हिंदी साहित्य में संस्मरणों का अभाव नहीं है। हिंदी संस्मरण के विकास में सरस्वती, सुधा, माधुरी, चांद तथा विशाल भारत
आदि पत्रिकाओं का विशेष योगदान है।
हिंदी का प्रथम संस्मरण
सन् 1907 ई. में बाबू बाल मुकुंद गुप्त ने पं. प्रतापनारायण मिश्र एक संस्मरण लिखा जिसे हिंदी का प्रथम संस्मरण स्वीकारा गया। कुछ आलोचकों का कहना है कि बाबू बालमुकुंद गुप्त प्रथम संस्मरण लेखक नहीं हैं अपितु प्रथम संस्मरण लेखक स्वामी सत्यदेव परिव्राजक या पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ हैं।भारतेंदु हरिश्चन्द्र आधुनिक काल के गद्य साहित्य के जन्म दाता कहे जाते हैं। जिन्होंने गद्य लेखन की अनेक विधाओं की भांति
संस्मरण लेखन का भी कार्य किया। उनका कुछ आप बीती कुछ जग बीती सुंदर संस्मरण है।
उपर्युक्त दो संस्मरणों का
उल्लेखमात्रा है। शीर्षक तक ज्ञात नहीं है। इसलिए कुछ आप बीती कुछ जग बीती को प्रथम संस्मरण एवं भारतेंदु हरिश्चन्द्र
को प्रथम संस्करणकार मानना औचित्यपूर्ण प्रतीत होता है।
हिंदी संस्मरण का विकास
हिन्दी साहित्य में वास्तविक संस्मरण लेखन कार्य द्विवेदी युग से प्रारंभ हुआ। द्विवेदी की प्रेरणा से सरस्वती में अनेक संस्मरण प्रकाशित हुए। इन जीवन परिचयों या संस्मरणों में लेखक की आत्मानुभूति की प्रधानता रही है। उन्हें मात्रा जीवन वृत्त नहीं कहा जा सकता है। इसलिए उन्हें जीवनी साहित्य न कहकर संस्मरण कहना उचित प्रतीत होता है ऐसा डॉ. गोविन्द तिगुणायत का कहना है।संस्मरण साहित्य को समृद्ध बनाने में अनेक संस्मरणकारों का योगदान मिला जिनमें प्रमुख संस्मरण लेखक
निम्नलिखित हैं-
1. स्वामी सत्यदेव परिश्राजक- हिंदी संस्मरण लेखकों में स्वामी सत्य देव परिव्राजक का विशेष महत्व है। सन् 1905 ई. में उन्होंने
अमेरिका की यात्रा की थी। यात्रा से संबंधित घटनाओं एवं संपर्क में आनेवालों का उन्होंने सजीव शब्दांकन किया है जो भाव
एवं अनुभूति प्रधान है।
2. हेमचन्द्र जोशी- हेम चन्द्र जोशी फ्रांस यात्रा पर गए थे। यात्रा के दौरान उन्होंने अनेक अनुभव किए जिसे उन्होंने सरस एवं
मनोरम शैली में प्रस्तुत किया। इसमें साहित्यिकता अधिक है। जोशी के संस्मरणों का संकलन ‘फ्रांस यात्रा और संस्मरण’ में
किया गया है।
3. डॉ. पद्म सिंह शर्मा ‘कमलेश’- डॉ. पद्म सिंह शर्मा का संस्मरण लेखकों में विशेष स्थान है। इन्होंने अपने संस्मरणों का विषय
साहित्यकारों को बनाया। शर्मा उग्र स्वभाव के थे जिसके परिणामस्वरूप उनके संस्मरणों में सरसता के साथ-साथ नोंक-झोंक
के भी दर्शन होते हैं। महाकवि अकबर इलाहाबादी का संस्मरण अति रोचक एवं सरस शैली में प्रतिपादित किया है। जिसमें
अकबर का जीवन वृत्त उभर कर सामने आ गया है तथा ‘कमलेश’ की विद्वता, सजीवता, त्वरित वाकपटुता ने भी साकाररूप
ग्रहण कर लिया है। संस्मरण की भाषा सशक्त एवं भावाभिव्यंजन में सहयोगी सिद्ध हुई है।
4. पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी- संस्मरणकारों में श्रीनारायण चतुर्वेदी का विशेष स्थान है। इनके संस्मरणों का संकलन लखनऊ
से देहरादून तक की यात्रा’ में किया गया है। इसके अतिरिक्त मनोरंजक संस्मरण भी प्रकाशित हुआ। इनके संस्मरणों में
हास्य-विनोद की प्रधानता है।
