दूरस्थ शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, विशेषता

दूरस्थ शिक्षा से तात्पर्य ऐसे गैर प्रचलित एवं अपरंपरागत उपागम से है जिसमें मुद्रित एवं अमुद्रित बहुमाध्यमों का प्रयोग शिक्षक एवं छात्र के बीच संचार माध्यम के रूप में किया जाता है। दूरवर्ती शिक्षा कुछ निश्चित ऐतिहासिक, सामाजिक एवं तकनीकी शक्तियों के प्रभाव का परिणाम है तथा शिक्षा की ऐसी प्रणाली है जो सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण से सुसंबद्ध है। दूरस्थ शिक्षा में आई.टी.सीका भी उपयोग होता है जो लाभकारी सिद्ध हो रहा है। दूरवर्ती शिक्षा पर संचार विज्ञान की खोजों का काफी प्रभाव पड़ा है। शैक्षणिक प्रसार-प्रचार के क्षेत्र में संचार विज्ञान (आई.सी.टी.) के प्रयोग ने दूरवर्ती शिक्षा की महत्ता एवं क्षेत्र में काफी वृद्धि कर दी है।

दूरस्थ शिक्षा को मुक्त अधिगम, स्वतंत्रत अधिगम व दूरवर्ती अध्ययन (शिक्षा) के रूप में प्रयोग किया है। स्वतंत्र अध्ययन को अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाते हुये उन्होंने लिखा है- ‘‘स्वतंत्र अध्ययन विभिन्न प्रकार की शिक्षण अधिगम व्यवस्थाओं का समुच्चय है, जिससे शिक्षक एवं शिक्षार्थी एक दूसरे से दूर होते हुये भी अपने कार्यों एवं दायित्वों का निर्वहन करते हैं, एवं विभिन्न सम्प्रेषण प्रक्रियाओं का प्रयोग करते हैं। दूरस्थ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को शिक्षण हेतु कक्षा के अनुपयुक्त स्थानों तथा प्रारूपों से मुक्त रखना, विद्यालय से बाहर के शिक्षार्थियों को उनके अपने वातावरण में अध्ययन हेतु अवसर प्रदान करना एवं स्वत: निर्देशित अधिगम की क्षमता विकसित करना।’’

दूरस्थ शिक्षा की परिभाषा

दूरस्थ शिक्षा को परिभाषित करने के अनेक प्रयास किये गये और अब भी निरंतर किये जा रहे है। किंतु इसकी किसी सर्वमान्य एवं सभी पक्षों को समाहित कर सकने वाली परिभाषा पर पहुंचना कठिन है।

मूरे के अनुसार- ‘‘दूरवर्ती शिक्षण को अनुदेशन विधियों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जिसमें शिक्षण व्यवहार अधिगम व्यवहार से अलग अर्थात कहीं दूर पर संपन्न किये जाते है। इसके अन्तर्गत छात्र की उपस्थिति में संपन्न होने वाली क्रियाएं भी सम्मिलित होती है। अत: शिक्षक एवं शिक्षार्थी के बीच संप्रेषण को मुद्रित सामग्री, इलेक्ट्रॉनिक यांत्रिक एवं अन्य साधनों से सुगम बनाया जा सकता है।’’

डोहमेन के अनुसार- ‘‘दूरवर्ती शिक्षा स्वअध्ययन का एक विधिवत संगठित रूप है जिसमें छात्र परामर्श, अधिगम सामग्री का प्रस्तुतीकरण तथा छात्रों की सफलता का सुनिश्चितीकरण एवं निरीक्षण शिक्षकों के एक समूह द्वारा किया जाता है तथा प्रत्येक शिक्षक का अपना उत्तरदायित्व होता है। संचार माध्यमों के द्वारा बहुत दूर रहने वाले शिक्षार्थियों के लिय इसे संभव बनाया जाता है।’’

दूरस्थ शिक्षा की विशेषताएं 

1. शिक्षक एवं शिक्षार्थी का अलग-अलग होना :- इस प्रकार की शिक्षा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता शिक्षक और छात्र का एक दूसरे से दूर होना है। दूरवर्ती शिक्षा की यही विशेषता इसे परंपरागत शिक्षा से दूर करती है।

2. शैक्षिक संगठनों की विशिष्ट भूमिका :- दूरवर्ती शिक्षा एक संस्थानिक शैक्षिक व्यवस्था है। इसमें शैक्षिक सामग्री का निर्माण करने उसे नियोजित एवं सुसंगठित करने तथा छात्रों को उपलब्ध कराने के लिये शैक्षिक संगठनों की खास भूमिका रहती है।

3. तकनीकी माध्यमों का प्रयोग :- दूरवर्ती शिक्षा में विभिन्न तकनीकी माध्यमों जैसे मुद्रित सामग्री, दृश्य-श्रव्य सामग्री, रेडियो, दूरदर्शन कम्प्यूटर आदि का प्रयोग शिक्षार्थी तक अधिगम सामग्री भेजने हेतु किया जाता है।

4. द्विमार्गी संप्रेषण :- इसमें द्वमार्गी संप्रेषण होता है क्योंकि इसके अन्तर्गत छात्र उत्तर पत्रको अथवा अन्य माध्यमों से उत्तर देने में सक्षम होता है। इस प्रकार उसे फीडबैक भी प्राप्त होता है।

5. शिक्षार्थी का अपने समूह के सदस्यों से अलगाव :- इस शिक्षा में छात्रों का अपने साथियों से आमने-सामने संपर्क में नहीं होते है। इस दृष्टि से यह एक अत्यंत वैयक्तिक शिक्षण व्यवस्था है।

6. औद्योगीकरण :- दूरवर्ती शिक्षा की प्रमुख विशेषता औद्योगिक समाज का होना है। अर्थात् यह शिक्षा एक तरह का विशिष्ट औद्योगिक विकास है।

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