किसी भी
बालक/मानव का विकास किसी एक तत्व अथवा उपकरण पर
निर्भर नहीं करता । उसके विकास में बहुत से तत्व मिलकर काम
करते हैं । बालक के विकास और उसकी गति पर भोजन,
स्वास्थ्यजनक परिस्थितियों, वातावरण, सूर्य प्रकाश, शुद्ध वायु तथा
ऋतु आदि का प्रभाव पड़ता है तो उसकी मनोवृत्तियों, वंशानुक्रम
तथा सामाजिक सम्बन्धों का भी प्रभाव पड़ता है ।
मानव विकास
को प्रभावित करने वाले ये तत्व एक दूसरे से सम्बन्धित होते हैं
परन्तु इन तत्वों के सापेक्षित प्रभाव के सम्बन्ध में निश्चित रूप से
कुछ कहा नहीं जा सकता है ।
विकास के इन तत्वों का अध्ययन
वातावरण और वंशानुक्रम के संदर्भ में किया जा सकता है ।’’
मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्व
वंशानुक्रम
प्रत्येक मानव कुछ निश्चित
क्षमताओं या गुणों के साथ पैदा होता है । ये जन्मजात क्षमताए
अथवा गुण उसे गर्भ के समय अपने माता पिता एवं पूर्व पीढ़ियों से
प्राप्त होते हैं। इस जटिल जैविक प्रक्रिया द्धारा माता पिता से एक
पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होने वाले ये गुण उसका
वंशानुक्रम कहलाते हैं । दूसरे शब्दों में हम वंशानुक्रम उसे कहते हैं
जो व्यक्ति को उसकी प्रकृति द्धारा प्रदत्त योगदान है ।’’
वंषानुक्रम से ही व्यक्ति को सभी शारीरिक विषेशताए जैसे चेहरा, रंग, ऑखें, हाथ-पैर, लम्बाई आदि बाह्य अंग प्राप्त होने के साथ साथ उसकी शरीर की आंतरिक क्रिया प्रणाली को नियन्त्रित करने वाली ग्रंथियां और विभिन्न संस्थान भी प्राप्त होते हैं । मानव को मानसिक विषेशताओं में विषेशरूप से मूलप्रवृति, बुद्धि और अभिक्षमता जन्मजात होती है । इन जन्मजात शक्तियों का पूर्ण विकास उचित वातावरण में ही संभव हो सकता है ।’’
वंषानुक्रम से ही व्यक्ति को सभी शारीरिक विषेशताए जैसे चेहरा, रंग, ऑखें, हाथ-पैर, लम्बाई आदि बाह्य अंग प्राप्त होने के साथ साथ उसकी शरीर की आंतरिक क्रिया प्रणाली को नियन्त्रित करने वाली ग्रंथियां और विभिन्न संस्थान भी प्राप्त होते हैं । मानव को मानसिक विषेशताओं में विषेशरूप से मूलप्रवृति, बुद्धि और अभिक्षमता जन्मजात होती है । इन जन्मजात शक्तियों का पूर्ण विकास उचित वातावरण में ही संभव हो सकता है ।’’
वातावरण
मानव का वातावरण वे
भौतिक और सामाजिक परिस्थिति है जिसमें वह जन्म लेता है
और विकसित होता है । वातावरण का मानव की जन्मजात शक्तियों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है ।’’
उपयुक्त वातावरण के अभाव में जन्मजात शक्तियों अविकसित रह जाती है चाहे वे शारीरिक शक्तियां हो अथवा मानसिक । मानव के विकास, विकास की गति तथा उसके व्यवहार पर अनेक वातावरणीय तत्व प्रभाव डालते हैं -
उपयुक्त वातावरण के अभाव में जन्मजात शक्तियों अविकसित रह जाती है चाहे वे शारीरिक शक्तियां हो अथवा मानसिक । मानव के विकास, विकास की गति तथा उसके व्यवहार पर अनेक वातावरणीय तत्व प्रभाव डालते हैं -
भोजन
