द्रविड़ भाषाएँ भारत के दक्षिण में बोली जाती हैं। ये हैं तमिल, तेलुगु,
कन्नड़ और मलयालम। इसकी प्रमुख भाषाएँ और क्षेत्र ये हैं-
- तमिल (मद्रास में)
- तेलुगु (आन्ध्र प्रदेश में)
- कन्नड़ (मैसुर में)
- मलयालयम (केरल में)।
इसी परिवार में गोंडी (मध्य प्रदेश, बुन्देलखंड), कुरुख या ओराओं (बिहार, उड़ीसा), ब्राहुई (बलूचिस्तान) भाषाएँ भी हैं।
1. तमिल - तमिल भाषा द्रविड़ भाषाओं में सबसे प्राचीन है। इसमें उपलब्ध साहित्य से
स्पष्ट है कि इसका समय ईसा पूर्व की शताब्दियों का है। तमिल का सबसे पुराना
उपलब्ध साहित्य संघ साहित्य है। ‘तमिल’ शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित मत नहीं है। कुछ विद्वान मानते हैं
कि द्रविड़ से ही तमिल बना। तमिल भाषी विद्वान मानते हैं कि अभिष्तु (त्र अमृत,
मधु, शहद) के विपर्यय से ‘तमिल’ शब्द बना। तमिल भाषा का क्षेत्र आज का तमिलनाडु
राज्य है, जो पहले मद्रास प्रांत कहलाता था। यह तमिलनाडु की राजभाषा है।
तमिल भाषा की अपनी लिपि है जो ब्राह्मी के दक्षिणी रूप से व्युत्पन्न है। इसलिए इसमें कई वर्ण देवनागरी वर्णों के समान हैं। तमिल में महाप्राण ध्वनियाँ नहीं हैं। अत: व्यंजनों की संख्या सिर्फ़ 18 है। तमिल भाषा में संस्कृत और उर्दू से लिए हुए कई शब्द हैं, हालाँकि तमिल की साहित्यिक भाषा में मूल तमिल शब्दों का प्रयोग अधिक होता है।
द्रविड़ भाषाओं में मलयालम के बाद तेलुगु में सबसे अधिक संस्कृत शब्द हैं। आधुनिक युग तक के तेलुगु काव्य में बड़ी संख्या में संस्कृत शब्दों का प्रयोग होता रहा। संस्कृत जैसे ही विस्तृत समासों का प्रयोग होता रहा।
अन्य द्रविड़ भाषाओं और उनके स्थान का विवरण इस प्रकार है -
तमिल भाषा की अपनी लिपि है जो ब्राह्मी के दक्षिणी रूप से व्युत्पन्न है। इसलिए इसमें कई वर्ण देवनागरी वर्णों के समान हैं। तमिल में महाप्राण ध्वनियाँ नहीं हैं। अत: व्यंजनों की संख्या सिर्फ़ 18 है। तमिल भाषा में संस्कृत और उर्दू से लिए हुए कई शब्द हैं, हालाँकि तमिल की साहित्यिक भाषा में मूल तमिल शब्दों का प्रयोग अधिक होता है।
2. मलयालम - मलयालम आज के केरल राज्य की राजभाषा है। मलयालम भाषा का इतिहास बहुत पुराना नहीं है।15वीं शताब्दी में ही इसमें साहित्य
रचना का प्रारंभ हुआ। इसका उद्भव काल ईसा की 13वीं शताब्दी के आसपास है। मलयालम की लिपि तमिल लिपि से मिलती है। लेकिन इसमें देवनागरी के समान सारे
वर्ण हैं। इसमें सारे महाप्राण व्यंजन लिखे जाते हैं, फिर भी उच्चारण की पद्धति हिंदी
के अनुसार नहीं है। तमिल और मलयालम दोनों की उच्चारण व्यवस्था द्रविड़ शाखा की
उच्चारण व्यवस्था के अनुरूप है।
3. कन्नड़ - यह कर्नाटक राज्य की राजभाषा
