ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम 1970 क्या है?

ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम 1970 क्या है 

ठेकाश्रम के विनियमन हेतु ठेकाश्रम (विनियमन और उत्सादन अधिनियम, 1970 में पारित किया गया जो 10 फरवरी, 1970 से प्रभावी हुआ। इसका उद्देश्य ठेके पर काम करने वाले श्रमिकों को शोषण से बचाना है। श्रमिकों के स्वास्थ्य और कल्याण हेतु समुचित व्यवस्था सुनिश्चित कराना अधिनियम का उद्देश्य है। बीस या बीस से अधिक कर्मकार जिस प्रतिष्ठान में कार्यरत है। या थे उन पर यह अधिनियम लागू होगा। लेकिन समुचित सरकार चाहे तो कम कार्यरत कर्मकारों वाले प्रतिष्ठान में भी शास्कीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा लागू कर सकती है। आन्तरायिक या आकस्मिक प्रकृति के स्थापनों पर वह लागू नहीं होगा। इस सम्बन्ध में सरकार का निश्चय अन्तिम होगा। 

यह अधिनियम सार्वजनिक निजी नियोजकों तथा सरकार पर लागू होता है। इसे असंवैधानिक नहीं माना गया यद्यपि कि यह ठेकेदारों पर कतिपय निर्बन्धन और दायित्व अधिरोपित करता है। स्थापन में कार्य/परिणाम सम्पन्न कराने के लिए श्रमिकों को उपलब्ध कराने वाला ठेकेदार (उपठेकेदार समेत) तथा उनके माध्यम से काम करने के लिए उपलब्ध व्यक्ति ठेका श्रमिक कहलाता है उसे भाड़े पर रखा जाता है। स्थापन का यहां व्यापक अर्थ है जहाँ अभिनिर्माण प्रक्रिया सम्पन्न की जाती है। प्रधान नियोजक धारा 1 उपधारा (छ) में परिभाषित है, नाम निर्दिष्ट इससे अभिप्रेत है। केन्द्रीय सरकार केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड (ठेकाश्रम) गठित करती है। इसमें एक अध्यक्ष, मुख्य श्रम, आयुक्त, केन्द्रीय सरकार, रेल, खान आदि के कम से कम 11 या अधिकतम 17 प्रतिनिधि होंगे। कर्मकारों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों की संख्या प्रधान नियोजकों के प्रतिनिधियों से कम नहीं होगी। इसकी सलाह मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं होगी। राज्य सरकार राज्य स्तर पर सलाह देने के लिए राज्य सलाहकार (ठेकाश्रम) बोर्ड गठित करेगी इन दोनों के सदस्यों की पदावधि, सेवा की अन्य शर्ते, अपनाई जाने वाली प्रक्रिया तथा रिक्त स्थानों के भरने की रीति ऐसी होगी जो निर्धारित की जाये। वे बोर्ड समितियाँ गठित करने की शक्ति रखते हैं। 

धारा 6 के अनुसार सरकार अपने राजपत्रित अधिकारी को ठेकाश्रम पर नियोजित करने वाले स्थापनों के पूंजीकरण करने के लिए नियुक्त करेगी और उनके क्षेत्राधिकार की सीमा भी निश्चित कर देगी। निर्धारित अवधि में आवेदन देने पर तथा सारी शर्तो के पूरा रहने पर पंजीकरणकर्ता पंजीकरण करके प्रमाणपत्र जारी करेगा जो लाइसेन्सिंग का काम करेगा। पर्याप्त कारणों से सन्तुष्ट होने पर विलम्ब से प्रस्तुत किये गये आवेदन पर अधिकारी विचार कर सकेगा। अनुचित ढंग से प्राप्त किये गये पंजीकरण का प्रधान नियोजक सुनवाई का अवसर प्रदान करके तथा सरकार के पूर्व अनुमोदन से प्रतिसंहरण भी किया जा सकेगा। धारा 9 के अनुसार पंजीकरण रद्द होने पर ठेका श्रमिकों को नियोजित नहीं किया जायेगा। धारा 10 के अन्तर्गत समुचित सरकार ठेका श्रमिकों के नियोजन पर प्रतिशेध लगा सकेगी। 

समुचित सरकार धारा 11 के अन्तर्गत अनुज्ञापन अधिकारियों की यथेश्ठ संख्या में उनकी सीमाओं को निर्धारित करते हुए नियुक्ति करेगी। बिना लाइसेन्स लिए ठेकाश्रम के माध्यम से कार्य नहीं कराया जायेगा। सेवा शर्तो जैसे काम के घण्टों आदि, तथा निर्धारित सिक्योरिटी राशि जमा करने के बारे में सरकार नियम बनायेगी। उसका प्रधान नियोजक को अनुपालन करना होगा। अनुज्ञापन अधिकारी समय पर अनुज्ञापन की धारा 13 के अधीन निर्धारित फीस देने पर नवीनीकरण कर सकेगा। अनुज्ञप्ति के दुव्र्यपदेशन, महत्वपूर्ण तथ्यों के गोपन, नियमोल्लंघन से प्राप्त किये जाने की दशा में उसका प्रतिसंहरण, निलम्बर तथा संशोधन भी किया जा सकेगा। धारा 15 के अधीन किसी आदेश से व्यथित हुआ व्यक्ति 30 दिन के भीतर सरकार द्वारा नाम निर्देशित व्यक्ति अपील अधिकारी के यहाँ अपील कर सकेगा। 

