रिपोर्ताज किसे कहते हैं? - अर्थ, परिभाषा

यह गद्य में लेखन की एक विशिष्ट शैली है। रिपोर्ताज से आशय इस तरह की रचनाओं से है जो पाठकों को किसी स्थान, समारोह, प्रतियोगिता, आयोजन अथवा किसी विशेष अवसर का सजीव अनुभव कराती हैं। गद्य में पद्य की सी तरलता और प्रवाह रिपोर्ताज की विशेषता है। अच्छा रिपोर्ताज वह है जो पाठक को विषय की जानकारी भी दे और उसे पढ़ने का आनन्द भी प्रदान करे। रिपोर्ताज की एक बड़ी विशेषता इसकी जीवन्तता होती है। गतिमान रिपोर्ताज पाठक को बाॅंध लेता है। पाठक उसके प्रवाह में बंध कर खुद ब खुद विषय से जुड़ जाता है। इसलिए रिपोर्ताज लेखन में इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसमें दोहराव न हो और जानकारियों का सिलसिला बना रहे। रिपोर्ताज लेखक को विषय-वस्तु की बारीक जानकारी होनी चाहिए। विषय से जुड़ी छोटी-छोटी जानकारियाॅं ही रिपोर्ताज को रोचक बनाती है। 

रिपोर्ताज reportage की भाषा शैली में कथा-कहानी जैसा प्रवाह और सरलता होनी चाहिए। रिपोर्ताज मूलतः फ्रांसीसी भाषा का शब्द है जो अंग्रेजी के रिपोर्ट शब्द से विकसित हुआ है। रिपोर्ट का अर्थ होता है किसी घटना का यथातथ्य वर्णन। रिपोर्ताज इसी वर्णन का कलात्मक तथा साहित्यिक रूप है। रिपोर्ताज घटना प्रधान होते हुए भी कथा तत्व से परिपूर्ण होता है। एक तरह से रिपोर्ताज लेखक को पत्रकार और साहित्यकार, दोनों की भूमिकाएं निभानी होती हैं।

रिपोर्ताज का अर्थ

रिपोर्ताज मूलत: फ्रेंच (फ्रांसीसी) भाषा का शब्द है। इसका अंग्रेजी पर्याय रिपोर्ट माना जाता है। रिपोर्ताज का अभिप्राय किसी घटना, खबर, आंखो देखा हाल का यथा तथ्य वर्णन है जिसमें संपूर्ण विवरण दृश्यमान हो जाता है। जबकि वास्तविक घटना का यथातथ्य चित्र उपस्थित करना रिपोर्ट कहलाता है। हिंदुस्तानी में इसे रपट कहते हैं। इसका सीधा संबंध समाचार पत्र से होता है इसलिए तथ्य चयन पर विशेष महत्व दिया जाता है। किसी विषय का आंखों देखा या कानों सुना वर्णन इतने कलात्मक, साहित्यिक और प्रभावोत्पादक ढंग से किया जाता है कि उसकी अमिट छाप हृदय पटल पर अंकित हो जाती है उसे रिपोर्ताज की संज्ञा दी जाती है। 

रिपोर्ताज लेखक की वैयक्तिकता के साथ-साथ इसमें भावना एवं संवेदना का आवेश भी समन्वित होता है। लेखक घटना विशेष को लेखक अपनी मानसिकता से प्रदीप्त करके पुन: मूर्त रूप में इसका प्रस्तुतीकरण रिपोर्ताज का स्वाभाविक धर्म है। रिपोर्ट की साहित्यिकता उसे रिपोर्ताज का स्वरूप प्रदान करती है। 

रिपोर्ताज को अन्य अनेक नाम दिए गए हैं जिनमें रूपनिका, सूचनिका तथा वृत निदेशन आदि प्रमुख हैं किंतु प्रचलित एवं सर्वमान्य शब्द रिपोर्ताज है।

रिपोर्ताज की परिभाषा

महादेवी वर्मा का कहना है - “रिपोर्ट या विवरण से संबंध रिपोर्ताज समाचार युग की देन है और उसका जन्म सैनिक की खाईयों में हुआ है।” रिपोर्ताज का विकास रूस में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के समय इलिया एहरेन वर्ग को रिपोर्ताज - लेखक के रूप में विशेष प्रसिद्धि मिली।

डॉ. भगीरथ मिश्र ने रिपोर्ताज को परिभाषित करते हुए लिखा है - “किसी घटना या दृश्य का अत्यंत विवरणपूर्ण सूक्ष्म, रोचक वर्णन इसमें इस प्रकार किया जाता है कि वह हमारी आंखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाए और हम उससे प्रभावित हो उठें।”

