बालकृष्ण शर्मा नवीन का जीवन परिचय एवं साहित्यिक विशेषताएं

बालकृष्ण शर्मा नवीन का जीवन परिचय 

बालकृष्ण शर्मा नवीन का जन्म सन् 1897-1960 ई. ग्राम भयाना जनपद ग्वालियर में हुआ था। इनकी पढ़ाई ग्यारह वर्ष की अवस्था में शुरू हुई। सन् 1917 ई. में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर कानपुर चले गए। जहां गणेश-शंकर ने इन्हें कालेज में प्रविष्ट करा दिया। किंतु सन् 1920 ई. में गांधी के आह्वान पर कालेज का अध्ययन त्याग कर राजनीति के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। 

अपने लंबे राजनीतिक जीवनकाल में अनेक बार जेल का सफर करना पड़ा। देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात पहले लोक सभा फिर राज्य सभा के सदस्य हो गए।

बालकृष्ण शर्मा नवीन की प्रमुख रचनाएँ

बालकृष्ण शर्मा नवीन की प्रमुख रचनाएँ, बालकृष्ण शर्मा नवीन की रचना कौन सी है?
  1. पत्रिकाएं- ‘प्रभा’, ‘प्रताप’ का संपादन।
  2. कविता संग्रह- ‘कुंकुम’।
  3. काव्य- ‘उर्मिला’, ‘अपलक’, ‘रश्मिरेखा’, ‘क्वासि’, ‘विनोबा स्तवन’, तथा ‘हम विषपायी जनम के’।

बालकृष्ण शर्मा नवीन की साहित्यिक विशेषताएं

‘उर्मिला’ में नवीन ने उर्मिला के चरित्र के माध्यम से भारतवर्ष की प्राचीन आर्य संस्कृति के उज्जवल रूप को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कथानक को अपने परिवेश के यथार्थ से - भारतीय संस्कृति और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के संघर्ष से संबद्ध करने के लिए नवीन ने कुछ प्रसंगों की अत्यंत कौशल पूर्वक संयोजना की है। नवीन की रचनाओं में प्रणय और राष्ट्रप्रेम दोनों भावों की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। 

प्रणय संबंधी रचनाओं में छायावादी प्रणय के समान स्वच्छंदता तथा प्रेम और मस्ती के काव्य - जैसी मार्मिकता दृष्टिगोचर होती है। इस रूप में नवीन को परवर्ती प्रेम और मस्ती के काव्य के अग्रदूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इनकी राष्ट्रीय-सांस्कृतिक कविताओं में अनुभूतियों का सीधा संबंध इनके जीवन के साथ है। देश की स्वतंत्राता तथा समाज की नवीन संरचना हेतु इन्होंने जो प्रबल साधना की थी वही साधना निश्छल और सहज शक्ति के साथ इनकी राष्ट्रीय रचनाओं में भी दृष्टिगोचर होती है। 

कविता का विषय अतीत की महिमा का गौरवगान, तत्कालीन भारतीय समाज की रुग्णावस्था के प्रति व्यथा एवं आक्रोश, भविष्य को अवतरित करने की कामना आदि हैें।

कहीं तो नवीन अपना फक्कड़पन दिखाते और मस्ती की अभिव्यक्ति करते हैं, कहीं नशे में गर्क हो जाना चाहते हैं। यथा 
“हम अनिकेतन, हम अनिकेतन,
हम तो रमते राम हमारा क्या घर
क्या दर, कैसा वेतन?”
“हो जाने दो ग़र्क नशे में, मत पड़ने दो फ़र्क नशे में।”
जिस ललक और उत्साह के साथ कर्म और साधना की ओर अग्रसर होते हैं उसी आवेश और आसक्ति के साथ प्रणय में डूब जाना चाहते हैं। फलस्वरूप पहली अवस्था का संघर्ष और तनाव और दूसरी स्थिति की मदहोशी दोनों कार्य कारण भाव से संबद्ध होकर परस्पर पूरक से प्रतीत होते हैं।

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