न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 क्या है?

भारत सरकार द्वारा 1944 में नियुक्त श्रमिक जाँच समिति ने देश के विभिन्न उद्योगों में श्रमिकों की मजदूरी और उनके अर्जन का अध्ययन किया और बताया कि लगभग सभी उद्योगों में मजदूरी की दरें बहुत ही निम्न है। समिति ने अनुभव किया कि उस समय तक देश के प्रधान उद्योगों में भी श्रमिकों की मजदूरी में सुधार लाने के लिए समुचित प्रयास नहीं किए गए। स्थायी श्रम-समिति तथा भारतीय श्रम-सम्मेलन में देश के कुछ उद्योगों और नियोजनों में कानूनी तौर पर मजदूरी नियत करने के प्रश्न पर 1943 और 1944 में विस्तार से विचार-विमर्श किए गए। 

समिति और सम्मेलन दोनों ने कुछ नियोजनों में कानून के अंतर्गत न्यूनतम मजदूरी की दरें नियत करने और इसके लिए मजदूरी नियतन संयंत्र की व्यवस्था की सिफारिश की । इन अनुशंसाओं को ध्यान में 148 रखते हुए भारत सरकार ने 1948 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम बनाया, जो उसी वर्ष देश में लागू हुआ। अधिनियम में समय-समय कुछ संशोधन भी किए गए है। अधिनियम के मुख्य उपबंधों की विवेचना नीचे की जाती है।

परिभाषा

‘मजदूरी’ का अभिप्राय ऐसे सभी पारिश्रमिक से है, जिसे मुद्रा में अभिव्यक्त किया जा सकता है तथा जो नियोजन की संविदा (अभिव्यक्त या विवक्षित) की शर्तो को पूरी करने पर नियोजित व्यक्ति को उसके नियोजन या उसके द्वारा किए जाने वाले काम के लिए देय होता है। मजदूरी में आवासीय भत्ता सम्मिलित होता है, लेकिन उसमें निम्नलिखित नहीं होते -
  1. आवास-गृह, प्रकाश और जल की आपूर्ति तथा चिकित्सकीय देखभाल का मूल्य; 
  2. समुचित सरकार के सामान्य या विशेष आदेश द्वारा अपवर्जित किसी अन्य सुख-सुविधा या सेवा का मूल्य; 
  3. नियोजक द्वारा किसी पेंशन निधि, भविष्य निधि या किसी सामाजिक बीमा-योजना के अंतर्गत दिया गया अंशदान; 
  4. यात्रा-भत्ता या यात्रा रियायत का मूल्य; 
  5. नियोजन की प्रकृति के कारण किसी नियोजित व्यक्ति को विशेष खर्च के लिए दी जाने वाली राशि; या 
  6. सेवोन्मुक्ति पर दिया जाने वाला उपदान 

    कर्मचारी

    ‘कर्मचारी’ का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है, जो किसी ऐसे अनुसूचित नियोजन में कोई काम (कुशल, अकुशल, शारीरिक या लिपिकीय) करने के लिए भाड़े या पारिश्रमिक पर नियोजित हैं, जिसमें मजदूरी की न्यूनतम दरें नियत की जा चुकी है। कर्मचारी की श्रेणी में ऐसा बाहरी कर्मकार भी सम्मिलित है, जिसे दूसरे व्यक्ति द्वारा उसके व्यवसाय या व्यापार के लिए बनाने, साफ करने, धोने, बदलने, अलंकृत करने, पूरा करने, मरम्मत करने, अनुकूलित करने या अन्य प्रकार से विक्रय हेतु प्रसंस्कृत करने के लिए वस्तु या सामग्री दी जाती है, चाहे वह प्रक्रिया बाहरी कर्मकार के घर पर या अन्य परिसरों में चलाई जाती हो। कर्मचारी की श्रेणी में ऐसा कर्मचारी भी सम्मिलित है, जिसे समुचित सरकार ने कर्मचारी घोषित किया हो, लेकिन इसके अंतर्गत संघ के सशस्त्र बलों का सदस्य शामिल नहीं है।

    समुचित सरकार

    ‘समुचित सरकार’ का अभिप्राय हैं - (1) केन्द्र सरकार या रेल प्रशासन के प्राधिकार द्वारा या अधीन चलाए गए किसी अनुसूचित नियोजन के संबंध में या किसी भवन, तेलक्षेत्र या महापत्तन या केंद्रीय अधिनियम द्वारा स्थापित किसी निगम के संबंध में - केंन्द्रीय सरकार तथा (2) अन्य अनुसूचित नियोजनों के संबंध में - राज्य सरकार।

