उदयगिरि की गुफाएं और खंडगिरि की गुफाएं

उदयगिरि में रानीगुफा, रविगुफा, मंचपुरी, गणेशगुफा, हाथीगुफा तथा व्याघ्रगुफा हैं। खंडगिरि में नवमुनिगुफा, देवसभा, अनन्तगुफा आदि मुख्य गुफाएं हैं।

उदयगिरि की गुफाएं

रानीगुफा 

उदयगिरि की गुफाओं में रानीगुफा सबसे बड़ी एवं विशिष्ट है। इनमें निवास के लिए दो तल हैं। प्रत्येक तल में एक मध्यवर्ती कक्ष तथा आँगन (49×24 फुट) है। आँगन के तीन ओर भवन निर्मित हैं। इस गुफा की विशेषता है कि ऊपर की मंजिल निचले वाले के ठीक ऊपर न होकर पहाड़ के भीतर की ओर धँसी है।

हाथीगुफा

हाथीगुफा एक प्राकृतिक गुफा है। तत्पश्चात गुफा में कुछ सुधार कर अच्छी तरह से तैयार किया गया। हाथी गुफा पर राजा खारवेल का एक लम्बा लेख उत्कीर्ण है। 

गणेशगुफा

गणेशगुफा उदयगिरि की दूसरी महत्त्वपूर्ण गुफा है। यह गुफा दो मंजिल है तथा इसके पीछे की आरे द्विगर्भशाला, सामने स्तम्भो पर आश्रित मुखमण्डप है। इसका मुखमण्डप 30 फुट लम्बा और 60 फुट गहरा है? उस पर चढ़ने के लिए एक सोपान मार्ग बना है जिसके दोनों ओर ‘द्वारपाल-हाथी’ बने हैं।

4. व्याघ्रगुफा

उदयगिरि की यह गुफा मौलिक विन्यास के लिए महत्त्वपूर्ण है। इस गुफा की आकृति लेटे हुए बाघ की तरह है, जिसका ऊपरी जबड़ा छत पर तथा नीचे का देहली द्वार के स्थान पर है। यही इस गुफा का प्रवेश द्वार है। मुख के अन्दर का कमरा छ: फीट गहरा तथा आठ फीट चौड़ा, साढ ़े तीन फीट ऊँचा है। 

5. मंचपुरी

यह गुफा दा े मंजिल है, जिसमें से निचला गुफा ‘मचं पुरी’ तथा ऊपरीगुफा ‘स्वर्गपुरी’ कहलाता है। मचंपुरी गुफा में एक विस्तृत चतु: शाल का विन्यास है जिसके मुख्य भाग में अलिन्द के पीछे तीन तथा दाहिनी ओर एक प्रकोष्ठ है

खंडगिरि की गुफाएं

अनन्तगुफा

खंडगिरि की गुफाओं में अनन्तगुफा (संख्या तीन) सबसे महत्त्वपूर्ण और सुरक्षित गुफा है। इसकी भीतरी गर्भशाला 24 फुट लम्बी एवं 7 फुट गहरी है तथा स्तम्भो पर टिकी है। इसके सामने खुला छत है। इसमें चार प्रवेश द्वार थे। इनकी शाखाओं, गोलाम्बरों और तारेणो  में शिल्प के बीच में सुन्दर सजावट है। इस गुहा की दीवारों पर गजलक्ष्मी के रोचक चित्रण हैं। 

भाजा

पश्चिमी भारत के प्राचीन शैलकृत चैत्यगृहों में भाजा की गुहा सबसे प्राचीन है। भाजा में कलु 22 ऐसी गुफायें हैं, जिनमें चैत्यगृह और विहार कटे हुए 14 स्तूपों का समहू सम्मिलित है। इन सभी अवशेषों में भाजा का बड़ा चैत्यगृह विशेष उल्लेखनीय है। यह चैत्यगृह वास्तु कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण लक्षणों से युक्त है। 

कोण्डाने

कोण्डाने कार्ले से 10 मील दूर कोलावा जिले में स्थित है। यहाँ चैत्य एवं विहार दोनों स्थित है। यहाँ का चैत्यमण्डप भाजा चैत्यमण्डप की ही भाँति है, परन्तु आकार में उससे कुछ अधिक बड़ा है। यह 20.25 मी0 लम्बा तथा 8 मी0 चौड़ा है तथा इसकी ऊँचाई 8.50 मी0 है। 

पीतलखोरा

पीतलखोरा का प्राचीन नाम ‘‘पीतगल्य’’ था, जो औरंगाबाद से चालीस गाँव वाले शतमाला पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ कुल 13 गुफाएं हैं, जिनमें गुफा नं0 3 चैत्यगृह है जिसका विस्तार 86 फुट × 35 फुट है। इसका एक सिरा अर्द्धवृत्त अथवा बेसर आकृति का है। इस शैल गृह की रचना ई0पू0 दूसरी शती में आरम्भ हुई थी। पहले यह स्थल हीनयान मत का केन्द्र था परन्तु कालान्तर में यहाँ महायान का केन्द्र स्थापित हुआ। इसमें चट्टान में कटे 37 अठपहलू स्तम्भ थे, जिसमें से अब केवल 12 बचे हैं जो मध्य-मण्डप को प्रदक्षिणापथ से अलग करते थे। बचे हुए पुराने 12 स्तम्भो में भीतर की ओर प्राय: 3 इंच झुकाव अब भी मौजूद है। इन स्तम्भो पर 5वीं शताब्दी के कुछ चित्र तथा गुफा के निर्माण काल के दो लेख भी उपलब्ध हैं। 

Post a Comment

Previous Post Next Post