सत्याग्रह का अर्थ
सत्याग्रह का अर्थ है, ‘आग्रह’, सत्य के लिये नैतिक दबाव डालना। सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिये आग्रह करना होता है। यह संसार में जो कुछ भी बुरा, अन्यायपूर्ण, अपवित्र तथा असत्य है, उसका प्रतिरोध प्रेम, आत्म-यंत्रणा, आत्म-शुद्धता तथा विरोधी की आत्मा में स्थित दिव्यता पर सीधा प्रभाव डालते हुए करने की तकनीक है।
सत्याग्रह का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह अर्थात् सत्य से जुड़े
रहना। अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना,
सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्यु
का वरण करना चाहिए और मरते-मरते भी जिसके विरूद्ध सत्याग्रह कर रहे है,
उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।
सत्याग्रह में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिये कोई स्थान नहीं है इसमें शालीनता है, यह कभी चोट नहीं पहुँचाता। यह धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करता है। यहां धैर्य का तात्पर्य कष्ट सहन से है। इसलिये इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, विरोधी को कष्ट एवं पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।
महात्मा गाँधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद ‘प्रेम’ अध्याहत है। सत्याग्रह मध्यम पद लोपी समास है। सत्याग्रह यानि सत्य के लिये प्रेम द्वारा आग्रह ( सत्य + प्रेम + आग्रह = सत्याग्रह )। सत्याग्रह आत्म यंत्रणा तथा प्रेम के द्वारा सत्य का पक्ष-पोषण करना है। यह जबरदस्ती के विरूद्ध है तथा यह सबसे अधिक शक्तिशाली और वीर का हथियार है।
सत्याग्रह एक प्रतिकार पद्धति ही नहीं है, एक विशिष्ट जीवन पद्धति भी है, जिसके मूल में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, निर्भयता, ब्रह्मचर्य, सर्वधर्म समभाव आदि व्रत है। जिनका व्यक्तिगत जीवन इन व्रतों के कारण शुद्ध नहीं है, वह सच्चा सत्याग्रही नहीं हो सकता। इसलिये विनोबा इन व्रतों को ‘सत्याग्रह निष्ठा’ कहते है।
सत्याग्रह में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिये कोई स्थान नहीं है इसमें शालीनता है, यह कभी चोट नहीं पहुँचाता। यह धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करता है। यहां धैर्य का तात्पर्य कष्ट सहन से है। इसलिये इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, विरोधी को कष्ट एवं पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।
महात्मा गाँधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद ‘प्रेम’ अध्याहत है। सत्याग्रह मध्यम पद लोपी समास है। सत्याग्रह यानि सत्य के लिये प्रेम द्वारा आग्रह ( सत्य + प्रेम + आग्रह = सत्याग्रह )। सत्याग्रह आत्म यंत्रणा तथा प्रेम के द्वारा सत्य का पक्ष-पोषण करना है। यह जबरदस्ती के विरूद्ध है तथा यह सबसे अधिक शक्तिशाली और वीर का हथियार है।
सत्याग्रह एक प्रतिकार पद्धति ही नहीं है, एक विशिष्ट जीवन पद्धति भी है, जिसके मूल में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, निर्भयता, ब्रह्मचर्य, सर्वधर्म समभाव आदि व्रत है। जिनका व्यक्तिगत जीवन इन व्रतों के कारण शुद्ध नहीं है, वह सच्चा सत्याग्रही नहीं हो सकता। इसलिये विनोबा इन व्रतों को ‘सत्याग्रह निष्ठा’ कहते है।
सत्याग्रह के रूप
1. असहयोग
गाँधीजी का विचार था कि एक सरकार उस समय तक ही
अत्याचार को जारी रख सकती है, जब तक कि जनता उसे सहयोग दे। जनता
का असहयोग सरकार को पंगु एवं गतिहीन बना देगा। असहयोग इन रूपों में
व्यवहार में लाया जा सकता है- हड़ताल, सामाजिक बहिष्कार, तथा पिकेटिंग।
यथापि यह एक वैध तकनीक प्रतीत होती है, तथापि सार्वजनिक पैमाने पर
व्यवहार के लिये यह एक सशक्त तकनीक सिद्ध नहीं होती।
2. नागरिक अवज्ञा
गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा को राजनीतिक सिद्धांत की
एक मान्य विधा का दर्जा देने एवं इस तकनीक को प्राप्त कराने में महत्वपूर्ण
योग दिया। यह उन कानूनी नियमों का उल्लंघन है जो अनैतिक हो। यह
सशस्त्र क्रांति का एक पूर्ण, प्रभावशाली तथा रक्तहीन विकल्प है।
3. उपवास
यह सत्याग्रह का अंतिम रूप है। यह सर्वाधिक शक्तिशाली तीक्ष्ण
शस्त्र है। यही कारण है कि गाँधीजी इसके प्रयोग में अत्यधिक सावधानी बरतने
का परामर्श देते है। उपवास सभी अवसरों के लिये नहीं, वरन् अत्यधिक
असामान्य अवसरों के लिये था। उपवास इस पूर्व कल्पना पर रखा जाता था कि
उपवासकर्ता आध्यात्मिक दृष्टि से योग्य है, पवित्र मन वाला है तथा उसमें
अनुशासन, नम्रता एवं विश्वास है। गाँधीजी की सम्मति में उपवास तभी रखे
जाने चाहिए, जब अन्य सभी उपाय परखे जा चुके हो और प्रभावहीन सिद्ध हो
चुके हो।
4. शांतिपूर्ण धरना
यह भी सत्याग्रह का वैध तथा उपयोगी प्रकार है।
स्वाधीनता संग्राम के दिनों में सफलतापूर्वक इसका प्रयोग किया गया। इसकी
न्यायता को 4 मार्च, 1931 के गाँधी-इरविन समझौते में भी स्वीकार किया गया
था।
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