है। कन्नड़ संभवतया द्रविड़ परिवार की भाषाओं में प्राचीनतम की दृष्टि से दूसरे स्थान
पर है। इसमें ईसा की सातवीं शताब्दी के शिलालेख मिलते हैं। उस समय के मध्ययुग
तक की कन्नड़ भाषा को पुरानी कन्नड़ (हले कन्नड) कहा जाता है, जो रूप में नयी
कन्नड़ (होस कन्नड) से भिन्न है। दसवीं शताब्दी में ही कन्नड़ में साहित्य रचना प्रारंभ
हो गयी थी।
4. तेलुगु - तेलुगु वर्तमान आंध्र प्रदेश की भाषा है, वहाँ की राजभाषा है। दक्षिण
उड़ीसा, उत्तर तमिलनाडु, पूर्वी कर्नाटक आदि क्षेत्रों में भी कई तेलुगु भाषा भाषी है।तेलुगु भाषा का
प्राचीनतम ग्रंथ नन्नय का महाभारत है, जिसका रचना काल 1000 ई. है। तेलुगु और कन्नड़ भाषा की लिपि एक ही है, सिर्फ कुछ वर्णों के आकारों में अंतर है
और मात्रा लिखने की शैली भिन्न है। आधुनिक युग में दोनों भाषाओं की एक लिपि के
निर्माण के प्रयत्न हुए हैं, लेकिन अभी तक एकीकरण संभव नहीं हो पाया है।
द्रविड़ भाषाओं में मलयालम के बाद तेलुगु में सबसे अधिक संस्कृत शब्द हैं। आधुनिक युग तक के तेलुगु काव्य में बड़ी संख्या में संस्कृत शब्दों का प्रयोग होता रहा। संस्कृत जैसे ही विस्तृत समासों का प्रयोग होता रहा।
अन्य द्रविड़ भाषाओं और उनके स्थान का विवरण इस प्रकार है -
- तुलु : कर्नाटक प्रदेश में मंगलूर आदि क्षेत्रों में व्यवहृत हैं। यह कन्नड़ लिपि में लिखी जाती है।
- कोडगु या कूर्ग : यह उत्तरी कर्नाटक में कूर्ग क्षेत्र की भाषा है।
- तोडा : यह तमिलनाडु के नीलगिरि ज़िले की तोडा जनजाति की भाषा है।
- गोंडी : इसका स्थान आंध्र प्रदेश है।
- कुई : इसका स्थान उड़ीसा प्रदेश है।
- कुडुख या ओराँव : इसका स्थान बिहार और उड़ीसा है।
- माल्तो : यह पहाड़ियों में बोली जाती है।
द्रविड़ भाषा परिवार की मुख्य विशेषताएं
- इस परिवार की भाषाएँ अश्लिष्ट योगात्मक हैं।
- इनमें ए-ए, ओ-ओ हस्व और दीर्घ दोनों हैं।
- इनमें यूराल-अल्ताई परिवार के तुल्य स्वर-अनुरूपता है।
- इनमें अन्तिम व्यंजन के बाद अतिलघु अ जोड़ा जाता है।
- संज्ञाओं का विभाग विवेकी-अविवेकी का उच्च जातीय-निम्नजातीय के आधार पर होता है।
- दो वचन और तीन लिंग हैं। लिग् का निर्धारण जीवित या निर्जीव वस्तु के आधार पर होता है। लिंग-बोध के लिए ‘पुरुष’ या ‘स्त्राी’ वाचक शब्द जोड़े जाते हैं।
- विशेषणों के रूप संज्ञा के अनुसार नहीं चलते हैं।
- विभक्तियों का काम परसर्गों या प्रत्ययों से लिया जाता है।
- क्रिया में कृदन्त रूपों की अधिकता है। कर्मवाच्य नहीं होता है।
- ‘निषोधात्मक वाच्य’ भी होता है। इसमें लुङ् लकार होता है।
- मूर्धन्य (टवर्ग) ध्वनियों की प्रधानता है।
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