राज्य का अर्थ, परिभाषा, आवश्यक तत्व, कार्य

राज्य का अर्थ

राज्य का शाब्दिक अर्थ- राज्य शब्द अंग्रेजी भाषा के स्टेट (State) शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, राज्य की उत्पत्ति लेटिन भाषा के स्टेटस शब्द से हुई है। स्टेटस का शाब्दिक अर्थ है सामाजिक स्तर। अत: स्टेट शब्द का तात्पर्य उस महान संस्था से है, जो गौरवशाली हो अर्थात् समय परिर्वतन के साथ स्टेट से बने स्टेट शब्द को राज्य के अर्थ में उपयोग किया जाने लगा।

राज्य की परिभाषा

राज्य की परिभाषा विभिन्न दृष्टिकोणों से की गई है। इस कारण राज्य की अनेक परिभाषाएं हैं, उनमें निम्नलिखित मुख्य हैं-

अरस्तु के अनुसार - ‘‘राज्य परिवारों व ग्रामों का एक ऐसा समुदाय है, जिसका उद्देश्य पूर्ण और आत्म-निर्भर जीवन की प्राप्ति है। ‘‘ 

जीन बोदाँ के अनुसार - ‘‘राज्य परिवारों का एक संघ है, जो किसी सर्वोच्च शक्ति और तर्क बुद्धि द्वारा शासित होता है।’’ 

डॉ. गार्नर के अनुसार - ‘‘राजनीति विज्ञान और सार्वजनिक कानून की धारणा के रूप में राज्य, संख्या के कम या अधिक व्यक्तियों का एक ऐसा समुदय है जो कि किसी निश्चित भू-भाग पर स्थायी रूप से निवास करता हो तथा बाह्य नियंत्रण से पूर्णत: या लगभग स्वतंत्र हो और जिसकी एक ऐसी संगठित सरकार हो, जिसके आदेशों का पालन निवासियों का विशाल समुदाय स्वभावत: करता है।’’ 

राज्य के आवश्यक तत्व

राज्य निर्माण के आवश्यक तत्वों के संबंध में राज्य के संबंध में विभिन्न विचारकों की परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर राज्य के अग्रांकित चार प्रमुख तत्व है- 1. जनसंख्या  2. निश्चित भू-भाग 3. सरकार 4. संप्रभुता ।

1. जनसंख्या- जनसंख्या राज्य का प्रथम आवश्यक तत्व है, क्योंकि राज्य एक मानव समुदाय है और मानव के बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती।

2. निश्चित भू-भाग- राज्य का दूसरा आवश्यक तत्व निश्चित भू-भाग है। मानव समुदाय जब तक किसी एक निश्चित भू-भाग पर स्थायी रूप से निवास नहीं करने लगता तब तक उसे राज्य नहीं कह सकते।

3. सरकार- राज्य के लिए तीसरा आवश्यक तत्व सरकार है। राज्य मनुष्यों का एक राजनीतिक समुदाय है और सामुदायिक जीवन के लिए सरकार रूपी राजनीतिक संगठन का होना आवश्यक हैं, क्योंकि सरकार ही वह यंत्र है जो उन उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को व्यावहारिक रूप देता है, जिसके लिए राज्य का उदय हुआ है।

4. संप्रभुता- संप्रभुता का अर्थ है ‘सर्वोच्च सत्ता’। संप्रभुता राज्य की आज्ञा देने वाली शक्ति है। चूंकि संप्रभुता राज्य में ही निवास करती है, अत: बाह्य एवं आंतरिक दोनों ही रूपों में सर्वोच्च एवं सर्वशक्ति मान है। संप्रभुता राज्य को आन्तरिक और बाह्य दोनों ही मामलों में सर्वोच्चता एवं स्वतंत्रता प्रदान करती है। 

संप्रभुता सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। किसी निश्चित भू-भाग में रहने वाले, सरकार संपन्न मानव समुदाय को भी तब तक राज्य नहीं कहा जा सकता, जब तक संप्रभुता उनके अधिकार में न हो, अर्थात् जब तक वह मानव समुदाय अपनी आंतरिक एवं बाह्य समस्याओं के समाधान और नीति निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र न हो। 

अत: संप्रभुता ही वह तत्व है, जो राज्य को अन्य मानव समुदायों से श्रेष्ठता प्रदान करता है।

