अपराधी के प्रकार || अपराधी कितने प्रकार के होते हैं

अपराधी के प्रकार

महान अपराधशास्त्री लोम्ब्रासो के मुताबिक कुल 4 प्रकार के अपराधी पाए जाते हैं। उनके अनुसार जन्मजात अपराधियों का ही एक प्रकार के अपस्मारी अपराधी होते हैं। जन्मजात और अपस्मारी अपराधियों के मस्तिष्क में जन्म से ही एक विशेष प्रकार का दोष होता है जिसके चलते वे अनुकूल परिस्थितियां पैदा होने पर आसानी से अपराध की ओर उन्मुख हो जाते हैं। 

लोम्ब्रासो ने अपराधियों को 4 वर्गों में विभाजित किया था :
  1. जन्मजात अपराधी (बोर्न क्रिमिनल)
  2. अपस्मारी अपराधी (एपिलेप्टिक क्रिमिनल)
  3. आकस्मिक अपराधी (आक्केजनल क्रिमिनल)
  4. काम अपराधी (क्रिमिनल बाई पैशन)
उपरोक्त वर्गीकरण के विपरीत गैरोपफैलो का मानना है कि अपराधियों के वर्गीकरण में मानवीय पक्ष का भी ध्यान रखना चाहिए और अपराधियों के मनोवैज्ञानिक पक्ष की अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए। 

गैरोफैलो ने अपराधियों के 4 वर्ग बताए थे विचित्र अपराधी, विचित्र हत्यारे, बेईमान अपराधी और लंपट अपराधी। 

हेंज ने अपने वर्गीकरण में 4 प्रकार के अपराधी बताए थे :
  1. प्रथम दोषी अपराधी
  2. आकस्मिक अपराधी
  3. अभ्यस्त अपराधी
  4. पेशागत अपराधी
कुछ विद्वानों ने अपराधियों को उनके आर्थिक स्तर के आधार पर विभाजित किया है। 

सदरलैंड ने केवल दो ही प्रकार के अपराधी बताए हैं निम्नवर्गीय अपराधी और उच्चवर्गीय अपराधी। सदरलैंड ने उच्चवर्गीय अपराधियों को सफेदपोश अपराधी भी कहा था। 

सदरलैंड के मुताबिक निम्नवर्गीय अपराधी वे होते हैं जिनका सामाजिक व आर्थिक स्तर बेहद निम्न स्तर का होता है जबकि उच्चवर्गीय अपराधी वे होते हैं जिनका सामाजिक-आर्थिक स्तर बेहद उच्च प्रकार का होता है। चूंकि सफेदपोश अपराधियों की आपराधिक गतिविधियां समाज से छिपी रहती हैं इसलिए उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त होता है। 

बोन्जर ने अपराधियों का वर्गीकरण, अपराधियों के उद्देश्यों के आधार पर किया है। इसी आधार पर बोन्जर ने 5 प्रकार के अपराध बताए हैं :
  1. सामाजिक अपराध
  2. राजनैतिक अपराध
  3. आर्थिक अपराध
  4. काम संबंधी अपराध
  5. मिश्रित अपराध
उपरोक्त चर्चा के आधार पर हम कह सकते हैं कि विभिन्न विद्वानों ने अपराधियों के भिन्न-भिन्न वर्गीकरण प्रस्तुत किए हैं लेकिन कोई भी वर्गीकरण न तो पूरी तरह से सही है और न ही सर्वमान्य। 

मनोवैज्ञानिकों ने मनोविश्लेषण के आधार पर अपराधियों को 3 भागों में विभाजित किया है आत्मसम्मोही अपराधी, मनस्ताप वाले अपराधी और बहिर्मुखी अपराधी।

(1) आत्मसम्मोही अपराधी: इन्हें नारसिस्टक टाइप भी कहा जाता है। इस वर्ग के अपराधी स्वभाव से शांतिप्रिय और स्वाथ्र्ाी किस्म के होते हैं। आत्मसम्मोही अपराधी, अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए समाज को नुकसान पहुंचाने से भी पीछे नहीं हटते और अपराध कर बैठते हैं। ऐसे अपराधी परवाह नहीं करते हैं कि उनके कृत्य से समाज, परिजनों या मित्रों को कितना नुकसान हो सकता है। 

नारसिस्टक टाइप के अपराधियों की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि ये प्रत्येक अपराध काफी सोच-समझकर पूरे शातिराना तरीके से करते हैं न कि क्षणिक आवेश में।

आत्मसम्मोही अपराधी, अपराधविज्ञानियों के लिए सदैव से शोध का विषय रहे हैं। इस प्रकार के अपराधियों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इस तरह के अपराधियों की कामवृत्ति का किसी न किसी रूप में दमन हुआ रहता है अर्थात् ऐसे व्यक्तियों की कामवासना अतृप्त होती है। इस प्रकार के अधिकतर अपराधी सेक्स को लेकर किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित होते हैं। कारण चाहे जो भी हों, लेकिन इतना निश्चित है कि इस प्रकार के अपराधियों की कामशक्ति का Ðास हुआ रहता है अर्थात् वे शारीरिक रूप से निर्बल होते हैं, अशक्त होते हैं। 

