केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप से आप क्या समझते हैं?

साधारण अर्थ में केन्द्रीय प्रवृत्ति का अर्थ है केन्द्र (Centre) की ओर झुकाव। लेकिन सांख्यिकी (Statistics) में केन्द्रीय प्रवृत्ति का तात्पर्य बारंबारता-वितरण (Frequency distribution) मेंं किसी प्राप्तांक (Score) में केन्द्र की ओर झुकाव से है। जैसे-जैविक शीलगुणों (biological traits) में उनके वितरण केन्द्र (औसत) की ओर होने की प्रवृत्ति पायी जाती है। जैसे, नाटे माता-पिता के बच्चे अपेक्षाकृत लम्बे तथा लम्बे माता-पिता के बच्चे अपेक्षाकृत नाटे होते हैं। चैपलिन (Chaplin, 1975) के अनुसार, प्राप्तांकों के प्रतिनिधिक मूल्य (representative value) को केन्द्रीय प्रवृत्ति कहते हैं।

केंद्रीय प्रवृत्ति की माप के प्रकार

केन्द्रीय प्रवृत्ति का मापन तीन मापों (measures) द्वारा किया जाता है।’’ इन मापों को मध्यमान या माध्य (The Mean), माध्यिका (The Median) तथा बहुलक (The Mode) कहते हैं।’’ केन्द्रीय प्रवृत्ति मापों के प्रकार निम्न प्रकार के होते है।
  1. माध्य
  2. माध्यिका
  3. बहुलांक

1. मध्यमान

माध्य या मध्यमान केन्द्रीय प्रवृत्ति की एक माप है। इसके मुख्य तीन प्रकार है- जिन्हें अंकगणितीय माध्य (Arithemetic mean), हरात्मक माध्य (Harmonic-mean) तथा ज्यामितीय माध्य (Geometric mean) कहते हैं । हमारा सम्बन्ध यहाँ अंकणितीय माध्य से है। 

अंकगणितीय माध्य (Arithmetic Mean) साधारण अर्थ में किसी चीज के औसत को माध्य या मध्यमान कहते हैं।’’ प्राप्तांकों के योगफल को उनकी कुल संख्या से भाग देने पर जो भागफल होता है उसे ही अंकगणीतीय मध्यमान कहते हैं। 5 छात्रों ने एक बुद्धि-परीक्षण पर 100, 105, 95, 90 तथा 80 अंक प्राप्त किए।’’

इन सभी प्राप्तांकों का योगफल (100+ 105 + 95 + 90 + 80 = 470) 470 हुआ। अब इस योगफल को सभी प्राप्तांकों की कुल संख्या यानी 5 से भाग देने पर 94 आता है। पाँचों विद्यार्थियों के प्राप्तांकों का अंकगणितीय मध्यमान 94 हुआ।’’

माध्य की विशेषताएँ

माध्य के परिकलन के पहले इसकी विभिन्न विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख आवश्यक है- 
  1. माध्य की एक विशेषता यह है कि यह बारंबारता-वितरण (Frequency distribution ) के केन्द्र की ओर निर्देश करता है। यह ऐसे मूल्य को बतलाता है जो वितरण के माध्य या उसके आसपास होता है । जब वितरण बिल्कुल संतुलित (balanced) होता है तो माध्य वितरण के ठीक केन्द्र में होता है। वितरण में असंतुलन जितना ही अधिक होता है । माध्य उतना ही अधिक केन्द्र से दूर होता है।’’
  2. माध्य की एक विशेषता यह भी है कि इससे पता चलता है कि वितरण प्रसामान्य (Normal) है या नहीं । प्रसामान्य वितरण होने पर माध्य ठीक केन्द्र में होता है और माध्य (Mean), माध्यिका (Median) तथा बहुलक (Mode) में कोई अन्तर नहीं होता है।’’
  3. वितरण के किसी भी प्राप्तांक में परिवर्तन होने पर माध्य में भी परिवर्तन देखा जाता हे।’’
  4. माध्य की एक विशेषता यह भी है कि यह किसी वितरण का संतुलन-बिन्दु होता है।’’
इससे कोई प्राप्तांक ऊपर हो तो इसे धनात्मक विचलन (Positive deviation) कहेगें तथा यदि कोई प्राप्तांक इससे नीचे हो तो इसे ऋणात्मक विचलन (Negative deviation) कहा जाएगा।’’

