मलिक मोहम्मद जायसी का जीवन परिचय और प्रमुख रचनाएं

मलिक मोहम्मद जायसी निर्गुण भक्ति काव्यधारा की प्रेमाश्रयी शाखा जिसे सूफी काव्य के रूप में भी जाना जाता है, के प्रतिनिधि कवि हैं। जायसी के जन्म की तिथि के संदर्भ में भी मतभेद हैं। मलिक मोहम्मद जायसी का जन्म वर्ष 870 हिजरी (1464 ई.) और मलिक मोहम्मद जायसी की मृत्यु 949 हिजरी (1542 ई.) में मान सकते हैं। 

जायसी के पिता का नाम मलिक शेख ममरेज था। इन्हें लोग मलिक राजे अशरफ भी कहते थे। इनकी माता शेख अलहदाद की पुत्री थीं। इनकी माता के नाम के बारे में जानकारी नहीं प्राप्त होती ।

मलिक मुहम्मद जायसी में ‘मलिक’ शब्द इनका कुलनाम बताया जाता है तथा जायसी जायस में प्रवास के कारण नाम में आया। मुहम्मद नाम में कुलनाम और प्रवास के कारण आया शब्द जुड़ने से इनका नाम बना- मलिक मुहम्मद जायसी।

जन्म-स्थान - जायसी के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है। 'जायस नगर मोर अस्थानू' के अनुसार जिला रायबरेली में जायस नगर में ये जन्में थे।

मलिक मोहम्मद जायसी का जन्म स्थान है  ये जायस में कहीं से आकर बसे थे। ये अटकल इसीलिए हैं, क्योंकि प्रामाणिक साक्ष्यों का अभाव है।

जायसी मलिक शेख ममरेज और मानिकपुर के शेख अलहदार की पुत्री की संतान बताए जाते हैं। यह जन प्रसिद्ध है कि जायसी बचपन में ही माता-पिता को खो चुके थे। साधु फकीरों के साथ समय बिताया और कुछ समय अपने नाना के पास मानिकपुर भी रहे। यह भी बताया जाता है कि मृत्यु के समय जायसी अत्यंत वृद्ध और संतानहीन थे। इनकी संतानहीनता को लेकर भी कई प्रकार के मत प्रचलित हैं। 

मलिक मोहम्मद जायसी सूफी मत से संबंधित थे। परंतु इनके गुरु के संदर्भ में भी विद्वानों में एक राय नहीं है। कुछ लोग सैयद अशरफ जहाँगीर को मलिक मोहम्मद जायसी के गुरु बताते हैं, तो कुछ लोग शेख मुहीउद्दीन को। पर ये दोनों मलिक मोहम्मद जायसी के गुरु प्रतीत नहीं होते। कुछ लोग शाह मुबारक बोलदे और शाह कमाल को भी मलिक मोहम्मद जायसी के  गुरु बताते हैं। ‘चित्ररेखा’ की पंक्तियों का हवाला देकर कालपी वाले मुहीउद्दीन महँदी को जायसी का गुरु कहा गया है : महँदी गुरु सेख बुरहानू। कालपि नगर तेहिंक अस्थानू।।

अन्य रचनाकारों की तरह जायसी के जीवन और व्यक्तित्व के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है। जो जानकारी उपलब्ध है, वह भी पर्याप्त विवादग्रस्त है। 

मलिक मोहम्मद जायसी की प्रमुख रचनाएं

ग्रन्थों की संख्या - जायसी के ग्रन्थों की संख्या को लेकर विद्वानों में मतभेद है। रामचन्द्र शुक्ल इनके ग्रन्थों की संख्या तीन बतायी है, ये हैं - पद्मावत, आखिरी कलाम तथा अखरावत । शुक्ल जी आगे कहते हैं कि जायस के लोग नेनावत तथो पोस्तीनामा को भी जायसी का ग्रन्थ मानते हैं।

सैय्यद आले मुहम्मद जायसी के 14 ग्रन्थ मानते हैं। जो निम्नलिखित हैं - (1) पद्मावत (2) सखरावत (3) अखरावट (4) चंपावत (5) इतरावत (6) मटकावत (7) चित्रांवत (8) मुर्दानामा (9) मोराईनामा (10) मुकहरानामा (11)
मुखरानामा (12) पोस्तीनामा (13) होलीनामा (14) आखिरी कलाम ।

डॉ. शिवसहाय पाठक ने अपने शोध के माध्यम से जायसी के चौबीस ग्रन्थों की सूची प्रस्तुत की है - (1) पद्मावत (2) अखरावत (3) सखरावत (4) चंपावत (5) इतरावत (6) महकावत (7) चित्रावत (चित्ररेखा) (8) मुर्दानामा (१) मोराईनामा (10) मुकहरानामा (11) मुखरानामा (12) पोस्तीनामा (13) होलीनामा (14) आखिरी कलाम (15) धनावत (16) सोरठ (17) जपजी (18) मैनावत (19) मेखरावतनामा (20) कहारनामा या कहरानामा (21) स्फुट कविताएँ (22) लहतावत (23) सकरानामा (24) मसला या मसलानामा ।