हाल ही में उत्तर प्रदेश के नोएडा का निठारी कांड काफी सुर्खियों में रहा था। इसका एक अभियुक्त सुरेन्द्र कोली तथाकथित रूप से अबोध बच्चों को पकड़कर उनके साथ सेक्स करने की कोशिश करता था लेकिन अपनी नपुंसकता के चलते जब वह अपने मंसूबों में सफल नहीं हो पाता था तो वह खीझ में बच्चों की हत्या कर देता था। सुरेन्द्र कोली बेहद शातिराना तरीके से बच्चों के अंगों को काटकर फेंक देता था। सुरेन्द्र कोली आत्मसम्मोही वर्ग के अपराधियों का ही प्रतिनिधित्व करता है।

(2) मनस्तापवाले अपराधी: इन्हें ‘न्यूरोटिक टाइप’ भी कहा जाता है। ये ऐसे अपराधी होते हैं जो क्षणभर के लिए आए आवेग के कारण अपराध कर बैठते हैं। ऐसे व्यक्ति अपराध करने से पहले न तो सोचते-विचारते हैं और न ही तर्क-वितर्क करते हैं। स्पष्ट है कि ये क्रोध आदि की गर्मी में अपराध कर बैठते हैं न कि ठंडे दिमाग से। ऐसे अपराधी अधिकतर बहुव्यक्तित्व के स्वामी होते हैं। बलात्कार और हत्या के अधिकतर अपराध इसी प्रकार के अपराधियों द्वारा किए जाते हैं।

(3) बहिर्मुखी अपराधी: ऐसे अपराधियों को ‘एक्ट्रोवर्ट टाइप’ के अपराधी भी कहा जाता है। इस प्रकार के अपराधी अधिकतर गिरोह या गैंग बनाकर सामूहिक रूप से अपराध करते हैं। एक विशेष बात यह कि इस प्रकार के अपराधियों द्वारा किए गए अपराधों का उद्देश्य अपने मित्र, सगे-संबंधियों को लाभ पहुंचाना होता है न कि स्वयं को लाभ पहुंचाना।

आमतौर पर उपरोक्त तीन प्रकार के अपराधी ही समाज में पाए जाते हैं। वैसे कुछ विद्वानों ने अपराधियों की आयु के आधार पर भी अपराधियों का वर्गीकरण किया है। इस आधार पर दो प्रकार के अपराधी होते हैं बाल और प्रौढ़ अपराधी। बचपन या किशोरावस्था में जो व्यक्ति अपराध करते हैं उन्हें बाल अपराधी (जुवेनाइल क्रिमिनल) कहा जाता है। लगभग सभी देशों में बाल अपराधियों के निर्धारण के लिए 16 वर्ष तक की आयु निर्धारित की गई है। 

सामान्यत: माना जाता है कि बाल अपराधियों द्वारा छोटे-मोटे प्रकार के अपराधों को ही अंजाम दिया जाता है लेकिन आजकल देखा गया है कि कई जघन्य प्रकार के अपराध भी बाल-अपराधियों द्वारा किए जाने लगे हैं। लूटमार, राहजनी और चोरी के अलावा बाल अपराधी आजकल विभिन्न प्रकार के यौन अपराध भी करने लगे हैं। महिलाओं से छेड़खानी, बलात्कार और बलात्कार के प्रयास जैसे अपराधों में भी बच्चे संलग्न रहने लगे हैं।

समाजविज्ञानी चिंतित हैं कि क्यों बच्चे अपराध की ओर बढ़ रहे हैं। दरअसल इसका एक प्रमुख कारण आधुनिक दिखावे वाली जीवन-शैली और भोग-विलास की प्रवृत्ति भी है। बच्चों तथा किशोरों द्वारा किए जाने वाले अपराध आज एक गंभीर सामाजिक समस्या का रूप लेते जा रहे हैं। इस प्रकार के अपराधों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसके मूल में परिवार संबंधी समस्याएं ही होती हैं। पारिवारिक परिस्थितियों के कारण बच्चे अपराध की दुनिया में प्रवेश करते हैं :
  1. माता-पिता का बच्चों के प्रति असंतुलित व्यवहार
  2. माता-पिता द्वारा लगातार आपस में लड़ना
  3. परिवार की आर्थिक दरिद्रता
  4. परिवार की नैतिक क्षीणता
  5. परिवार के किसी अपराधी का अनुकरण
  6. अभिभावक द्वारा दिए गए अनुचित निर्देश
  7. विभिन्न प्रकार के मानसिक रोग, दुर्बलता या दोष।
अब बात प्रौढ़ अपराधियों की। 16 वर्ष से उपर के सभी अपराधी, प्रौढ़ अपराधी कहलाते हैं। प्रौढ़ अपराधियों के साथ न्यायालय अपेक्षाकृत अधिक सख्ती बरतता है चाहे उसका अपराध किसी बालक द्वारा किए गए अपराध से कम संगीन ही क्यों न हो। प्रौढ़ अपराधियों द्वारा लगभग सभी प्रकार के अपराधों को अंजाम दिया जाता है।

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