राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के मुख्य कार्य

वर्ष 1990 में, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम पारित हुआ। राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के सशक्तीकरण का एक अन्य महत्वपूर्ण उपकरण है। अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार केन्द्रीय सरकार राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन करेगी जो अधिनियम के अन्तर्गत दिये गये कार्यों का सम्पादन करेगा। आयोग अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत उल्लिखित कार्यों का सम्पादन करेगा। 

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के मुख्य कार्य

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
  1. महिलाओं के लिए संविधान और अन्य विधियों के अधीन उपबन्धित रक्षोपायों (Safeguards) से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण (Investigation) और परीक्षा (Examine) करना 
  2. संविधान और अन्य विधियों के महिलाओं को प्रभावित करने वाले विद्यमान (Existing) उपबन्धों का समय-समय पर पुनर्विलोकन (Review) करना और उनके यथोचित संशोधनों की सिफारिश करना;
  3. संविधान और अन्य विधियों के महिलाओं से संबंधित उपबन्धों के उल्लंघन के मामलों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना; 
  4. निम्नलिखित से संबंधित विषयों पर शिकायतों (Complaints) की जाँच करना और स्वप्रेरणा (Suo Motu) से ध्यान देना। 
    • महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामले; 
    • महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने वाली अधिनियमित (Enacted) विधियों के अक्रियान्वयन (Non-implementation) से संबंधित मामले 
    • संघ और किसी राज्य के अधीन महिलाओं के विकास की प्रगति का मूल्यांकन (Evaluation) करना, आदि। 
परन्तु आयोग कानून का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अक्षम है। इसके द्वारा की गई सिफारिशों पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके द्वारा जारी किये गये सम्मन को गम्भीरता से नहीं लिया जाता। महिला आयोग अपने सम्मन असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस के कार्यालय के माध्यम से भेज सकता है, समाचार पत्रों में प्रकाशित करवा सकता है या पोस्टर के रूप में चिपकवा सकता है। परन्तु महिला आयोग शायद ही कभी ऐसा करता है। जब कभी भी कार्य करने के स्थान पर महिलाओं के यौन शोषण के मामले सामने आये हैं तो आयोग ने केवल शुरू में शोर ही मचाया है और ज्यादा कुछ नहीं किया है। 

आयोग बिना पोशाक के पुलिस नहीं है। इसके पास मजिस्ट्रेट की विधिक शक्तियाँ भी नहीं हैं। इसके सदस्य स्वयं स्वीकार करते हैं कि इसने अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं की है। 

उनका कहना है कि क्योंकि वे सरकार पर निर्भर हैं अत: उनकी बहुत कम शक्तियाँ हैं। कोई भी संस्था दूसरे पर निर्भर होते हुए शक्तिशाली नहीं हो सकती।

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