जनसंचार माध्यम क्या है मुख्य रूप से जनसंचार के कार्य या उद्देश्य इस प्रकार हो सकते हैं

जनसंचार माध्यम का तात्पर्य यह हे कि जिनके द्वारा हम एक बड़े श्रोता या दर्शक समूह तक चाहे वे पास हों या दूर हों अपने भावों, विचारों को सम्प्रेषित करते है। भावों, विचारों के सम्प्रेशण के लिए जिन साधनों या उपकरणों का प्रयोग किया जाता है वे ही माध्यम है।

जन संचार साधनों के माध्यम से जनमानस को संदेश पहुँचाया जाता है। जन संचार में संदेश मूल स्रोत से समाचार पत्र और पुस्तकों, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, इंटरनेट आदि मध्यवर्ती जैसे माध्यमों के द्वारा विस्तृत एवं जनमानस या ग्रहणकर्ताओं तक प्रेषित किया जाता है। 

एम्री के अनुसार ‘‘जनसंचार उद्देश्य से विकसित किए गए मीडिया के उपयोग द्वारा अधिकांश और विभिन्न प्रकार के श्रोताओं को सूचना, विचार और दृष्टिकोण का जनसंचार करना है।’’

जनसंचार के कार्य

वर्तमान समय में संचार के विकसित और नवीनतम रूपों ने संचार के कार्यों और उद्देश्य को भी विकसित किया है। जहां संचार समाज की मानसिक अवस्था, वैचारिक चिंतन की प्रवृत्ति, संस्कृति तथा जीवन को विभिन्न दिशाओं को नियंत्रित करने में अपनी महती भूमिका निभाता है वहीं वह व्यक्ति को समाज के साथ जोड़ता भी है। 

मुख्य रूप से जनसंचार के कार्य या उद्देश्य इस प्रकार हो सकते हैं- 

1. सूचनाओं का संग्रह तथा प्रचार - संचार का मुख्य कार्य सूचनाओं का संग्रह एवं प्रसार करना है। प्रत्येक दिन समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर आदि माध्यमों द्वारा समाज की विविध घटनाओं, आपात परिस्थितियों, त्रासदी घटनाओं, नवीनतम खोजों, वैज्ञानिक प्रगति, सामाजिक उन्नति, राजनीतिक स्थितियों आदि सूचनाओं से समाज को परिचित कराता है। 

2. समाजीकरण - संचार के द्वारा ही समाज में रहने वाले लोगों का सामाजीकरण होता है। व्यक्ति और व्यक्तियों के समूह के बीच आपसी सहयोग और साझेदारी के लिए आवश्यक है कि इनके बीच संचार बना रहे। 

3. सामाजिक ज्ञान एवं मूल्यों का प्रेषण - संचार के द्वारा केवल सूचनाएं ही संप्रेषित नहीं की जाती बल्कि समाज की प्रत्येक गतिविधि और जीवन-धारा के अनसुलझे प्रश्नों, उनके कारणों तथा परिणामों के विषय में भी समाज को परिचित कराया जाता है। समाज इस ज्ञान को अर्जित कर अपनी जीवन की दिशा को तय कर सकता है। 

4. मनोरंजन - मानव जीवन की नीरसता और तनाव मुक्त वातावरण में संचार विभिन्न माध्यमों द्वारा जन-समुदाय का मनोरंजन भी करता है। ये माध्यम विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा मानव जीवन को सरस बनाते हैं। गीत, संगीत, फिल्म, कविता, नाटक, धारावाहिक, वृत्तचित्र, रूपक, कार्टून आदि के द्वारा समाज को मनोरंजन के साथ-साथ अनेक संदेश भी संप्रेषित करते हैं। 