(अ) सामान्य परिस्थितियों में माध्यिका (Median) तथा बहुलक (Mode) की तुलना मेंं माध्य में प्रतिदर्श स्थिरता (Sampling Stability) अधिक पायी जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि प्रतिदर्श के घटने-बढ़ने का अधिक प्रभाव माध्य पर नहीं पड़ता है ।’’

माध्य की उपयोगिताएँ या गुण

बारंबारता- वितरण की केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप के रूप में माध्य की कई उपयोगिताएँ है:- 
  1. माध्य से किसी समूह या वितरण के औसत (average) का बोध होता है। इससे समूह या वितरण के मानदण्ड (Standard) का संकेत मिलता है ।’’
  2. माध्य की एक उपयोगिता यह भी है इसके आधार पर दो या अधिक समूहों या वितरणों का तुलनात्मक अध्ययन करना संभव होता है। किसी वर्ग के सभी लड़कों तथा लड़कियों के प्राप्तांकों (Scores) के माध्य अलग-अलग निकाले जाएँ तो इससे पता चल सकता है कि उपलब्धि के दृष्टिकोण से लड़कियों तथा लड़कों में श्रेष्ठ कौन है ।’’
  3. माध्य की उपयोगिता दूसरी कई सांख्यिकी (Statistics) को निकालने के सम्बन्ध में देखी जाती है। जैसे-मानक विचलन (SD), औसत विचलन (AD), टी-परीक्षण (t-test), सह-समबन्ध (Correlation) आदि के परिकलन में माध्य सहायक होता है ।’’
  4. गैरेट (Garrett, 1981) के अनुसार केन्द्रीय प्रवृत्ति की तीनों मापों अर्थात् माध्य, माध्यिका तथा बहुलक में माध्य में सबसे अधिक स्थिरता (Stability) पायी जाती है। अत: जहाँ कहीं केन्द्रीय प्रवृत्ति की स्थिर माप (Stable measure) की आवश्यकता होती है वहाँ माध्य का उपयोग करना अधिक उपयोगी होता है।’’

माध्य के दोष या सीमाएँ 

इसमें निम्नलिखित दोष है।’’
  1. इसका सबसे गंभीर दोष यह है कि चरम निरीक्षणों (Extreme observations) का गहरा प्रभाव माध्य पर पड़ता है ।’’
  2. माध्य का निर्धारण न तो निरीक्षण से सम्भव है ओर न ग्राफीय विधि (Graphic Mehod) से ही ।’’
  3. ऐसी गुणात्मक विशेषताएँ, जिनका मात्रात्मक मापन संभव नहीं हो पाता है, उनका अध्ययन माध्य से नहीं हो पाता है, जबकि माध्यिका से संभव हो जाता है।’’जैसे-ईमानदारी, सुन्दरता, आदि का अध्ययन ।’’
  4. माध्य के साथ एक कठिनाई यह है कि यदि आँकड़ों (Data) की पूरी जानकारी न हो तो उनके माध्य से गलत निष्कर्ष प्राप्त हो सकता है। जैसे- मान लें कि राम ने पहली जाँच परीक्षा में 45, दूसरी में 50 तथा तीसरी में 55 अंक पाए । श्याम ने इन परीक्षाओं में क्रमश: 55 50 तथा 45 अंक पाए । औसत अंक 50 अंक पाया । इस आधार पर निष्कर्ष निकला कि राम तथा श्याम की उपलिध्याँ समान रही । लेकिन यह निष्कर्ष गलत है, क्योंकि राम की क्रमश: उन्नति हुई है जबकि श्याम की अवनति हुई है।’’
अंकगणितीय माध्य का परिकलन (Calculation of the Arithmetic Mean) माध्य दो परिस्थितियों में निकाला जाता है जो निम्न है-  असमूहित आँकड़ों का माध्य ( The mean from ungrouped Data) असमूहित आँकड़ों का अर्थ है कि वे अलग-अलग प्राप्तांक के रूप में हो, बारंबारता सारणी (Frequency table) के रूप में न हो । ऐसे आँकड़ों (data) या प्राप्तांकों (Scores) के माध्य को निकालने का तरीका यह है कि अलग-अलग प्राप्तांकों को एक साथ जोड़ दिया जाता है और उनकी कुल संख्या (N) से भाग दिया जाता है जो भागफल होता है वही माध्य होता है।