धारा 16 में सरकार ठेका श्रमिकों के कल्याण तथा स्वास्थ्य के लिए जलपान गृहों की व्यवस्था के लिए नियोजकों को आदेश देगी। खाद्य पदार्थो का विवरण तथा मूल्य आदि के बारे में दिशा निर्देश देगी। धारा 18 के अन्तर्गत, विश्राम कक्षों तथा रात में रुकने के लिए स्वच्छ आरामदेह प्रकाशयुक्त आनुकल्पिक आवासों की व्यवस्था करने का नियोजक का दायित्व होगा। इसके अलावा स्वास्थ्यप्रद पेय जल की आपूर्ति, पर्याप्त संख्या में शौचालय, मूत्रालय, धुलाई की सुविधाएं उपलब्ध कराना होगा। धारा 20 के अनुसार फस्र्ट एड फैसिलिटीज की व्यवस्था होगी। इन सुविधाओं के लिए प्रधान नियोजक उपगत व्ययों का प्रधान नियोजक ठेकेदार से वसूल कर सकता है। धारा 21 के अनुसार मजदूरी का भुगतान ठेकेदारों पर होता। इसमें ओवर टाइम वेज भी सम्मिलित होगी। कम भुगतान करने पर प्रधान नियोजक शेष राशि का भुगतान करके ठेकेदार से वसूल करने का हकदार होगा। इण्डियन एयर लाइन्स बनाम केन्द्रीय सरकार श्रम न्यायालय, के निर्णयानुसार ठेका श्रमिक मजदूरी न पाने की दशा में मुख्य नियोजक से मजदूरी माँग सकते हैं। 

धारा 22 में दण्ड की व्यवस्था की गई है। जो कोई निरीक्षक के कार्य में बाधा पहुंचायेगा या निरीक्षण हेतु रजिस्टर देने से इन्कार करेगा वह तीन माह के कारावास या पांच सौ रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित कया जस सकेगा। निर्बन्धनों, अनुज्ञप्ति की शर्तो का उल्लंघन करने वाला नियोजक तीन माह के कारावास तथा एक हजार रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित होगा। प्रथम उल्लंघन के दोषसिद्ध होने पर उसके जारी रहने पर एक सौ रुपये प्रतिदिन के लिए धारा 23 के अन्तर्गत दण्ड किया जा सकेगा। उल्लंघन सिद्ध करने का भार शिकायतकर्ता पर होगा। कम्पनी के मामले में धारा 25 के अन्तर्गत कम्पनी का भारसाधक तथा उसके प्रति उत्तरदायी व्यक्ति दण्डित किया जा सकेगा। इसमें निदेशक, प्रबन्धक, प्रबन्ध अभिकर्ता, आदि आते हैं। प्रेसीडेन्सी मजिस्टे्रट या फस्र्ट क्लास मजिस्टे्रट से अवर कोई भी न्यायालय दण्डनीय अपराधों का संज्ञान या विचारण नहीं करेगा। अपराध किये जाने की तिथि से निरीक्षक द्वारा या उसकी लिखित पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा परिवाद 90 दिन के भीतर दाखिल किये जाने पर विचारण किया जायेगा अन्यथा नहीं। निरीक्षकों की जांच आदि करने, लोक अधिकारी की सहायता लेने, किसी व्यक्ति से परीक्षा करने, कार्य बांटने वाले का नाम-पता जानने, रजिस्टर आदि को जब्त करने या उनकी प्रतिलिपियां लेने का अधिकार होगा। 

रजिस्टरों या अन्य अभिलेखों को बनाये रखने का दायित्व धारा 29 के अन्तर्गत प्रधान नियोजक का होगा जिसमें मजदूरी भुगतान आदि की प्रविश्टियां और अन्य वांछित जानकारियां आदि दी गई होती है। धारा 30 अधिनियम से असंगत विधियों और करारों के प्रभाव पर प्रकाश डालती है। अन्य विधियों में प्रदान की गई सुविधाओं से इस अधिनियम के अन्तर्गत दी जाने वाली सुविधाएं किसी भी दशा में कम नहीं होगी। धारा 31 समुचित सरकार को अधिनियम के कुछ निर्बन्धनों से कुछ समय किसी स्थापनों या ठेकेदारों को छूट देने की शक्ति प्रदान करती है। धारा 32 पंजीकरणकर्ता अधिकारी, अनुज्ञापन में सद्भावपूर्वक किये गये कार्य के लिए अभियोजन या विधिक कार्यवाही नहीं की जायेगी। यह धारा उन्हें संरक्षण प्रदान करती है। धारा 33 केन्द्र सरकार को राज्य सरकार को निर्देश देने की तथा धारा 34 अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी बनाने में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने की तथा धारा 34 नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है। 

दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले - ‘‘समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धान्त’’ दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले श्रमिकों पर भी लागू होता है चाहे उनकी नियुक्ति स्थायी स्कीम में हो या अस्थायी स्कीम में, मजदूरी भुगतान में अन्तर अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत विभेदकारी माना जायेगा। एक लम्बी अवधि के बाद ऐसे श्रमिकों को स्थायी माना जाना चाहिए। 

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