गिरिजाकुमार माथुर का जीवन परिचय एवं साहित्यिक विशेषताएं

गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 ई. को मध्य प्रदेश के एक कस्बे में हुआ था। अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. तथा एल.एल.बी. परीक्षा उत्तीर्ण कर वकालत प्रारंभ की। कुछ समय पश्चात दिल्ली सेक्रेटियेट में सेवा की । अंत में आल इंडिया रेडियो में कार्य करने लगे।

गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएं

  1. नाश और निर्माण 
  2. धूप के धान तथा 
  3. शिलापंख चमकीले।

गिरिजाकुमार माथुर की साहित्यिक विशेषताएं

माथुर में प्रयोग एवं संवेदना का सुंदर सामंजस्य है। अर्थात् बुद्धिवाद या फैशन के कारण कहीं प्रयोग नहीं किया गया है। उनका प्रयोग उनकी अनुभूतियों और संवेदनाओं के सूक्ष्म कोणों, रंगों एवं प्रभावों को व्यक्त करने की आकुलता से संबद्ध है। छंद, भाषा, बिंब विधान सभी दृष्टियों से प्रयोग किए गए हैं। इनके छंदों में लयात्मकता सर्वत्र देखी जा सकती है। कहीं कहीं कवि ने सवैया छंद को तोड़कर उसे नए छंद में परिवर्तित कर दिया है। उनके काव्य के दो स्वरूप हैं-
  1. व्यक्तिगत अनुभूतियां- ‘मजीर’ एवं ‘तारसप्तक’ में उनकी वैयक्तिक अनुभूतियां दृष्टिगोचर होती हैं।
  2. सामाजिक अनुभूतियां- ‘नाश और निर्माण’ तथा ‘शिलापंख चमकीले’ में सामाजिक जीवन की अनुभूतियां एवं यथार्थ का स्वर मुखरित हुआ है।
‘तारसप्तक’ में जीवन यथार्थ के नए आयाम का प्रयोग नहीं किया गया है। वे अपने परिवेश में जीवन सत्यों से अलग दृष्टिगोचर होते हैं उनसे जुड़ाव की प्रतीति नहीं होती है। संवेदना रोमानी है। प्रकृति की रंगमयता, उसकी उदासी, सौंदर्य-प्यास, प्रेम-प्रसंगों की स्मृतियों का दंश, सुंदर वातावरण, साथी विहीनता तथा अकेलेपन का बोध आदि इनके अनुभव एवं संवेदना के अंग हैं। इनके रचना लोक में विभिन्न रूप-रंगों, ध्वनियों, गंधों एवं स्पर्शों में इन्हीं का रूप दिखलाई पड़ता है। सीमित जीवन अनुभवों में भी माथुर एक विशिष्ट कवि हैं क्योंकि वे इन अनुभवों, अति गहन एवं सूक्ष्म छायाओं के सच्चे पारखी हैं।

‘नाश और निर्माण’ में ‘तारसप्तक’ की कविताएं भी संकलित हैं इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी कविताएं भी हैं जो सामाजिक चेतना से अनुप्राणित हैं। इनकी कविताओं में शक्ति, उल्लास एवं सामाजिक जीवन का स्पंदन है। पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के रूप में विषम परिणामों का तीव्र अनुभव तथा उनके विरुद्ध समाजवादी चेतना का प्रसार है।

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