5. श्रीराम शर्मा- संस्मरण लेखकों में श्रीराम शर्मा उल्लेखनीय हैं। शर्मा शिकार के शौकीन थे। इसलिए इनके संस्मरणों में
शिकार-संबंधित विषयों को अपनाया गया है। वैयक्तिकता की प्रधानता के कारण संस्मरणों में यथार्थ को अधिक महत्त्वपूर्ण
स्थान दिया गया है। संस्मरण रोचक भी हैं। इनकी प्रमुख कृति सन् बयालीस के संस्मरण है।
6. बनारसी दास चतुर्वेदी- बनारसी दास चतुर्वेदी संस्मरण के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति हैं। उन्होंने अनेक संस्मरण लिखकर हिन्दी
संस्मरण साहित्य की संवृद्धि की है। अपने संस्मरणों में महापुरुषों को विषय रूप में ग्रहण करके सामाजिक वातावरण को
सजीवता प्रदान की है। इनके प्रोत्साहन एवं प्रेरणा के फलस्वरूप हिंदी में अनेक संस्मरण ग्रंथों का प्रकाशन हुआ।
7. महादेवी वर्मा - महादेवी वर्मा के संस्मरण हिंदी संस्मरण साहित्य की अक्षय निधि हैं। उनके संस्मरणों का संग्रह अतीत के
चलचित्र सन् 1941 ई. में प्रकाशित हुआ। इसमें संकलित सभी संस्मरणों में मर्मस्पर्शिता एवं रागात्मक अनुभूति की प्रधानता है।
ऐसा प्रतीत होता है मानो महादेवी की ममता इन संस्करणों में आकर सजीव एवं साकार हो उठी है। स्मृति की रेखाएं एवं पथ
के साथी में संकलित संस्मरणों में महादेवी की साहित्य कला का चरमोत्कर्ष एवं पराकाष्ठा देखी जा सकती है।
महादेवी ने
स्वत: कहा है-“इन स्मृति चित्रों में मेरा जीवन भी आ गया है। यह स्वाभाविक भी था। अंधेरे की वस्तुओं को हम अपने प्रकाश की धुंधली
या उजली परिधि में ही लाकर देख पाते हैं।” महादेवी के संस्मरण उनके जीवन की विशिष्टताओं को अभिव्यंजित करने में पूर्ण
समर्थ हैं। महादेवी मूलत: कवियित्राी हैं, नारी हैं। इसलिए उनके संस्मरणों में कवि सुलभ एवं नारी सुलभ सभी विशेषताओं -
संस्मरण 169
कोमलता, भावुकता, ममता, दया, त्याग, बलिदान एवं मधुरता आदि को स्वाभाविक रूप से स्थान मिल गया है। जिन्होंने संस्मरण
को श्रेष्ठता प्रदान की है। महादेवी के संस्मरणों में सभी भाषिक गुण ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, चित्रोपमता भावाभिव्यंकता,
सरलता तथा माधुर्य आदि विद्यमान हैं।
8. श्री निधि विद्यालंकार - नए संस्मरण लेखकों में विद्यालंकार का नाम अग्रगण्य है। इनका संस्मरण शिवालिक की घाटियों में प्रमुख है। जिसमें प्राकृतिक छटा वर्णित है। प्रकृति के सौंदर्य का संश्लिष्ट चित्रण अति मनोरम एवं आकर्षक बन गया है। चित्रत्मक भाषा इनकी प्रमुख विशेषता है।
9. राजेन्द्र लाल हांडा - हांडा आधुनिक संस्मरण लेखक हैं। इनके संस्मरणों का संकलन ‘दिल्ली में बीस वर्ष’ है। राजा राधिका रमण सिंह - संस्मरण लेखकों में राजा राधिका रमण सिंह का नाम अति आदर से लिया जाता है। इनके संस्मरण अनेक संग्रहों में प्रकाशित हो चुके हैं। इनके संस्मरणों में वर्णन-चित्रण की सापेक्षित शैली का प्रयोग किया गया है। इनके संस्मरणों में टूटा तारा, नारी क्या एक पहेली, सावनी सभा, सूरदास, हवेली की झोपड़ी, पूरब और पश्चिम, वे और हम, देव और दानव तथा जानी, सुनी-देखी भाली आदि प्रमुख हैं।
10. अयोध्या प्रसाद गोयलीय - गोयलीय के अनेक संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं। इनका प्रसिद्ध संस्मरण संग्रह जन जागरण के अग्रदूत हैं। इनके अधिकांश संस्मरणों में जीवनियां हैं।
