राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्व

राजनीतिक सिद्धांत

इसे सही ढंग से समझने के लिए ‘राजनीतिक’ तथा ‘सिद्धांत’ इन दोनों शब्दों को अलग-अलग समझना आवश्यक है। यहाँ शब्द ‘सिद्धांत’ तथा ‘राजनीतिक’ एक दूसरे की विशेषता बताते हैं कि राजनीति सिद्धांत या राजनीति का सिद्धांत किसी विशिष्ट विषय की तरफ इशारा करते हैं। आइये इन्हें थोड़ा बारीकी से समझें। 
पहला, सिद्धांत का अर्थ क्या है? शब्द ‘थ्यूरी’ (Theory) एक ग्रीक शब्द है जहाँ यह दो अन्य शब्दों में सम्बन्धित था जो विचार करने योग्य है-
  1. थ्यूरिया (Theoria) जिसका अर्थ है जो हमारे आसपास घटित हो रहा है उसे समझने की क्रिया अथवा प्रक्रिया इसे ‘सैद्धान्तीकरण’ (Theorizing) कहा जाता है तथा 
  2. थ्योरमा (Theorema) जिसका अर्थ है वह निष्कर्ष जो इस सैद्धान्तीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप निकलते हैं, इन्हें थ्योरम (Theorem) कहा जाता है। 
इन दोनों शब्दावलियों की पहली विशिष्टता यह है कि ये सैद्धान्तीकरण प्रक्रिया (activity of theorizing) तथा इस प्रक्रिया से निकलने वाले निष्कर्षों (outcome of the activity) में अन्तर करती हैं। अर्थात् शब्द सैद्धान्तीकरण का सम्बन्ध किसी घटना को समझने का प्रयत्न है। 

इसका अभिप्राय किसी परिणाम अथवा निष्कर्ष को सिद्ध करना अथवा उसे वैध ठहराना नहीं है। यह केवल खोज, अन्वेषण अथवा जाँच की प्रक्रिया है। सैद्धान्तीकरण उन घटनाओं के इर्द-गिर्द आरम्भ होता है जो हमारे आसपास घटित हो रही होती है और जिनके बारे में हम थोड़ा-बहुत जानते हैं और सैद्धान्तीकरण की प्रक्रिया इसलिए आरम्भ होती है क्योंकि सिद्धांतकार इन घटनाओं के प्रति अधूरे ज्ञान से असंतुष्ट होता है और वह इसे विस्तारपूर्वक एवं तार्किक स्तर पर समझना चाहता है।

सैद्धान्तीकरण शोध की प्रक्रिया के माध्यम से समझने की प्रक्रिया हैं। इस सैद्धान्तीकरण के परिणामस्वरूप प्राप्त किए गए निष्कर्ष अर्थात् ‘थ्योरम’ किसी घटना की बेहतर समझ होगी जिसके बारे में हम पहले केवल अस्पष्ट रूप से जानते थे। 

अत: सैद्धान्तीकरण का अभिप्राय किसी विषय अथवा घटना को समझने का निरन्तर, अविरल, अबाध प्रयत्न होता है। यह ऐसे विषय अथवा घटना से आरम्भ होता है जिसके बारे में हम थोड़ा बहुत जानते हैं परन्तु जिसे विस्तारपूर्वक और स्पष्ट रूप से जानने की आवश्यकता है अर्थात् यह किसी घटना अथवा विषय के बारे में और अधिक जानने तथा ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया है और इसका मूल मन्त्र है-’समाप्त’ शब्द का नाम मत लो (Never say the end) अर्थात् समझने की यह प्रक्रिया उतनी देर तक चलती रहेगी जब तक कि घटनाएँ अथवा विषय पूरी तरह पारदश्र्ाी नहीं हो जाते जब तक रहस्यों की आखिरी गुत्थी नहीं सुलझ जाती या जब तक सिद्धांतकार के पास पूछने लायक प्रश्न समाप्त नहीं हो जाते एक सिद्धांतकार का कार्य किसी अनुभव अथवा घटना के तथ्य को कुछ एक अवधारणाओं या यदि हो सके तो अवधारणाओं की व्यवस्था के आधार पर समझना होता है अर्थात् सम्बद्ध अवधारणाओं के समूह के आधार पर जैसे विचारमन्थन, उद्देश्य, मन्शा, निष्कर्ष, औचित्य, स्वतन्त्रता, समानता, सन्तुष्टि आदि।