    नियोजक

    ‘नियोजक’ का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से हैं, जो या तो स्वयं या अन्य व्यक्ति के द्वारा या तो अपने किसी अन्य व्यक्ति के लिए या अधिक कर्मचारियों को ऐसे किसी अनुसूचित नियोजन में नियोजित करता है, जिसके लिए मजदूरी की न्यूनतम दरें इस अधिनियम के अधीन नियत की जा चुकी है। ‘नियोजक’ के अंतर्गत निम्नलिखित सम्मिलित हैं -
    1. कारखाना-अधिनियम 1948 के अधीन कारखाना का प्रबंधक; 
    2. अनुसूचित नियोजन में सरकार के नियंत्रण के अधीन वह व्यक्ति या प्राधिकारी, जिसे सरकार ने कर्मचारियों के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए नियुक्त किया है। जहाँ इस प्रकार के किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को नियुक्त नहीं किया गया है, वहाँ विभागाध्यक्ष को ही नियोजक माना जाएगा; 
    3. किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन ऐसा व्यक्ति, जिसे कर्मचारियों के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए नियुक्त किया गया है। अगर वहाँ इस तरह का कोई व्यक्ति नहीं है, तो उस स्थानीय प्राधिकारी के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी को नियोजक समझा जाएगा; तथा 
    4. अन्य स्थितियों में ऐसा व्यक्ति, जो कर्मचारियों के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए या मजदूरी देने के लिए स्वामी के प्रति उत्तरदायी है। 

      न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 का विस्तार

      अधिनियम की अनुसूची से उन नियोजनों का उल्लेख है, जिनमें करने वाले श्रमिकों के लिए मजदूरी की न्यूनतम दरें नियत की जा सकती है। प्रारंभ में अधिनियम की अनुसूची के भाग एक में सम्मिलित नियोजन थे - (1) ऊनी गलीचे या दुषाले बुननेवाले प्रतिष्ठान, (2) धानकुट्टी, आटा-मिल या दाल-मिल, (3) तंबाकू (जिसके अंतर्गत बीड़ी बनाना भी शामिल है) का विनिर्माण, (4) बागान, जिसमें सिनकोना, रबर, चाय और कहवा सम्मिलित है, (5) तेल-मिल, (6) स्थानीय प्राधिकार, (7) पत्थर तोड़ने या फोड़ने के काम, (8) सड़कों का निर्माण या अनुरक्षण तथा भवन-संक्रियाएं, (9) लाख-विनिर्माण, (10) अभ्रक संकर्म, (11) सार्वजनिक मोटर परिवहन तथा (11) चर्म रंगाईशाला और चर्म विनिर्माण।

      अधिनियम की अनुसूची के भाग दो में सम्मिलित नियोजन है - कृषि या किसी प्रकार के कृषिकर्म में नियोजन, जिसमें जमीन की खेती या उसे जोतना, दुग्ध-उद्योग, किसी कृषि या बागबानी की वस्तु का उत्पादन, उसकी खेती, उसे उगाना और काटना, पषुपालन, मधुमक्खीपालन या मुर्गीपालन तथा किसी किसान द्वारा या किसी कृषिक्षेत्र पर कृषिकर्म संक्रियाओं के आनुशंगिक या उनसे संयोजित (जिसमें वन-संबंधी या लकड़ी काटने से संबद्ध संक्रियाएं तथा कृषि-पैदावार को बाजार के लिए तैयार करने और भंडार या बाजार में देने या ढोने के कार्य शामिल है) कोई भी क्रिया सम्मिलित है।

      मजदूरी की न्यूनतम दरों का नियतन और पुनरीक्षण

      न्यूनतम मजदूरी-दरों का नियतन - समुचित सरकार (अपने-अपने अधिकार-क्षेत्र में केंद्रीय या राज्य सरकार) के लिए अधिनियम की अनुसूची में उल्लिखित तथा उसमें शामिल किए जाने वाले अन्य नियोजनों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए मजदूरी की न्यूनतम दरें नियत करना आवश्यक है। अनुसूची के भाग 2 में सम्मिलित नियोजनों, अर्थात् कृषि एवं संबद्ध क्रियाओं में समुचित सरकार पूरे राज्य की जगह केवल राज्य के विशेष भागों या विशिष्ट 150 श्रेणी या श्रेणियों के नियोजनों (पूरे राज्य या उसके किसी भाग) के लिए मजदूरी की न्यूनतम दरें नियत कर सकती है। 

