दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 क्या है ?

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 क्या है

इस अधिनियम के अन्तर्गत दहेज लेना और देना दोनों ही प्रतिषेधित है। अधिनियम की धारा 2 के अनुसार ‘दहेज’ का अभिप्राय विवाह के एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के लिए या विवाह के किसी पक्ष के माता-पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष या किसी अन्य व्यक्ति के लिए विवाह करने के संबंध में दी जाने वाली किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति से है। चाहे यह सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति विवाह के समय या उसके पूर्व या पश्चात किसी भी समय दी गई हो, परन्तु दहेज की परिधि में आन के लिए आवश्यक है कि यह विवाह के संबंध में दी गई हो। 

इसमें तीसरा अवसर ‘विवाह के बाद किसी समय’ कभी न समाप्त होने वाली अवधि प्रतीत होती है परन्तु यहाँ पर शब्द ‘कथित पक्षों के विवाह के संबंध में’ निर्णायक हैं। अत: पारम्परिक भुगतान जैसे बच्चे के जन्म या दूसरे समारोहों में जो कि विभिन्न समाजों में दिये जाते हैं, ‘दहेज’ की परिधि में नहीं आते।

अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार जो कोई भी दहेज देता है या लेता है अथवा लेने या देने के लिए दुष्पे्ररित करता है, तो वह ऐसी अवधि के कारावास से जो पाँच वर्ष की होगी और 15,000 रुपयों या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम के जो भी अधिक हों, हो सकने वाले जुर्माने से दण्डित किया जायेगा। 

अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार न्यायालय यथोचित और विशेष कारणों से पाँच वर्ष से कम की अवधि के कारावास का दण्ड दे सकता है। धारा 4 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति प्रत्यक्षत: या परोक्षत: वर या वधू के माता-पिता या अन्य रिश्तेदारों से दहेज माँगता है तो वह छह मास से दो वर्षों तक के कारावास और 10,000 रुपयों के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।

क्योंकि धारा 3(1) के अनुसार दहेज लेने और देने वाले दोनों ही पक्षों को सजा दी सकती है अत: दहेज के संबंध में प्राय: शिकायत नहीं की जाती।

धारा 5 के अनुसार दहेज देने या लेने के लिए किये गये सभी करार व्यर्थ होंगे।

धारा 6 के अनुसार जब कोई दहेज उस स्त्री के अतिरिक्त, जिसके संबंध में वह प्राप्त किया गया हो, अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया जाता है, तो वह व्यक्ति दहेज उस स्त्री को विवाह से तीन मास के भीतर हस्तान्तरित कर देगा, यदि दहेज विवाह के पूर्व प्राप्त किया गया हो। यदि दहेज विवाह के समय या विवाह के पश्चात् अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया गया हो, तो ऐसी प्राप्ति के दिनांक से तीन मास के भीतर उस स्त्री को हस्तान्तरित कर देगा। यदि स्त्री अवयस्क हो तो उसके द्वारा 18 वर्ष की आयु पूरी कर लेने के तीन मास के भीतर वह अन्य व्यक्ति जिसने दहेज प्राप्त किया हो, उस स्त्री को हस्तान्तरित कर देगा। इसका उल्लंघन करने पर 6 माह से 2 वर्ष तक के कारावास या 10,000 रुपये तक के जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। न्यायालय ऐसे मामलों में 6 माह के कारावास के दण्ड को कम नहीं कर सकता है।

यदि दहेज प्राप्त करने के पूर्व स्त्री की मृत्यु हो जाती है, तो उस स्त्री के वारिस उस सम्पत्ति को तत्समय धारण करने वाले व्यक्ति से पाने के लिए दावा कर सकते हैं।

धारा 4-क के अनुसार यदि कोई व्यक्ति विवाह के उपलक्ष्य में अपनी सम्पत्ति में किसी अंश या धन या दोनों देने हेतु विज्ञापन देता है तो यह दण्डनीय अपराध है। ऐसे अपराध 6 मास से 5 वर्ष तक के कारावास या 15,000 रुपये तक के जुर्माने से दण्डनीय है। परन्तु यथोचित एवं विशेष कारणों से 6 माह से कम कारावास का दण्ड दिया जा सकता है। इस अधिनियम के अन्तर्गत अपराध असंज्ञेय तथा गैर जमनतीय होते हैं। (धारा 8) अधिनियम की धारा 7 के अनुसार इस अधिनियम के अन्तर्गत घटित होने वाले अपराधों को न्यायालय स्वयं के ज्ञान या पुलिस रिपोर्ट पर या पीड़ित पक्षकार या पीड़ित पक्षकार के माता-पिता अथवा अन्य रिश्तेदार या किसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन द्वारा किये गये परिवाद पर संज्ञान में ले सकता है।

अधिनियम की धारा 6(3) के अनुसार विवाह के बाद सात वर्ष की अवधि के भीतर यदि अप्राकृतिक कारणों से किसी महिला की मृत्यु हो जाती है तो पति एवं उसके परिवार के लोगों को यह साबित करना पड़ेगा कि दहेज की मांग के कारण महिला की मृत्यु नहीं हुई है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में भी धारा 114-ए जोड़कर तदनुसार परिवर्तन कर दिया गया है। ऐसे मामलों में महिला की पूरी सम्पत्ति-
  1. यदि वह नि:सन्तान है, तो उसके माता-पिता को अन्तरित हो जायेगी; 
  2. यदि उसके सन्तान हैं, तो उसकी सन्तानों को अन्तरित हो जायेगी और ऐसे अन्तरण के लम्बित रहने के दौरान, सन्तानों के लिए न्यास में धारित की जायेगी। 
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 8ख के अन्तर्गत अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राज्य सरकार दहेज प्रतिषेध अधिकारी (Dowry Prohibition Officer) नियुक्त कर सकती है, परन्तु कई राज्यों द्वारा उनकी नियुक्ति नहीं की गई है। धारा 8ख(4) के अनुसार राज्य सरकार दहेज प्रतिषेध अधिकारियों को उनके कार्यों के प्रभावी सम्पादन में सलाह देने और सहायता करने के लिए संबंधित क्षेत्र से, अधिक से अधिक पाँच सामाजिक कल्याण कार्यकर्ताओं (जिसमें कम से कम दो महिलायें, होंगी) के सलाहकार बोर्ड की नियुक्ति करेगी।

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