व्यक्ति के सामान्य विकास के लिए पुष्टिकर
और संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है । भोजन में व्यक्ति
विकास के सभी आवश्यक तत्व पाए जाने आवश्यक है अन्यथा शारीरिक दुर्बलता और रोग उसके विकास में बाधक बन सकते हैं
। सही भोजन व्यक्ति को सभी अवस्थाओं में आवश्यक होता है
परन्तु “ौषवावस्था एवं बाल्यावस्था में इसकी अनिवार्यता अत्यन्त
महत्वपूर्ण है ।’’
शुद्ध वायु एवं सूर्य का प्रकाश
व्यक्ति के विकास
की दृष्टि से शुद्ध वायु और सूर्य प्रकाश का बड़ा महत्व है । बहुत
से रोग तो धूप स्नान और शुद्ध वायु से दूर हो जाते हैं । विशेषकर
बालक के प्रारंभिक वर्षों में स्वास्थ्य स्थिति, आकार और
परिपक्वता आयु इससे बहुत अधिक प्रभावित होती है । धूप से
जीवन शक्ति मिलती है और रोगों के रोगाणु भी मरते हैं। धूप से
विटामिन ‘‘डी’’ प्राप्त होता है , जिसके अभाव में बालकों को सूखा
रोग हो जाता है और शरीर के अन्य रसायनों जैसे कैल्शियम के
लिए भी यह आवश्यक है । त्वचा के रोगों के लिए भी धूप बड़ी
लाभदायक है ।’’
शुद्ध वायु शरीर के रक्त को शुद्ध करती है जो स्वस्थ शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक है । चर्म रोगों तथा क्षय रोग में शुद्ध वायु बहुत आवश्यक है ।’’
शुद्ध वायु शरीर के रक्त को शुद्ध करती है जो स्वस्थ शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक है । चर्म रोगों तथा क्षय रोग में शुद्ध वायु बहुत आवश्यक है ।’’
संस्कृति
बालक के विकास में संस्कृति
का महत्वपूर्ण योगदान रहता है । प्रत्येक देश की अपनी अपनी
संस्कृति होती है और संस्कृति में विकास के अलग अलग अवसर
होते हैं । उनके रीति रिवाज व परम्पराएं भी अलग अलग होते हैं
। जो समय देषकाल होगा संस्कृति भी सामाजीकरण द्धारा
बालक के विकास को प्रभावित करती है । एक भारतीय बालक
अपने देश की आध्यात्मिक संस्कृति में पलना बढ़ता है जिसका
प्रभाव उसके सांवेगिक, नैतिक एवं अध्यात्मिक विकास पर स्पष्ट
दिखाई देता है जो उसे अन्य संस्कृतियों जैसे अमेरिका
(भौतिकवादी संस्कृति) में पले बढ़े बालक से भिन्न बनाता है ।’’
उस देश की संस्कृति संस्कार रूप में व्यक्ति के अवचेन तथा अचेतन मन में समाई रहती है । प्रसिद्ध मनोविश्लेषक युंग महोदय का कथन है कि व्यक्ति के विकास में जातीय संस्कृति का बड़ा हाथ है , जातीय संस्कृति के अनुरूप ही व्यक्ति का विकास होता है । मार्गेट मीड और बेनेडिक्ट जैसे मानव - शास्त्रियों ने अध्ययन द्वारा यह प्रतिपादित किया कि बालक के विकास पर संस्कृति का प्रभाव पड़ता है । जो संस्कृति जितनी उन्नत होगी उससे सम्बन्धित व्यक्ति उसी मात्रा में गुणों का अर्जन करेगा । जैसे अध्यात्मिकता केवल हमारी संस्कृति में ही पनप सकती है , पाष्चात्य संस्कृति में नहीं ।’’