      अलग-अलग अनुसूचित नियोजनों, एक ही अनुसूचित नियोजन में अलग-अलग प्रकार के कामों, वयस्कों, तरुणों, बालकों और शिक्षुओं तथा अलग-अलग क्षेत्रों के लिए मजदूरी की अलग-अलग दरें नियत की जा सकती है। मजदूरी की न्यूनतम दरें घंटे, दिन, महीने या अन्य कालावधि के लिए नियत की जा सकती है। जहाँ मजदूरी की दैनिक दर नियत की गई है। वहाँ उसे मासिक मजदूरी के रूप में गणना तथा जहाँ मासिक नियत की गई है, वहाँ उसे दैनिक मजदूरी के रूप में गणना के तरीकों का भी उल्लेख किया जा सकता है। जिन नियोजनों में मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 लागू है, उनमें मजदूरी कालावधि उसी अधिनियम के अनुसार निर्धारित की जाएगी। नियत की जाने वाली मजदूरी-दरें निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है। - 
      1. मजदूरी की मूल दर और परिवर्ती निर्वाहव्यय-भत्ता; 
      2. निर्वाहव्यय-भत्ता के सहित या रहित मजदूरी की मूल दर तथा अनिवार्य वस्तुओं की रियायती दरों पर आपूर्ति के नकद मूल्य; या 
      3. ऐसा सर्वसमावेशी दर, जिसमें मूल दर, निर्वाहव्यय-भत्ता तथा रियायतों के नकद मूल्य सम्मिलित हों। 
      न्यूनतम मजदूरी दरों के नियतन की प्रक्रिया - अधिनियम में अनुसूचित नियोजनों में पहली बार मजदूरी की न्यूनतम दरें नियत करने की दो प्रक्रियाओं की व्यवस्था है। पहली प्रक्रिया में समुचित सरकार समिति या समिति के सहायतार्थ विभिन्न क्षेत्रों के लिए उपसमितियों का गठन कर सकती है। समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखकर सरकार संबंद्ध नियोजन के लिए मजदूरी की न्यूनतम दरें ‘राजपत्र‘ में प्रकाशित कर नियत कर देती है।

      दूसरी विधि में समुचित सरकार किसी अनुसूचित नियोजन में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए मजदूरी की न्यूनतम दरों के प्रस्ताव प्रभावित हो सकने वाले व्यक्तियों के सूचनार्थ राजपत्र में प्रकाशित कर देती है और उन्हें प्रकाशन की तिथि से दो महीने के अंदर अपने अभ्यावेदन देने का मौका देती है। इस संबंध में प्राप्त किए गए सभी अभ्यावेदनां पर विचार करने के बाद सरकार संबंद्ध अनुसूचित नियोजन के लिए मजदूरी की न्यूनतम दरें राजपत्र में प्रकाशित कर नियत कर देती है। दोनों में किसी भी प्रक्रिया द्वारा नियत की गई मजदूरी की दरें राजपत्र में अधिसूचना के प्रकाशन के तीन महीने की अवधि के बीत जाने के बाद लागू हो जाती है।

      न्यूनतम मजदूरी दरों का पुनरीक्षण - नियत की गई न्यूनतम मजदूरी दरों की पुनरीक्षण के लिए भी वे ही विधियां अपनाई जाती है, जो उन्हें नियत करने के लिए हैं। मजदूरी दरों के पुनरीक्षण के लिए भी समिति और उपसमिति का गठन या राजपत्र में प्रस्तावों की अधिसूचना के प्रकाशन की विधि का प्रयोग किया जा सकता है। संशोधित मजदूरी की न्यूनतम दरें भी अलग-अलग अनुसूचित नियोजनों, एक ही अनुसूचित नियोजन में अलग-अलग प्रकार के कामों, वयस्कों, तरुणों और शिक्षुओं तथा अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग हो सकती है। ये दरें भी तीन प्रकार की हो सकती है। - (1) मजदूरी की मूल दर और अलग से परिवर्ती निर्वाहव्यय-भत्ता, (2) निर्वाहव्यय-भत्ता के सहित या उनके बिना मजदूरी की मूल दर तथा अनिवार्य वस्तुओं की रियायती दरों पर आपूर्ति के नकद मूल्य, तथा (3) ऐसी सर्वसमावेशी दर, जिसमें मूल दर, निर्वाहव्यय-भत्ता तथा रियायतों के नकद मूल्य सम्मिलित हों।

