पंडित बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय, रचित नाटक, साहित्यिक विशेषताएँ

पंडित बाल कृष्ण भट्ट (सन् 1844 - 1914 ई0) भारतेंदु मंडल के साहित्यकारों में प्रमुख रहे हैं। संवत् 1933 वि. में पंडित बाल कृष्ण भट्ट ने गद्य साहित्य का मार्ग प्रशस्त करने हेतु हिन्दी प्रदीप का संपादन प्रारंभ किया।

सामाजिक, साहित्यिक, राजनीतिक एवं नैतिक आदि विभिन्न विषयों पर लिखे गए लघु निबंधों - जिनकी संख्या लगभग 50 से भी अधिक रही होगी - बत्तीस वर्षों तक प्रकाशित करते रहे। भट्ट संस्कृत के पंडित थे। अंग्रेजी साहित्य का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। तत्कालीन वैज्ञानिक प्रगति से वे पूर्णरूपेण अवगत थे। वे अपने युग के सर्वाधिक प्रगतिशील व्यक्ति थे। भट्ट अपने विचारात्मक निबंधों के लिए प्रसिद्ध हैं।

पंडित बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित नाटक

उन्होंने छोटे-छोटे अनेक निबंध लिखे। वे कहा करते थे कि न जाने कैसे लोग बडे़-बड़े लेख लिख डालते हैं।

निबंध- (i) वैज्ञानिक - वायु, प्रकाश, धूम केतु, पेड़, सीसा, वनस्पति, विज्ञान, भूगर्भ निरूपण, पदार्थवाद आदि। (ii) शारीरिक अंग - आंख, कान, नाक, आदि पर निबंध लिखे। साहित्य जन समूह के हृदय का विकास है, प्रमुख निबंध हैं। प्रेम और भक्ति, तर्क और विश्वास, ज्ञान और भक्ति, विश्वास, प्रीति, अभिलाषा, आशा, स्पर्धा, धैर्य, माधुर्य, आत्म त्याग, सुख क्या है? आदि प्रमुख वैचारिक निबंध हैं। सच्ची कविता, भाषा कैसी होनी चाहिए, उपमा, उपयुक्त विशेषण और विशेष्य, खड़ी और पड़ी बोली का विचार, हिंदी की पुकार, आदि साहित्यिक चिंतन प्रधान निबंध हैं।

उपन्यास- नूतन ब्रह्मचारी तथा सौ अजान और एक सुजान आदि।

संपादन एवं प्रकाशन - हिन्दी प्रदीप।

पंडित बालकृष्ण भट्ट की साहित्यिक विशेषताएँ

उनके विचारात्मक निबंधों में उनकी खीझ, आक्रोश, भावावेश तथा झुंझलाहट स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। साथ ही उनका खरापन भी उभरकर आ जाता है। देशभक्ति पर सबसे अधिक बल दिया है। अंग्रेजों द्वारा लगाए जाने वाले टैक्स, पुलिस अत्याचार, 32 हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल) कृषि की दुर्गति, हिंदी की उपेक्षा, हिंदुओं और मुसलमानों में फूट डालने वाली नीति आदि का भट्ट ने निर्भय होकर विरोध किया है। राजनीतिक विचारधारा संबंधी उनके प्रेरणा-स्रोत बाल गंगाधर तिलक थे। भट्ट तिलक के समर्थक थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीतियों के विरोधी थे। वे निभर््रांत रूप से यह स्वीकारते थे कि कांग्रेस अंग्रेजी सरकार को दृढ़ और पुष्ट करने हेतु स्थापित की गई है। सामाजिक चेतना की दृष्टि से भट्ट ने अपने युग का अतिक्रमण किया था। 

वे सभी प्रकार के बाह्याडंबरों का विरोध करते थे। विधवा-विवाह का समर्थन किया। अंध-विश्वास, बाल-विवाह, छुआछूत, पर्दा प्रथा, अनमेल विवाह, जाति पांति के भेद भाव आदि का प्रबल विरोध किया। उनकी यह प्रबल धारणा एवं मान्यता थी कि सुखमय दाम्पत्य जीवन हेतु नारी का शिक्षित होना, विवेकी होना तथा आधुनिक होना अनिवार्यता है।