इनके अतिरिक्त शांति प्रिय द्विवेदी, राम वृक्ष वेनीपुरी, कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर, राहुल सांकृत्यायन, गुलाब राय, देवेन्द्र सत्याथ्र्ाी, इलाचन्द्र जोशी, सेठ गोविंद दास, राजेन्द्र यादव, यशपाल, भगवती चरण वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, उपेन्द्र नाथ अश्क, डॉ. नग्रेन्द्र, भदंत आनंद कौसल्यायन, ओंकार शरद तथा विष्णु प्रभाकर आदि भी उल्लेखनीय संस्मरण लेखक हैं। जिन्होंने अपने उत्कृष्ट संस्मरणों से हिंदी संस्मरण साहित्य के भंडार में अभिवृद्धि की है।
संक्षेप में कह सकते हैं कि 20वीं सताब्दी के अस्तित्व में आए संस्मरणों ने अपने अल्पकालीन जीवन में अत्यधिक विकसित रूप धारण करके उल्लेखनीय प्रगति का द्योतन किया है। आधुनिक प्रत्येक साहित्यकार संपर्क में आए हुए महान व्यक्ति से संबंधित विशिष्ट घटना को अपनी अनुभूतियों में पिरोकर, मनोरम, स्पष्ट, साहित्यिक भाषा का जामा पहनाकर, अपने विचारों से संपृक्त करके रूपायित करने के लिए प्रयत्नशील हैं।
8. श्री निधि विद्यालंकार - नए संस्मरण लेखकों में विद्यालंकार का नाम अग्रगण्य है। इनका संस्मरण शिवालिक की घाटियों में प्रमुख है। जिसमें प्राकृतिक छटा वर्णित है। प्रकृति के सौंदर्य का संश्लिष्ट चित्रण अति मनोरम एवं आकर्षक बन गया है। चित्रत्मक भाषा इनकी प्रमुख विशेषता है।
9. राजेन्द्र लाल हांडा - हांडा आधुनिक संस्मरण लेखक हैं। इनके संस्मरणों का संकलन ‘दिल्ली में बीस वर्ष’ है। राजा राधिका रमण सिंह - संस्मरण लेखकों में राजा राधिका रमण सिंह का नाम अति आदर से लिया जाता है। इनके संस्मरण अनेक संग्रहों में प्रकाशित हो चुके हैं। इनके संस्मरणों में वर्णन-चित्रण की सापेक्षित शैली का प्रयोग किया गया है। इनके संस्मरणों में टूटा तारा, नारी क्या एक पहेली, सावनी सभा, सूरदास, हवेली की झोपड़ी, पूरब और पश्चिम, वे और हम, देव और दानव तथा जानी, सुनी-देखी भाली आदि प्रमुख हैं।
10. अयोध्या प्रसाद गोयलीय - गोयलीय के अनेक संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं। इनका प्रसिद्ध संस्मरण संग्रह जन जागरण के अग्रदूत हैं। इनके अधिकांश संस्मरणों में जीवनियां हैं।
इनके अतिरिक्त शांति प्रिय द्विवेदी, राम वृक्ष वेनीपुरी, कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर, राहुल सांकृत्यायन, गुलाब राय, देवेन्द्र सत्याथ्र्ाी, इलाचन्द्र जोशी, सेठ गोविंद दास, राजेन्द्र यादव, यशपाल, भगवती चरण वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, उपेन्द्र नाथ अश्क, डॉ. नग्रेन्द्र, भदंत आनंद कौसल्यायन, ओंकार शरद तथा विष्णु प्रभाकर आदि भी उल्लेखनीय संस्मरण लेखक हैं। जिन्होंने अपने उत्कृष्ट संस्मरणों से हिंदी संस्मरण साहित्य के भंडार में अभिवृद्धि की है।
संक्षेप में कह सकते हैं कि 20वीं सताब्दी के अस्तित्व में आए संस्मरणों ने अपने अल्पकालीन जीवन में अत्यधिक विकसित रूप धारण करके उल्लेखनीय प्रगति का द्योतन किया है। आधुनिक प्रत्येक साहित्यकार संपर्क में आए हुए महान व्यक्ति से संबंधित विशिष्ट घटना को अपनी अनुभूतियों में पिरोकर, मनोरम, स्पष्ट, साहित्यिक भाषा का जामा पहनाकर, अपने विचारों से संपृक्त करके रूपायित करने के लिए प्रयत्नशील हैं।
