सिद्ध योग क्या है, इसके कार्य और लाभ

सिद्धि योग नाथमत के योगियों की देन है इसमें सभी प्रकार के योग जैसे भक्तियोग, कर्मयोग, राजयोग, क्रियायोग, लययोग, भावयोग, हठयोग आदि सम्मिलित हैं इसीलिए इसे पूर्ण योग या महायोग भी कहते हैं इससे साधक के त्रिविध ताप आदि दैहिक, भौतिक, दैविक नष्ट हो जाते हैं तथा साधक जीवनमुक्त हो जाता है। 

पतंजलि योगदर्शन में योग के आठ अंगों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि का वर्णन है। बौद्धिक प्रयास से इस युग में उनका पालना करना असम्भव है। इसलिये इतने महत्वपूर्ण दर्शन के बारे में नगण्य लोगों को ही जानकारी है परन्तु गुरु शिष्य परम्परा में शक्तिपात दीक्षा से कुण्डलिनी को जागृत करने का विधान है। 

सद्गुरु देव साधक की कुण्डलिनी शक्ति को चेतन करते हैं वह जागृत कुण्डलिनी साधक को उपर्युक्त अष्टांग योग की सभी साधना स्वयं अपने अधीन करवाती है इस प्रकार जो योग होता है उसे सिद्धि योग कहते है। 

सिद्धि योग में गुरु सियाग के प्रति पूर्ण विश्वास एवं समर्पण के साथ दीक्षा में दिये गये मंत्र का जाप एवं ध्यान सम्मिलित है। ध्यान कैसे करना है, 

सिद्धि योग के कार्य 

मानव शरीर में सूक्ष्म स्तर पर नसों एवं नाड़ियों का एक जाल है, जो रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से से लेकर गले में थॉयराइड ग्रन्थि तक एक निश्चित अन्तराल पर एक, के ऊपर एक इस तरह छ: चक्रों अथवा उर्जा केन्द्रों को आपस में जोड़ता है, यह चक्र सुशुम्ना नाड़ी में होते हैं, जो रीढ़ की हड्डी के समानान्तर नीचे से उपर की ओर, सिर के उपरी हिस्से तक जाती है सिर के इस ऊपरी भाग को सहस्त्रार कहते हैं जो ईश्वर का निवास स्थान है।

जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है तो यह सहस्त्रार में स्थित अपने स्वामी से मिलने के लिये लहराती हुई ऊपर की ओर उठती है। समर्थ सदगुरु साधक की कुण्डलिनी को चेतन करते हैं। जागृत कुण्डलिनी पर समर्थ सदगुरु का पूर्ण नियंत्रण होता है, वे ही उसके वेग को अनुशासित एवं नियंत्रित करते हैं समाधिस्त होने के लिये पहली शर्त है पूर्ण रोग मुक्ति। भारतीय योग दर्षनानुसार काइेर् रोग असाध्य नहीं है। 
 
गुरुकृपा रुपी शक्तिपात दीक्षा से कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर 6 चक्रों का भेदन करती हुई सहस्त्रार तक पहुँचती है कुण्डलिनी द्वारा जो योग करवाया जाता है उससे मनुष्य के सभी अंग पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं, साधक का जो अंग बीमार या कमजोर होता है मात्र उसी की योगिक क्रियायें ध्यानावस्था में होती हैं एवं कुण्डलिनी शक्ति उसी बीमार अंग का योग करवाकर उसे पूर्ण स्वस्थ कर देती है।

सिद्धि योग के लाभ

  1. इससे साधक के सभी प्रकार के शारीरिक रोगों  से मुक्ति संभव है। मानसिक रोग जैसे भय, चिन्ता, डिप्रेषन, अनिद्रा, आक्रोश, तनाव, आदि से मुक्ति संभव।
  2. सभी प्रकार के नषों से बिना परेशानी के छुटकारा संभव। - मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक असंतुलन को दूर कर शरीर को पूर्ण स्वस्थ बनाता है।
  3. आध्यात्मिकता के पूर्ण ज्ञान के साथ भूत तथा भविष्य की घटनाओं को ध्यान के समय कभी -2 प्रत्यक्ष देख पाना सम्भव।
  4. एकाग्रता एवं याददाश्त में वृद्धि।
  5. सिद्धि योग साधक को उसके कर्मों के उन बन्धनो से मुक्त करता है जो निरन्तर चलने वाले जन्म-मृत्यु के चक्र में उसे बांधकर रखते हैं।
  6. ईश्वरीय शक्ति द्वारा तामसिक वृत्ति के शान्त होने से मानव जीवन का दिव्य रुपान्तरण संभव।
  7. साधक को उसकी सत्यता का भान एवं आत्म साक्षात्कार कराता है। 
  8. गृहस्थ जीवन में रहते हुए भोग और मोक्ष के साथ ईश्वर की प्रत्यक्षानुभूति सम्भव।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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