भारतीय आर्य भाषाओं का वर्गीकरण एवं विशेषताएँ

1) सिंधी - सिंधी मूलत: आज के पाकिस्तान के सिंध प्रांत के निवासियों की भाषा है। भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय सिंधी भाषी पाकिस्तान छोड़कर भारत में आए और भारत के कई स्थानों में बसे, इस कारण सिंधी भाषा का अपना कोई प्रदेश नहीं है, जैसे कि अन्य कई भाषाओं के संदर्भ में देखने को मिलता है। सिंध प्रांत में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही थे और मुस्लिम बहुतायत थी। इस कारण सिंधी भाषा में अरबी-फ़ारसी शब्दों की बहुलता है और इसकी लिपि फ़ारसी लिपि पर आधारित रूप है। आज भारत में बसे हुए सिंधी भाषी अपनी भाषा को देवनागरी में भी लिखने का यत्न कर रहे हैं। इस भाषा की एक बोली भारत में कच्छ में बोली जाती है, जिसे कच्छी कहते हैं। कच्छी पर गुजराती भाषा का गहरा प्रभाव दिखाई पड़ता है। 

2) लहंदा : लहंदा पश्चिमी पंजाब की भाषा है, जो इस समय पाकिस्तान का एक हिस्सा है। स्वभावत: भारत-पाक विभाजन के बाद कई लहंदा भाषी भारत आए और भारत के कई स्थानों में बस गए। लहंदा शब्द का अर्थ है सूर्यास्त की दिशा अर्थात् पश्चिमी। इसलिए इस नाम का तात्पर्य है पश्चिम की बोली। यह भाषा भी फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। इस भाषा में भी लिखित साहित्य अधिक उपलब्ध नहीं होता। 

3) पंजाबी : पंजाबी भाषा पूर्वी पंजाब जो कि भारत में है और पाकिस्तान के पंजाब भारतीय आर्य भाषाएँ प्रदेश (पश्चिमी पंजाब) दोनों की भाषा है। पंजाब शब्द फ़ारसी का है, इसका अर्थ है पाँच नदियों का देश। पंजाब प्रदेश की भाषा होने के कारण इसका नाम पंजाबी पड़ा है। भारतीय क्षेत्र में पंजाबी भाषा बोलने वालों में सिक्ख प्रमुख हैं। 

4) गुजराती : गुजराती आज के गुजरात प्रांत की भाषा है और उत्तरी महाराष्ट्र में भी विशेषकर बंबई में गुजराती भाषियों की अच्छी संख्या है। इसी क्षेत्र के पारसियों ने भी अपनी पुरानी भाषा के स्थान पर गुजराती को अपना लिया है। गुजराती की अपनी लिपि है जो देवनागरी से मिलती-जुलती है। गुजरात शब्द गुर्जर से बना है अर्थात् यह गुर्जर जाति के लोगों का प्रदेश था। गुजराती में 12वीं शताब्दी से ही साहित्य सृजन के लक्षण मिलते हैं। गुजराती के प्रमुख कवि नरसी मेहता, जिन्होंने कृष्ण भक्ति के पदों की रचना की, 15वीं शताब्दी के हैं। इसी तरह प्रेमानंद, अखो भगत आदि प्राचीन लेखक थे। आधुनिक युग में भी गुजराती में कई अच्छे प्रतिष्ठित लेखक हुए हैं। 

5) मराठी : मराठी महाराष्ट्र की भाषा है। साथ ही गोवा प्रदेश की भी एक बड़ी आबादी मराठी भाषा बोलती है। मराठी भाषा साहित्य की दृष्टि से बहुत सम्पन्न भाषा है।  मराठी भाषा की कई बोलियाँ हैं। जैसे विदर्भ की मराठी, मराठवाड़ा की मराठी आदि। पुणे के बोली जाने वाली मराठी भाषा मानक मानी जाती है। गोवा की प्रमुख भाषा कोंकणी है, जिसे कुछ विद्वान मराठी भाषा की ही बोली या उपभाषा मानते हैं। लेकिन कोंकणी को मराठी से भिन्न भाषा के रूप में स्वीकृति हेतु कोंकणी भाषी प्रयत्नशील है। मराठी पहले मोड़ी नाम की लिपि में लिखी जाती थी लेकिन आधुनिक मराठी ने देवनागरी को लिपि के रूप में अपना लिया है। 

