पटकथा लेखन क्या है || पटकथा लेखन का स्वरूप

पटकथा लेखन क्या है ?

पटकथा लेखन फिल्म लेखन का महत्वपूर्ण अंग है। कथा को दृश्य-श्रव्य माध्यम से अभिव्यक्त करने हेतु पटकथा लिखी जाती है। कथा से पटकथा का जन्म होता है पर यह भी सच है कि घटना है तो पटकथा बनेगी। घटना के बिना कथा नहीं बन सकती। घटना भी समस्या प्रधान होनी चाहिए, क्योंकि समस्या ही नाटकीय तत्व प्रदान करती है। या यूं कहिए कि समस्या से ही नाटक जन्म लेता है। घटना के कुछ पात्र हों, उनके आगे कोई समस्या उत्पन्न हो, उस समस्या से कोई संकट पैदा हो, संकट का समाधान ही नाटक का अंत कर देता है। जब किसी घटना की प्रसंग दृश्यों के रूप मे श्रृंखला बन जाती है तो फिल्म की भाषा में उसे सीक्वेंस कहा जाता है। सीक्वेंस से ही पटकथा का निर्माण होता है।

डॉ. अनुपम ओझा पटकथा को स्पष्ट करते हुए कहते हैं - “पटकथा लेखन का सामान्य अर्थ है - विभिन्न उपक्रमों को एक दूसरे से इस तरह से जोड़ना कि एक मकुम्मल कहानी चित्रित हो उठे। यानी स्क्रीन पर उभर आए।” 

पटकथा लेखन का स्वरूप

पटकथा लेखन एक सृजनात्मक कला है, इसके स्वरूप को स्पष्ट करते हुए डॉ. अनुपम ओझा कहते हैं - “लेखन की छोटी इकाई शब्द या वाक्य है, किन्तु पटकथा लेखन की छोटी इकाई शॉट है। वाक्यों को जोड़ने से पैराग्राफ बनता है, शॉटस को जोड़ने से दृश्य (अथवा सीन) बनता है। शॉट, सीन और सीक्वेंस के मिलने से पटकथा बनती है।पटकथा का आधार कहानी होती है। कहानी किसी एक आयडिया, प्लाट या थीम पर खड़ी की जाती है। कहानी को चलचित्र की भाषा में ढालने के कार्य को पटकथा-लेखन कहा जाता है।” 

पटकथा लिखते समय पहले आप अनिश्चित वर्तमान काल में घटना को घटते हुए देखें, फिर उसे सफेद कागज पर पेन से शब्द का रूप दें। इसे लिखते समय ता है, ती है, ते हैं आदि क्रिया विभक्तियों का प्रयोग करें। इस बात का भी ध्यान रखें कि एसे ी कौन सी घटनाएं ली जाए जिनसे पात्रों के चरित्र का पता चल सके। आपको इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि आपके अलग-अलग पात्र जो भी हों, वे किस मन:स्थिति एवं परिस्थिति के वशीभूत होकर कार्य कर रहे हैं। किस लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहते हैं? प्रेरणा कमी और लक्ष्य यानी माेि टवेशन, एक्शन एवं रोल आदि बातें आपको अपने पात्र के विषय में मालूम होनी चाहिए। इसी आधार पर आप जन समूह को बता पाएंगे कि आपके पात्र क्या चाहते हैं? किसलिए चाहते हैं, और अपनी उम्मीदों के लिए क्या कुछ करने को तैयार हैं।

पटकथा लिखते समय दृश्य के ऊपर दिन और रात का ही उल्लेख करना चाहिए। यह बताने की जरूरत नहीं है कि दिन के चार बजे हैं या पांच। समय बताना जरूरी हो तो घड़ी का शॉट डालना चाहिए। या किसी संवाद द्वारा समय की सूचना देनी चाहिए। धारावाहिकों में कथानक कई-कई उपकथाओंं वाला होना चाहिए ताकि उसे लंबे समय तक किस्त-दर-किस्त रूप में दिखाया जा सके।