प्रो. वासुदेव सिंह जायसी की रचनाओं की संख्या सात बताते हैं - (1) पद्मावत (2) चित्ररेखा (3) कन्हावत (4) अजरावत (5) महिरी बाईसी या कटरानामा (6) आखिरी कलाम (7) मसलानामा ।

रामपूजन तिवारी ने जायसी की छः रचनाओं की चर्चा की है- (1) पद्मावत (2) आखिरी कलाम (3) अखरावत (4) चित्ररेखा (5) मसलानामा (6) महिरी बाईसी या कहरानामा ।

मलिक मोहम्मद जायसी के काव्य के इन प्रमुख पक्षों की विस्तृत जानकारी दी जा रही है।

1. अखरावत - ‘अखरावत’ को बहुत सारे विद्वान जायसी की आखिरी रचना मानते हैं। ‘अखरावत’ में वर्णमाला के एक-एक अक्षर को ध्यान में रख कर सैद्धांतिक विचार प्रस्तुत किए गए हैं। इस ग्रंथ का प्रारंभ जायसी ने सृष्टि की आदि शून्यावस्था से किया है। जब न गगन था, न धरती, सूर्य, चाँद। शून्य में करतार ने प्रथम पैगंबर मोहम्मद की ज्योति उत्पन्न की : गगन हुता नहिं महि हुती, हुते चंद नहिं सूर। सेसई अंधकूप महँ रचा मुहम्मद नूर।।

2. आखिरी कलाम -  आचार्य शुक्ल के अनुसार, ‘‘जायसी ने अपने ‘आखिरी कलाम’ को कुरान के अनुकरण पर ही बनाया है। प्रलय और अंतिम न्याय के दृश्य पूर्णत: इस्लाम सम्मत हैं। 

3. पद्मावत - जायसी की लोकप्रिय रचना ‘पद्मावत’ ही है। ‘पद्मावत’ के रचना समय के संदर्भ में उन्होंने लिखा है, ‘सन् नौ सै सैंतालिस अहै। कथा आरंभ बैन कवि कहै।।’‘पद्मावत’ एक प्रेमाख्यान है।
 
4. मसलानामा- जायसी की इस कृति का सर्वप्रथम प्रकाशन हिन्दुस्तानी अकादमी की शोध- पत्रिका 'हिन्दुस्तानी' में किया गया था। इसका संपादन अमर बहादुर सिंह 'अमरेश '52 ने भी किया है। यह जायसी की एक साधारण रचना है।

5. चित्रलेखा - डॉ. शिवसहाय पाठक ने इस ग्रन्थ का संपादन किया है। यह भी एक प्रेमकाव्य है। इसमें कवि ने लौकिक प्रेम कहानी के द्वारा अलौकिक प्रेम की अभिव्यञ्जना की है। इसमें कवि ने प्रेमी-प्रेमिका के माध्यम से लोकजीवन की झांकी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।

6. महिरीबाईसी का कहरानामा - बाईस छन्द होने के कारण इसे 'महिरी-बाईसी' नाम से जाना जाता है। माता प्रसाद गुप्त ने इसका संपादन किया है। डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने अपनी पुस्तक में एक फारसी लिपि का उल्लेख किया है, जिसमें जायसी ने इस काव्य का नाम 'कहरानामा' बताया है । इसमें ईश्वर और भक्त के मध्य में प्रेमी-प्रेमिका का सम्बन्ध स्थापित किया गया है।

7. कन्हावत - इसकी रचना सन् 947 हि. में की गयी थी। इसमें कृष्ण के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया गया है।

8. मधुमालती - मधुमालती के रचनाकार मंझन थे। ये सूफी कवि थे। मंझन के बारे में अधिक जानकारी नहीं प्राप्त होती; क्योंकि मंझन ने मधुमालती में अपने बारे में कुछ नहीं लिखा है। रामचन्द्र शुक्ल ने इस सम्बन्ध में लिखा है-" इनके सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं है। केवल इनकी रचना मधुमालती की एक खंडित प्रति प्राप्त हुई है। ''

