रोमन साम्राज्य के पतन के कारण

रोम एक बहुत बडा साम्राज्य था जिसमें इंग्लैड, स्पेन पुर्तगाल, जमर्नी, ग्रीस, एशिया, माइनर, मिश्र तथा उत्तरी अफ्रीका का बडा क्षेत्र जिसमें कार्थेज इत्यादि थे यह साम्राज्य एक ही दिन में बन कर खडा नही हो गया तथा न ही इसका पतन एक ही दिन में हुआ बल्कि इसके पतन में एक लम्बी अवधि लगी न ही कोई एक कारण ऐसा है जिसे हम इसके पतन का जिम्मेवार ठहरा सके 

रोमन साम्राज्य के पतन के कारण

रोमन साम्राज्य के पतन के कारण, निम्नलिखित कारणों के सामूहिक प्रभाव के कारण इतने बड़े साम्राज्य का पतन हुआ।
  1. विदेशी आक्रमण 
  2. राजनैतिक कारण 
  3. आर्थिक कारण 
  4. सामाजिक कारण 

विदेशी आक्रमण

पैम्स रोमाना (Pax Romana) जो रोमन शान्ति के काल में रोमन की सेनाओं को अक्सर जर्मन कबीलों से जूझना पडा था जो कि राइन (Rhine) तथा डेन्यूब (Denube) नदियों के उत्तर में रहते थे इनके भिन्न-2 कबीलें थे जिनके बारे में रोमन इतिहासकार टैसीटस Tacitus ने काफी वृतान्त दिया था इन की बढती हुए आबादी के कारण नए क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए ये रोग की ओर आकर्षित हुए यहां की समृद्धि तथा सुहाना गर्म मौसम भी उन्हें भा गया। उघर रोम अपने आन्तरिक युद्धों के कारण काफी कमजोर हो चुका था तथा रोम की सीमान्त सेनांए इन्हें रोकने में असमर्थ हो गई।

जब जर्मन के बालर्र रोम में पहुँचने लगे उसी समय चतुर्थ सदी में हुणों में मध्य ऐशिया से आकार पूर्वी यूरोप में जर्मन कबीलों पर आक्रमण कर दिया तथा काले सागर के उत्तर में रहने वाले ओस्ट्रोगोथ (Ostrogoth) कबीले को हरा दिया हारके ेडर से एक अन्य कबीलें विसीगोथ (Visigoth) ने रोमन साम्राज्य में शरण ली। 376 ई0 में इन्हें डेन्युब नदी पार कर उनके साम्राज्य में आने की आज्ञा दी। परन्तु दो वर्ष बाद ही रोम की सेना को इन विसीगोथों के विरूद्ध अभियान करना पड़ा। परन्तु रोम की सेनाओं को इन्होंने एड्रियनपोल के युद्ध में हरा दिया इस युद्ध के बाद हर्मन लोग हूणों से बचने के लिए रोम में घुस आए तथा उन्होंने रोमन शहरों में लूटपाट मचा दी। 

410 ई0 में विसीगोथ जनरल एलारिक (Alaric) ने इसी पर आक्रमण कर रोम को जीत लिया। रोमनों ने उन से सन्धि कर उन्हें दक्षिणी गाल (Gaul) तथा स्पेन दे दिया।

इसी बीच हूणों ने पूर्वी यूरोप के क्षेत्र जीत लिए जिनमें आज रोमानिया, हंगरी, पोलैंड, चैकोस्लोवाकिया इत्यादि है जब उन्होंने अपने नेता एट्टिला के नेतृत्व में राइन नदी पार कर ली तो रोम ने कुछ जर्मन कबीलों के साथ एक संध बना 451 में ट्रोयेज (Troyes) की लडाई में हूणों को वापिस होने पर मजबूर किया। इस युद्ध के कुछ वर्ष बाद हूण नेता की मृत्यु हो गई तब कभी जाकर बचा खुचा रोमन साम्राज्य चैन ले सका। परन्तु 412 ई में दूसरी ओर एक अन्य जर्मन कबीला वन्डाल (Vandal) गाल (Gaul) होते हुए स्पने पहुँच गया उसके बाद 430 ई0 में उसने कार्थेज पर आक्रमण कर दिया उसके बाद 455 ई में रोम को तहस नहस कर दिया दूसरी ओर रोम की सीमान्त सेनाए बरगुण्डरीयनों (Burgun drians), फ्रैकों (Franks) तथा बाद में लोम्बाडों (Lombards) को पश्चिमी यूरोप के रोमन साम्राज्य के नगरों को जीतने से नहीं रोक सकी। 476 ई0 में एक मामूली से जर्मन नेता ओडोसर (odocer) में रोम पर कब्जा कर अपने आप को इटली का राजा घोषित कर दिया।