उस देश की संस्कृति संस्कार रूप में व्यक्ति के अवचेन तथा अचेतन मन में समाई रहती है । प्रसिद्ध मनोविश्लेषक युंग महोदय का कथन है कि व्यक्ति के विकास में जातीय संस्कृति का बड़ा हाथ है , जातीय संस्कृति के अनुरूप ही व्यक्ति का विकास होता है । मार्गेट मीड और बेनेडिक्ट जैसे मानव - शास्त्रियों ने अध्ययन द्वारा यह प्रतिपादित किया कि बालक के विकास पर संस्कृति का प्रभाव पड़ता है । जो संस्कृति जितनी उन्नत होगी उससे सम्बन्धित व्यक्ति उसी मात्रा में गुणों का अर्जन करेगा । जैसे अध्यात्मिकता केवल हमारी संस्कृति में ही पनप सकती है , पाष्चात्य संस्कृति में नहीं ।’’
परिवार
व्यक्ति के विकास का परिवार की
स्थिति, परिवार में उसका स्थान व परिवार की परिस्थितियां
प्रभावित करती है । परिवार के स्तर के आधार पर बालक की सोच
और मानसिकता बनती है । परिवार का सामाजिक आर्थिक स्तर
भी बालक के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।’’
समाज व सामाजिक सम्बन्ध
बालक का विकास उसके परिवार, समाज ओैर
सामाजिक वातावरण से प्रभावित होता है । उसी के अनुसार
बालक की संरचना उस देश की संस्कृति से प्रभावित होती है और
बालक का समाज उसके सामाजिक सम्बन्धों को निर्धारित करके
उसके विकास को नयी दिशा प्रदान करता है । बालक का व्यवहार
उसके समाज जैसे परिवार के सदस्य, पडौस व विद्यालय के
सदस्यगणों के क्रियाकलापों से प्रभावित होता है और उसी के
आधार पर बालक अपनी अनुक्रिया करता है । इन सबका प्रभाव
बालक के विकास के सभी पक्षों पर पड़ता है ।’’
पालन पोषण
पालन पोषण का बालक के विकास
पर अधिक प्रभाव पड़ता है । पालन पोषण के तरीके उसके व्यवहार
को दिशा प्रदान करते हैं । मनोविज्ञान के अनुसार बालक की
अनुक्रिया व्यवहार से प्रभावित होती है और व्यवहार का अच्छा या
बुरा होना लालन-पालन से प्रभावित होता है । पालन पोषण में
सुविधाओं की उपलब्धता और अनुपलब्धता भी बालक के विकास
को प्रभावित करती है । यह बालक का अपने माता पिता के साथ
पारस्परिक सम्बन्ध व स्तर को भी प्रभावित करती है ।’’
जीवन की घटनाएं और दुर्घटनाएं
जीवन की अच्छी और खराब घटनाएं
और दुर्घटनाएं मानव जीवन के विकास को प्रभावित करती है ।’’ कभी कभी एक घटना पूरे जीवन के विकास की दिशा ही परिवर्तित
कर देती है । जैसे - एक व्यक्ति की दुर्घटना में तंत्रिका तंत्र के
नुकसान होने पर उसका सामाजिक, सांवेगिक शारीरिक और
नैतिक विकास प्रभावित होता है
इस प्रकार मानव विकास पर वंशानुक्रम एवं वातावरण
दोनों का प्रभाव पड़ता है । दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । एक पूर्ण
विकसित मानव इन्हीं दोनों की पारस्परिक अन्तक्रिया का परिणाम
है । जैसे एक पौधे में उसके आधारभूत गुण उसके बीज में निहित
रहते है और बीज ही पौधे के विकसित स्वरूप को निर्धारित करता
है, परन्तु यह पौधा तब तक सही रूप में विकसित नहीं हो सकता जब तक वह अनुपजाऊ भूमि पर है या जल व प्रकाश के अभाव
में है । इसी तरह बालक के विकास की दिशा तो उसका
वंशानुक्रम निर्धारित करता है परन्तु उसकी क्षमताओं का पूर्ण
विकास उपयुक्त वातावरण द्धारा ही संभव होता है । अत: विकास