लेखक व दर्शक में काफी अंतर होता है। लेखक घटना लिखता है। जबकि दर्शक पर्दे पर घटना को घटित होते हुए देखता है। पात्रों को बोलता हुआ सुनता है। फिल्म में हमेशा वर्तमान दिखाया जाता है। फिल्म की कहानी सुनते ही हम अनिश्चित वर्तमान की बात करने लगते हैं। ‘एक भिखारी था’ के स्थान पर ‘एक भिखारी होता है’ का प्रयोग करते हैं।

पटकथा का आंतरिक भाग

पटकथा तीन अंकीय सूत्र पर आधारित होती है।  प्रथम भाग में ऐसी बातें प्रस्तुत करनी चाहिए जिससे आगे चलकर दृश्यों में चरित्र-चित्रण नाटकीय मोड़ ले सकें। पात्रों की स्थिति, परिस्थिति एवं कामनाएं इसी अंक की घटनाओं से उजागर होती हैं। आने वाली घटनाओं को न्योता दिया जाता है। इसको सेटअप भी कहा जाता है। 

दूसरे अंक में पात्रों का विशिष्ट परिस्थिति में अलग-अलग कामनाओं के कारण हुआ झगड़ा दिखाना होता है। कथानक को संवादों के माध्यम से उलझाना चाहिए। ताकि वह चरमोत्कर्ष की ओर आसानी से बढ़ सके। पात्रों का घात-प्रतिघात का वर्णन इस तरह दिखाना चाहिए कि उन्हें संकट का अहसास हा े जाए। कहानी का विकास इसी भाग में होता है इसलिए पटकथा का दूसरा भाग सबसे बड़ा भाग कहलाता है और यह अधिक मेहनत वाला भी है। एक घटना से दूसरी घटना जन्म ले, एक दृश्य से दूसरा दृश्य उत्पन्न हो। कथानक का ऐसा कोई दृश्य न हो जो कथा को आगे बढ़ने से रोके। 

पटकथा का तीसरा अंक संकट के समाधान का होता है, आभास का होता है। इस अंक पर कथा खत्म हो जाती है। यह अंक लंबा नहीं होता, बल्कि पहले अंक की तरह छोटा होता है। इस भाग के अधिकांश हिस्से को चरमोत्कर्ष के रूप में दिखाएं।

पटकथा लिखने से पहले कथानक बिंदु तय कर लेना चाहिए ताकि आपके कथा निर्माण को दिशा मिल सके। दर्शकों के मन में जिज्ञासा का मुद्दा अच्छी तरह से उठाएं। कथानक के नाटकीय तत्त्व का हौसला बढ़ाएं। सेट-अप में यह बताना आवश्यक है कि पात्र कहां है, कौन हैं, क्या करते हैं और क्या चाहते हैं?

पटकथा लेखन का प्रशिक्षण दिल्ली और दिल्ली से बाहर कई महानगरों में दिया जा रहा है। समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पटकथा लेखन से संबंधित एवं प्रशिक्षण संस्थाओं की जानकारी समय-समय पर मिलती रहती है। 

पटकथा लेखन एक हुनर है। अंग्रेजी में पटकथा-लेखन के बारे में पचासों किताबें उपलब्ध हैं और विदेशों में खासकर अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में पटकथा-लेखन के बाकायदा पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। लेकिन भारत में इस दिशा में अभी कोई पहल नहीं हुई है। हिन्दी में पटकथा-लेखन और सिनेमा से जुड़ी अन्य विधाओं के बारे में कोई अच्छी किताब छपी ही नहीं है। इसकी एक वजह यह भी है कि हिन्दी में सामान्यत: यह माना जाता रहा है कि लिखना चाहे किसी भी तरह का हो, उसे सिखाया नहीं जा सकता। कई बार तो लगता है कि शायद हमें लिखना सीखना भी नहीं चाहिए। यह मान्यता भ्रामक है और इसी का नतीजा है कि हिंदी वाले गीत-लेखन, रेडियो, रंगमंच , सिनेमा, टीवी आरै विज्ञापन आदि में ज्यादा नहीं चल पाए। लेकिन इधर फिल्म व टी.वी. के प्रसार और पटकथा-लेखन में रोजगार की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए अनेक युवा पटकथा-लेखन में रुचि लेने लगे हैं और पटकथा के शिल्प की आधारभूत जानकारी चाहते हैं।

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