5. राष्ट्रीय एकता और अखंडता की दृढ़ता - भारत विभिन्न वर्गों, जातियों, मतों, संप्रदायों, और विचारधाराओं का देश है, उसके बावजूद भी भारत को यदि धर्मनिरपेक्ष देश कहा जाता है तो उसमें संचार की महती भूमिका भी है। संचार माध्यमों द्वारा अनेक भाषाओं में ऐसे संदेशों का प्रकाशन या प्रसारण किया जाता है जो समाज को अपने राष्ट्र के प्रति एक होने के लिए प्रेरित करते हैं। 

6. सांस्कृतिक उन्नयन - संचार राष्ट्र के सांस्कृतिक उन्नयन में सहायक होता है। राष्ट्र की महानतम उपलब्धियों को विश्व में प्रचारित-प्रसारित करने के साथ-साथ वह संस्कृति के सभी प्रतिमानों के विकास के लिए अपना योगदान देता है। संचार उपर्युक्त कार्यों एवं उद्देश्यों के अतिरिक्त जनमत का निर्माण करने में भी अपनी महती भूमिका निभाता है। वह समाज की सोच को प्रभावित करता है। वह लोगों को अपनी परंपरा और वर्तमान के बीच सामंजस्य बिठाने में सहयोग देता है, वह प्रकृति और समाज के बीच भी एक सेतु का कार्य करता है। यदि संचार न हो तो मनुष्य मृत है।

जनसंचार के माध्यम

1. टेलीविज़न - संचार का सर्वाधिक लोक-प्रचलित दृश्य-श्रव्य माध्यम है दूरदर्शन । यह वर्तमान तकनीकी युग की महत्त्वपूर्ण भेंट है । तस्वीरों को प्रसारित करने की युक्ति सन् 1890 ई. में ज्ञात हो चुकी थी । 1906 में ली.डी. फारेस्ट ने शीशे की नली से बिजली निकालकर नया प्रयोग किया तथा फ्लेमिंग द्वारा वायरलैस टेलीग्राफ को पेटेंट कराया गया । 1908 में कैम्पवेल ने टेलीवजिन के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया। 26 जनवरी, सन् 1926 को स्काटलैण्ड के जॉन लोगी वेयर्ड ने इसका सफल प्रदर्शन किया । 

2 नवम्बर, 1936 को लंदन में बी.बी.सी. द्वारा नियमित दूरदर्शन सेवा प्रारंभ की गई । मारकोनी कंपनी के इलैक्ट्रानिक कैमरा और रिसीविंग टयूब के विकास ने इसकी यांत्रिक समस्याओं को तो दूर किया ही, तस्वीर और ध्वनि की गुणवत्ता में भी अपेक्षित सुधार किया । ध्वनि वाले दूरदर्शन का प्रथम सार्वजनिक प्रसारण ब्रिटेन में सन् 1930 में हुआ । धीरे-धीरे टेलीविजन सारी दुनियां में तेजी से फैलने लगा । फ्रांस में नियमित प्रसारण 1938 में प्रारंभ हुआ तथा 1941 में अमेरिका में प्रारंभ हुआ । 

1938 में व्यावसायिक प्रसारणों की शुरूआत हुई । लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोप में दूरदर्शन प्रसारण आकस्मिक रूप से बंद हो गया, फिर भी इस दिशा में प्रयोग चलते रहे । युद्धोपरांत दूरदर्शन की सेवाएं पुन: शुरू हुई । सन् 1953 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने सर्वप्रथम नियमित रंगीन दूरदर्शन प्रसारण प्रारंभ किया । 1955 ई. में ‘यूरोविजन’ नेटवर्क विधिवत् देखा गया जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, पश्चिम जर्मनी, बेल्जियम और नीदरलैंड को जोड़ा गया । 