बालक की अन्तर्निहित क्षमताओं और वातावरणीय प्रभाव की
अन्तक्रिया का ही परिणाम है ।’’
प्रकृति एवं संवरण
श्री टी.पीनन
के अनुसार व्यक्ति के लिए जीवन की परिस्थितियां वही महत्व
रखती है जो समुद्री जहाजों के लिए चट्टान, समुद्र की लहरें तथा
तेज हवाएँ। बहुत से मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाविदों का विचार है
कि बालक का वंशानुक्रम या प्रकृति के आधार पर ही यह कहा जा
सकता है कि उसका विकास किस सीमा तक या किस दिशा में
होगा । ये लोग बालक के वंशानुक्रम को अधिक महत्व देते हैं और
वातावरण को महत्व नहीं देना चाहते ।
भारत में जन्म के आधार
पर वर्ण - व्यवस्था का होना वंशानुक्रम के महत्व का ही समर्थन है
।
इसके विपरीत कुछ लोग वातावरण में अधिक विश्वास रखते हुए
कहते है कि उन्हें कैसी भी प्रकृति का बालक दे दिया जाए वे
उचित वातावरण या संवरण द्धारा उसके व्यक्तित्व का विकास
जिस दिशा में चाहे कर सकते हैं । दोनों तरह के विचारों में मानव
विकास में उसकी प्रकृति और उसके संवरण के महत्व में भिन्नता
है ।
मानव के व्यक्तित्व विकास में उसकी वंश - परम्परा का
अधिक महत्व है या उसके वातावरण का इस सम्बन्ध में
मनोवैज्ञानिकों ने अपने अपने तर्क दिये है ।’’
मानव का विकास अनेक कारकों द्धारा प्रभावित होता है जिनमें से देा प्रमुख हैं, प्रथम उसकी प्रकृति (Nature) या जेैविक और दूसरा है व्यक्ति का संवरण या पोशण (Nurture)। व्यक्ति की प्रकृति जन्मजात होती है यह उसे उसके माता पिता एवं पूर्वजों से प्राप्त होती है जिसे उसका वंशक्रम कहते हैं । व्यक्ति के विकास को संवरण (घोषित) करने वाले कारक उसके वातावरण के अन्तर्गत आते हैं । व्यक्ति का विकास उसके गर्भकाल से आरम्भ हो जाता है, जो उसके माता पिता द्धारा प्रदत्त वंषक्रम से निर्धारित होता है और जन्म के पश्चात समाज में मिला वातावरण उसका आगे का विकास निर्धारित करता है । व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास उसके वंषक्रम तथा वातावरण की अन्तक्रिया का परिणाम है ।’’
मानव का विकास अनेक कारकों द्धारा प्रभावित होता है जिनमें से देा प्रमुख हैं, प्रथम उसकी प्रकृति (Nature) या जेैविक और दूसरा है व्यक्ति का संवरण या पोशण (Nurture)। व्यक्ति की प्रकृति जन्मजात होती है यह उसे उसके माता पिता एवं पूर्वजों से प्राप्त होती है जिसे उसका वंशक्रम कहते हैं । व्यक्ति के विकास को संवरण (घोषित) करने वाले कारक उसके वातावरण के अन्तर्गत आते हैं । व्यक्ति का विकास उसके गर्भकाल से आरम्भ हो जाता है, जो उसके माता पिता द्धारा प्रदत्त वंषक्रम से निर्धारित होता है और जन्म के पश्चात समाज में मिला वातावरण उसका आगे का विकास निर्धारित करता है । व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास उसके वंषक्रम तथा वातावरण की अन्तक्रिया का परिणाम है ।’’
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मानव विकास