6) ओड़िया : यह उड़ीसा प्रदेश की भाषा है। उड़ीसा दक्षिण में आंध्र प्रदेश से, उत्तर में पश्चिम बंगाल से और पूर्व में बिहार तथा मध्यप्रदेश से घिरा हुआ है, इसलिए इस भाषा में आस-पड़ोस की भाषाओं और बोलियों का प्रभाव दिखाई पड़ता है। ओड़िया शब्द का अर्थ क्या है? यह मतभेद का सवाल है। विद्वान मानते हैं कि यह उत्कल देश की भाषा है। उड़ीसा का प्राचीन नाम कलिंग था, जो अब व्यवहृत नहीं होता। ओड़िया की अपनी लिपि है जो ब्राह्मी के दक्षिणी रूप से निकली हुई है। जिस तरह द्रविड़ भाषाएँ गोल-गोल अक्षरों में लिखी जाती थीं और ताड़ पत्रों में गोल अक्षर लिखना आवश्यक था उसी प्रकार उड़िया लिपि भी काफ़ी गोलाकार लिये हुए है। इसमें सीधी शिरोरेखा के स्थान पर गोल शिरोरेखा मिलती है। इस विशिष्टता के कारण ओड़िया लिपि देखने में चित्रात्मक और सुंदर लगती है, लेकिन कुछ कठिन भी दिखाई पड़ती है। यह भाषा पूर्व की भाषा है, इसलिए पूर्वी भाषाओं के कुछ गुण इसमें दिखाई पड़ते हैं। इसमें आकार का गोलाकार उच्चारण होता है, जैसे बांगला में भी होता है। इस भाषा में भक्ति संबंधी मध्यकालीन साहित्य की रचना मिलती है और इसका आधुनिक साहित्य भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। 

7) बांगला: बांगला बंगाल प्रदेश की भाषा है। बांगला वास्तव में संस्कृत शब्द बंग देश का आधुनिक रूप है। आप जानते ही हैं कि भारत-पाक विभाजन के समय बंगाल भी दो भागों में बंट गया। पश्चिम बंगाल भारत में आया और पूर्वी बंगाल इस समय बांगला देश के नाम से एक अलग देश है। इस तरह बांगला देश की राजभाषा है। बांगला की लिपि ब्राह्मी की पूर्वी लिपि है। इसी लिपि में कुछ संशोधन के साथ असमी भाषा भी लिखी जाती है और मणिपुरी भाषा भी। बांगला भाषा पूर्व की भाषाओं की प्रमुख भाषा है इसलिए इसमें पूर्व की भाषाओं के कुछ प्रमुख लक्षण दिखाई पड़ते हैं, जैसे अ का उच्चारण ओकार लिये हुए होना, /स/का/श/के रूप में उच्चारण और व्यंजन गुच्छों का कई जगह समीकरण। यह प्रवृत्ति असमिया में भी दिखाई पड़ती है। बांगला साहित्य की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध भाषा है। मध्य युग में इस भाषा में भक्ति साहित्य की रचना हुई। आधुनिक युग में इसके प्रमुख कवि, लेखक रवीन्द्र नाथ ठाकुर विश्व प्रसिद्ध हुए जिनकी कृति ‘गीतांजलि’ पर उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। आधुनिक युग में शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय, बंकिम चन्द्र चटर्जी आदि बड़े लेखक हुए। 

8) असमी भाषा : असमिया असम प्रदेश की भाषा है। असम शब्द के अर्थ के बारे में भी विद्वानों में मतभेद हैं। इस प्रदेश का ऐतिहासिक नाम कामरूप था। लेकिन यह कैसे असम हुआ इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। असमी भाषा अपनी भाषा को असमिया कहते हैं। इसकी लिपि के बारे में पहले उल्लेख किया जा चुका है कि यह बांगला लिपि के अधिक निकट है, केवल कुछ अक्षरों में अंतर है। असमी भाषा का साहित्य प्राचीन है। 

भारतीय आर्य भाषाओं का वर्गीकरण

भारतीय आर्य भाषाओं का वर्गीकरण 

डा. ग्रियर्सन का वर्गीकरण

भारतीय आर्य भाषाओं का वर्गीकरण आधुनिक प्रयास है। 19वीं शताब्दी कें अंत में डा. ग्रियर्सन नामक, अंग्रेज़ भारत में प्रशासनिक सेवा में थे। उन्होंने 1890 में भारतीय भाषाओं के सर्वेक्षण के आधार पर ‘‘भारतीय भाषा सर्वेक्षण’’ तैयार किया। यह ग्रंथ 12 भागों में प्रस्तुत है। उसमें उन्होंने सारी भारतीय भाषाओं का विस्तार से अध्ययन किया, उनकी शब्दावली, रूप रचना आदि व्याकरणिक विशेषताओं का विश्लेषण किया और उक्त विश्लेषण के आधार पर उन्होंने भाषाओं को परिवारों में और परिवार के भीतर समूहों या वर्गों में विभाजित किया। 