दूसरा, यदि सैद्धान्तीकरण का अर्थ किसी विषय को समझने की इच्छा है तो ‘राजनीतिक’ वस्तुत: वह शर्त, सीमा अथवा केन्द्रबिन्दु है जिसका सैद्धान्तीकरण किया जाना है। राजनीतिक सिद्धांत में-’राजनीतिक’ का अभिप्राय राजनीतिक से है। थ्योरी (सिद्धांत) की तरह ‘पॉलिटिक्स’ (राजनीतिक) शब्द भी एक ग्रीक शब्द है जो शब्द ‘पोलिस’ (Polis) से निकला है जिसे ‘नगर-राज्य’ (city-state) कहा जाता है अर्थात किसी भी समुदाय के अच्छे जीवन से सम्बन्धित सभी पक्षों के लिए निर्णय लेने की सामूहिक शक्ति। अरस्तु जैसे सिद्धांतकारों ने राजनीतिक प्रक्रियाओं तथा उनके कार्यान्वयन को समझने के सन्दर्भ में राजनीतिक को परिभाषित करने की कोशिश की। 

अरस्तु का यह कथन-कि ‘मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है’- समाज की अन्तर्निहित मानवीय आवश्यकता की तरफ इशारा करता है तथा इस तथ्य की तरफ भी कि मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा आत्म-सिद्धि केवल राजनीतिक समुदाय के माध्यम से ही प्राप्त कर सकता है। अरस्तु के लिए ‘राजनीतिक’ महत्त्वपूर्ण इसलिए था क्योंकि यह एक ऐसे साझे राजनीतिक स्थान का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें सभी नागरिक भाग ले सकते हैं।

अपने आधुनिक रूप में ‘राजनीतिक’ शब्द राज्य तथा इससे सम्बन्धित संस्थाओं जैसे सरकार, विधानमंडल अथवा सार्वजनिक नीति का प्रतिनिधित्व करता है। विभिन्न विचारधाराओं के बावजूद, ‘राजनीतिक’ के सदर्भ में अभी हाल तक आधुनिक ‘नगर राज्य’ अथवा राज्य अधिकतर राजनीतिक सिद्धांतकारों का साझा विषय रहा है। जैसे कि विल किमिलिका लिखते हैं, ‘अधिकतर पश्चिमी राजनीतिक सिद्धांतकार नगर-राज्य के एक ऐसे आदर्शवादी मॉडल पर कार्य करते आये हैं जिसमें सभी नागरिक एक सामान्य वंश, भाषा तथा संस्कृति साझी करते हैं।’ यहाँ राजनीतिक सिद्धांत के ‘राजनीतिक’ पक्ष का सम्बन्ध रहा है-राज्य तथा सरकारों के स्वरूप, प्रकृति तथा संगठन एवं इन सभी का व्यक्तिगत नागरिकों के साथ सम्बन्ध का अध्ययन।

राजनीतिक सिद्धांत की उदारवादी परम्परा का यह प्रमुख फोकस रहा है। इसके विपरीत माक्र्सवादी विचारधारा प्रबल रूप से उदारवाद के इस ‘राजनीतिक’ तथा ‘गैर-राजनीतिक’ अन्तर को पूरी तरह रद्द कर देता है और यह तर्क देता है कि राजनीतिक शक्ति और कुछ नहीं, केवल आर्थिक शक्ति की दास होती है। परन्तु समस्त रूप से, अवधारणा के स्तर पर असमंजसता के बावजूद, राजनीति के सैद्धान्तीकरण का साझा आधार अभी भी राज्य ही है।