      स्मिति, उपसमिति, सलाहकार बोर्ड और केंद्रीय सलाहकार बोर्ड - समिति, उपसमिति तथा सलाहकार बोर्ड प्रत्येक में समुचित सरकार द्वारा मनोनीत अनुसूचित नियोजनों के नियोजकों और कर्मचारियों के प्रतिनिधि बराबर-बराबर की संख्या में, तथा अधिकतम एक-तिहाई की संख्या में स्वतंत्र व्यक्ति होगें। स्वतंत्र व्यक्तियों में एक को समुचित सरकार अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करेगी। सलाहकार बोर्ड का काम समितियों और उपसमितियों के कार्यो को समन्वित करना तथा न्यूनतम मजदूरी-दरों के नियत किए जाने और उनमें संशोधन लाने के संबंध में समुचित सरकार को सलाह देना है। केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की नियुक्ति केंद्रीय सरकार करती है। केंद्रीय सलाहकार बोर्ड में भी अनुसूचित नियोजनों के नियोजकों और कर्मचारियों के प्रतिनिधि बराबर-बराबर के अनुपात में तथा अधिकतम एक-तिहाई की संख्या में स्वतंत्र व्यक्ति होंगे। इन सभी सदस्यों को केंद्रीय सरकार मनोनीत करेगी। केंद्रीय सरकार स्वतंत्र व्यक्तियों में एक को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करेगी। केंद्रीय सलाहकार बोर्ड का मुख्य काम मजदूरी की न्यूनतम दरों को नियत करने या उनमें संशोधन लाने तथा अधिनियम के अंतर्गत अन्य विषयों के बारे में सलाह देना तथा सलाहकार बोर्डो के कार्यो को समन्वित करना है।

      प्रकार में मजदूरी - इस अधिनियम के अंतर्गत नियत की गई मजदूरी को नकद देना आवश्यक है, लेकिन जहाँ मजदूरी को पूर्णत: या आंशिक रूप में प्रकार में देने का प्रचलन है, वहाँ समुचित सरकार इस तरह से भुगतान दे सकती है। प्रकार में मजदूरी तथा अनिवार्य वस्तुओं की रियायती दरों पर आपूर्ति के नकद मूल्य का निर्धारण विहित तरीके से करना आवश्यक है। जहाँ कर्मचारी मात्रानुपाती कार्य पर नियोजित है तथा जिसके लिए न्यूनतम कालानुपाती मजदूरी ही नियत की गई है, वहाँ उसे मात्रानुपाती मजदूरी दर के हिसाब से मजदूरी दी जाएगी।

      न्यूनतम मजदूरी का भुगतान - किसी भी अनुसूचित नियोजन में, जिसमें मजदूरी की दरें नियत की जा चुकी है।, नियत की गइर् मजदूरी से कम दरों पर मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा सकता। नियत की गई मजदूरी से केवल वे ही कटौतियाँ की जा सकती है।, जो सरकार द्वारा अधिकृत की गई हो। जिन नियोजनों में मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 लागू है, उनमें उसी अधिनियम के उपबंधों के अनुसार मजदूरी से कटौतियां की जा सकती है। समुचित सरकार को मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 के उपबंधों को राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उन अनुसूचित नियोजनों में लागू करने की शक्ति प्राप्त है।, जिनमें मजदूरी की न्यूनतम दरें नियत की गई है।

      दो या अधिक वर्गो के कामों के लिए मजदूरी - अगर किसी कर्मचारी से दो या अधिक प्रकार के काम लिए जाते है।, जिनके लिए मजदूरों की विभिन्न दरें नियत की गई है।, तो उसे प्रत्येक काम के लिए अलग-अलग दरों से मजदूरी दी जाएगी।

