जल में कालीफार्म का होना और उनकी गणना के लिए अनेक जांच प्रणालियां काम में लायी जाती हैं। सौ मि0ली0 जल में एक से भी कम कीटाणु होने चाहिए। यह केवल उपचार द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है तथा बची हुई क्लोरीन के लिए जल को प्रतिदिन जॉंचा जाना चाहिए। पूरी वितरण व्यवस्था में कम से कम 0.2 मि0 ग्राम मुक्त क्लोरीन प्रति लीटर जल में बची रहनी चाहिए।
2. रंग: जल में रंग घुले हुए एवं आस्थगित पदार्थों के कारण से होता है।
3. गंदलापन: घुले हुए तथा आस्थगित पदार्थ जल का गंदलापन निर्धारित करते है। पीने के जल के लिए थोड़ा सा गंदलापन भी अस्वीकार्य है। गंदलापन जल के रोगाणुनाशन के लिए डाली गई क्लोरीन के प्रभाव को भी कम कर देता है। या तो यह क्लोरीन के साथ क्रिया कर जाता है या रोगजनक कीटाणुओं को क्लोरीन के प्रभाव से मरने से बचा लेता है। भूमिगत जल प्राय पृष्ठ जल से कम गंदला होता है। जहां जल का गंदलापन मिट्टी के कारण होता है वहां जल सामान्यतया: ही गंदा पाया जाता है। गंदलेपन को जल में से रोशनी को जाने देने की रोधक क्षमता से मापा जाता है।
4. स्वाद एवं गंध: जल में विद्यमान कार्बनिक पदार्थ की सड़न, घुली हुई गैस जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड, तथा अन्य अकार्बनिक तत्वों से ही जल में स्वाद तथा गंध आती है।
1. कठोरता: प्रसंस्करण उद्योगों के लिए जल की कठोरता विशेष महत्व रखती है।पी. एच जल में मौजूद भ़् आयन से पी एच तय होता है। भ़् आयन की मात्रा जलमें घुले हुए नमक तथा खनिज से प्रभावित होती है।
2. अन्य रसायन: जल में अत्यधिक मात्रा में नाइट्रेट तथा फ्लोराइड का होना हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है। कुछ भारी धातुओं तथा विषाक्त पदार्थों जैसे लेड, कैडमियम, क्रोमियम तथा मरक्यूरी (पारा) का थोड़ी मात्रा में होना भी हानिकारक होता है। यह तत्व खाद्य श्रृंखला में एकत्रित होते रहते है।
जल की भौतिक विशेषताएं
जल की भौतिक विशेषताओं में है-- तापमान
- रंग
- गंदलापन
- स्वाद एवं गंध
2. रंग: जल में रंग घुले हुए एवं आस्थगित पदार्थों के कारण से होता है।
3. गंदलापन: घुले हुए तथा आस्थगित पदार्थ जल का गंदलापन निर्धारित करते है। पीने के जल के लिए थोड़ा सा गंदलापन भी अस्वीकार्य है। गंदलापन जल के रोगाणुनाशन के लिए डाली गई क्लोरीन के प्रभाव को भी कम कर देता है। या तो यह क्लोरीन के साथ क्रिया कर जाता है या रोगजनक कीटाणुओं को क्लोरीन के प्रभाव से मरने से बचा लेता है। भूमिगत जल प्राय पृष्ठ जल से कम गंदला होता है। जहां जल का गंदलापन मिट्टी के कारण होता है वहां जल सामान्यतया: ही गंदा पाया जाता है। गंदलेपन को जल में से रोशनी को जाने देने की रोधक क्षमता से मापा जाता है।
4. स्वाद एवं गंध: जल में विद्यमान कार्बनिक पदार्थ की सड़न, घुली हुई गैस जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड, तथा अन्य अकार्बनिक तत्वों से ही जल में स्वाद तथा गंध आती है।
जल की रासायनिक विशेषताएं
जल की रासायनिक विशेषताओं में हैकठोरता व पी. एच. जल की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।
1. कठोरता: प्रसंस्करण उद्योगों के लिए जल की कठोरता विशेष महत्व रखती है।पी. एच जल में मौजूद भ़् आयन से पी एच तय होता है। भ़् आयन की मात्रा जलमें घुले हुए नमक तथा खनिज से प्रभावित होती है।
2. अन्य रसायन: जल में अत्यधिक मात्रा में नाइट्रेट तथा फ्लोराइड का होना हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है। कुछ भारी धातुओं तथा विषाक्त पदार्थों जैसे लेड, कैडमियम, क्रोमियम तथा मरक्यूरी (पारा) का थोड़ी मात्रा में होना भी हानिकारक होता है। यह तत्व खाद्य श्रृंखला में एकत्रित होते रहते है।
जल की जैविक विशेषताएं
जल की जैबिक विशेषताएं मुख्यत: सूक्ष्म जैविकी गुणवत्ता से सम्बन्धित होती हैं। जल शुद्वीकरण प्रणाली तथा कार्य के लिए जल में उपस्थित सूक्ष्मजीवों का ज्ञान आवश्यक है। यदि जल में रोगजनक कीटाणु हैं तो जल का उपयोग करने से पहले उन्हें नष्ट कर देना चाहिए। जल को सभी तरह के कीटाणुओं के लिए जांच संभव नहीं है। रोगजनक कीटाणुओं का पता लगाने के लिए संकेत जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। यदि जल मल से दूषित है तो कोलीफार्म बैक्टीरिया संकेतक का काम करते हैं। गर्म खून वाले जानवरों के मल में ईकोलाई, एरीओवेक्टर एरीआजन्स तथा स्ट्रेप्टोकोकस पायोजन्स नामक कीटाणु पाए जाते हैं।जल में इनकी मौजूदगी प्रदूषण का संकेत करती है। यह जीव बहुत कम
या बिलकुल रोगजनक नहीं होते परंतु इनका होना एवं वाहित मल प्रदूषण के होने का संकेत होता
है। ये जीवाणु सलोनेला या सिगेला के उपस्थित होने की ओर इंगित करते है जो कि बहुत जटिल
समस्याएं पैदा कर सकते हैं। अनुभव से पता चला है कि जो उपचार कालीर्फाम जीवाणुओं को खत्म
करता है उससे रोगजनक कीटाणु भी मर जाते हैं और जल पीने के लिए सुरक्षित हो जाता है।
मानव मल से संदूषित जल में कालीफार्म जीवाणु अवश्य होते हैं और संक्रमित मनुष्यों द्वारा छोड़े गए
रोगजनक कीटाणुओं के होने का अंदेशा भी बना रहता है। एक रोगजनक कीटाणु जिस पर विशेष रूप
से ध्यान देने की आवश्यकता है वह यकृतशोथ विषाणु है।
यह 100 डिग्री से0 तापमान पर भी पांच
मिनट तक जीवित रह सकता है। यदि जल में यह विषाणु नहीं पाए जाते तो हम यह मान सकते है
कि जल में रोगजनक कीटाणु भी नहीं हैं। यदि कम है तो रोगजनक कीटाणु होने की संभावना भी
काफी कम हैं।