प्रत्यक्षीकरण (perception) क्या है? प्रत्यक्षण को प्रभावित करने वाले कारक क्या है ?


प्रत्यक्षीकरण (perception) की प्रक्रिया संवेदना से प्रारंभ होती है। प्रत्यक्षीकरण हमें किसी वस्तु, घटना या व्यक्ति का होता है। जिन व्यक्तियों, घटनाओं या वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण होता है, उसे उद्दीपक कहा जाता है। जब कोई उद्दीपक व्यक्ति के सामने उपस्थित होता है तो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा उसकी संवेदना प्राप्त होती है। इस संवेदना की व्याख्या कर उस उद्दीपक को समझा जाता है कि वह उद्दीपक क्या है। इसे प्रत्यक्षीकरण कहा जाता है।’’

प्रत्यक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की व्याख्या करते है, उन्हें संगठित करते है।’’

संवेदना और प्रत्यक्षीकरण में अंतर है। संवेदना प्रत्यक्षीकरण के ठीक पहले की प्रक्रिया है। संवेदना को समझ कर, व्याख्या कर व्यक्ति के द्वारा अर्थ प्रदान कर दिया जाए तो यह प्रत्यक्षीकरण बन जाता है। उदाहरण के लिए व्यक्ति किसी गंध को सूंघ सकता है तो यह संवेदना होगी। लेकिन यदि व्यक्ति गंध को पहचान कर यह  बता सके कि यह किसकी गंध है तो यह प्रत्यक्षीकरण का उदाहरण है।’’

प्रत्यक्षणात्मक संगठन के सिद्धांत

हम किसी वस्तु के विभिन्न भागों को अलग अलग नहीं देख कर उसको संगठित समग्र अथवा पूर्ण वस्तु के रूप में देखते हैं। उदाहरण के लिए, हम साइकिल को एक पूर्ण वस्तु के रूप में देखते हैं, न कि विभिन्न भागों (जैसे- सीट, पहिया तथा हैंडल के एक संग्रह के रूप में। ऐसे कई कारक है जो किसी वस्तु के विभिन्न भागों को एक अर्थयुक्त समग्र में संगठित करने में सहायता करते है। इन कारकों का अध्ययन करते हुए गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिक (gestalt psychologists) द्वारा प्रत्यक्षणात्मक संगठन के नियम बनाए गए। 

गेस्टाल्ट मनोविज्ञान का एक सम्प्रदाय है जिसमें कोहलर (Kohler), कोफेका (Koffka) तथा वर्दीमर (Wertheimer) प्रमुख हैं। गेस्टाल्ट एक नियमित आकृति अथवा रूप को कहते है। 

अब हम प्रत्यक्षणात्मक संगठन के सिद्धान्तों (principles of perceptual organisation) में से कुछ नियमों को समझते है।’’

1. निकटता का सिद्धांत (principle of proximity) जो वस्तुएँ किसी स्थान अथवा समय में एक दूसरे के निकट होती हैं वे एक दूसरे से संबंधित अथवा एक समूह के रूप में दिखती हैं। उदाहरण के लिए निम्न चित्र में बिंदुओं के एक वर्ग प्रतिरूप जैसा नहीं दिखता है, बल्कि बिंदुओं के स्तंभ की एक श्रृंखला के रूप में दिखाई देता है।’’

2. समानता का सिद्धांत (principle of similarity) जिन वस्तुओं में समानता होती है तथा विशेषताओं में वे एक दूसरे के समान होती हैं वे एक समूह के रूप में प्रत्यक्षित होतीहैं। निम्न चित्र में छोटे वृत्त एवं वर्ग निकट होते हुए भी अलग अलग पंक्ति में दिखाई दे रहे। जबकि वृत्तों में समानता होने से वृत्तों की पंक्ति एवं वर्गों में समानता के कारण वर्गों की एक पंक्ति एकान्तरित रूप में दिखाई देती है।’’

3. निरंतरता का सिद्धांत (principle of continuity) यह सिद्धांत बताता है कि जब वस्तुएँ एक निरन्तरता के रूप में प्रतीत होती हैं तो हम उनका प्रत्यक्षीकरण एक दूसरे से संबंधित के रूप में करते हैं। उदाहरण के लिए, हमें अ-ब तथा स-द रेखाएँ एक दूसरे को काटती हुई दिखती हैं, जबकि यहां अलग अलग चार रेखाएँ केंद्र पर मिल रही हैं।’’

अविच्छिन्नता का सिद्धांत इस सिद्धांत के अनुसार जब एक क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से घिरा होता है तो उसे हम आकृति के रूप में देखते हैं। उदाहरण के लिए चित्र की प्रतिमा सफेद पृष्ठभूमि में चार चित्रों के रूप में दिखाई देती है न कि शब्द स्प्थ्म् के रूप में दिखती है।’’

4. पूर्ति का सिद्धांत (principle of closure) उद्दीपन में जो लुप्त अंश होता है उसे हम भर लेते हैं तथा वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण उनके अलग-अलग भागों के रूप में नहीं बल्कि समग्र आकृति के रूप में करते हैं। उदाहरण के लिए चित्र में रिक्त स्थान को पूर्ण करने की प्रवृत्ति के कारण इसे क्रमश: वर्ग एवं वृत्त के रूप में देखते हैं।’’

