चिल्का उड़ीसा राज्य में स्थित एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। चिल्का झील की
लम्बाई 72 किलोमीटर तथा चौड़ाई 15 किलोमीटर है तथा यह झील लगभग 100 वर्ग किलोमीटर के
परिक्षेत्र में फैली हुई है। चिल्का मुख्य रूप से लगभग 158 प्रकार की प्रजातियों वाले पक्षियों की
शरणागाह है तथा झींग मछली के वाणिज्यिक उत्पादन का मुख्य स्रोत है।
चिल्का झील आस-पास के
गाँवों में रहने वाले लोगों की आजीविका का भी स्रोत है। तकरीबन दो लाख से ऊपर की आबादी के
लोग अपने जीवन एवं रहन-सहन के लिए चिल्का झील पर निर्भर है।
इन गाँववासियों के आय का
मुख्य स्रोत मत्स्य उत्पादन विषेशत: झींगा उत्पादन रहा है।
चिल्का बचाओं आंदोलन क्या है?
शताब्दियों से चिल्का क्षेत्र मत्स्य उत्पादन के
परम्परागत व्यवसाय के रूप में लोकप्रिय रहा है। अफगान शासकों एवं उसके बाद अंग्रेजी सरकार के
काल में भी चिल्का क्षेत्र में रहने वाले निवासियों के हित में कानून बनाए गए और यह व्यवस्था स्वतंत्र
भारत के आरम्भिक समय तक बनी रही। चिल्का झील में उपस्थित जल एवं सूर्य की किरणों के संयोग
से प्रकाष-संष्लेशण की प्रक्रिया संपादित होती है जिससे झील में उपस्थित घास व मछलियों को ऊर्जा
एवं भोजन प्राप्त होता है तथा पशुओं को चारा प्राप्त होता है। इस प्रकार चिल्का क्षेत्र के आस-पास
रहने वाले स्थानीय निवासियों को भी भोज्य पदार्थ एवं उनके पशुओं के लिए चारा तथा उनके आय के
लिए मछली प्राप्त होती है।
यह एक अत्यन्त संतुलित सतत् श्रम-उत्पादित तंत्र है। इसमें किसी
आयातित तकनीकी का प्रयोग नहीं हुआ है तथा यह पूर्ण रूप से स्थानीय निवासियों द्वारा विकसित
स्वतंत्र देशीय व्यवस्था है।
चिल्का का संघर्ष विकास बनाम गरीबों का संघर्ष है। यह संघर्ष स्थानीय लोगों द्वारा अपनी उन आवश्यकताओं को बनाये रखने के लिए प्रारम्भ किया गया, जिस पर उनका सैकड़ों वर्षों से अधिकार था और जिनके अभाव में उनका जीवन निर्वाह सम्भव नहीं था।
सन् 1991 में चिल्का झील में झींगा
उत्पादन हेतु जनता दल सरकार ने औद्योगिक इकाई टाटा का पुन: आमन्त्रित किया। उनका कहना था
कि देष की मौद्रिक निधि को बढ़ाने के लिए निर्यातपरक सुविधाओं को बढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है।
राज्य सरकार और उसकी सहयोगी औद्योगिक इकाई को इस बात से कोई सरोकार नही था कि पचास
हजार मछुआरे व लगभग दो लाख की जनसंख्या वाले ग्रामीण जो अपनी आजीविका के लिए चिल्का
झील पर निर्भर हैं, वे जीवित रहें अथवा मर जाएँ।
राज्य सरकार व सहयोगी कम्पनी को इस बात से
भी कोई सरोकार नही था कि उचित कार्यक्षमता व संतुलित पर्यावरण वाली चिल्का झील सदैव के लिए
नष्ट हो जाए।
वर्ष 1991 में राज्य सरकार व सहयोगी औद्योगिक इकाई टाटा के अनिष्टकारी कार्यों के विरोध में तीव्र संघर्ष प्रारम्भ हुआ। मछली पालन संगठन के नेतृत्व में 192 गाँवों के मछुआरों ने एकत्रित होकर अपने हित के लिए आवाज उठाई। इस संघर्ष में उत्कल विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने सहयोग प्रदान किया।
चिल्का बचाओं आंदोलन विकास के उन मानकों के खिलाफ था जो चिल्का क्षेत्र के लोगों की शान्तिप्रियता, उनकी पारिस्थितिकीय व रहन-सहन में दखल उत्पन्न कर रही थी। चिल्का बचाओ आंदोलन ने राजनीतिक क्षेत्र की छाया में पलने वाले पूँजीपतियों का विरोध किया व स्थानीय ग्रामीणों को संरक्षण प्रदान किया।
वर्ष 1991 में राज्य सरकार व सहयोगी औद्योगिक इकाई टाटा के अनिष्टकारी कार्यों के विरोध में तीव्र संघर्ष प्रारम्भ हुआ। मछली पालन संगठन के नेतृत्व में 192 गाँवों के मछुआरों ने एकत्रित होकर अपने हित के लिए आवाज उठाई। इस संघर्ष में उत्कल विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने सहयोग प्रदान किया।
चिल्का बचाओं आंदोलन विकास के उन मानकों के खिलाफ था जो चिल्का क्षेत्र के लोगों की शान्तिप्रियता, उनकी पारिस्थितिकीय व रहन-सहन में दखल उत्पन्न कर रही थी। चिल्का बचाओ आंदोलन ने राजनीतिक क्षेत्र की छाया में पलने वाले पूँजीपतियों का विरोध किया व स्थानीय ग्रामीणों को संरक्षण प्रदान किया।
चिल्का बचाओं आंदोलन तुलनात्मक रूप से छोटे अवधि का पर्यावरण संघर्ष
था, जिसने अहिंसा व सत्याग्रह के मार्ग पर चलकर विजय प्राप्त की।