नगर निकाय का कार्यकाल || नगर निकाय में लगाये जाने वाले कर

नगर निकाय का गठन एवं संरचना

  1. अधिक आबादी वाले/महानगरीय क्षेत्रों में - नगर निगम का गठन होगा (एक लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले नगर) 
  2. छोटे नगरीय क्षेत्रों में- नगरपालिका परिषद का गठन होगा (50 हजार से एक लाख तक जनसंख्या वाले नगर)
  3. संक्रमणशील (ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित होने वाले क्षेत्र ) क्षेत्रों में- नगर पंचायत का गठन होगा (50 हजार तक जनसंख्या वाले नगर)
  4. नगर निगम, नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत स्तर पर जनता द्वारा एक अध्यक्ष निर्वाचित किया जायेगा
  5. नगरीय क्षेत्र के प्रत्येक वार्ड से प्रत्यक्ष रूप से सदस्य निर्वाचित किये जायेंगे जिनकी संख्या वार्डों की संख्या के आधार पर राज्य सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार होगी।
  6. पदेन सदस्य के रूप में नगर निकायों में लोकसभा एवं राज्य विधान सभा के ऐसे सदस्य शामिल किये जायेंगे, जो नगरीय निकाय क्षेत्र (पूर्णत: या भागत:) के निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  7. पदेन सदस्य के रूप में राज्य सभा व राज्य विधान परिषद के ऐसे सदस्य जो नगरीय निकाय क्षेत्र के अन्दर निर्वाचकों के रूप में पंजीकृत है। 
  8. नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले निर्दिष्ट/नामित सदस्य स्थानीय निकायों में शामिल किये जायेंगे। 
  9. संविधान के अनुच्छेद 243-एस. के प्रस्तर (5) के अधीन स्थापित समितियों के अध्यक्ष यदि कोई हो। 

नगर निकाय का कार्यकाल

नगर निगम, नगर पालिका, एवं नगर पंचायतों का कार्यकाल पहली बैठक के दिन से पांच वर्ष तक रहेगा। अगर किसी कारणवश 74वें संविधान संशोधन के नियमों के अनुरूप नगर निकाय अपनी जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों को पूरा नहीं करते या उनमें अनियमितता पायी जाती है तो पांच वर्ष पूर्व भी राज्य सरकार इन्हें भंग या बर्खास्त कर सकती है। बर्खास्त/भंग करने के 6 माह के अन्दर अनिवार्य रूप से चुनाव करवाकर नया बोर्ड गठित किया जाना आवश्यक है। नगर निकायों को भंग करने से पूर्व सुनवाई का एक न्यायोचित अवसर दिया जायेगा।

नगर निकाय की बैठकें व उनकी कार्यवाहियाँ 

कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा निश्चित दिन तथा नियत समय पर एक माह में कम से कम एक बैठक आयोजित की जाएगी। अध्यक्ष के निर्देश पर अन्य बैठकें भी कार्यपालक अधिकारी द्वारा बुलायी जा सकती हैं। यदि नगर निकाय के पास कार्यपालक पदाधिकारी नहीं है तो अध्यक्ष बैठक आयोजित करेगा। आवश्यकता पड़ने पर किसी भी दिन या समय पर नोटिस देने के बाद अध्यक्ष द्वारा आपातकालीन बैठक बुलायी जा सकती है। आपातकालीन बैठकों के अतिरिक्त अन्य बैठकों हेतु नोटिस को कम से कम 3 दिन पूर्व सभी सदस्यों को भेजा जाना अनिवार्य होगा। नोटिस की अवधि 3 दिन से अधिक भी हो सकती है। आपातकालीन बैठकों के मामले में यह अवधि कम से कम 24 घंटे की होनी चाहिए। बैठक हेतु प्रत्येक सूचना में बैठक की तिथि, समय तथा स्थान का उल्लेख आवश्यक है। 