मंझन के पिता का नाम अब्दुल्ला काजी खेरुद्दीन शरीफ था। इनकी माँ काजी समाउद्दीन देहलवी की पुत्री थीं। मंझन का निवास स्थान कहाँ था ? इस पर विद्वानों में मतभेद है। परशुराम चतुर्वेदी तथा डॉ. सरला शुक्ल मंझन का निवास स्थान अनूपगढ़ मानते हैं। श्री शिवगोपाल इनका निवास-स्थान चुनारगढ़ मानते हैं। जो उस समय जौनपुर राज्य का अङ्ग था और उस समय जौनपुर भी विद्या का महान् केन्द्र था। लेकिन कुछ विद्वान् इनका निवास-स्थान लखनौती (बंगाल) को भी बताते हैं।

उपर्युक्त विवेचन के पश्चात् गोसी सत्तारी की पुस्तक 'गुलजोर अखरार' के आधार पर कहा जा सकता है कि मंझन की जन्मभूमि लखनौती ही थी।

मधुमालती के रचनाकाल के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान् तो मधुमालती को पद्मावत से पूर्व की रचना मानते हैं। रामचन्द्र शुक्ल ने इसकी रचना का समय वि. सं. 1550 से 1595 के मध्य माना है। 59 प्रारम्भ में मधुमालती खंडित रूप में मिलती थी। इस कारण इसके रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं था, लेकिन हाल ही में रामपुर के पुस्तकालय में मधुमालती पूर्ण अवस्था में मिली जिससे इसके रचनाकाल के सम्बन्ध में विवाद समाप्त हो गया। मधुमालती की रचना मंझन ने शेरशाह के पुत्र शाह सलीम के शासनकाल में सन् 1545 ई. में की। इस प्रकार मंझन का समय 16वीं सदी था।

मंझन ने मधुमालती में कनेसर के राजा मनोहर और महारस की राजकुमारी मधुमालती के प्रेम का वर्णन किया है। मंझन ने इसमें मनोहर एवं मधुमालती के प्रेम के माध्यम से ईश्वर एवं साधक के प्रेम के स्वरूप को प्रकट किया है। जब राजकुमार मनोहर पहली बार मधुमालती से मिलता है तो अपने प्रेम को व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरा प्रेम तुम्हारे प्रति कई युगों से है। जिस दिन मैं इस संसार में आया हूँ उसी दिन से मेरा प्रेम तुम्हारे प्रति है ।
मधुमालती में भी मृगावती के समान पाँच चौपाइयों के बाद एक दोहा रखा गया है। इसमें कल्पना पर बहुत अधिक बल दिया गया है।

9. चित्रावली - यह उस्मान की कृति है। उसमान गाजीपुर के निवासी थे। इन्होंने अपने ग्रन्थ में गाजीपुर नगर का विस्तृत वर्णन किया है। इनके पिता का नाम शेख हुसैन था। उस्मान निजामुद्दीन चिश्ती को अपना गुरु मानते थे।
उस्मान जहाँगीर के समकालीन थे; क्योंकि उन्होंने अपने ग्रन्थ में जहाँगीर की प्रांसा की है। उस्मान जहाँगीर की न्यायप्रियता से काफी प्रभावित थे। 

उस्मान ने अपनी चित्रावली में इसकी रचना का समय 1022 हि. अर्थात् 1613 ई. बताया है- 
सन सहस्त्र बाइस जब अहे, तब हम वचन चारि एक कहे। 
कहत करेज सोहू भा पानी, सोई जान नीर जिन्ह जानी। 
मोरी बुद्धि जहाँ लहु अही, जहँ लहु ससि कथा में कही। 
जाकी बुद्धि होई अधिकाई, आन कथा एक कहे बनायी ॥
मैं अज्ञान जग बाल सम, आन न कहू सोहाय । 
कहों कहानी प्रेम की जेहि निसि जाय विहाय ॥
उस्मान ने चित्रावली में नेपाल के राजा धरनीधर के पुत्र सुजान और उपनगर की राजकुमारी चित्रावली की प्रेमकथा है। चित्रावली में भी सूफी परम्परा के अनुसार रूप, प्रेम और विरह को दर्शाया गया है। चित्रावली की कथा पद्मावत की भाँति ऐतिहासिक न होकर कल्पनाप्रसूत है। चित्रावली में कवि ने परम्परायुक्त घटनाओं, आश्चर्यतत्त्वों एवं यौगिक क्रियाओं का समावेश कर लौकिक कथा को आध्यात्मिक कथा का रूप प्रदान कर दिया है। स्थान-स्थान पर भारतीय धर्म एवं दर्शन के सिद्धान्तों के प्रति श्रद्धा प्रकट की है। चित्रावली - की भाषा अवधी है। इसके अतिरिक्त इसमें संस्कृत, अरबी, फारसी, भोजपुरी आदि शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। उस्मान की भावशैली, प्रबन्धकौशल सभी कुछ जायसी से बहुत कुछ समानता रखता है। साथ ही हिन्दी सूफी प्रेमाख्यान परम्परा में जायसी के बाद उस्मान कवि का ही नाम लिया जाता है।

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