भट्ट की भाषा एवं साहित्यिक निबंधों का विशेष महत्व है। भट्ट द्वारा लिखित निबंध, साहित्य जन समूह के हृदय का विकास है आज भी साहित्य चिंतन के क्षेत्र में भट्ट की क्रांति दर्शिता का परिचायक बना हुआ है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भट्ट ने शारीरिक अंगों, प्रकृति, विज्ञान, साहित्य, भाषा और साहित्य चिंतन, एवं मनोविज्ञान आदि अनेक विषयों पर निबंध लिखकर अपने को बहुत आयामी बना दिया है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल से पूर्व ही मनोवैज्ञानिक विषयों पर गंभीर चिंतन का कार्य प्रारंभ हो चुका था जिसका श्रेय पं. बाल कृष्ण भट्ट को है। इनका उद्देश्य मनोवृत्तियों को समक्ष प्रस्तुत करके उनके नैतिक प्रयोजन को उकेरना था। समाज कल्याण की दृष्टि से उसका आकलन किया है। वैज्ञानिक विषयों का प्रतिपादन अति सहजता से किया है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी से पूर्व ही भट्ट ने ज्ञान कांड के प्रथम अध्याय का प्रारंभ कर दिया था।

शैली की दृष्टि से भट्ट के निबंधों का अत्यधिक महत्व है। निबंधकार का व्यक्तित्व निबंधों में पूर्ण रूपेण व्यंजित हुआ है। मानसिक दृढ़ता, देश-प्रेम, आत्म विश्वास, विवेक, खरापन, त्याग, निडरता, कष्ट सहिष्णुता, उदारता एवं निष्ठा से समृद्ध उनके व्यक्तित्व की आभा से उनके निबंध दीप्त हैं। निबंधों में प्रचलित वर्गीकरण की दृष्टि से उनके अधिकांश निबंध विचारात्मक कोटि के हैं।

किन्तु उन्होंने वर्णात्मक, वर्णनात्मक, भावात्मक, कथात्मक एवं हास्य व्यंग्य प्रधान विविध प्रकार के निबंधों की रचना की है।

भट्ट के सभी निबंध लोक हितकारी होने के परिणामस्वरूप कहीं न कहीं भावना से तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं।

भाषा जीवंत भाव दीप्त एवं व्यावहारिक है। यत्र-तत्र समास गर्भित पदों का प्रयोग मिल जाता है। भाषा परिष्कृत एवं परिमार्जित नहीं है। भारतेंदु मंडल के अन्य रचनाकारों की भांति इसका-इस्के, उसके-उस्के, ले-लै, दे-दै, करना-किया आदि बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है। अन्यत्र आकर-आय, जाकर-जाय आदि के प्रयोग भी हुए हैं। इस दृष्टि से इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि भट्ट की भाषा भारतेन्दु युगीन भाषा का पूरी तरह अतिक्रमण नहीं कर सकी है। अपनी मौज में आकर भट्ट ने अरबी-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। स्थान-स्थान पर कोष्ठकों में एजूकेशन, सोसायटी, नेशनल विगर एण्ड स्टे्रन्थ, स्टैंडर्ड, करेक्टर आदि आंग्ल भाषा के शब्दों का रोमन लिपि में प्रयोग किया गया है। यह भट्ट की शैली एवं भाषा का निरालापन है। पदविन्यास अत्यधिक रोचक एवं अनूठापन लिए हुए है। हास्य विनोद के साथ साथ कहीं कहीं उनका चिड़-चिड़ा स्वभाव भी झलकता है।

मुहावरों की उनकी सूझ बहुत अच्छी थी। शारीरिक अंगों से संबंधित मुहावरों की झड़ी लगा दी है। आंख को लेकर आंख आना, -जाना, -उठना -बैठना, -लड़ना, -लगना, -मारना आदि।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भट्ट के विषय में लिखा है- “हिन्दी प्रदीप” द्वारा भट्ट जी संस्कृत साहित्य और संस्कृत के कवियों का परिचय अपने पाठकों को समय-समय पर कराते रहे।

पंडित प्रताप नारायण मिश्र और पंडित बालकृष्ण भट्ट ने हिंदी गद्य साहित्य में वही काम किया है जो अंग्रेजी गद्य साहित्य में एडीसन और स्टील ने किया था।”

आत्म निर्भरता नामक निबंध में भट्ट ने भारतवर्ष की जनसंख्या पर करारा व्यग्य किया है और कूकर-सूकर की भांति पराश्रित दास दस संतानों से एक संतान को श्रेयस्कर माना है।

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