1 जुलाई, 1962 से उपग्रह प्रसारण की शुरूआत हुई । उपग्रह के द्वारा पहले जीवंत (Live) कार्यक्रम का आदान-प्रदान यूरोप तथा अमेरिका के बीच हुआ । फिर तो ‘यूरोविजन’ ने व्यापक स्तर पर पूर्वी यूरोपियन नेटवर्क ‘इंटरविजन’ के साथ कार्यक्रमों का आदान-प्रदान शुरू कर दिया । इसने स्केंडिनेवियन नेटवर्क ‘नॉर्डविजन’ के साथ भी सहयोग किया ।

2. रेडियो - आधुनिक युग में जनसंचार के अनेक सुविकसित माध्यम उपलब्ध है । टेलीफोन के बाद रेडियो के आविष्कार ने संचार की प्रक्रिया को दूरस्थ स्थानों तक संभव बनाकर, मनुष्य समाजों को परस्पर जोड़ा । जब पत्रकारिता रेडियो के साथ संलग्न हुई तो धीरे-धीरे इसने मनुष्य समाज के भीतर अपना स्थान एक विश्वसनीय मित्र के रूप में बना लिया । वास्तव में रेडियो ऐसा संचार साधन है, जिसके माध्यम से व्यापक जनसमुदाय तक एक साथ संदेश पहुंचाया जा सकता है । रेडियो विद्युत-उर्जा के द्वारा ध्वनि तरंगों को काफी दूर तक भेजता है और इन ध्वनि तरंगों को भेजने में इतना कम समय लगता है कि काल बोध की दृष्टि से इसे शून्य कहा जा सकता है । अर्थात् किसी रेडियो स्टेशन से जिस समय संदेश प्रसारित होता है, ठीक उसी समय कुछ ही सैकिंड के अन्तराल में वह हजारों मील दूर बैठे लोग उसे अपने रेडियो सेट पर सुन सकते हैं । 

ट्रांजिस्टर के आविष्कार ने तो विद्युत-उर्जा को अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया है । अब सामान्य बैटरी से कम हो जाता है । ट्रांजिस्टर संचार का सस्ता, सुविधाजनक एवं लोकप्रिय साधन बन गया है । निरक्षर लोग भी इस जन माध्यम से रूचिपूर्वक संदेश ग्रहण कर सकते हैं । एक साथ बैठकर मनोरंजनपरक कार्यक्रम सुन सकते हैं, देश-विदेश के समाचार सुन सकते हैं, उन पर बैठकर बातचीत कर सकते हैं, घटनाओं का विश्लेषण समझ सकते हैं, नई-नई जानकारियां पा सकते हैं ।

जब टेलीविजन आया तो लोगों ने समझा कि अब रेडियो अप्रासंगिक हो जायेगा । यह धारणा भी गलत साबित हुई है । दूरदर्शन के विस्तार के साथ रेडियो के प्रति जन सामान्य का आकर्षण बडा है, कारण-दूरदर्शन की तुलना में रेडियो से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की विविधता और सर्व विद्यमानता । दूरदर्शन कार्यक्रमों को देखने के लिए जहां निश्चित दूरी के अंदर प्रसारण केन्द्र और टावर का होना और उपग्रह चैनलों की सुविधा के लिए डिस्क एंटीना या उससे जुड़ी केबल (तार) जरूरी है तो वहीं रेडियो महज एक ट्रांजीस्टर सेट पर सभी कार्यक्रमों को देता रहता है ।

भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, ‘रेडियो मानव को विज्ञान का एक वरदान है, जो पलभर में हजारों मील दूर बैठे लोगों की आपसी स्थिति से अवगत कराता है और उनमें खुशी की लहर भर देता है । जवरीमल्ल पारेख ने ठीक ही लिखा है कि, ‘‘रेडियो निरक्षरों के लिए भी एक वरदान है । जिसके द्वारा वे सिर्फ सुनकर अधिक से अधिक सूचना, ज्ञान और मनोरंजन हासिल कर लेते हैं ।