(ख) समूहित आँकड़ों का माध्य (Mean From Grouped Data) समूहित या व्यवस्थित आँकड़ों या प्राप्तांकों का अर्थ वे आंकड़े या प्राप्तांक है जिन्हें बारंबारता-वितरण सारणी (Frequency distribution table) के रूप में सजा दिया जाता है ।’’ समूहित या व्यवस्थित आंकड़ों से माध्य निकालने की दो विधियाँ है- 
  1. लम्बी विधि ( Long Method) लम्बी विधि को वास्तविक माध्य विधि (actual mean method) भी कहते हैं।
  2.  लघु विधि- (Short Method) माध्य (mean) निकालने की दूसरी विधि को लघु विधि कहते हैं। इसे लघु विधि इसलिए कहते हैं कि इसके द्वारा माध्य ज्ञात करने में अधिक सुविधा होती है, समय कम लगता है तथा श्रम कम करना पड़ता है।’’

2. मध्यांक

मध्यांक क्या है (What is Median, Mdn) मध्यांक को माध्यिका भी कहते हैं। केन्द्रीय प्रवृत्ति की दूसरी माप को मध्यांक कहते हैं। इसे प्रतीक के रूप में डकद कहते हैं । मध्यांक का अर्थ किसी वितरण (distribution) में वह बिन्दु है जिसके उपर 50 प्रतिशत तथा नीचे 50 प्रतिशत होते हैं। डाउनी तथा हीथ (Downine - Heath, 1959, 1970) के शब्दों में ‘‘ माध्यांक किसी वितरण में वह बिन्दु है, जिसकी दोनों ओर बराबर-बराबर प्राप्तांक होते है।’’
इसे एक उदाहरण द्वारा और भी स्पष्ट किया जा सकता है। 

मान लें कि इतिहास में 7 छात्रों के प्राप्तांक इस प्रकार है- 60, 45, 55, 65, 70, 48, 59 अब इन प्राप्तांकों को बढ़ते हुए क्रम में इस प्रकार व्यवस्थित किया जा सकता है- 45, 48, 55, 59, 60, 65, तथा 70 इनमें 59 प्राप्तांक है, जिसके नीचे तीन प्राप्तांक यानी 55, 48 तथा 45 है तथा ऊपर भी तीन प्राप्तांक यानी 60, 65 तथा 70 है। अत: 59 को माध्यांक माना जाएगा ।’’