गियर्सन का वर्गीकरण इस प्रकार से हैं : ग्रियर्सन के अनुसार भारतीय आर्य भाषाओं के वर्गीकरण के दो आयाम हैं। सबसे पहले वे इन भाषाओं को बाहरी, बीच की, भीतरी तीन उपशाखाओं में बाँटते हैं और फिर इन उपशाखाओं के भीतर मिलती-जुलती भाषाओं के समुदायों की चर्चा करते हैं।

सर्वेक्षण के प्रथम भाग में आधुनिक आर्य भाषाओं का निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकरण किया है। 
  1. बाहरी उपशाखा प्रथम - उत्तरी-पश्चिमी समुदाय 1) लहंदा अथवा पश्चिमी पंजाबी 2) सिन्धी द्वितीस - दक्षिणी समुदाय 3) मराठी तृतीय - पूर्वी समुदाय 4) ओड़िया 5) बिहारी 6) बांगला 7) असमिया 
  2. मध्य उपशाखा चतुर्थ - बीच का समुदाय 8) पूर्वी हिंदी 
  3. भीतरी उपशाखा पचम-केंद्रीय अथवा भीतरी समुदाय 9) पश्चिमी हिंदी 10) पंजाबी 11) गुजराती 12) भीली 13) खानदेशी 14) राजस्थानी षष्ठ-पहाड़ी समुदाय 15) पूर्वी पहाड़ी अथवा नेपाली 16) मध्य या केंद्रीय पहाड़ी 17) पश्चिमी पहाड़ी 

डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी का वर्गीकरण

भारतीय आर्य भाषाएँ ग्रियर्सन के वर्गीकरण की चर्चा के बाद हम डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के वर्गीकरण को जान लें। चटर्जी ने ‘बांगला भाषा का उद्गम और विकास’ शीर्षक अंग्रेज़ी शोध ग्रंथ में ग्रियर्सन के वर्गीकरण का खंडन करते हुए अपना वर्गीकरण प्रस्तुत किया है, जो निम्न प्रकार से हैं : 
  1. उदीच्य (उत्तरी) 1) सिन्धी 2) लहंदा 3) पूर्वी पंजाबी 
  2. प्रतीच्य (पश्चिमी) 4) गुजराती 5) राजस्थानी 
  3. मध्य देशीय 6) पश्चिमी हिंदी 
  4. प्राच्य (पूर्वी) 7) (i) कोसली या पूर्वी हिन्दी (ii)  मागधी प्रसूत 8) बिहारी 9) ओड़िया 10) बांगला 11) असमिया 
  5. दाक्षिणात्य (दक्षिणी) 12) मराठी 

भारतीय आर्य भाषाओं की विशेषताएँ

इन भाषाओं को पश्चिमी और पूर्वी वर्गों में बाँटने का एक प्रमुख आधार ‘ने’ की रचना याने कर्मणि प्रयोग की व्यवस्था दिखायी पड़ती है। इस व्यवस्था में भूतकाल में क्रिया की अन्विति कर्ता से नहीं, कर्म से होती है। जैसे मैंने आम खाया - मैंने रोटी खायी। पश्चिमी वर्ग की भाषाओं के उदाहरण देखिए - गुजराती - में चोपडी वांची (हुं त्र मैं; में त्र मैंने) मराठी - मीं पोथी वांचिली पंजाबी - किताब (-मैं) सिंधी - (मूं.) पोथी पढ़ी-मे लहंदा - (मैं) पोथी पढ़ी-म इन भाषाओं में ‘ने’ प्रत्यय दिखाई नहीं देता। लेकिन गुजराती में सर्वनाम का रूप बदल जाता है। सिंधी और लहंदा में सार्वनामिक प्रत्यय मे/म जुड़ता है। सबमें एक समान विशेषता है- क्रिया का स्त्रीलिंग रूप में होना जो पूर्व की भाषाओं में नहीं मिलती।

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