तथापि, पिछले तीन दशकों में, राजनीतिक की स्थापित अवधारणाओं के प्रति असन्तोष बढ़ता जा रहा है, मुख्यत: इन आधारों पर कि ये समकालीन जीवन के अनेक तथ्यों के साथ मेल नहीं खाती या ये ‘राजनीतिक’ की समकालीन धारणा की उचित अभिव्यक्त नहीं कर पा रही। अत: ‘राजनीतिक’ की राज्य तथा सरकार की अवधारणाओं के अतिरिक्त ‘राजनीतिक’ के वर्तमान अन्य दावेदार-समानता, स्वतंत्रता, तार्किकता, निष्पक्षता तथा न्याय की साझी धारणाओं पर आधारित राजनीतिक का विचार तथा (ii) शक्ति, वर्ग, लिंग, औपनिवेशिक अथवा विशिष्ट वर्गीय राजनीतिक के साथ सम्बन्ध। साथ ही, ‘राजनीतिक’ की वर्तमान धारणा में कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र भी निहित है जैसे उदारवाद, माक्र्सवाद, संकीर्णवाद, समुदायवाद, अस्मिता, नारीवाद, नागरिकता, प्रजातन्त्र, शक्ति, सत्ता, वैधता, राष्ट्रवाद वैश्वीकरण तथा पर्यावरण। 

राजनीतिक सिद्धांत परिभाषा 

‘राजनीतिक’ तथा ‘सिद्धांत’ शब्दों के स्पष्टीकरण के बाद अब हम राजनीतिक सिद्धांत को कुछ परिभाषाओं के माध्यम से समझने का प्रयत्न करते हैं। सर्वसाधारण स्तर पर, राजनीतिक सिद्धांत राज्य से सम्बन्धित ज्ञान है जिसमें ‘राजनीतिक’ का अर्थ है ‘सार्वजनिक हित के विषय’ तथा सिद्धांत का अर्थ है ‘क्रमबद्ध ज्ञान’। 

डेविड हैल्ड के अनुसार, राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित धारणाओं और सामान्य नियमों का वह समूह है जिसमें सरकार, राज्य और समाज की प्रकृति, उद्देश्य तथा प्रमुख विशेषताएँ एवं व्यक्ति की राजनीतिक क्षमताओं के बारे में विचार, परिकल्पनायें और विवरण निहित होता है। 

ऐन्डू हैकर के अनुसार, फ्राजनीतिक सिद्धांत जहाँ एक तरफ अच्छे समाज और अच्छे राज्य से सम्बन्धित नियमों की निष्पक्ष खोज है, वहाँ दूसरी तरफ ये राजनीतिक और सामाजिक वास्तविकता का निष्पक्ष ज्ञान है। 

कोकर के अनुसार, ‘राजनीतिक सिद्धांत का सम्बन्ध राजनीतिक सरकार, इसके स्वरूपों तथा गतिविधियों के उस अध्ययन से है जो केवल उन तथ्यों के आधार पर नहीं किया जाता जिनकी व्याख्या, तुलना तथा परख का सम्बन्ध तत्काल तथा अस्थायी प्रभावों से है बल्कि उन तथ्यों तथा मूल्यांकन के आधार पर भी किया जाता है जो व्यक्ति की चिरस्थायी आवश्यकताओं, इच्छाओं तथा विचारों से सम्बन्धित होते हैं।’ 

राजनीतिक सिद्धांत को हम गुल्ड और कोल्ब की व्यापक परिभाषा से बेहतर समझ सकते हैं। 

उनके अनुसार, ‘राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिशास्त्र का वह भाग है जिसके निम्नलिखित अंग हैं: (i) राजनीतिक दर्शनशास्त्र-यह राजनीतिक विचारों के इतिहास का अध्ययन और नैतिक मूल्यांकन से सम्बन्धित है (ii) एक वैज्ञानिक पद्धति (iii) राजनीतिक विचारों का भाषा विषयक विश्लेषण_ तथा (iv) राजनीतिक व्यवहार के सामान्य नियमों की खोज तथा उनका क्रमबद्ध विकास।