रेडियो और ट्रांजिस्टर की कीमत भी बहुत अधिक नहीं होती । इस कारण वह सामान्य जनता के लिए भी कमोबेश सुलभ है । यही कारण है कि टी.वीके व्यापक प्रसार के बावजूद तीसरी दुनियां के देशों में रेडियो का अपना महत्व आज भी कायम है ।

रेडियो का आविष्कार 19वीं शताब्दी में हुआ । वास्तव में रेडियो की कहानी 1815 ई. से शुरू होती है, जब इटली के एक इंजीनियर गुग्लियो मार्कानी ने रेडियो टेलीग्राफी के जरिए पहला संदेश प्रसारित किया । यह संदेश ‘मोर्स कोड’ के रूप में था । रेडियो पर मनुष्य की आवाज पहली बार 1906 में सुनाई दी । यह तब संभव हुआ जब अमेरिका के ली डी फारेस्ट ने प्रयोग के तौर पर एक प्रसारण करने में सफलता प्राप्त की । उसने एक परिष्कृत निर्यात नलिका का आविष्कार किया, जो आने वाले संकेतों को विस्तार देने के लिए थी । डी फारेस्ट ही था, जिसने सर्वप्रथम 1916 में पहला रेडियो समाचार प्रसारित किया । वह समाचार वास्तव में संयुक्त राष्ट्र में राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम की रिपोर्ट थी । 

1920 के बाद तो अमेरिका और ब्रिटेन ही क्या विश्व के कई देशों में रेडियो ने धूम मचा दी । इसी अवधि में यूरोप, अमेरिका तथा एशियाई देशों में बहुत से शोधकार्य हुए थे । इन शोध कार्यों के फलस्वरूप रेडियो ने अभूतपूर्व प्रगति की । कालांतर में इलैक्ट्रानिक तथा ट्रांजिस्टर की खोज ने रेडियो-ट्रांजिस्टर तथा दूर-संचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास किया ।

3. पुस्तकें - जनसंचार के माध्यमों से अगर हम देखें तो यह पुस्तकें जनसंचार का पूर्ण माध्यम नहीं है । यह समाचार पत्रों, रेडियो, टेलीविजन की तरह सभी दर्शक व पाठकों तक एक समान नहीं पहुंच पाती । जनमाध्यमों की दूसरे माध्यमों की तुलना में पुस्तकों के पाठकों की संख्या बहुत कम है । 

विश्वसनीय तौर पर पुस्तकें जनसंचार का महत्वपूर्ण माध्यम हैं । पुस्तकें अपने अन्दर बहुत सी जानकारी को संजाये हुए होती हैं और यह लम्बे समय तक चलने वाली तथा लम्बे समय तक सम्भाल कर रखने वाली होती हैं और यह Magzine और समाचार पत्रों से ज्यादा विश्वसनीय होती है ।

कुछ किताबें हजारों साल पहले छापी गई थी तथा अभी तक अस्तित्व में हैं । तथा पुस्तकों में उपस्थित विचार काफी लम्बे समय तक चलते हैं । बहुत सी पुस्तकें एक संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुॅंचाती है । पुस्तकें लम्बे समय तक बनी रहती हैं । परन्तु मनुष्य जीवन समाप्त हो जाता है । मार्शल मैकुलहान के अनुसार पुस्तकें मनुष्य के व्यक्तिगत, सुढ़ौल व तर्कपूर्ण विचारों का बढ़ाती है ।

5. मैगजीन - मैगजीन एक निश्चित समय के बाद फिर से नई जानकारियों को अपने साथ ले कर आती है । इसकी हर नई प्रति में नई जानकारियां, नए विषय व मनोरंजन होता है ।  इसमें विभिन्न ज्ञानों का भण्डार होता है । आजकल ये मैगजीन विशेषता लिए होती है अर्थात् विभिन्न विषयों जैसे राजनैतिक, फेशन, खेलकूद, आदमियों के लिए, व औरतों के लिए आदि की प्रधानता लिये होती है । 

