न्यास परिषद के प्रमुख उद्देश्य और कार्य

एक अन्तर्राष्ट्रीय न्यास व्यवस्था की स्थापना के लिए चार्टर ने न्यास परिषद की स्थापना संयुक्त राष्ट्र के एक प्रधान अंग के रूप में की और इसे न्यास व्यवस्था के अंतर्गत न्यास प्रदेशों के प्रशासन के निरीक्षण का कार्यभार सौंपा गया। न्यास प्रदेशों के निवासियों की उन्नति को बढ़ावा देना और उनका स्वशासन एवं आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रगतिशील विकास करना इस व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य हैं।

न्यास परिषद न्यास प्रदेशों में रहने वाले लोगों के हितों को संरक्षित रखने और उन्हें स्वशासन की दिशा में अग्रसर करने का प्रयास करती है। यह प्रशासनिक प्राधिकरणों से रिपोर्ट प्राप्त करती है, आवेदनों का निरीक्षण करती है और निरीक्षण समिति भेजती है। इसके सदस्यों का निर्वाचन महासभा द्वारा होता है।

न्यास परिषद महासभा के प्राधिकरण में कार्य करती है और ‘‘सामरिक क्षेत्र’’ के मामलों में यह सुरक्षा परिषद के अधीन कार्य करती है।

चार्टर के अंतर्गत न्यास प्रदेशों का प्रशासन संभालने वाले और न संभालने वाले सदस्यों के बीच परिषद के कुल सदस्यों का विभाजन समान रूप से किया जाएगा परन्तु इस समता को अभी तक स्थापित नहीं किया गया है।

न्यास परिषद के प्रमुख कार्य 

न्यास परिषद को न्यास प्रदेश के लोगों की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षिक उन्नति से जुड़े प्रशासनिक प्राधिकरण से प्राप्त होने वाली रिपोर्टों की जाँच का कार्य सौंपा गया है। इसके साथ ही याचिकाओं का निरीक्षण करने तथा न्यास प्रदेश से संबंधित आवधिक और अन्य विशिष्ट मामलों को हाथ में लेने के लिए प्रशासनिक प्राधिकरण को परामर्श देने का कार्य भी इसके ऊपर है।

हालांकि अब न्यास परिषद का औचित्य समाप्त हो गया है। न्यास परिषद् की सफलतापूर्वक समाप्ति संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों में से एक है। विउपनिवेशीकरण की प्रक्रिया की सफल समाप्ति का श्रेय परिषद को दिया जाना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप एशिया एवं अफ्रीका के अधिकांश उपनिवेशों को स्वतंत्रता मिल सकी।

Post a Comment

Previous Post Next Post