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि राजनीतिक सिद्धांत मुख्यत: दार्शनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से राज्य का अध्ययन है। सिद्धांत का सम्बन्ध केवल राज्य तथा राजनीतिक संस्थाओं की व्याख्या, वर्णन तथा निर्धारण से ही नहीं हैं बल्कि उसके नैतिक उद्देश्यों का मूल्यांकन करने से भी है। इनका सम्बन्ध केवल इस बात का अध्ययन करना ही नहीं है कि राज्य केसा है बल्कि यह भी कि राज्य केसा होना चाहिये। 

एक लेखक के अनुसार, राजनीतिक सिद्धांत को एक गतिविधि के रूप में देखा जा सकता है जो व्यक्ति के सार्वजनिक और सामुदायिक जीवन से सम्बन्धित प्रश्न पूछती है, उसके सम्भव उत्तर तलाश करती है तथा काल्पनिक विकल्पों का निर्माण करती है। अपने लम्बे इतिहास में ये इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर खोजते रहे हैं जैसे-राज्य की प्रकृति और उद्देश्य क्या है? एक राज्य दूसरे राज्य से श्रेष्ठ क्यों? राजनीतिक संगठनों का उद्देश्य क्या है? इस उद्देश्यों के मानदण्ड क्या होते हैं? राज्य तथा व्यक्ति में सम्बन्ध क्या है? आदि। 

प्लेटो से लेकर आज तक राजनीतिक चिन्तक इन प्रश्नों के उत्तर तलाश रहे हैं क्योंकि इन उत्तरों के साथ व्यक्ति का भाग्य अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। आरम्भ से ही सिद्धांत उन नियमों की खोज में लगे हुए हैं जिनके आधार पर व्यक्ति एक ऐसे राजनीतिक समुदाय का विकास कर सके जिसमें शासक और शासित दोनों सामान्य हित की भावना से प्रेरित हों। यह आवश्यक नहीं कि राजनीतिक सिद्धांत सभी राजनीतिक प्रश्नों के कोई निश्चित व अन्तिम हल ढूँढ़ने में सफल हो जायें परन्तु ये हमें उन प्रश्नों के हल के लिये सही दिशा संकेत अवश्य दे सकते हैं।

राजनीतिक सिद्धांत की विशेषताएं 

उपरोक्त चर्चा के आधार पर राजनीतिक सिद्धांत की कुछ सामान्य विशेषताएँ स्पष्ट की जा सकती हैं। राजनीतिक सिद्धांत मूलत: व्यक्ति की बौद्धिक और राजनीतिक कृति हैं। सामान्यत: यह एक व्यक्ति का चिन्तन होते हैं जो एक राजनीतिक वास्तविकता अर्थात् राज्य की सैद्धान्तिक व्याख्या करने का प्रयत्न करते हैं। प्रत्येक सिद्धांत अपने-आप में एक परिकल्पना होता है जो सही अथवा गलत दोनों हो सकता है और जिसकी आलोचना की जा सकती है। अत: सिद्धांत के अंतर्गत हम विभिन्न चिंतकों द्वारा किये गये अनेक प्रयत्न पाते हैं जो राजनीतिक जीवन के रहस्यों का उद्घाटन करते रहे हैं। इन चिन्तकों ने अनेक व्याख्याएँ प्रस्तुत की हैं जो हो सकता है हमें प्रभावित न करे, परंतु जिनके बारे में हम कोई अन्तिम राय (सही अथवा गलत) स्थापित नहीं कर सकते। 

राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन के उस विशेष सत्य की व्याख्या करते हैं जैसा कोई चिंतक उसे देखता या अनुभव करता है। ऐसे राजनीतिक सत्य की अभिव्यक्ति हमें प्लेटो के ‘रिपब्लिक’, अरस्तु के ‘पॉलिटिक्स’ अथवा रॉल्स की ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ में मिलती है।

दूसरे, राजनीतिक सिद्धांत में व्यक्ति, समाज तथा इतिहास की व्याख्या होती है। ये व्यक्ति और समाज की प्रकृति की जाँच करते हैं: एक समाज केसे संगठित होता है और केसे काम करता है, इसके प्रमुख तत्त्व कौन से हैं, विवादों के विभिन्न Ïोत कौन से हैं, उन्हें किस प्रकार हल किया जा सकता है आदि।