रोमन साम्राज्य के राजनैतिक कारण

रोम के पतन में बहुत से राजनैतिक कारणों का भी हाथ है रोम के नागरिकों में धीरे-2 सरकार के प्रति जिम्मेवारी की भावना समाप्त होने लगी। वे यह सोचने लगे एक सम्राट ही उनकी जरूरतों की देखमाल करें तथा सरकार चलाना उसी का काम है रोम के 65 सम्राटों में कुछ एक को छोड कर अधिकतर क्रूर तथा अत्याचारी थे राज्य में उतराधिकार का कोई पक्का नियम नहीं था अगस्तस न वंशानुगत प्रणाली स्थापित करने की चेष्टा की परन्तु चार ही राजाओं के बाद वीरों के काल में आन्तरिक कलह के कारण जब उसे आत्महत्या करनी पड़ी तो सेना की सहायता से राजाओं की नियुक्ति होने लगी 117 ई0 में सीनेट द्वारा ट्रामन की नियुक्ति के बाद इसी द्वारा 193 ई0 तक सम्राटों की नियुक्ति होती रही। उसके बाद अपने सेनाओं के बल पर सम्राट बने जिनमें कई सम्राट काफी क्रूर थे इस तरह के राजाओं के होने के कारण जनता में रोष उत्पन्न हो गया तथा विद्रोह होने लगे। 

साम्राज्य मे विभिन्न राष्ट्रीयताओं एवं जातियों के लोग मौका पड़ते विद्रोह करने लगे। रिबेरियस के काल में ब्रिटेन तथा स्पेन में विद्रोह हो गए। इससे साम्राज्य ने विकेन्द्रीयकरण के तत्व मजबूत होते चले गए तथा साम्राज्य कमजोर होता चला गया।

प्रशासनिक दोषों के कारण भी साम्राज्य कमजोर हो गया। शासन तन्त्रा काफी खर्चीला हो गया तथा अधिकारी भ्रष्ट अयोग्य तथा घूसखोर हो गए। लगान वसूली में वे कृषकों को तंग करने लगे इस कारण जन विरोध उत्पन्न हो गया प्रान्तिय शासकों की महत्वाकांक्षा एवं स्वतन्त्रता के प्रति आकर्षण ने उन्हें साम्राज्य के प्रति निष्ठारवान नही होने दिया तथा वे आपसी झगडे़ एवं साम्राज्य को कमजोर कर विद्रोह करने लगे।

साम्राज्य की विशालता भी पतन का एक कारण बनी क्योंकि इतने बडे़ साम्राज्य का एकजुट रखना कठिन था। यद्यपि अगस्तस तथा मार्कस ओरियस हेडरियन इत्यादि सम्राट इसे सुरक्षित रखने में सफल हुए परन्तु कमजोर एवं अयोग्य शासक यह काम नहीं कर सके। जब सम्राट थिओडीयस न रोमन साम्राज्य का विभाजन अपने दो पुत्रों के बीच कर पूर्वी तथा पश्चिम रोम साम्राज्य बनाए तो यह भी साम्राज्य के विघटन का कारण बना। सम्राट कान्सटेटाइन ने जब रोम की राजधानी बनाई तो यह भी साम्राज्य के विघटन का कारण बना। सम्राट कान्सटेटाइन ने जब रोम की राजधानी बनाई तो पश्चिमी रोमन क्षेत्र असुरक्षित हो गए तथा वहां बबर्र जातियों के आक्रमण शुरू हो गए। 

जब 476 ई0 में पश्चिमी रोमन साम्राज्य का अन्त हो गया सेना के संगठन में कमी तथा नौ सेना का आभाव भी रोम की शक्ति को दुर्बल करने में उत्तरदायी रहे रोमन सेना में विभिन्न राष्ट्रीयताओं के सैनिक होने से उनकी रोम के प्रति निष्ठा की कमी थी दूसरी ओर बर्बर जातियां अपने जनरल के प्रति वफादार तथा उस की जीत के लिए लड़ती थी इसलिए वे विजयी रहे।

