मनोविज्ञान का इतिहास || History of psychology

मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दोनों प्रकार के व्यवहारों का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन है। ‘मनोविज्ञान’ शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘‘साइके’’ तथा ‘लॉगस’ से हुई है। ग्रीक भाषा में ‘साइके’ शब्द का अर्थ है ‘आत्मा’ तथा ‘लॉगस’ का अर्थ है ‘शास्त्र‘ या ‘अध्ययन’। इस प्रकार पहले समय में मनोविज्ञान को ‘आत्मा के अध्ययन’ से सम्बद्ध विषय माना जाता है।’’

मनोविज्ञान का इतिहास

आधुनिक विद्याशाखा के रूप में मनोविज्ञान, जो पाश्चात्य विकास से एक बड़ी सीमा तक प्रभावित है, का इतिहास बहुत छोटा है। इसका उद्भव मनोवैज्ञानिक सार्थकता के प्रश्नों से संबद्ध प्राचीन दर्शनशास्त्र से हुआ है। मनोविज्ञान के इतिहास को मूलत: दो भागों में बाँटा जा सकता है : 
  1. पूर्व वैज्ञानिक काल (Prescientific Period) 
  2. वैज्ञानिक काल (Scientific Period) 

पूर्व वैज्ञानिक काल 

पूर्व वैज्ञानिक काल की शुरुआत ग्रीक दार्शनिकों (Greek Philosophers) जैसे प्लेटो (Plato), अरस्तु (Aristotle), हिपोक्रेट्स (Hippocrates) आदि के अध्ययनों एवं विचारों से प्रारंभ होकर 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक विशेषकर 1878 तक माना जाता है। इस काल में हिपोक्रेट्स (Hippocrates) ने 400 B.C. में शरीर-गठन प्रकार का सिद्धान्त (Theory of Constitutional Types) दिया था।’’

जिसका प्रभाव आने वाले मनोवैज्ञानिकों पर काफी पड़ा और शेल्डन (Sheldon) ने बाद में चलकर व्यक्तित्व के वर्गीकरण के एक विशेष सिद्धांत जिसे ‘सोमैटोटाईप सिद्धांत’ (Somatotype theory) कहा गया, का निर्माण हिपोक्रेट्स के ही विचारों से प्रभावित होकर किये।’’

ग्रीक दार्शनिक जैसे अगस्टाईन (Augustine) तथा थोमस (Thomas) का विचार था कि मन (mind) तथा शरीर (body) दोनों दो चीजें हैं और इन दोनों में किसी प्रकार का संबंध नहीं होता है। परन्तु देकार्ते (Descartes)] लिबनिज (Leibnitz) तथा स्पिनोजा (Spinoza) आदि ने बतलाया कि सचमुच में मन और शरीर दोनों ही एक-दूसरे से संबंधित हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।’’

ग्रीक दार्शनिक जैसे देकार्ते (Descartes) का मत था कि प्रत्येक व्यक्ति में जन्म से ही कुछ विशेष विचार (ideas) होते हैं। परन्तु अन्य दार्शनिक जैसे लॉक (Locke) का मत था कि व्यक्ति जन्म के समय ‘टेबूला रासा’ (tabula rasaद्ध होता है अर्थात् उसका मस्तिष्क एक कोरे कागज के समान होता है और बाद में उसमें नये-नये अनुभवों से नये-नये विचार उत्पन्न होते हैं। बाद में इस वाद-विवाद द्वारा एक नये संप्रत्यय का जन्म हुआ जिसे मूलप्रवृत्ति (instinct) की संज्ञा दी गयी है और ऐसा समझा जाने लगा कि प्रत्येक व्यवहार की व्याख्या इस मूलप्रवृत्ति के रूप में ही हो सकती है।’’