तीसरे, राजनीतिक सिद्धांत किसी विषय-विशेष पर आधारित होते हैं, अर्थात्, हालाँकि एक विचारक का उद्देश्य राज्य की प्रकृति की व्याख्या करना ही होता है परंतु वह विचारक एक दार्शनिक, इतिहासकार, अर्थशास्त्री, धर्मशास्त्री अथवा समाजशास्त्री कुछ भी हो सकता है। अत: हम कई तरह के राजनीतिक सिद्धांत पाते हैं जिनमें इन विषयों की अद्वितीयता के आधार पर अंतर किया जा सकता है।

चौथे, राजनीतिक सिद्धांत का उद्देश्य केवल राजनीतिक वास्तविकता को समझना और उसकी व्याख्या करना ही नहीं है बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिये साधन जुटाना और ऐतिहासिक प्रक्रिया को तेज करना भी है। जैसा कि लास्की लिखते हैं, राजनीतिक सिद्धांत का कार्य केवल तथ्यों की व्याख्या करना नहीं हैं। परन्तु यह निर्धारण करना भी है कि क्या होना चाहिए। अत: राजनीतिक सिद्धांत सामाजिक स्तर पर सकारात्मक कार्य तथा उनके कार्यान्वयन के लिए सुधार, क्रांति अथवा संरक्षण जैसे साधनों की सिफारिश करते हैं। इनका संबंध साधन तथा साध्य दोनों से है। ये दोहरी, भूमिका निभाते हैं: ‘समाज को समझना और उसकी गलतियों में सुधार करने के तरीके जुटाना।’ 

पांचवें, राजनीतिक सिद्धांत में विचारधारा का समावेश भी होता है। आम भाषा में विचारधारा का अर्थ विश्वासों, मूल्यों और विचारों की उस व्यवस्था से होता है जिससे लोग शासित होते हैं। आधुनिक युग में हम कई तरह की विचारधाराएँ पाते हैं जैसे उदारवाद, मार्क्सवाद, समाजवाद आदि। प्लेटो से लेकर आज तक सभी राजनीतिक सिद्धांत में किसी-न-किसी विचारधारा का प्रतिबिम्ब अवश्य है। 

राजनीतिक विचारधारा के रूप में राजनीतिक सिद्धांत में उन राजनीतिक मूल्यों, संस्थाओं और व्यवहारों की अभिव्यक्ति होती हैं जो कोई समाज एक आदर्श के रूप में अपनाता है। 

उदाहरण के लिये, पश्चिमी यूरोप और अमरीका के सभी राजनीतिक सिद्धांत में उदारवादी विचारधारा प्रमुख रही है। इसके विपरीत चीन और पूर्व सोवियत यूनियन में एक विशेष प्रकार के मार्क्सवाद का प्रभुत्व रहा। इस संदर्भ में ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक विचारधारा स्वयं को सर्वव्यापक और परम सत्य के रूप में प्रस्तुत करती हैं और दूसरों को अपनाने के लिये बाध्य करती हैं। परिणामस्वरूप, वैचारिक संघर्ष आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत का एक विशेष अंग रहा है।

राजनीतिक सिद्धांत का महत्व 

राजनीतिक सिद्धांत के महत्त्व को इसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों और इनमें निहित उद्देश्यों के आधार पर समझा जा सकता है। राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक मूल्यों की वह व्यवस्था है जो कोई समाज अपनी राजनीतिक वास्तविकता को समझने और आवश्यकता पड़े तो, इसमें परिवर्तन करने के लिये अपनाता है। यह अच्छे जीवन की प्रकृति, इसे प्राप्त करने के लिये संभव संस्थाएँ, राज्य के उद्देश्य, इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये सर्वोत्तम राज्य-प्रबंध जैसे विषयों का उच्च स्तरीय अध्ययन है।

