भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक

भाषा का संबंध संस्कृति से होता है जिसे एक संस्कृति प्रपंच कहा जाता है भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के लोग एक ही भाव या विचार को विभिन्न शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं भाषा संप्रेषण एक लोकप्रिय माध्यम है भाषा के माध्यम से बालक अपने विचारों इच्छाओं और भावनाओं को दूसरों के साथ व्यक्त कर सकता है और दूसरों के विचारों को समझ सकता है बालकों को यदि भाषा का विकास ना हो तो निश्चित ही उनकी मानसिक योग्यताओं का विकास जिस सामान्य ढंग से होता है उस तरीके से नहीं होगा भाषा के माध्यम से जिन विचारों को व्यक्त किया जाता है उनमें स्पष्ट का सर्वाधिक होती है विचारों को व्यक्त करने के अन्य माध्यम भाषा के सामने हल्के हो जाते हैं बालक का सामाजिक विकास की भाषा पर आधारित है बालकों का प्रत्येक प्रकार का सीखना भाषा से किसी न किसी रूप से संबंधित है भाषा बालकों की ज्ञान वृद्धि अनेक विकासात्मक क्रियाओं के लिए आवश्यक है इसके द्वारा बच्चे अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को व्यक्त कर सकते हैं।

भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं -

बुद्धि 

भाषा की क्षमता एवं योग्यता का संबंध हमारी बुद्धि से अटूट होता है। भाषा की कुशलता भी उन बालकों में अधिक होती है, जो बुद्धि में अधिक होते है। बर्ट ने अपने “वैकवार्ड चाइल्ड” में संकेत किया है जिन बालकों की बुद्धि क्षीण होती है वे भाषा की योग्यता भी कम रखते है और पिछडे भी होते है। तीक्ष्ण बुद्धि बालक भाषा का प्रयोग उपयुक्त ढंग से करते है।

जैविकीय कारण

मस्तिष्क की बनावट भी भाषा विकास को प्रभावित करते है। भाषा बोलने तथा समझने की लिए स्नायु तंत्र, तथा वाक यंत्र की आवश्यकता होती है। बहुत हद तक इनकी बनावट तथा कार्य शैली तथा स्नायु नियंत्रण भाषा का प्रयोग उपयुक्त ढंग से करते है।

वातावरणीय कारक

भाषा संबंधी विकास पर व्यक्ति जिस स्थान और परिस्थिति में रहता है, आचरण करता है, विचारों का आदान-प्रदान करता है उसमें भाषा का विकास होता है। उदाहरण स्वरूप निम्न श्रेणी के परिवार व समाज के लोगों में भाषा का विकास कम होता है क्योंकि उन्हें दूसरों के संपर्क में आने का अवसर क म मिलता है। इसी प्रकार परिवार में कम व्यक्तियों के होने पर भी “ाषा संकुचित हो जाती है।

विद्यालय और शिक्षक

विद्यालय और शिक्षक भाषा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते है। विद्यालय में विभिé विषयों एवं क्रियाओं का सीखना तथा सिखाना भाषा के माध्यम से होता है। इस प्रक्रिया में भाषा संबंधी विकास अच्छे से होता है।

व्यवसाय एवं कार्य

ऐसे बहुत से व्यवसाय है जिनमें भाषा का प्रयोग अत्यधिक होता है, उदाहरण स्वरूप अध्यापन, वकालत, व्यापार कुछ ऐसे व्यवसाय है जिनमें भाषा के बिना कोई कार्य नहीं चल सकता। अतएव वातावरण के अंतर्गत इनको भी सम्मिलित किया गया है। 

अभिप्रेरणा, अनुबंधन तथा अनुकरण

मनोवैज्ञानिक के विचारानुसार भाषा संबंधी विकास अभिप्रेरणा, अनुबंधन एवं अनुकरण पर निर्भर करता है। एक निरीक्षण से ज्ञात हुआ कि बोलने वाले शिशु को प्रलोभन देकर स्पष्ट भाषी बनाया गया। एक दूसरे निरीक्षण में शिशुओं को चित्र दिखाकर उनके नाम याद कराये गये। ये अभिप्रेरण के महत्व को प्रकट करते है। भाषण प्रतियोगिता में पुरस्कृत होने पर छात्र को अधिक प्रभावशाली भाषा का प्रयोग करने का अभिप्रेरणा मिलती है।

अनुबंधन की प्रक्रिया में प्रलोभन पुरस्कार या अभिप्रेरणा के साथ प्रयत्न इस प्रकार जोड़ा जाता है कि प्रक्रिया पूरी हो जाती है। अनुकरण वास्तव में एक प्रकृति है जो सभी को अभिप्रेरित करती है। कक्षा में अध्यापक की सुस्पष्ट साहित्यिक तथा शुद्ध भाषा का अनुकरण सचेतन एवं अचेतन रूप में छात्र करते है तथा भाषा संबंधी विकास करने में सफल होते है।

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