बैठक की गणपूर्ति कुल सदस्यों के एक तिहाई सदस्यों की उपस्थिति मानी जायेगी। गणपूर्ति के अभाव में बैठक स्थगित कर दी जायेगी तथा तय की गई तिथि को बैठक आयोजित की जाएगी। जिसकी सूचना आयोजन के कम से कम तीन दिन पूर्व दी जाएगी। बैठक की कार्यवाही को कार्यवाही पुस्तिका में अंकित किया जाएगा जिस पर अध्यक्ष का हस्ताक्षर होगा कार्यवाही की प्रतियों को राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा निदेशित प्राधिकारी को तुरन्त भेज दी जाएगी। परिस्थितियों की अनुकूलता के आधार पर अधिषासी अधिकारी अथवा सचिव द्वारा बैठक से पूर्व सभी सदस्यों को बैठक से सम्बन्धित अभिलेख, पत्राचार जो उस बैठक में विचार किये जायेगें, दिखाये जायेंगे जब तक कि अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष द्वारा अन्यथा निर्देशित किया गया हो।

किसी सदस्य द्वारा बैठक में कोई प्रस्ताव लाना

यदि कोई सदस्य, बैठक में कोई प्रस्ताव लाना चाहता है तो उसे कम से कम एक सप्ताह पूर्व अध्यक्ष को अपने इस विचार से लिखित रूप में अवगत कराना होगा। कोई भी सदस्य सभा में व्यवस्था के प्रश्न को अध्यक्ष के समक्ष उठा सकता है लेकिन उस पर तब तक कोई चर्चा नहीं की जायेगी जब तक कि उपस्थित सदस्यों की राय जानने हेतु अध्यक्ष उपयुक्त न समझे। किसी भी प्रस्ताव अथवा प्रस्तावित संशोधन पर विचार-विमर्श से पूर्व अध्यक्ष सदस्यों से उस प्रस्ताव के समर्थन की मांग कर सकता है। प्रत्येक सदस्य/सभासद अपने स्थान से अध्यक्ष को सम्बोधित करते हुए ही प्रश्न पूछ सकता है, एवं उस पर चर्चा कर सकता है। 

प्रस्तुतकर्ता के अतिरिक्त कोई भी सदस्य किसी प्रस्ताव या संशोधन पर अध्यक्ष की अनुमति के बिना दो बार नहीं बोलेगा। बैठक की कार्य सूची/कार्यवाही से सम्बन्धित सभी प्रश्न किसी/एक सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य से अध्यक्ष के माध्यम से ही पूछे अथवा प्रस्तुत किये जाएगें। 

अध्यक्ष द्वारा बैठक की कार्यवाही/कार्यसंचालन निम्न क्रम से की जायेगी-
  1. सर्वप्रथम गत बैठक का कार्यवृत्त पढ़ा जाऐगा। 
  2. यदि प्रथम बैठक है, तो गत माह का लेखा बोर्ड के विचार्थ तथा आदेशार्थ प्रस्तुत होगा। 
  3. स्थानीय शासन तथा उनके अधिकारियों से प्राप्त पत्रों/सूचनाओं को पढ़ा जाऐगा।
  4. समितियों तथा सदस्यों के प्रतिवेदन यथा आवश्यक आदेशार्थ तथा स्वीकृतार्थ विचार किये जाऐगें। 
  5. निर्धारित प्रक्रियानुसार सूचित किये गये प्रस्तावों पर चर्चा व मतदान कराया जायेगा।
  6. अगली बैठक में लाये जाने वाले प्रस्तावों का नोटिस/सूचना दी जाऐगी।
  7. समितियों, अधिकारियों आदि के आदेशों की अपीलों का निस्तारण किया जाएगा। 

नगर निकाय में वित्तीय प्रबंधन

74वें संविधान संशोधन के उपरान्त अब नगर निकायों के आय के सा्रेत है।
  1. राज्य वित्त आयोग के द्वारा निर्धारित धनराशि।
  2. नगर निकायों द्वारा वसूले गये करों से प्राप्त धनराशि।
  3. राष्ट्रीय वित्त आयोग के द्वारा निर्धारित धनराशि ।
    1. राज्य सरकार द्वारा नगरीय निकायों में समय-समय पर अनुदान देने की प्रथा को समाप्त कर राज्य सरकार द्वारा प्राप्त कुल करों में नगरीय स्थानीय निकायों के अंश का निर्धारण किया गया।
    2. स्थानीय निकायों को दी जाने वाली राशि के वितरण का आधार 80 प्रतिशत जनसंख्या एवं 20 प्रतिशत क्षेत्र के आधार पर निर्धारित किया गया है।
    3. इसके अतिरिक्त प्रत्येक केन्द्रीय वित्त आयोग प्रतिवर्ष शहरी स्थानीय निकायों के लिए धन आवंटित करता है। 
    4. आयोग के निर्देशानुसार केन्द्रीय वित्त आयोग द्वारा दी गई राशि का उपयोग वेतन, मजदूरी में नहीं किया जाएगा बल्कि यह सामान्य सुविधाएं जैसे जल निकासी, कूड़ा निकासी, शौचालयों की सफाई, मार्ग-प्रकाश इत्यादि में ही इसका उपयोग किया जाएगा। 
    5. 74वें संविधान संशोधन अधिनियम में 12वीं अनुसूची के अन्तर्गत जो 18 कार्य/दायित्व शहरी स्थानीय निकायों को दिये गये हैं राज्य सरकार को उन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु नगर निकायों आवश्यक राशि दी जायेगी। 
    6. नगरपालिका के आय का एक मुख्य स्रोत इसके द्वारा लगाये गये विभिन्न कर एवं शुल्क भी हैं। 