माध्यिका की विशेषताएँ 

माध्यिका के परिकलन (Calculation) के पहले इसकी विशेषताओं को जान लेना लाभदायक होगा ।’’
  1. माध्यिका (mdn) की एक विशेषता यह है कि यह माध्य (Mean) की तरह केन्द्र की ओर निर्देश करता है। इसलिए दोनों को केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप (Measures) कहा जाता है । इस विशेषता के आधार पर ये दोनों अभिन्न है।’’
  2. माध्यिका की एक विशेषता यह भी है कि यह वितरण के उस बिन्दु को इंगित करती है, जिसके ऊपर तथा नीचे बराबर-बराबर प्राप्तांक होते हैं। इस आधार पर यह माध्य (Mean) से भिन्न है। कारण, माध्य से केवल औसत का बोध होता है ।’’
  3. वितरण के किसी प्राप्तांक (Score) में परिवर्तन होने पर भी माध्यिका में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे- 4, 5, 6, 7 तथा 8 में 6 माध्यिका है।’’
  4. माध्यिका की एक विशेषता यह भी है यह केवल उस बिन्दु या प्राप्तांक को बतलाती है जिसके ऊपर तथा नीचे बराबर-बराबर प्राप्तांक होते हैं। लेकिन, यह प्राप्तांकों की दूरी को महत्त्व नहीं देती है । जैसे- 10, 25, 33, 35 तथा 39 में 33 माध्यिका है और इसके नीचे के दोनों प्राप्तांकों (10 और 25) में 15 का अन्तर है। जबकि इसके उपर के दोनों प्राप्तांकों (35 तथा 39) के बीच केवल 4 का अन्तर है । इतना अधिक असंतुलन माध्य (Mean) में नहीं है। अत: इस आधार पर ये दोनों माप (Measure) एक दूसरे से भिन्न है ।’’
  5. गैरेट (Garrett, 1981) के अनुसार इसमें प्रतिदर्श विचलन (Sampling Fluctuation) कम पाया जाता है। लेकिन, माध्य (Mean) की तुलना में यह विचलन माध्यिका में अधिक पाया जाता है।’’

माध्यिका की उपयोगिताएँ

इस केन्द्रीय प्रवृत्ति की निम्नलिखित कई उपयोगिताएँ है- 
  1. माध्यिका की एक उपयोगिता यह है कि इसके आधार पर किसी वितरण के वास्तविक मध्यबिन्दु (Exact Midpoint) को निर्धारित करना संभव होता है।’’ अत: जब कभी किसी वितरण के मध्य-बिन्दु को निर्धारित करना होता है, तो माध्यिका निकालने की आवश्यकता होती है ।’’
  2. माध्यिका से इस बात का ज्ञान हो जाता है कि कौन-सा प्राप्तांक केन्द्रीय प्रवृत्ति को प्रभावित कर रहा है और उसका स्थान (Location) क्या है? (iii) माध्यिका ही एक ऐसा औसत (Average) है, जिसका उपयोग गुणात्मक विशेषताओं के मापन के लिए किया जा सकता है। जैसे- औसत बुद्धि, औसत सुन्दरता, आदि का पता लगाना ।’’

माध्यिका के दोष या सीमाएँ 

कई उपयोगिताओं (uses) या लाभों (Advantages) के बावजूद माध्यिका की निम्नलिखित त्रुटियाँ (errors) या सीमाएँ है- 
  1. असमूहित आँकड़ों (Ungrouped data) के लिए जब निरीक्षणों या प्राप्तांकों की संख्या समांक (even number) हो तो वास्तविक माध्यिका निकालना संभव नहीं हो पाता है। कारण, मध्य के दो प्राप्तांकों का औसत निकाल देने पर वास्तविक माध्यिका, प्राप्त नहींं हो पाती है। उन दो प्राप्तांकों के बीच कोई भी मूल्य माध्यिका हो सकती है ।’’
  2. चूंकि माध्यिका स्थितीय औसत (Positional Average) है, इसलिए यह वितरण के प्रत्येक एकांश (item) पर आधारित नहीं होती है ।’’
  3. माध्य (Mean) की तुलना में माध्यिका (mdn) में स्थिरता (Stability) कम पायी जाती है ।’’
  4. विशेष ‘रूप’ से छोटे प्रतिदर्शों (Small Samples) की स्थिति में माध्य की तुलना में माध्यिका पर प्रतिदर्श के घटाव-बढ़ाव (Fluctuation of Sampling) का प्रभाव अधिक पड़ता है ।’’