मैगजीन

प्रत्येक मैगजीन अपने निश्चित पाठकों को आकर्षित करती है तथा पाठक भी अपनी पसंद अनुसार मैगजीनों का चयन करते हैं। यह प्रबंध विज्ञापन की दृष्टि से बहुत उत्तम है । क्योंकि इसके द्वारा विज्ञापक अपने लक्षित लक्ष्य तक प्रभावी ढंग से पहुॅंच सकता है । मुख्यत: मैगज़ीन को चार भागों में बॉंटा गया है ।
  1. उपभोक्ता मैगज़ीन
  2. व्यापार और तकनीकी मैगज़ीन
  3. व्यवसायिक मैगज़ीन
  4. शैक्षिक और शोधकर्ता जरनल
उपभोक्ता मैगज़ीन मुख्यत: विज्ञापनों पर आधारित होती है । वे एक निश्चित वर्ग तक पहुंचना चाहते हैं जैसे नर, नारी, बच्चे, बड़े बुजुर्ग व्यक्ति, खेल प्रिय, फिल्मों को पसंद करने वाले, आटोमोबाइल व युवा लोगों तक ।

व्यापार और तकनीकी मैगज़ीन व्यवसायिक जरनल होते हैं जो कि विशेष पाठकों व्यापारियों, व्यवसायों, कारखानों के स्वामियों के लिए होती है । ये इनसे सम्बन्धित विषयों पर जानकारी लिये होती है ।

जनसंपर्क मैगज़ीन संगठनों, सरकारी एजेंसियों, शैक्षणिक संस्थानों और दूसरे संगठनों के लिए होती है जो कि कर्मचारियों, उपभोक्ताओं, ओपिनियन लीडर के लिए जानकारी लिये होती है ।

शैक्षिक और शोधकर्ता जरनल जानकारी और ज्ञान को फैलाने के लिए होती है । इन मैगज़ीनों में विज्ञापन नहीं होते हैं ।

मैगज़ीन, मीडिया ग्रुप, प्रकाशन संस्था, समाचारपत्रों, छोटी संस्थाओं, संगठनों, व्यापारिक संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और धार्मिक संगठनों द्वारा छापी जाती है । मैगज़ीन सरकारी विभागों व राजनैतिक पार्टियों द्वारा भी छापी जाती है ।

मैगज़ीन मुख्यत: साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक छपती है । यह चार महीने बाद व छ: महीने बाद भी छपती है । कुछ मैगज़ीन साल में एक बार छपती हैं। मैगज़ीन सामान्यत: श्त्मंकमते कपहमेजश् की भांति भी हो सकती है और टेलीविजन कार्यक्रमों को प्रदर्शित करने वाली गाइड के रूप में भी हो सकती है । बहुत सी मैगज़ीन ऐसी भी होती हैं जो कि दो विशिष्टता को लिये होती हैं । ये सामान्यत: लगातार छपती हैं और प्रत्येक मैगज़ीन समाज के कुछ विशेष वर्गों के लिए होती है ।

कुछ मैगज़ीन ज्ञान लिए व कुछ मनोरंजन लिये होती हैं । शुरूवाती दौर में मैगज़ीन का आस्तित्व धुंधला था, समाचारपत्र व मैगज़ीन की सीमा में कोई विशेष अन्तर न था ।

प्राचीन काल की मैगज़ीन में Journal des Scarans को लिया जाता है । जो कि पेरिस से 1665 में शुरू हुई थी । इस किताब को छोटा करके लिखा गया था । शीघ्र ही यह स्वयं के विषयों (Material) के साथ आई । उसके पश्चात् “The Tatler" और “The Spectator" इंगलैंड से छापी गयी । यह मैगज़ीन 18वीं शताब्दी में 4-4 महीने के बाद छपी । इन दोनों मैगज़ीन ने अपने विचारों और मनोरंजन को व कुछ समाचारों को छापा ।

