प्रताप नारायण मिश्र की प्रमुख रचनाएं और साहित्यिक विशेषताएं

प्रतापनारायण मिश्र का जन्म २४ सितम्बर १९५६ को इन्नाव, उत्तर प्रदेश में हुआ था । इनके पिता ज्योतिषी थे, इनके पिता भी इन्हें ज्योतिष बनाना चाहते थे, किन्तु इनका मन पढ़ाई में अधिक लग रहा था । इन्होंने अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, संस्कृत, हिन्दी और बंगला भाषा पर प्रभुत्व प्राप्त कर लिया था ।

प्रतापनारायण मिश्र प्रतिभा सम्पन्न निबंधकार थे। इनमें रचना क्षमता की अद्वितीयता विद्यमान थी।

किसी भी सामान्य से सामान्य विषय पर निबंध लिख देना इनके बाएं हाथ का काम था। लेखन कला में भारतेंदु हरिश्चन्द्र को अपना आदर्श स्वीकारा। फिर भी मिश्र की शैली में भारतेंदु की शैली से अत्यधिक भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। ये विनोदी स्वभाव के थे। वाग्वैग्ध्य इनकी वाणी की प्रमुख विशेषता थी।

प्रताप नारायण मिश्र की प्रमुख रचनाएं 

अनेक निबंध लिखे जिनमें प्रमुख निबंध - नाखून क्यों बढ़ते हैं? मूंछ, भौं, दांत, पेट आदि शारीरिक अंगों पर लिखे गए निबंध। ट, त जैसे वर्णमाला के अक्षरों पर लिखे गए निबंध। बेगार, रिश्वत, देशोन्नति, बाल-शिक्षा, धर्म और मत, उन्नति भारतेन्दु युगीन प्रतिनिधि रचनाकार 31 की धूम, गोरक्षा, बाल विवाह, विलायत यात्रा, अपव्यय आदि विषयों से संबंधित विचार प्रधान निबंध। न्याय, ममता, सत्य, स्वतन्त्राता आदि वैचारिक निबंध। घूरे क लत्ता बिनै, कनातन का डौल बांधै, समझदार की मौत है, बात, मनोयोग, वृद्ध, आदि कहावतों लोकोक्तियों, सूक्तियों को शीर्षक बनाकर लिखे गए निबंध।

नाटक- कलि कौतुक रूपक, कलि प्रभाव, हठी हमीर, गौ संकट, जुवारी खुवारी।

प्रताप नारायण मिश्र की साहित्यिक विशेषताएं

मिश्र की प्रमुख विशेषताएं किसी भी सामान्य से सामान्य विषय को शीर्षक बना कर निबंध लिख देना थी। विचार प्रधान विषयों का प्रतिपादन अपेक्षाकृत संयमित ढंग से किया है अन्यथा उनका विनोदी स्वभाव ही दृष्टिगोचर होता है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता पाठकों के साथ तादात्म्य स्थापित हो जाना है। उस स्तर पर वे अद्वितीय हैं। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण सदैव सुधारात्मक रहा है। रूढ़ियों का उन्होंने कहीं समर्थन नहीं किया है अपितु उनका विरोध किया है। निबंधों में इनका सच्चा देशभक्त, समाज सुधारक, एवं हिंदी प्रेमी रूप ही परिलक्षित होता है। उन्होंने भारतेंदु के आदर्श को अपना आदर्श बनाया तथा आजीवन इन्हीं को प्रशस्त करने में लगे रहे।

मिश्र के निबंधों में उनकी स्वच्छंदता, आत्म व्यंजकता, हास्यप्रियता, सरलता, वाग्वैदम्य, लोकोन्मुखता, व्यंग्य-क्षमता, चपलता तथा सहजता सर्वत्रा दृष्टिगोचर होती है। यद्यपि उनकी प्रवृत्ति हास्य विनोद प्रधान थी किंतु जब गंभीर विषयों पर वे निबंध लिखते थे तब संयत एवं साधु भाषा का व्यवहार करते थे।

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