3. बहुलक

 बहुलक का अर्थ वितरण का वह प्राप्ताक या अंक है जो सबसे अधिक बार आया हो।  जैसे- 15, 11, 20, 11, 17, 11, 21, 15, 12 तथा 11 में 11 को बहुलक माना जाएगा। कारण 11 ही ऐसा अंक है जो वितरण में सबसे अधिक बार आया है।’’ रेबर तथा रेबर (Reber & Reber, 2001) ने इसकी परिभाषा दते हुए कहा है कि ‘‘सांख्यिकी में बहुलक प्राप्तांकों के वितरण की केन्द्रीय प्रवृति की वह माप है जिससे उस वर्गान्तर के मध्यबिन्दु का बोध होता है, जिसमें अधिकतम बारंबारता होती है।

बहुलक की विशेषताएँ

  1. बहुलक की एक विशेषता यह है कि असमूहित आँकड़ों की हालत में इससे उस अंक का बोध होता है जो सबसे अधिक बार आता है ।’’
  2. बहुलक की एक विशेषता यह भी है कि समूहित आँकड़ों की स्थिति में इसमें उस वर्गान्तर का बोध होता है जिसमें अधिकतम बारंबारता होती है ।’’
  3. बहुलक को ड0के प्रतीक के रूप में व्यक्त किया जाता है ।’’
  4. बहुलक के दो प्रकार हैं जिन्हें अवास्तविक बहुलक (Crude mode) तथा वास्तविक बहुलक (true mode) कहते हैं। जो बहुलक आँकड़ों के मात्र निरीक्षण के आधार पर निकाला जाता है उसे अवास्तविक बहुलक कहते हैं। दूसरी ओर जो बहुलक सूत्र के आधार पर निकाला जाता है, उसे परिकलित बहुलक (Calculation mode) या वास्तविक बहुलक कहते हैं ।’’

बहुलक की उपयोगिताएँ या गुण

केन्द्रीय प्रवृति की तीन मापों (Measures) में बहुलक की उपयोगिता सबसे अधिक सीमित है। माध्य (Mean) तथा माध्यिका (Median) की तरह यह उपयोगी नहीं है फिर भी इससे कुछ लाभ अवश्य होता है।’’
  1. जब कभी असमूहित आँकड़ों में उस अंक को जानना हो जो सबसे अधिक बार आया हो तो इसके लिए केवल बहुलक ही लाभप्रद होता है 
  2. बारंबारता द्विबहुलकी (bimodal) अथवा बहुबहुलकी (Multimodal) हो तो बहुलक का मूल्य माध्य तथा माध्यिका से अधिक हो जाता है 
  3. जब बहुत थोड़े समय में केन्द्रीय प्रवृत्ति का एक स्थूल अन्दाज लेना हो तो इसका व्यवहार आवश्यक बन जाता है ।’’
  4. बहुलक दूरतम निरीक्षणों से प्रभावित नहीं होता है । इस आधार पर यह माध्य से बेहतर है । 

बहुलक के दोष या सीमाएँ

कई उपयोगिताओं के होते हुए भी बहुलक की कई सीमाएँ या त्रुटियाँ है- 
  1. बहुलक की कठोर परिभाषा (Rigid definition) संभव नहीं है ।’’
  2. बहुलक से आगे के गणितीय निरूपण (Mathematical treatment) में कोई लाभ नहीं होता है ।’’
  3. माध्य (Mean) तथा माध्यिका (Mdn) की अपेक्षा बहुलक (Mode) पर प्रतिदर्श (Sample) के घट-बढ़ (Fluctuation) का प्रभाव अधिक पड़ता है।’’
  4. जो स्थिरता (Stability) माध्य (Mean) में पायी जाती है वह माध्यिका (Mdn) या बहुलक ( Mode) में नहीं पायी जाती है ।’’

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