उत्पन्न विनाशकारी घटनाओं को प्राकृतिक प्रकोप कहते हैं, जैसे- भूकम्प, ज्वालामुखी, बाढ़, सूखा, मृदा अपरदन, सुनामी समुद्री लहरें आदि।

पर्यावरणीय प्रकोप के प्रकार

प्राकृतिक प्रकोपों को, जहाँ एक ओर प्रकृति की घटना के रूप में देखा जाता हैं, वहीं इनमें से कुछ का सम्बन्ध मानवीय अनुक्रियाओं से जोड़ा जाता हैं उदाहरण के लिए अधिक या कम वर्षा प्राकृतिक घटना है लेकिन वन विनाश के कारण इसके वितरण और सघनता में अन्तर महसूस किया जाने लगा है। अत: प्राकृतिक आपदाओं को दो प्रधान वर्गों में रखा जा सकता है:
  1. प्राकृतिक प्रकोप
  2. मानवजन्य संकट
प्राकृतिक प्रकोप घटना चक्र के रूप में आते-जाते रहते हैं जैसे- बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकम्प, ज्वालामुखी, महामारी आदि। जब मनुष्य इनसे आक्रान्त होता है, तो ये घटनाएँ भौागोलिक अध्ययन का अंग बन जाती हैं, क्योंकि इससे मानवीय अनुक्रियाएँ प्रभावित होती हैं। मनुष्य अपने कार्यों से प्राकृतिक संकटों को जन्म देता है या उन्हें बढ़ाता है जैसे वन विनाश से बाढ़, सूखा और भूमिक्षरण का संकट; अपशिष्ट पदार्थों से वायु, मृदा, जल आदि के प्रदूषण का संकट, बाँध, सड़क, सुरंग और उत्खनन से भूस्खलन का संकट आदि। स्पष्ट है कि प्राकृतिक तत्वों के साथ छेड़छाड़ या अपनी आवश्यकता के लिए प्रकृति पर अधिक दबाव आपदा का कारण बन जाता है।

मानवजनित संकटों का सामाजिक रूप भी होता है, जिसमें युद्ध, दंगे, देश विभाजन और औद्योगिक संकट आदि आते है। अत: प्राकृतिक प्रकोपों में कुछ का सम्बन्ध मूलत: प्राकृतिक घटना चक्रों से होता हैं, जबकि कुछ का मानवजनित क्रियाकलापों से।

1. प्रकृतिजन्य प्रकोप

प्रकृतिजन्य प्रकोपों में कुछ का सम्बन्ध पृथ्वी के धरातल से और कुछ का सम्बन्ध पृथ्वी के गर्भ की घटनाओं से है। भूकम्प इसमें सबसे अधिक विनाशकारी प्रकोप है। ज्वालामुखी और भूस्खलन भी भयानक संकट के कारण बन जाते हैं। प्राकृतिक प्रकोपों में बाढ़, सूखा, चक्रवात, उपलवृष्टि, शीतलहर आदि वायुमण्डल की चरम घटनाएँ हैं। इनका प्रकोप भी मानव की व्यवस्था को लुंज-पुंज कर देता है। 

विश्व में प्रतिवर्ष अरबों की सम्पत्ति और लाखों लोग इनकी चपेट में आकर कालकवलित हो जाते है। कभी-कभी भूकम्प, चक्रवात, सुनामी और बाढ़ की विनाशलीला के सामने मानव की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियाँ बौनी बन जाती हैं विश्व के कुछ देश इनके चलते अपनी गरीबी से उबरने में असमर्थ हो जाते है। 

विकासशील देशों में प्राकृतिक प्रकोपों का निरीक्षण किया जाये तो पता चलता है कि वर्ष 1960 से 1987 के मध्य ऐसी घटनाओं में (भूकम्प, चक्रवात, ज्वालामुखी) 4.3 लाख लोगों की मृत्यु हुई और अनुमानत: अरबों डॉलर की सम्पत्ति नुकसान हुई। इस अवधि का सबसे विनाशकारी भूकम्प 1976 में चीन में आया था, जिससे 242 हजार लोग मारे गये और करोड़ों डॉलर की सम्पत्ति नष्ट हो गई। हाल में महाराष्ट्र के दक्षिण भाग में आया भूकम्प कम हृदय विदारक नहीं था। 

भारत बाढ़, सूखा, उपलवृष्टि आदि से हमेशा जूझता रहा है। भारत की गरीबी और भूखमरी के लिये प्राकृतिक प्रकोपों की भूमिका अहम् बन गई है। यहाँ प्रति वर्ष किसी-न-किसी क्षेत्र में इनके कारण अकाल, भुखमरी, बेहाली का आलम बना रहता है।

2. मानवजन्य प्रकोप

मानव की कुछ अनुक्रियाएँ प्रकृति को प्रकोपित करती हैं। फलत: ऐसी घटनाएँ प्रकट होती हैं, जो स्वभावत: अप्रतयाशित लगती हैं। ऐसी घटनाओं से जब जन-धन की क्षति होती है, तो उन्हें मानवजनित प्रकोप कहते हैं। इनमें से कुछ चरम घटनाएँ भौतिक तत्त्वों से सम्बन्धित होती हैं, जिन्हें मानवजनित भौतिक प्रकोप कहा जाता हैं, जैसे भूस्खलन, मृदा अपरदन, जलप्लावन, सूखा आदि। मानव की सामाजिक कुव्यवस्था से युद्ध, दंगा, महामारी, नाभिकीय दुर्घटना, औद्योगिक दुर्घटना, आतंकवाद और जहरीला रसायन विमोचन मानवता के लिए संकट का कारण बन जाते हैं। 

पंजाब के आतंकवादी कभी रेल पटरी उड़ा देते थे तो कभी नहर काटकर जलप्लावन से संकट उत्पन्न करते थे। इसी प्रकार नाभिकीय दुर्घटना, विषाक्त रयासनों के विमोचन आदि से पर्यावरणीय संकट मानवता के लिए अभिशाप बन जाता है। परिवहन दुर्घटना में प्रतिवर्ष लाखों लोगों की जानें जाती हैं। 

विश्व में अति तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या कुछ देशों में अतिरेक का रूप ग्रहण करती जा रही है, जिसे जनसंख्या कुछ देशों में अतिरेक का रूप ग्रहण करती जा रही है, जिसे जनसंख्या विस्फोट कहा जाता है। तीव्र जनसंख्या वृद्धि अनेक संकटों को जन्म देती हैं। साथ ही अधिक जनघनत्व के कारण प्राकृतिक प्रकोपों का प्रभाव भी सघन हो जाता है। एड्स, कैन्सर जैसी बीमारियाँ भी जैवीय प्रकोपों को चरितार्थ करती हैं। 

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रकृतिजन्य और मानवजन्य प्रकोपों से मानवता की अपार क्षति होती है, जिनके प्रभावों को कम करना या बचाव का उपाय ढूँढना हमारा कर्त्तव्य है।

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