नगर निकायों में बजट की आवश्यकता व महत्ता

वित्तीय प्रबन्धन के लिए आय-व्ययक अनुमान/आगणन अर्थात बजट तैयार करना अत्यन्त आवश्यक है। बजट आय तथा व्यय का एक अनुमान है जो कि अपने संसाधनों के उपयोग के लिए एक प्रकार से मार्ग दर्शक, नीतियों के निर्धारण, व्यय संबंधी निर्णय लेने के लिए मार्ग दर्शक, वित्तीय नियोजन का एक यंत्र तथा संप्रेषण का एक माध्यम है। बजट वित्तीय प्रबन्धक का एक महत्वपूर्ण अवयव है, इसे मात्र औपचारिकता के रूप में नहीं लेना चाहिए।

नगर निकायों में बजट एक विधिक आवश्यकता है, क्यों कि जब तक वित्तीय वर्ष का बजट बोर्ड द्वारा पारित नहीं किया जाता है, तब तक कोई खर्चा नहीं किया जा सकता है। बजट तैयार कर लेने से लक्ष्यों व उद्देश्यों के निर्धारण तथा नीतिगत निर्णय लेने में सहायता मिलती है। बजट के द्वारा वास्तविकता आधारित कार्य नियोजन आसानी से किया जा सकता है अर्थात योजनाओं व कार्यक्रम की प्राथमिकतायें निर्धारित करने में सहायता मिलती है। इससे कार्य कलापों पर वित्तीय नियन्त्रण रखा जा सकता है और धन का अपव्यय भी रोका जा सकता है। अगर नगर निकाय आय-व्यय का विधिवत व उचित दस्तावेजीकरण करते हैं व उसको आधार मानकर अपना बजट बनाते हैं तो अंशदान, अनुदान, सहायता प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

बजट आवश्यकता आधारित होना चाहिए व इस हेतु ‘‘जीरो बेस बजटिंग’’(शून्य आधारित बजट) प्रक्रिया को अपनाना चाहिए न कि पिछले आय व्ययक अनुमान पर कुछ प्रतिशत बढोतरी या घटोतरी करें। अगले वित्तीय वर्ष का बजट वर्तमान वित्तीय वर्ष के अन्तिम माह अर्थात मार्च की 15 तारीख तक बोर्ड द्वारा विचारोपरान्त पारित पारित कर लिया जाना चाहिए। अत: बजट तैयार करने की प्रक्रिया प्रत्येक दशा में अंतिम तिमाही के पूवार्द्ध में ही पूर्ण कर ली जानी चाहिए व इस पर बोर्ड बैठक में विस्तृत चर्चा करनी चाहिए जिससे कि नीतिगत निर्णय, प्राथमिकता निर्धारण तथा जनता के हित में उचित वित्तीय निर्णय लिये जा सकें। 

चूंकि बोर्ड सभासदों से ही बना है, अत: बजट के माध्यम से सभासदों के बहुमत निर्णय से नीतियों व रणनीतियों का निर्धारण होता है।