हिंदी संस्मरण साहित्य की प्रगति इस तथ्य को द्योतन करती है कि
गद्य की अन्य विधाओं की भांति संस्मरण साहित्य का भविष्य अति उज्जवल है।
हिंदी गद्य साहित्य की नवीनतम विधा रेखा चित्र है। इसके लिए शब्दस्केच, शब्दचित्र, व्यक्तिचित्र, तूलिकाचित्र या चरित लेख आदि शब्द युग्मों का प्रयोग किया जाता है। जिनमें अंतिम चरित लेख भिन्न है। लेख निबंध का लघु रूप है। अर्थात् संक्षेप में किसी का चरित्रा-चित्रण करना चाहिए लेख कहलाता है। रेखा चित्र शब्द युग्म का द्वितीय समस्त पद चित्र है। अन्य समासों में भी द्वितीय समस्त पद चित्र ही है चित्र को अलग कर देने से शब्द, शब्द, व्यक्ति, तूलिका ही बचते हैं। स्केच का अर्थ भी चित्र होता है। तूलिका चित्र बनाने का साधन है। शब्द अभिव्यक्ति का साधन है किंतु पेंसिल या पेन मात्रा रेखाएं खींच कर चित्र उकेरते हैं। शब्दों के माध्यम से उकेरे गए चित्र को रेखाचित्र कहा जाता है। इसमें चित्र की पूर्णता न होकर अभिव्यक्ति की पूर्णता होती है। इन सबमें हिंदी में रेखाचित्र ही सर्वग्राह्य है।
नवीनतम विधा होने पर भी इसके तत्व प्राचीन काव्यों में भी उपलब्ध हैं। वाल्मीकि रामायण से लेकर आधुनिक साहित्य में रेखाचित्र के तत्व निरंतर दृष्टिगोचर होते हैं। पद्य एवं गद्य की सभी विधाओं में इसके तत्व विद्यमान हैं। मानव, मानवेतर, जड़ चेतन आदि के अंग प्रत्यंगों में दृष्टिगोचर होने वाले ंिबंब ही इसके तत्व हैं। चाहे वे स्थूल हों या सूक्ष्म। इन बिंबों का चित्रण ही रेखाचित्र कहलाता है। पाश्चात्य साहित्य के स्केच से अनुप्राणित है। बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में हिंदी साहित्य में रेखाचित्र का प्रादुर्भाव हुआ।
रेखाचित्र, व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव, घटना या परिवेश से संबंधित होने के फलस्वरूप यथार्थ की भूमि पर प्रतिष्ठित होता है। रेखाचित्र का आधार फलक यथार्थ है। रेखाचित्र किसी व्यक्ति का शब्द चित्र, किसी विशिष्ट व्यक्ति का संक्षिप्त विवरण, किसी विशिष्ट प्रवृत्ति या घटना का व्यंग्यात्मक चित्रण हो सकता है।
रेखाचित्र गद्य की वह विधा है जिसमें चरित्रा, दृश्य या घटना विशेष का मुख्य रूप से वर्णन किया गया हो। डॉ. शिवदान सिंह चौहान का रेखाचित्र विषयक कथन द्रष्टव्य है- “किसी व्यक्ति के रेखाचित्र में यह विशेषता होगी कि उसके व्यक्तित्व ने जो विशेष मुद्राएं शारीरिक या अवयवों की बनावट में जो विकृतियां ऊपर को उभार दी हैं उनके आभास को चित्र में ज्यों का त्यों पकड़ा जाए ताकि लेखक की अनुभूति के साथ उसके व्यक्तित्व की रेखाएं और भी सघन होकर दिखाई पड़ने लगें।”
डॉ. नगेन्द्र ऐसी किसी भी रचना को रेखाचित्र की संज्ञा देने के लिए उद्यत हैं जिसमें तथ्यों का उद्घाटन मात्रा हो। उनके अनुसार तथ्यों का मात्रा उद्घाटन रेखाचित्र है।
डॉ. विनय मोहन शर्मा के अनुसार - “व्यक्ति, घटना या दृश्य के अंकन को रेखाचित्र की संज्ञा दी जा सकती है।”
डॉ. भगीरथ मिश्र रेखाचित्र के लिए व्यक्ति का आलंबन ही स्वीकारते हैं, घटना या वातावरण का चित्रण उसकी सीमा के अंतर्गत नहीं आता।
उपर्युक्त परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में कह सकते हैं कि रेखाचित्र वह शब्द चित्र है जिसमें व्यक्ति के आलंबन स्वरूप तथ्यों का अंकन किया जाता है।