कोई भी निबंध, कहानी, रेखाचित्र या संस्मरण पत्रकारिता से संपृक्त होकर रिपोर्ताज का स्वरूप ग्रहण कर लेता है। साहित्यिकता इसका अनिवार्य तत्व है। रेखांकित एवं रिपोर्ट का समन्वित रूप रिपोर्ताज को जन्म देता है क्योंकि रेखाचित्र साहित्यिक विधा है।

रिपोर्ताज का विवेचन करेते हुए शिवदान सिंह चौहान ने लिखा है - “आधुनिक जीवन की द्रुतगामी वास्तविकता में हस्तक्षेप करने के लिए मनुष्य को नई साहित्यिक रूप विधा को जनम देना पड़ा। रिपोर्ताज उन सबसे प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण विधा है।”

रिपोर्ताज का विकास 

रिपोर्ताज का विकास अमेरिका एवं रूस में हुआ। भारत में इसका आगमन विदेशी है। हिंदी में रिपोर्ताज लेखन की प्रणाली अति नवीन है। इसलिए यह साहित्य अन्य साहित्य गद्य विधाओं की अपेक्षा सीमित है। हिंदी में उपलब्ध रिपोर्ताज, पत्र-पत्रिकाओं, उपन्यासों में प्रसांगानुकूल, ललित निबंधों तथा गोष्ठियों सभाओं, अधिवेशनों आदि के आधार लिखे गए रिपोर्ताज दृष्टिगोचर होते हैं। किन्तु इन्हें वास्तविक रिपोर्ताज की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। मात्रा ललित निबंधों में इनका वास्तविक स्वरूप उपलब्ध होता है।

प्रथम रिपोर्ताज - रिपोर्ताज का प्रारंभ सन् 1940 ई. के आस पास माना जाता है। शिवदान सिंह चौहान द्वारा लिखित मौत के खिलाफ जिंदगी की लड़ाई प्रथम रिपोर्ताज है जो हंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ। स्तंभ का नाम समाज और विचार था।

स्वतन्त्रता से पूर्व राष्ट्रीय परिवेश में चित्रण से रिपोर्ताज का प्रारंभ हुआ।

रांगेय राघव - रांगेय राघव ने प्रथम रिपोर्ताज अदम्य जीवन लिखा जो विशाल भारत में प्रकाशित हुआ था। सन् 1943 - 44 ई. में रांगेय राघव ने बंगाल के दुर्भिक्ष एवं महामारी विषय अनेक मार्मिक रिपोर्ताज लिखे। इनके रिपोर्ताज का संकलन तूफानों के बीच है। अन्य रिपोर्ताज यह है ग्वालियर में सांप्रदायिक दंगों, दमन नीति, अत्याचारों तथा हृदय हीनता का मार्मिक चित्राण किया गया है।

अमृत लाल नागर - अमृत लाल नागर पर बंगाल के अकाल का अत्यधिक प्रभाव पड़ा जिसने उनसे महाकाल नामक उपन्यास की रचना रिपोर्ताज शैली में लिखवाया।

प्रकाशचन्द्र गुप्त - प्रकाशचन्द्र गुप्त द्वारा लिखित रिपोर्ताज में घटना प्रधानता है। इनके रिपोर्ताजों में स्वराज्य भवन विशेष उल्लेखनीय है। अन्य रिपोर्ताज अल्मोढ़े का बाजार तथा बंगाल का अकाल आदि है। इनके सभी रिपोर्ताज हंस में प्रकाशित हुए।

स्वतंत्रयोत्तर रिपोर्ताज - स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जिन्होंने रिपोर्ताज लेखकों को रिपोर्ताज लिखने के लिए बाध्य कर दिया। भारत-पाक विभाजन के पश्चात भीषण नरसंहार हुआ। बंगाल में नोआखाली में हिंदुओं पर भयंकर अत्याचार किया गया। लूटपाट, मारकाट, हिंसा प्रतिहिंसा का दौर चलता रहा। इनसे संबंधित अनेक रिपोर्ताज लिखे गए।

साठोत्तरी रिपोर्ताज - सन् 1965 ई. सन् 1971 ई. में भारत पाकिस्तान युद्ध हुए। सन् 1962 ई. में भारत चीन युद्ध हुआ। इन युद्धों से संबंधित रिपोर्ताज लिखे गए। इसके अतिरिक्त भारत पर अनेक आपदाएं आई - बाढ़, सूखा, अकाल, अग्नि कांड, भूकंप, आतंकवाद तथा विमान दुर्घटना आदि। इन सब पर रिपोर्ताज लिखे गए।

धर्म वीर भारती - सन् 1971 ई में बंगला देश स्वाधीनता संग्राम हुआ। बंगला देश से धर्म भारती ने अनेक रिपोर्ताज भेजे थे जो धर्म युग में प्रकाशित हुए।

डॉ. बालकृष्ण राव - डॉ. बालकृष्ण राव ने वर्षों तक कल्पना पत्रिका के कमलाकांत जी ने कहा नामक स्थायी स्तंभ में रिपेार्ताज लिखे।

