कुमार गंधर्व का जन्म 8 अप्रैल 1924 को बेलगाँव के जिले सुलेभावी ग्राम
में हुआ। कुमार गंधर्व के पिता स्वयं एक अच्छे गायक थे। आपकी सांगीतिक प्रतिभा बचपन से
ही झलकती थी। पाँच वर्ष की आयु में एक बार कुमार गंधर्व सवाई गंधर्व के गायन
कार्यक्रम में गए वहाँ से लौटकर जब वे घर आए तो सवाई गंधर्व द्वारा गाई बसंत राग
की बंदिश को तान और आलापों के साथ ज्यों का त्यों नकल करके गाने लगे यह
देखकर उनके पिता आश्चर्यकित रह गए और फिर कुमार की संगीत शिक्षा विधिवत
रूप से प्रारंभ हुई।
नौ वर्ष की उम्र में कुमार गंधर्व का सर्वप्रथम गायन जलसा बेलगाँव
में हुआ इसके पश्चात मुम्बई के प्रोफेसर देवधर ने कुमार को अपने संगीत विद्यालय
में रख लिया। फरवरी सन् 1936 में मुम्बई में एक संगीत गोष्ठी हुई उसमें गंधर्व की
कला का सफल प्रदर्शन हुआ जिसमें श्रोतागण मंत्र मुग्ध हो गए और इनका नाम
संगीतज्ञों तथा संगीत कला प्रेमियों में प्रसिद्ध हो गया। अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने उन
दिनों कुमार गंधर्व के संगीत की प्रशंसा की, कुमार गंधर्व की गायकी देशभर में विख्यात
है, उन्होंने कई बंदिशों की रचनाएँ की।
कुमार गंधर्व के बंदिशों के मुख्य विषय ईश प्रार्थना,
भगवान शंकर की स्तुति, सरस्वती वंदना, गुरु महिमा, संगीत का विवरण, ऋतु वर्णन,
श्रृंगार, विरहिणी की व्यथा और श्याम सुंदर की बंसी आदि हैं। कुमार गंधर्व ने अपने
क्षेत्र के लोक संगीत की सादगी, रूप और विषय का अध्ययन तथा विश्लेषण किया
तथा तीन सौ से अधिक लोकगीतों का संग्रह किया। उन्होंने उनकी स्वरलिपि तैयार की
और इस तरह धुनों को लगातार गुनगुनाते रहे इसके फलस्वरूप विविध धुनें और उगम
राग, जो अब प्रसिद्ध हैं, निर्मित हुए। ये राग कुमार गंधर्व के महान ग्रंथ अनूप राग
विलास में संकलित हैं।’
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