प्रत्यक्षण को प्रभावित करने वाले कारक

प्रत्यक्षण ज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रिया है, जिस पर अनेक कारकों या निर्धारकों का प्रभाव पड़ता है । जिन्हें चार भागों में विभाजित किया है - 
  1. व्यक्तिगत कारक 
  2. सामाजिक कारक 
  3. सांस्कृतिक कारक 
  4. राजनीतिक कारक 

1. प्रत्यक्षण को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत कारक

1. व्यक्ति की आवश्यकता- व्यक्ति की शारीरिक आवश्यकता भूख, प्यास, यौन, नींद हैं । यदि व्यक्ति को भूख की आवश्यकता है तो वह अनेक उद्दीपनों मे से भोज्य पदार्थ का चयन करके उसी का प्रत्यक्षण करता है । व्यक्ति के प्रत्यक्षण पर शारीरिक आवश्यकताओं के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएं जैसे प्रतिष्ठा प्रेरक, उपलब्धि प्रेरक, आकांक्षा स्तर प्रेरक आदि प्रभावित करते हैं 

2. व्यक्तिगत मूल्य- व्यक्ति के प्रत्यक्षीकरण पर उसके व्यक्तिगत मूल्यों का प्रभाव पड़ता है । एक ही उद्दीपन को लोग अपने भिन्न-भिन्न व्यक्तिगत मूल्यों के कारण भिन्न-भिन्न रूप में प्रत्यक्षीकरण करते हैं । ब्रूनर तथा गुडमैन ने अपने प्रयोग धनी तथा गरीब परिवार के बच्चों पर किया तथा ज्ञान हुआ कि गरीब बच्चों की नजर में सिक्के का मूल्य अधिक था , अपेक्षाकृत अमीर बच्चों की तुलना में । इस प्रकार उनका प्रत्यक्षण उनके व्यक्तिगत मूल्यों के अनुकूल हुआ ।’’

3. व्यक्तिगत मनोवृति - व्यक्ति किसी वस्तु को अपनी मनोवृति के अनुकूल देखता है । अपने दुश्मन का प्रत्यक्षीकरण हमें जिस रूप में होता है , उस रूप में मित्र का प्रत्यक्षण नहीं होता ।’’

4. व्यक्तिगत पूर्वधारणा- व्यक्ति पर पूर्वधारणा का प्रभाव भी पड़ता है । जैसे - प्रजातीय , जाति पूर्वधारणा , धर्म-पूर्वधारणा इत्यादि ।’’

5. मनोदशा (Moods) – किसी उद्धीपन के प्रत्यक्षीकरण पर हमारी मनोदशा का प्रभाव पड़ता है । जब व्यक्ति सुखद मनोदशा में होता है तो आस पास की वस्तुएं भी उसे आनंददायक प्रतीत होती है । 

2. प्रत्यक्षण को प्रभावित करने वाले सामाजिक कारक

व्यक्ति के प्रत्यक्षण को प्रभावित करने में सामाजिक कारकों की भूमिका महत्वपूर्ण है । वे कारक हैं - 

1. सामाजिक मानक (Social Norms)- प्रत्येक समाज में कुछ निश्चित नियम होते हैं । जिसका पालन प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य होता है । इन मानकों का गहरा प्रभाव व्यक्ति के प्रत्यक्षण पर होता है ।’’

2. सामाजिक प्रथाएं- प्रत्येक समाज में कई तरह की प्रथाएं प्रचलित होती है । इन प्रथाओं में भिन्नता होने के कारण भिन्न भिन्न समाज के लोगों का संज्ञान या प्रत्यक्षीकरण अलग अलग होता है ।’’

3. सामाजिक शक्ति- प्रत्येक समाज के कुछ निश्चित शक्तियां होती हैं, जिसका प्रत्यक्षण पर प्रभाव पड़ता है ।’’

3. प्रत्यक्षण को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारक

सांस्कृतिक कारकों का प्रभाव भी व्यक्ति के प्रत्यक्षीकरण पर पड़ता है । एक अध्ययन में अमेरिकी संस्कृति तथा गैर यूरोपीय संस्कृति के व्यक्तियों को कुछ कुछ आकृतियां दिखाई गई । जिनसे म्यूलर टायर भ्रम उत्पन्न हो सकते थे । परिणामों में पाया गया कि अमेरिकी प्रयोज्यों ने पंख रेखा को तीर रेखा से बड़ा जबकि गैर यूरोपीय संस्कृतियों के बच्चों ने इस तरह का भ्रम स्पष्ट रूप से नहीं देखा गया ।’’

4. प्रत्यक्षण को प्रभावित करने वाले राजनीतिक कारक 

व्यक्ति के प्रत्यक्षीकरण के निर्धारण में राजनीतिक कारणों का भी प्रभाव पड़ता है । प्रत्येक राजनीतिक दल के विशेष मानक होते हैं । उसी के अनुरूप प्रत्यक्षण करता है । इसी राजनीतिक सम्बद्धता के कारण साम्यवादी दल तथा पूंजीपति दल के सदस्यों के प्रत्यक्षीकरण में तात्विक अन्तर देखा जाता है ।’’

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