रोमन साम्राज्य के आर्थिक कारण 

इतने बडे़ रोमन साम्राज्य को चलाने के लिए बहुत धन की आवश्यकता थी जिसका अधिक हिस्सा पूर्व क्षेत्रों से आता था जब पूर्वी रोमन साम्राज्य अलग हो गया तो वहां से पैसा आना बन्द हो गया इसी ओर रोमन सेनाओं ने लूट कर धन रोम लाना बन्द कर दिया। आन्तरिक युद्धों तथा बाहरी आक्रमणों के कारण व्यापार तथा कृषि को क्षति पहुँची जिससे कर संग्रह में कठिनाई आई राजकोष की पूर्ति के लिए प्रजा पर अनुचित कर लगाने पडे़ तथा कर की वसूली के लिए ठेका प्रणाली अपनाने से गरिबों पर अत्याचार होने लगे, जिससे लोगों की राज्य के प्रति निष्ठा नहीं रही जनसमर्थन तथा सहयोग के आभाव में कोई साम्राज्य टिक नही सकता इसके अतिरिक्त राज्य ने सिक्को के प्रचलन को अधिक करने के लिए सिक्को में मिलावट कर अधिक सिक्के चलाए, जिसके कारण मुद्रास्फीति बढ़ गई जो कीमतों में वृद्धि का कारण बनी जिनसे रोम की जनता पर भार बढ गया। 

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में रोम के अधिक सिक्कों को भुगतान करना पड़ा तथा व्यापार में क्षति हो गई इससे न केवल समृद्धि पर फर्क पड़ा बल्कि बेरोजगारी भी बढ़ी रोम में लाखों बेरोजगारों को राज्य की ओर से अनाज तथा अन्य सहायता देनी पड़ी जिससे रोम के संसाधनों में भारी कमी आ गई तथा साम्राज्य स्थिर नही रह सका।

रोमन साम्राज्य के सामाजिक कारण 

रोम के तत्कालीन इतिहासकारों का कथन है कि नागरिकों की रोम के प्रति निष्ठा तथा रोम के नागरिक होने की प्रतिष्ठा, जो एक समय में रोम को एकीकृत रखने का एक महत्वपूर्ण कारण बनी उसमे धीरे-धीरे कमी आने लगी। अब बहुत से लोग ये समझने लगे कि उनके रोम के प्रति कोई कर्त्तव्य नही हैं तथा न ही सरकार में उनकी कोई भागीदारी है। क्योंकि अब उसमें रोमनों के अतिरिक्त अन्य राष्टऋ्रीयताओं एवं जातियों के लोग भी थे जिनकी रोम के प्रति निष्ठा नही थी। यही हाल रोम के सैनिकों का भी रहा। 

रोम के नागरिक काफी आलसी तथा रोम के प्रति वैराग्य की भावना आ गई, मेहनत करना व केवल दासों का ही काम मानने लगे। सभी कामों के लिए वे दासों पर ही आश्रित रहने लगे तथा स्वयं अपना समय खेल तमाशों एवं उत्सवो में ही गुजारने लगे। दासों की लड़ाईयों, दासों के जंगली जानवरो से मुकाबले करवाने, दासो से बढ़ते अत्याचारों के कारण दास विद्रोह पर उतारू होने लगे तथा रोमन सेनाओं को इनका दमन करना पड़ा। जिस तरह रोम को बनाने मे दासों का महत्वपूर्ण योगदान रहा उसी प्रकार दासों के कारण ही साम्राज्य का क्षय होना भी प्रारम्भ हो गया। 

इस तरह हम देखते है कि किसी एक कारण से रोम का अन्त नहीं हुआ बल्कि बहुत से कारणों के इकठठे होने के कारण धीर-धीरे रोम के साम्राज्य पतन हुआ परन्तु इतना सब कुछ हाने के बावजूद भी यह साम्राज्य एक लंबे काल तक चलता रहा। इसके पतन के तत्कालीन कारण बने बर्बर जातियों के रोम पर आक्रमण जिससे रोमन साम्राज्य धाराशायी हो गया।

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