नगर निकाय में लगाये जाने वाले कर

  1. भवनों या भूमियों या दोनों के वार्षिक मूल्य पर कर। 
  2. नगर पालिका की सीमा के अन्तर्गत व्यापार पर कर जिन्हें नगर पालिका की सेवाओं से विशेष लाभ मिलता है। 
  3. व्यापार, पेशों तथा व्यवसायों पर कर जिसमें सभी रोजगार जिनके लिये वेतन या शुल्क मिलता है वह सम्मिलित हैं। 
  4. मनोरंजन कर। 
  5. नगरपालिका के अंदर भाड़े पर चलने वाली गाड़ियों या उसमें रखी गई गाड़ियों पर कर। 
  6. नगरपालिका के अन्दर रखे कुत्तों पर कर।
  7. नगर पालिका के अन्दर रखे सवारी, चालन या बोझे के पशुओं पर कर। 
  8. व्यक्तियों पर सम्पत्तियों या परिस्थितियों के आधार पर कर। 
  9. भवनों या भूमि या दोनों के वार्षिक मूल्य पर जल कर।
  10. भवन के वार्षिक मूल्य पर उर्तक मूल्य पर उत्प्रवाह कर। 
  11. सफाई कर। 
  12. शोचालयों, मूत्रालयों तथा गड्ढ़ों से उत्प्रवाह तथा प्रदूषित जल के एकत्रीकरण, हटाने तथा खात्मा करने के लिए कर। 
  13. नगर पालिका की सीमा के अन्तर्गत स्थित सम्पत्ति के हस्तांतरण पर कर। 
  14.  संविधान के अन्तर्गत कोई अन्य कर जो राज्य विधायिका द्वारा राज्य में लागू किया जा सके। 
प्रावधान 
  1. 3 व 8 के कर एक साथ नहीं लगाए जा सकते हैं। 
  2. 10 0 12 के कर एक साथ नहीं लगाए जा सकते हैं। 
  3. 13 के अन्तर्गत नगर पालिका के अन्तर्गत अचल सम्पति के हस्तांतरण पर कर नहीं लगाया जा सकता है। (यदि वह सम्पति नजूल की हो) 
  4. 5 का कर मोटर गाड़ी, पर नहीं लगाया जा सकता है। 

मूल्यांकन, छूट व वसूली 

भवन या भूमि दोनों पर कर लगाने के लिए नगर निकाय एक मूल्यांकन सूची तैयार कर एक सार्वजनिक स्थल पर प्रदर्शित कर सकते हैं ताकि जिन लोगों को आपति हो वह एक महीने के अन्दर दाखिला कर सकें। जब आपतियों का निवारण हो जाता है तब मूल्यांकन सूची को प्रमाणित किया जाता है। प्रमाणित मूल्यांकन सूची नगर निकाय कार्यालय में जमा कर दी जाती है तथा उसे जनता द्वारा निरीक्षण के लिये खुला घोषित कर दिया जाता है। सामान्यत: नई मूल्यांकन सूची पाँच वर्ष में एक बार तैयार की जाती है। 

नगर निकाय किसी समय मूल्यांकन सूची को बदल सकते हैं या उसमें संशोधन कर सकते हैं। यदि कोई भवन या भूमि वर्ष में 90 या अधिक दिनों तक लगातार खाली रहती है तो नगर पालिका उस अवधि में कर छूट देती है। उस भवन या भूमि के पुन: कब्जे के लिए उस सम्पत्ति के मालिक को 15 दिनों के अंदर नगरपालिका को सूचना देनी होती है। अगर कोई ऐसा नहीं करता तो वह दंड का भागी होता है। दण्ड की राशि वास्तविक कर की दुगुनी राशि से दस गुना राशि से भी अधिक हो सकती है।

नगर पालिका करों से संबंधित अपीलें नगर पालिका कार्यालय में दायर की जा सकती है। साथ ही साथ इसकी एक प्रति जिलाधिकारी के यहाँ भी जाती है। सामान्यतः किसी भी अवधि के लिए देय कर या शुल्क का भुगतान उसकी अवधि के शुरू होने से पूर्व करना होता है। जब व्यक्ति कर का भुगतान समय पर नहीं करता तो उसके विरूद्ध नगरपालिका द्वारा वारंट जारी हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के अहाते से सम्पति को जब्त कर उसे नीलामी द्वारा बेचा जा सकता तथा बकायों की वसूली की जा सकती है। जब कोई व्यक्ति किसी कर का बकायेदार हो तो नगरपालिका कलेक्टर से प्रार्थना कर सकती है कि वह ऐसे धन को भू-राजस्व की भाँति वसूल करें, जिसमें कार्यवाही का खर्च शामिल नहीं होगा। कलेक्टर जब बकाया धन से संतुष्ट हो जाता है तो उसे वसूल करने की कार्यवाही करता है।

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