रूसो (Rousseau) जैसे दार्शनिकों का कहना था कि मनुष्य जन्म से अच्छे स्वभाव का होता है परन्तु समाज के कटु अनुभव उसके स्वभाव को बुरा बना देता है। दूसरी तरफ, स्पेन्सर (Spencer) जैसे दार्शनिक का मत था कि मनुष्य में जन्म से ही स्वार्थता (selfishness) आक्रमणशीलता (aggressiveness) आदि जैसे गुण मौजूद होते हैं जो समाज द्वारा नियंत्रित कर दिये जाते हैं। फलत: व्यक्ति का स्वभाव असामाजिक से सामाजिक हो जाता है।’’

19वीं शताब्दी के प्रारंभ में दो प्रमुख क्षेत्रों में जो अध्ययन किया गया उसका आधुनिक मनोविज्ञान पर सबसे गहरा असर पड़ा। पहला क्षेत्र दर्शनशास्त्र का था, जिसमें ब्रिटिश दार्शनिकों जैसे जेम्स मिल (James Mill) और जॉन स्टुअर्ट मिल (J.S. Mill) का योगदान था जिसमें लोग चेतना (consciousness) तथा उसमें उत्पन्न विचारों (ideas) का अध्ययन करते थे तथा दूसरा क्षेत्र भौतिक (physical) तथा जैविक विज्ञान (biological sciences) का था जिसमें ज्ञानेन्द्रियों (sense organs) के कार्य के अध्ययन पर अधिक बल डाला गया। इस क्षेत्र में वेबर (Weber) एवं फेकनर (Fechner) आदि का योगदान अधिक महत्वपूर्ण था।’’

वैज्ञानिक काल 

मनोविज्ञान का वैज्ञानिक काल (scientific period) 1879 से शुरु हुआ है। इसी वर्ष विलियम वुण्ट (Wilhelm Wunelt) ने जर्मनी के लिपजिंग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की पहली प्रयोगशाला खोली थी। वुण्ट सचेतन अनुभव (conscious experience) के अध्ययन में रुचि ले रहे थे और मन के अवयवों अथवा निर्माण की इकाइयों का विश्लेषण करना चाहते थे। वुण्ट के समय में मनोवैज्ञानिक अंतर्निरीक्षण (introspection) द्वारा मन की संरचना का विश्लेषण कर रहे थे इसलिए उन्हें संरचनावादी कहा गया। अंतर्निरीक्षण एक प्रक्रिया थी जिसमें प्रयोज्यों से मनोवैज्ञानिक प्रयोग में कहा गया था कि वे अपनी मानसिक प्रक्रियाओं अथवा अनुभवों का विस्तार से वर्णन करें।’’

मनोविज्ञान का विकास विभिन्न ‘स्कूल’ (school) में कैसे हुआ और उन स्कूल पर बुन्ट के मनोविज्ञान का क्या प्रभाव पड़ा। मनोविज्ञान के ऐसे पाँच प्रमुख स्कूल हैं जिनका वर्णन निम्नांकित है- 

1. संरचनावाद (Structuralism) - संरचनावाद जिसे अन्य नामों जैसे अन्तर्निरीक्षणवाद (introspectionism) तथा अस्तित्ववाद से भी जाना जाता है।’’

संरचनावाद स्कूल को विल्हेल्म वुण्ट के शिष्य टिचेनर (Titchener) द्वारा अमेरिका के कोर्नेल विश्वविद्यालय (Corucle University) में 1892 में प्रारंभ किया गया। 

संरचनावाद के अनुसार मनोविज्ञान की विषय-वस्तु चेतन अनुभूति (conscious experience) थी। टिचेनर ने चेतना (consciousness) तथा मन (mind) में अन्तर किया। चेतना से उनका तात्पर्य उन सभी अनुभवों (experiences) से था जो व्यक्ति में एक दिये हुए क्षण में उपस्थित होता है, जबकि मन से तात्पर्य उन सभी अनुभवों से होता है जो व्यक्ति में जन्म से ही मौजूद होते हैं। टिचेनर के अनुसार चेतना के तीन तत्व (elements) होते हैं - संवेदन (sensation), भाव या अनुराग (feeling or affection) तथा प्रतिमा या प्रतिबिम्ब (images)। टिचेनर ने अन्तर्निरीक्षण को मनोविज्ञान की प्रमुख विधि माना है।’’

