लोक अदालत क्या है?
लोक अदालतें वर्ष 1976 में 42वें संशोधन के द्वारा भारत के संविधान में अनुच्छेद 39 क जोड़ा गया।’’ जिसके द्वारा शासन से अपेक्षा की गई कि वह सुनिश्चित करें कि भारत को कोई भी नागरिक, आर्थिक या किसी अन्य अक्षमताओं के कारण न्याय पाने से वंचित न रह जाए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सबसे पहले 1980 में केन्द्र सरकार के निर्देश पर सारे देश में कानूनी सहायता बोर्ड की स्थापना की गई।बाद में इसे कानूनी जामा पहनाने हेतु भारत सरकार द्वारा
विधिक सेवा प्राधिकार अधिनियम 1987 पारित किया गया जो 9 नवम्बर 1995 में लागू हुआ।
इस अधिनियम के अन्तर्गत विधिक सहायता एवं लोक अदालत का संचालन का अधिकार
राज्य स्तर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकार को दिया गया।’’
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त अथवा सेवारत न्यायाधीश और सदस्य सचिव के रूप में वरिष्ठ जिला जज की नियुक्ति की जाती है। इसके अतिरिक्त महाधिवक्ता, सचिव वित्त, सचिव विधि, अध्यक्ष अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग, मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से दो जिला न्यायाधीश, अध्यक्ष बार काउन्सिल इस राज्य प्राधिकरण के सचिव सदस्य होते हैं और इसके अतिरिक्त मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से 4 अन्य व्यक्तियों को नाम निर्दिष्ट सदस्य बनाया जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक जिले में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया है।’’
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त अथवा सेवारत न्यायाधीश और सदस्य सचिव के रूप में वरिष्ठ जिला जज की नियुक्ति की जाती है। इसके अतिरिक्त महाधिवक्ता, सचिव वित्त, सचिव विधि, अध्यक्ष अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग, मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से दो जिला न्यायाधीश, अध्यक्ष बार काउन्सिल इस राज्य प्राधिकरण के सचिव सदस्य होते हैं और इसके अतिरिक्त मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से 4 अन्य व्यक्तियों को नाम निर्दिष्ट सदस्य बनाया जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक जिले में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया है।’’
लोक अदालत के सदस्य की योग्यताएं
- विधि व्यवसायी व्यक्ति हो, अथवा
- ऐसा प्रतिष्ठित व्यक्ति हो जो विधिक सेवा कार्यक्रमों एवं योजनाओं के क्रियान्वयन में विशेष रूचि रखता हो, अथवा
- ऐसा उत्कृष्ट सामान्य कार्यकर्त्ता हो जो कमजोर वर्ग के लोगों, महिलाओं, बच्चों, ग्रामीण एवं शहरी श्रमिकों के उत्थान के लिए कार्य कर रहा है।’’
लोक अदालत की अधिकारिता
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 19(5) के अनुसार लोक अदालत को
निम्नलिखित अधिकारिता प्राप्त है-
- लोक अदालत के क्षेत्र के न्यायालय में लम्बित प्रकरण, अथवा
- ऐसे प्रकरण जो लोक अदालत के क्षेत्रीय न्यायालय में आते हों, लेकिन उनके लिए वाद संस्थित न किया गया हो।’’
परंतु लोक अदालत को ऐसे किसी मामले या वाद पर अधिकारिता प्राप्त नहीं
है जिसमें कोई अशमनीय अपराध किया गया हो। ऐसे प्रकरण जो न्यायालय में
लम्बित पड़े हों, पक्षकारों द्वारा न्यायालय की अनुज्ञा के बिना लोक अदालत में नहीं
लाये जा सकते।
लोक अदालत से लाभ
लोक अदालत से निम्नलिखित लाभ हैं-
- वकील पर खर्च नहीं होता।
- कोर्ट फीस नहीं लगती।
- पुराने मुकदमे की कोर्ट फीस वापस हो जाती है।
- किसी पक्ष का सजा नहीं होती। मामले को बातचीत द्वारा सफाई से हल कर लिया जाता है।
- मुआवजा और हर्जाना तुरन्त मिल जाता है।’’
- मामले का निपटारा तुरन्त मिल जाता है।’’
- सभी को आसानी से न्याय मिल जाता है।’’
- इस प्रकार से सुलझाये गये विवादों का फैसला अंतिम होता है तथा इसके विरूद्ध कहीं भी अपील नहीं की जा सकती।’’