      सामान्य कार्य के घंटों आदि का नियतन

      कर्मचारियों के लिए दैनिक कार्य के घंटों, अंतराल, साप्ताहिक विश्राम तथा अवकाश-दिवस के कार्य के लिए भुगतान-संबंधी उपर्युक्त उपबंध केवल विहित सीमाओं और विहित शर्तो के अनुसार ही लागू होते है। -
      1. अत्यावष्यक काम पर या आपातकालीन स्थिति में काम करने वाले कर्मचारी; 
      2. प्रारंभिक या अनुपूरक प्रकृति के कामों पर नियोजित कर्मचारी, जिन्हें निर्धारित अवधि की सीमाओं के बाद भी काम करना जरूरी होता है; 
      3. ऐसे कर्मचारी, जिनका नियोजन मूलत: आंतरायिक है; 
      4. ऐसे कर्मचारी, जिनका काम तकनीकी कारणों से कर्त्तव्यकाल के समाप्त होने के पहले ही किया जाना जरूरी होता है; या 
      5. ऐसे कर्मचारी, जो उन कार्यो पर नियोजित है, जिन्हें प्राकृतिक शक्तियों की अनियमित क्रियाओं के अलावा अन्य समयों में नही किया जा सकता। 
      आगे कोई कर्मचारी नियोजक के लोप के कारण निर्धारित कार्य के दैनिक घंटों से कम घंटों के लिए काम करता है, तो भी उसे पूरे दिन के लिए नियत मजदूरी-दर से भुगतान किया जाएगा। लेकिन, अगर वह अपनी अनिच्छा से या अन्य विहित परिस्थितियों के कारण पूरे समय तक काम नहीं करता, तो वह पूरे दिन के लिए मजदूरी का हकदार नहीं होता।

       अन्य उपबंध

      1. संविदा द्वारा त्याग पर रोक - ऐसी कोई भी संविदा या समझौता, चाहे वह इस अधिनियम के पहले या बाद में किया गया हो, जिसके द्वारा कोई कर्मचारी इस अधिनियम के अंतर्गत मजदूरी की न्यूनतम दर, विशेषाधिकार या रियायत को छोड़ देता है या घटा देता है, वह अकृत और शून्य होता है। 

      2. दाबे - प्राधिकारी को गवाही लेने, गवाहों की उपस्थिति के लिए बाध्य करने, और दस्तावेजों को पेश करने के लिए सिविल प्रक्रिया-संहिता, 1908 के अधीन सिविल न्यायालय की सभी शक्तियाँ प्राप्त रहती है। प्राधिकारी को दंड प्रक्रिया-संहिता के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा। न्यूनतम मजदूरी या अन्य रकम के बकाए की राशि के दावे से संबद्ध आवेदन कई कर्मचारी मिलकर एक साथ भी दे सकते है।, लेकिन ऐसी स्थिति में हर्जाने की अधिकतम राशि न्यूनतम मजदूरी के बकाए की स्थिति में कुल राशि के दसगुने से अधिक और अन्य स्थितियों में प्रतिव्यक्ति 10 रु0 से अधिक नहीं हो सकती। प्राधिकारी किसी अनुसूचित नियोजन में बकाए से संबंद्ध अलग-अलग दिए गए कई आवेदनों पर एक आवेदन के रूप में भी विचार कर सकता है। 

      3. असंवितरित रकमों का भुगतान - अगर किसी कर्मचारी की मृत्यु के कारण उसे इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों के अंतर्गत देय न्यूनतम मजदूरी या अन्य रकम की राशि का भुगतान नहीं किया जा सका हो, तो नियोजक के लिए इस राशि को प्राधिकरी के पास जमा करना आवश्यक होगा। प्राधिकारी जमा की गई इस राशि का व्यवहार विहित तरीके से करेगा।

      4. रजिस्टरों और रिकॉर्डो का अनुरक्षण - अनुसूचित नियोजनों में नियोजकों के लिए अपने कर्मचारियों से संबद्ध ब्योरे, उनके कार्य, दी जानेवाली मजदूरी, मजदूरी की रसीद तथा अन्य विवरणियों के लिए रजिस्टर और रिकॉर्ड रखना आवश्यक है। उनके लिए कर्मचारियों को दी जाने वाली सूचना की समुचित व्यवस्था करना भी अनिवार्य है। समुचित मजदूरी-पुस्तिकाओं या मजदूरी-पर्चियों को दिए जाने के संबंध में नियम बना सकती है।

