भारत में जनहित याचिका की शुरूआत भांगलपुर बिहार की जेल में बंदी रखे गये विचाराधीन कैदियों के मामले से हुई। भारत में लोकहित वाद शुरू करने का श्रेय उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पी0एन0भगवती तथा न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर को जाता है।
पी0एन0 भगवती ने इसका उल्लेख निम्न प्रकार से किया- यदि कोई व्यक्ति या समाज का वर्ग जिसकों विधिक क्षति पहुंचाई गयी है या विधिक अधिकारों का अतिक्रमण हुआ है, अपनी निर्धनता या अन्य किसी कारण से अपने संवैधानिक या विधिक अधिकारों के संरक्षण के लिए न्यायालय में जाने में असमर्थ है तो समाज का कोई अन्य व्यक्ति या संस्था उसकी क्षति के निवारण के लिए अनुच्छेद 32 के अधीन आवेदन कर सकता है।
इसको न्यायिक सक्रियता भी कहा जाता है।
जनहित याचिका के मामले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों में प्रस्तुत किये जा सकते हैं।’’
जनहित याचिका के मामले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों में प्रस्तुत किये जा सकते हैं।’’
जनहित याचिका क्या है
अपने अधिकारों का उल्लंघन होने या किसी विवाद में फंसने पर कोई व्यक्ति
न्याय पाने के लिए न्यायालय जा सकता है। 1979 में इस धारणा में बदलाव की शुरूआत
करते हुए न्यायालय ने एक ऐसे मुकदमे की सुनवाई करने का निर्णय लिया जिसे पीड़ित लोगों
ने नहीं बल्कि उनकी ओर से दूसरों ने दाखिल किया था। चूंकि इस मामले में जनहित से
सम्बन्धित मुद्दे पर विचार हो रहा था अत: इस प्रकार के मामलों को ही जनहित याचिकाओं
के नाम से जाना गया।’’
जनहित याचिका का मानव जीवन पर प्रभाव
जनहित याचिका का मानव जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है-
- उच्चतम न्यायालय ने जनहितकारी विवादों को मान्यता प्रदान की है। इसके अनुसार कोर्इ भी व्यक्ति किसी ऐसे समूह अथवा वर्ग की ओर से मुकदमा लड़ सकता है जिसको उसके कानूनों अथवा संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है।’’
- उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 की नवीन व्याख्या की है तथा आम आदमी के जीवन व सुरक्षा को वास्तविक बनाने का प्रयास किया गया है।’’
- उच्चतम न्यायालय ने नागरिकों की गरिमा तथा प्रतिष्ठा की सुरक्षा की ओर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है।’’
- उच्चतम न्यायालय ने पूर्णत: स्पष्ट कर दिया है कि कार्यपालिका के ‘स्वविवेक’ पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।’’
जनहित याचिकाओं का महत्व
जनहित याचिकाओं का मानव जीवन में निम्नलिखित महत्व है-
- सामान्य जनता की आसान पहुंच- जनहित याचिकाओं द्वारा आम नागरिक भी व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से न्याय के लिए न्यायालय के दरवाजे खटखटा सकता है।’’ जनहित याचिकाओं के लिए किन्हीं विशेष कानूनी प्रावधानों के चक्कर में उलझना नहीं पड़ता है। व्यक्ति सीधे उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय में अपना वाद प्रस्तुत कर सकता है।’’
- शीघ्र निर्णय- जनहित याचिकाओं पर न्यायालय तुरन्त न्यायिक प्रक्रिया को प्रारम्भ कर देता है तथा उन पर जल्दी ही सुनवाई होती है। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद-21 तथा 32 की राज्य द्वारा अवज्ञा के मामलों को बहुत ही गंभीरता से लिया है।’’
- प्रभावी राहत- अधिकांश जनहित याचिकाओं में यह देखने को मिलता है कि इसमें पीड़ित पक्ष को बहुत अधिक राहत हो जाती है तथा प्रतिवादी को सजा देने का भी प्रावधान है।’’
- कम व्यय- जनहित याचिकाओं में याचिका प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति का खर्चा बहुत कम होता है क्योंकि इसमें सामान्य न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता है। यदि न्यायालय याचिका को निर्णय के लिए स्वीकार कर लेता है तो उस पर तुरंत कार्यवाही के कारण शीघ्र निर्णय हो जाता है।’’
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