राजनीतिक सिद्धांत का महत्व इस बात में है कि ये ऐसे नैतिक मानदण्ड प्रदान करते हैं जिनसे राज्य की नैतिक योग्यता की जाँच की जा सके। आवश्यकता पड़ने पर ये वैकल्पिक राजनीतिक प्रबन्ध और व्यवहार का ढाँचा भी प्रदान करते हैं। समग्र रूप में, राजनीतिक सिद्धांत (i) राजनीतिक घटनाओं की व्याख्या करते हैं, (ii) इस व्याख्या के दार्शनिक और वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं, (iii) राजनीतिक उद्देश्यों और कार्यों का चयन करने में सहायता करते हैं तथा (iv) राजनीतिक व्यवस्था का नैतिक आधार प्रदान करते हैं।

जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, मानव समाज की मौलिक समस्या समुदाय में इकट्ठा रहना है। इस संदर्भ में राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है जो समाज के सामूहिक कार्यकलापों को प्रबंधित करती है। सिद्धांत का महत्त्व उन दृष्टिकोणों और पद्धतियों की खोज करना है जो राज्य और समाज की प्रकृति, सरकार का सर्वश्रेष्ठ रूप, व्यक्ति और राज्य में संबंध तथा स्वतंत्रता, समानता, संपत्ति, न्याय आदि की धारणाओं का विकास कर सके। इन अवधारणाओं का विकास उतना ही आवश्यक है जितना समाज की शान्ति, व्यवस्था, सामन्जस्य, स्थायित्व और एकता। वास्तव में सामाजिक स्तर पर शान्ति और व्यवस्था बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि हम स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसी धारणाओं की व्याख्या और इनका कार्यान्वयन केसे करते हैं।

समकालीन समाज में हम कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं जैसे गरीबी, अत्यधिक जनसंख्या, भ्रष्टाचार, जातीय तनाव, प्रदूषण, व्यक्ति-समाज और राज्य में विवाद आदि। राजनीतिक सिद्धांत का महत्त्वपूर्ण कार्य इन समस्याओं का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण करके राजनेताओं को वैकल्पिक साधन प्रदान करना होता है। 
डेविड हैल्ड के अनुसार, राजनीतिक सिद्धांत का महत्व इस बात से प्रकट होता है कि एक क्रमबद्ध अध्ययन के अभाव में राजनीति उन स्वाथ्र्ाी और अनभिज्ञ राजनीतिक नेताओं के हाथ का खिलौना मात्र बन कर रह जायेगी जो इसे शक्ति प्राप्त करने के एक यन्त्र के अतिरिक्त कुछ नहीं समझते।

संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांत का महत्व निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता है:
  1. ये राज्य और सरकार की प्रकृति तथा उद्देश्यों का क्रमबद्ध ज्ञान उपलब्ध करवाते हैं,
  2. ये सामाजिक और राजनीतिक वास्तविकता तथा किसी भी समाज के आदर्शों एवं उद्देश्यों में संबंध स्थापित करने में सहायता करते हैं।
  3. ये व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर अधिकार, कर्तव्य, स्वतंत्रता, समानता, सम्पत्ति, न्याय आदि के बारे में सचेत करवाते हैं।
  4. ये सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को समझने तथा उससे संबंधित समस्याओं, जैसे गरीबी, हिंसा, भ्रष्टाचार, जातिवाद आदि के साथ जूझने के सैद्धान्तिक विकल्प प्रदान करते हैं।
  5. सिद्धांत का कार्य केवल स्थिति की व्याख्या करना नहीं होता। ये सामाजिक सुधार अथवा क्रांतिकारी तरीकों से परिवर्तन सम्बन्धी सिद्धांत भी प्रस्तुत करते हैं।
जब किसी समाज के राजनीतिक सिद्धांत अपनी भूमिका सही तरीके से निभाते हैं तो वे मानवीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाता है। जनसाधारण को सही सिद्धांत से परिचित करवाने का अर्थ केवल उन्हें अपने उद्देश्य और साधनों को सही तरीके से चुनने में सहायता करना ही नहीं है। बल्कि उन रास्तों से भी बचाना है जो उन्हें निराशा की तरफ ले जा सकते हैं।

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