हिंदी गद्य साहित्य की नवीनतम विधा रेखा चित्र है। इसके लिए शब्दस्केच, शब्दचित्र, व्यक्तिचित्र, तूलिकाचित्र या चरित लेख आदि शब्द युग्मों का प्रयोग किया जाता है। जिनमें अंतिम चरित लेख भिन्न है। लेख निबंध का लघु रूप है। अर्थात् संक्षेप में किसी का चरित्रा-चित्रण करना चाहिए लेख कहलाता है। रेखा चित्र शब्द युग्म का द्वितीय समस्त पद चित्र है। अन्य समासों में भी द्वितीय समस्त पद चित्र ही है चित्र को अलग कर देने से शब्द, शब्द, व्यक्ति, तूलिका ही बचते हैं। स्केच का अर्थ भी चित्र होता है। तूलिका चित्र बनाने का साधन है। शब्द अभिव्यक्ति का साधन है किंतु पेंसिल या पेन मात्रा रेखाएं खींच कर चित्र उकेरते हैं। शब्दों के माध्यम से उकेरे गए चित्र को रेखाचित्र कहा जाता है। इसमें चित्र की पूर्णता न होकर अभिव्यक्ति की पूर्णता होती है। इन सबमें हिंदी में रेखाचित्र ही सर्वग्राह्य है।
नवीनतम विधा होने पर भी इसके तत्व प्राचीन काव्यों में भी उपलब्ध हैं। वाल्मीकि रामायण से लेकर आधुनिक साहित्य में रेखाचित्र के तत्व निरंतर दृष्टिगोचर होते हैं। पद्य एवं गद्य की सभी विधाओं में इसके तत्व विद्यमान हैं। मानव, मानवेतर, जड़ चेतन आदि के अंग प्रत्यंगों में दृष्टिगोचर होने वाले ंिबंब ही इसके तत्व हैं। चाहे वे स्थूल हों या सूक्ष्म। इन बिंबों का चित्रण ही रेखाचित्र कहलाता है। पाश्चात्य साहित्य के स्केच से अनुप्राणित है। बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में हिंदी साहित्य में रेखाचित्र का प्रादुर्भाव हुआ।
रेखाचित्र, व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव, घटना या परिवेश से संबंधित होने के फलस्वरूप यथार्थ की भूमि पर प्रतिष्ठित होता है। रेखाचित्र का आधार फलक यथार्थ है। रेखाचित्र किसी व्यक्ति का शब्द चित्र, किसी विशिष्ट व्यक्ति का संक्षिप्त विवरण, किसी विशिष्ट प्रवृत्ति या घटना का व्यंग्यात्मक चित्रण हो सकता है।
रेखाचित्र गद्य की वह विधा है जिसमें चरित्रा, दृश्य या घटना विशेष का मुख्य रूप से वर्णन किया गया हो। डॉ. शिवदान सिंह चौहान का रेखाचित्र विषयक कथन द्रष्टव्य है- “किसी व्यक्ति के रेखाचित्र में यह विशेषता होगी कि उसके व्यक्तित्व ने जो विशेष मुद्राएं शारीरिक या अवयवों की बनावट में जो विकृतियां ऊपर को उभार दी हैं उनके आभास को चित्र में ज्यों का त्यों पकड़ा जाए ताकि लेखक की अनुभूति के साथ उसके व्यक्तित्व की रेखाएं और भी सघन होकर दिखाई पड़ने लगें।”
डॉ. नगेन्द्र ऐसी किसी भी रचना को रेखाचित्र की संज्ञा देने के लिए उद्यत हैं जिसमें तथ्यों का उद्घाटन मात्रा हो। उनके अनुसार तथ्यों का मात्रा उद्घाटन रेखाचित्र है।
डॉ. विनय मोहन शर्मा के अनुसार - “व्यक्ति, घटना या दृश्य के अंकन को रेखाचित्र की संज्ञा दी जा सकती है।”
डॉ. भगीरथ मिश्र रेखाचित्र के लिए व्यक्ति का आलंबन ही स्वीकारते हैं, घटना या वातावरण का चित्रण उसकी सीमा के अंतर्गत नहीं आता।
उपर्युक्त परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में कह सकते हैं कि रेखाचित्र वह शब्द चित्र है जिसमें व्यक्ति के आलंबन स्वरूप तथ्यों का अंकन किया जाता है।