    राज्य के कार्य

    राज्य के कार्यों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- अ. अनिवार्य कार्य ब. ऐच्छिक कार्य।

    राज्य के अनिवार्य कार्य

    राज्य को अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए कुछ कार्य अनिवार्य रूप से करने पड़ते है यदि इन कार्यों को राज्य नहीं करे तो उसका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। राज्य के अनिवार्य कार्य हैं-

    1. बाह्य आक्रमण से रक्षा- राज्य को अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए बाह्य आक्रमण से अपनी सीमाओं की रक्षा करना राज्य का अनिवार्य कार्य है। इस कार्य को करने के लिए राज्य जल, थल और वायु सेना रखता है और इन सेनाओं के लिए युद्ध सामग्री की व्यवस्था भी करता है।

    2. आंतरिक शांति व सुव्यवस्था- राज्य में शान्ति व सुव्यवस्था की स्थापना करना राज्य का दूसरा अनिवार्य कार्य है। इन कार्यों को सम्पादित करने के लिए राज्य कानून बनाता है तथा उसका पालन करता है, इसके लिए राज्य पुलिस और जेल की व्यवस्था करता है और विषम परिस्थितियों में सेना की सहायता भी लेता है।

    3. न्याय-व्यवस्था- राज्य में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए बनाये गये कानून का उल्लंधन करने वाले व्यक्तियों को दण्डित करना और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रखा करने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना करना भी राज्य का अनिवार्य कार्य है। 

    4. वैदेशिक संबंधों का संचालन- वैदेशिक संबंधों का संचालन करना राज्य का एक अनिवार्य कार्य है इसके लिए राज्य विश्व के अन्य राज्यों में अपनी राजदूतों की नियुक्ति करता है, साथ ही साथ अन्य राज्यों के राजदूतों के लिए अपने यहां व्यवस्था करता है। 

    5. मुद्रा एवं बैंकिंग व्यवस्था- आधुनिक युग में राज्य में मुद्रा एवं बंैि कंग की उत्तम व्यवस्था तथ करारोपण द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु धन संग्रह करना भी राज्य का एक अनिवार्य कार्य है। 6. संचार एवं यातायात व्यवस्था- राज्य के अनिवार्य कार्यों में संचार एवं यातायात व्यवस्था भी सुचारू रूप से करना एक है। 

    राज्य के ऐच्छिक कार्य

    इन कार्यों में वे कार्य आते हैं, जिनकों करना राज्य की इच्छा पर निर्भर होता है, क्योंकि इन कार्यों को करने या न करने से राज्य के अस्तित्व को कोई खतरा नहीं होता। राज्य के ऐच्छिक कार्य हैं-

    1. शिक्षा की व्यवस्था- मानव की उन्नति और विकास में शिक्षा का प्रमुख और महत्वपूर्ण योगदान रहाता है। इसलिए राज्य अपने नागरिकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था करता है। 

    2. सार्वजनिक स्वास्थ्य- राज्य अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए महामारी और अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए सार्वजनिक चिकित्सालयों की भी व्यवस्था करता है। 

    3. कृषि की उन्नति- कृषि की उन्नति के लिए राज्य कृषकों को उत्तम बीज, खाद और सिंचाई के सांधनों को उपलब्ध कराता है। किसानों को नये-नये आविष्कारों और तकनीक से परिचित कराना, उपज का उचित मूल्य दिलवाना, प्राकृतिक प्रकोप होने पर आर्थिक सहायता प्रदान करना आदि कार्य राज्य द्वारा किये जाते हैं। 

    4. श्रमिकों के हितों की रक्षा करना- श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए राज्य श्रमिकों के कार्य करने के घण्टे निश्चित करके उन्हें उचित पारिश्रमिक दिलाने की व्यवस्था करता है। 

    5. अपंग एवं असहायों की सहयता- शारीरिक रूप से अपंग, असहाय और वृद्ध व्यक्तियों के लिए राज्य द्वारा आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जाती है। 

    6. सामाजिक सुधार- सामाजिक कुरीतियों से समाज को मुक्त कराना भी राज्य का कार्य हैं। 

    7. लोककल्याण के कार्य- आधुनिक युग में राज्य के कार्यों में वृद्धि होती जा रही है। आज लोक कल्याण के कार्य राज्य द्वारा किये जाते हैं।

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