2. प्रकार्यवाद या कार्यवाद (Functionalism)- प्रकार्यवाद की स्थापना अनौपचारिक ढंग से विलियम जेम्स (William James) ने 1890 में अपनी एक पुस्तक लिखकर जिसका शीर्षक ‘प्रिंसिपल्स ऑफ साइकोलॉजी’ (Principles of Psychology) कर दी थी। उनका मानना था कि मनोविज्ञान का संबंध इस बात से है कि चेतना क्यों और कैसे कार्य करते हैं (Why and how the consciousness functions?) न कि सिर्फ इस बात से है कि चेतना के कौन-कौन से तत्व हैं?अत: जेम्स के अनुसार मनोविज्ञान की विषय-वस्तु तो चेतना अवश्य थी, परन्तु उन्होंने इसमें चेतना की कार्यात्मक उपयोगिता (functional utility) पर अधिक बल डाला था।’’

प्रकार्यवाद की औपचारिक स्थापना के संस्थापक के रूप में डिवी (Dewey), एंजिल (Angell) तथा कार्र (Carr) को जाना जाता है। प्रकार्यवाद के अनुसार मनोविज्ञान का संबंध मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes) या कार्य (functions) के अध्ययन से होता है न कि चेतना के तत्वों (elements) के अध्ययन से होता है।’’

3. व्यवहारवाद (Behaviourism)- व्यवहारवाद की संस्थापना वाटसन (Watson) द्वारा 1913 में की गई। उनका मानना था कि मनोविज्ञान एक वस्तुनिष्ठ (objective) तथा प्रयोगात्मक (experimental) मनोविज्ञान है।’’
अत: इसकी विषय-वस्तु सिर्फ व्यवहार (behaviour) हो सकता है चेतना नहीं क्योंकि सिर्फ व्यवहार का ही अध्ययन वस्तुनिष्ठ एवं प्रयोगात्मक ढंग से किया जा सकता है। वाटसन के व्यवहारवाद ने उद्दीपक-अनुक्रिया (stimulus-response) को जन्म दिया। वाटसन ने अन्तर्निरीक्षण को मनोविज्ञान की विधि के रूप में अस्वीकृत किया और उन्होंने मनोविज्ञान की चार विधियाँ बताई, जैसे : प्रेक्षण (observation) अनुबन्धन (conditioning), परीक्षण (testing) और शाब्दिक रिपोर्ट (verbal report)।’’

4. गेस्टाल्ट मनोविज्ञान (Gestalt Psychology)- गेस्टाल्ट स्कूल की स्थापना मैक्स वरदाईमर (Max Wertheimer) ने 1912 में किया। कोहलर (Kohler) तथा (Koffka) इस स्कूल के सह-संस्थापक (cofounders) थे। 'Gestalt" एक जर्मन शब्द है जिसका हिन्दी में रुपान्तर ‘आकृति’ आकार (shape) तथा ‘समाकृति’ (configuration) किया गया है। गेस्टाल्ट स्कूल का मानना था कि मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं के संगठन (organization) का विज्ञान है।’’

5. मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) मनोविश्लेषण को एक स्कूल के रूप में सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) ने स्थापित किया। फ्रायड के अचेतन (unconscious) का सिद्धान्त काफी महत्वपूर्ण माना गया है और उन्होंने सभी तरह के असामान्य व्यवहारों (abnormal behaviour) का कारण इसी अचेतन में होते बतलाया। अचेतन के बारे में अध्ययन करने की अनेक विधियाँ बतलाई जिनमें मुक्त साहचर्य विधि (free association method), सम्मोहन तथा स्वप्न की व्याख्या (dream interpretation) सम्मिलित हैं।’’

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