      5. वादों का वर्णन - निम्नलिखित स्थितियों में कोई भी न्यायालय बकाए की मजदूरी या अन्य रकम की वसूली के लिए किसी भी वाद को विचारार्थ नहीं ले सकता - 
      • अगर दावे की राशि के लिए वादी या उसकी ओर से आवेदन इस अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त प्राधिकारों के पास दिया जा चुका हो; 
      • अगर प्राधिकारी ने दावे की राशि के संबंध में वादी के पक्ष में निर्देश दिए हो; 
      • अगर प्राधिकारी के निदेशानुसार दावे की राशि वादी को देय नही है; या 
      • अगर दावे की राशि इस अधिनियम के अधीन वसूल की जा सकती हो। 
      6. निरीक्षक - केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति और उनके कार्य की स्थानीय सीमाओं का निर्धारण कर सकती है। निरीक्षक को भारतीय दंडसंहिता के अर्थ में लोकसेवक समझा जाता है। निरीक्षक द्वारा किसी दस्तावेज या वस्तु को उपस्थित करने की माँग करने पर उसे प्रस्तुत करना संहिता की धाराओं 175 और 176 के अनुसार कानूनी रूप से अनिवार्य होता है। 

      7. कुछ अपराधों के लिए शासितयाँ - अगर नियोजक किसी कर्मचारी को नियत की गई न्यूनतम मजदूरी से कम दर पर या उसे देय अन्य रकम से कम का भुगतान करता है या कार्य के घंटों या विश्राम-दिवस से संबद्ध नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे अधिकतम 6 महीने के कारावास या 500 रुपये तक के जुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकता है। लेकिन, नियोजक को दंडित करते समय न्यायालय के लिए दावे से संबद्ध मामलों में उस पर लगाए गए हर्जाने की राशि को ध्यान में रखना आवश्यक है। जहाँ अधिनियम या उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के उल्लंघन के लिए दंड का उल्लेख नहीं किया गया है, वहाँ अपराध के लिए नियोजक को अधिकतम 500 रुपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। 

      8. अपराधों का संज्ञान - अगर कोई शिकायत न्यूनतम मजदूरी या अन्य रकम के बकाए से संबद्ध हो और उस संबंध में प्राधिकारी ने उसे पूर्ण या आंशिक रूप में स्वीकृत कर दिया हो, तो कोई भी न्यायालय समुचित सरकार या उसके द्वारा अधिकृत अधिकारी की स्वीकृति के बिना उस शिकायत पर विचार नहीं कर सकता। अगर कोई शिकायत शासितयों से संबद्ध हो, तो न्यायालय उस पर केवल निरीक्षक द्वारा शिकायत करने या उसकी स्वीकृति पर ही विचार कर सकता है। उल्लिखित शासितयों के बारे में शिकायत इसके लिए मंजूरी दी जाने से एक महीने के अंदर और अन्य प्रकार की शासितयों के लिए अपराध के अभिकथित दिन से 6 महीने के अंदर ही की जा सकती है। 

      9. छूट और अपवाद - समुचित सरकार को मजदूरी संबंधी अधिनियम के उपबंधों को अंशक्त कर्मचारियों के साथ लागू नहीं होने से संबद्ध निदेश देने की शक्ति प्राप्त है। अगर किसी अनुसूचित नियोजन में कर्मचारियों का इस अधिनियम में नियत की गई मजदूरी की दरें से अधिक दर पर मजदूरी मिलती है, या उनकी सेवा की शर्ते और दशाएँ इस अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित शर्तों और दशाओं से ऊँचे स्तर की हैं, तो समुचित सरकार इन कर्मचारियों, प्रतिष्ठानों, या किसी क्षेत्र में अनुसूचित नियोजन को अधिनियम के संबद्ध उपबंधों से छूट दे सकती है। 

      10. केंद्रीय सरकार द्वारा निदेश देने की शक्ति - इस अधिनियम के समुचित निष्पादन के लिए केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को निदेश दे सकती है। 

      11. नियम बनाने की शक्ति - केन्द्र सरकार को केंद्रीय सलाहकार बोर्ड के सदस्यों की पदावधि, कामकाज के संचालन के लिए प्रक्रिया, मतदान के तरीके, सदस्यता में आकस्मिक रिक्तियों के भरे जाने और कामकाज के लिए आवश्यक गणपूर्ति के संबंध में नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है।

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