अमेरिकी मैगज़ीन General Magazine vkSj Historical Chronicle 1741 में छपी । General Magazine dks Benjamin Franklin ने छापा था और इसके तीन दिन बाद Franklin के प्रतियोगी Andrew Bradford us American Magazine को छापा ।

यह दोनों मैगज़ीन जल्द ही बंद हो गयी । यह दोनों मैगज़ीन लंबे समय तक अपनी सेवाएं इसलिए प्रदान नहीं कर पायी क्योंकि उनकी प्रतियॉं अधिक नहीं बिक रही थी (Limited circulation ) और विज्ञापनों की भी कमी थी । अमेरिका में मैगज़ीन का सुनहरी सफर 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ । 1879 में मैगज़ीन बहुत कम कीमत पर बनाई गई ।

इस समय के दूसरे विकास पल्प कागज का सस्ता होना प्रिंटिंग प्रेस का सुधारा रूप, लीनो टाइप की खोज, ओटोमेटिक टाइप-सैटिंग था दूसरे विकासों में चित्रों का पुन: प्रकाशित होना था ।

इसी कारण मैगजीन कम खर्चे पर छापी गई जो कि बहुत आकर्षक थी । सस्ती होने के कारण इसे काफी लोगों तक पहुंचाया गया । इससे जहां मैगजीन की प्रतियां अधिक बिकी (Circulation ) वहीं विज्ञापन भी अधिक आने लगे । उस समय की सबसे सफल मैगजीन अमेरिका की Colliers और Cosmopolitan थी । अधिक तकनीकी योग्यता और अन्य विकास होने के कारण 20वीं सदी की मैगजीन ने अपना रूप बदला, वह कम कीमत लिए, अधिक बिकने वाली, अधिक विज्ञापन लिए और विभिन्न वर्गों के लिए विभिन्न विषयों की प्रधानता लिये हुए थी । 

प्रथम विश्व युद्ध के समय बहुत सी बड़ी मैगज़ीनें छपी । वे थी Reader Digest (1922), Time (1923), New Yarker (1925) थी । 1930 के मध्य में “Life and Look" मैगजीन पुरुषों के लिए आई “Esquire". आज मैगजीन विभिन्न विषयों में प्रधानता लिये हुए है The American Audit Bureau off circulation ने 30 भिन्न-भिन्न प्रकार की विशेषता लिये मैगज़ीनों को बांटा है जिसमें मुख्य सौन्दर्य, व्यावसायिक, सिलाई, फैशन, खेल-कूद, फिल्म, साइंस, इतिहास, स्वास्थ्य, घर, फोटोग्राफी, यात्रा, संगीत, समाचार, पुरुष, नारी, कम्प्यूटर आदि है। 

मैगजीन को तीन भागों में बॉंटा जा सकता है । समाचार प्रधान, मनोरंजन प्रधान, स्वयं विचारधारा प्रधान । आज प्रत्येक मैगजीन अपने लक्षित पाठकों के इच्छित अनुसार होती है ।

शुरूआत में, जब वैज्ञानिक अस्तित्व में आई उसे अपना स्थान बनाने के लिए जन माध्यमों से संघर्ष करना पड़ा । जैसे रेडियो, टेलीविजन, फिल्म । परन्तु समाचारपत्र व मैगजीन अपना स्थान बनाने में सफल रहे ।

मैगजीन जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में से एक है । मैगजीन की संख्या, सामग्री की प्रकृति, उपयोगिता आदि इसे एक राज्य से दूसरे राज्य तक फैलाया गया । इन मैगजीनों को ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक आधार पर भी बांटा गया ।

साधारणत: मैगज़ीन जानकारी, विचारधारा और व्यवहार को फैलाने में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है । यह जहां हमें जानकारी प्रदान करती है वहीं दूसरी तरफ शिक्षा व मनोरंजन को भी पेश करते हुए पाठकों की रुचि का भी ध्यान रखती है।

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