ख़्वाजा अहमद अब्बास - सन् 1968 ई. के सारिका के कई अंकों में ख्वाजा अहमद अब्बास ने बिहार की डायरी नाम से बिहार के सूखे पर, बिहार के अकाल पर अनेक रिपोर्ताज प्रकाशित कराए।

निर्मल वर्मा - निर्मल वर्मा का रिपोर्ताज प्रात: एक स्वप्न धर्म युग में प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने चेकोस्लोवाकिया में प्रविष्ट रूसी सेनाओं पर भावनात्मक एवं संवेदनात्मक रिपोर्ताज की रचना प्रस्तुत की थी।

वर्तमान काल में साहित्यिक गोष्ठियों, सभाओं, सम्मेलनों, अधिवेशनों आदि के आधार पर लिखे गए रिपोर्ताज प्राय: सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे हैं। माध्यम पत्रिका के अनेक वर्षों तक विवेचक तथा गोष्ठी प्रसंग से संबंधित रिपोर्ताज प्रकाशित होते रहे हैं। वर्तमान काल में समसामयिक घटनाओं, महत्वपूर्ण प्रकाशनों, साहित्यकारों के जन्म-दिवस, उपाधि पत्र दिये जाने तथा सम्मानित किये जाने के अवसरों पर गोष्ठियां एवं सम्मेलनों का आयोजन किया जाता रहा है। उस समय रिपोर्ताज लिखे जाते रहे हैं तथा प्रकाशित होते रहे हैं। स्मरिकाएं प्रकाशित होती हैं।

रिपोर्ताज की विशिष्ट शैली का उपन्यासों में पर्याप्त प्रयोग होने लगा है। रिपोर्ताज शैली के माध्यम से लिखी गई आधुनिक साहित्यकारों की अनेक उत्कृष्ट औपन्यासिक कृतियां दृष्टिगोचर होती हैं। साहित्यकार की संवेदनशीलता बढ़ जाने पर उसकी रिपोर्ताज लेखन शैली सशक्त एवं प्रभावोत्पादक हो जाती है, युद्ध की विभीषिका, दुर्भिक्ष की भयंकरता या मानव समाज को प्रभावित करने वाली हृदय विदारक घटना के घटित होने पर रिपोर्ताज लेखक घटना के वैविध्य को रिपोर्ताज शैली का रूप देकर पाठक के समक्ष ऐसे प्रस्तुत करता है कि उसका दिल दहल जाता है।

वर्तमान काल के प्रौढ़, सशक्त, उत्कृष्ट एवं सरस साहित्यिक शैली में रिपोर्ताज लिखने वालों में उपेंद्र नाथ अश्क - पहाड़ों में प्रेम मय गीत; रामनारायण उपाध्याय - गरीब और अमीर पुस्तकें (रिपोर्ताज संग्रह); शिव सागर मिश्र वे लड़ेंगे हजार साल; भदंत कौसल्यायन - देश की मिट्टी बुलाती है; डॉ. धर्मवीर भारती युद्ध यात्रा, कामता प्रसाद - काम एवं मैं छौटा नागपुर से बोल रहा हूं, जगदीश चद्र जैन - पीकिंग की डायरी, यशपाल - चक्कर क्लब, विवेकी राय - जुलूस रुका है; कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर - क्षण बोले कण मुस्काए; फणीश्वर नाथ रेणु - ऋण जल धन जल; नेपाली क्रांति कथा, लाल भारती, एक लव्य के नोट्स एवं श्रुत-अश्रुत पर्व; प्रभाकर माचवे; गोरी नजारों में, शमशेर बहादुर सिंह- प्लाट का मोर्चा, वाचस्पति उपाध्याय-हरा भरा जनतंत्रा है सूख गया स्वातंत्रय; चंद्रभाल मधुव्रत - मान न मान यही है विज्ञान; कुबेर नाथ राय - गंध - मादन तथा राम आसरे - माओ के देश में आदि महत्वपूर्ण रिपोर्ताज लेखक तथा उनके रिपोर्ताज हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी देशों में यह विधा बहुत लोकप्रिय हुई। रूसी और अंग्रेजी साहित्य में इस दौर में खूब रिपोर्ताज लिखे गए। भारत में भी आजादी के बाद इस विधा का पर्याप्त विकास हुआ। प्रारम्भिक रिपोर्ताज लेखकों में रांगेय राघव, प्रभाकर माचवे, अमृतराय आदि प्रमुख हैं। एक दौर में धर्मयुग, दिनमान आदि पत्रिकाओं में रिपोर्ताज खूब प्रकाशित होते थे। अब भी पत्रिकाओं में इस विधा का पर्याप्त इस्तेमाल होता रहता है।

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