सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' का जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं, साहित्यिक विशेषताएं

हिंदी साहित्य क्षेत्र में नए प्रयोग के प्रवर्तक रूप में सर्व परिचित रहे अज्ञेय जी मूलतः एक कवि रह चुके हैं। उनका पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' है । अज्ञेय का जन्म (7 मार्च 1911-1987 ई.) ग्राम कसया जनपद देवरिया में हुआ था। अज्ञेय के पिता का नाम हीरानंद था।  अज्ञेय जी के पिता पंडित हीरानन्द वात्स्यायन अपने जमाने के संस्कृत के बड़े विद्वान थे

अज्ञेय जी जन्म के बाद चार बरस तक लखनऊ में रहें और फिर श्रीनगर तथा जम्मू में । उन्होंने घर पर ही संस्कृत, अंग्रेजी और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था। सन 1919 में अज्ञेय जी अपने पिता के साथ नालन्दा में रहें और सन 1921 से 1925 तर उटकमंड और कोटागिरी में । उन्होंने सन 1925 में मैट्रिक की प्राइवेट परीक्षा पंजाब से दी। मैट्रिक की परीक्षा पास करने पर मद्रास में स्थित क्रिश्चियन कालेज में इंटरमीडियट सायन्स पढने के लिए दाखिल हुए । आगे चलकर सन 1927 में वे लाहौर में बी. एस. सी. के लिए भर्ती होकर लगभग सन 1929 में इस उपाधि में द्वितीय स्थान प्राप्त करके अंग्रेजी में एम. ए. करने के लिए प्रयत्न करने लगे ।

सन 1929 से सन 1936 तक भारतीय राजनीति के क्षेत्र में उनका सक्रिय सहभाग रहा था । अंग्रेजों के विरोध में किए गए विविध आन्दोलन के कारण अज्ञेय जी को दिल्ली जेल में कैदी बनकर रहना पड़ा था । इसी जेल में उन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान का अध्ययन किया था । 

सन 1943 और 1945 के युद्ध में अज्ञेय जी सैनिक के रूप में शामिल हुए थे । आखिर इसी सेना से कॅप्टन बनकर उन्होंने मुक्तता पाई । सेना से मुक्त होकर अज्ञेय जी ने इलाहाबाद में रहकर 'प्रतीक' पत्रिका का सम्पादन किया और सन 1950 में प्रतीक पत्रिका का काम छोडकर दिल्ली में रेडियो की नौकरी करने लगे, जहाँ उनकी मुलाकात कपिल मलिक से हुई और बाद में उनसे उन्होंने शादी की ।

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' की प्रमुख रचनाएं

1. काव्य- ‘आंगन के पार द्वार’, ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘इन्द्र धनु रौंदे हुए ये’।

2. कविताएं- ‘भग्न दूत’ एवं ‘चिंता’ नामक छायावादी कविताओं से काव्य यात्रा प्रारंभ की। ‘दुख सबको मांजता है’, अच्छा ‘खंडित सत्य सुघर नीरंघ्र मृषा से’ एवं ‘सांप’।

3. संपादन- ‘तारसप्तक’, ‘इत्यलम्’।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की साहित्यिक विशेषताएं

छायावादी कविताओं से काव्य-यात्रा प्रारंभ करने वाले अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता के विशिष्ट कवि हैं। इस धारा के कवियों में इनका काव्य सबसे अधिक वैविध्यपूर्ण है। उनका स्वर अहं - समाज, प्रेम-दर्शन, आदिम गंध - विज्ञान चेतना, यंत्रा-सभ्यता - लोक परिवेश, यातना - बोध - विद्रोह की ललकार, प्रकृति सौंदर्य - मानव सौंदर्य तक विस्तृत है। इस व्याप्ति में संवेदनशीलता या अनुभूति सर्वत्रा साथ नहीं देती है। कहीं कहीं कोरा बुद्धिवाद या नीरसता उभर आती है।

‘तारसप्तक’ की कविताओं के साथ अज्ञेय की नई कविता यात्रा का आरंभ होता है। जो बाद में ‘इत्यलम्’ में संग्रहीत दृष्टिगोचर होती है। अज्ञेय में संवेदना के साथ सजगता एवं बुद्धिवाद की प्रधानता है। बुद्धिवाद उनकी संवेदना को नियंत्रित करता है साथ ही कभी सूक्तियों के रूप में कभी व्यंग्य के रूप में, कभी युग चिंतन और युग बोध के बिंब विधान के रूप में व्यक्त होता है जो संवेदना या अनुभूति से अंतरंग भाव से जुड़ा न होने के कारण बिंब रचना के होते हुए भी बहुत दूर तक प्रभावविहीन हो जाता है। 

अज्ञेय की कविताओं में स्वर वैविध्यता का कारण उनका बुद्धिवाद है। संवेदना एवं बुद्धिवाद की यह सहयात्रा जहां रोमानी परंपरा को तोड़कर नए सौंदर्यबोध से सम्पन्न स्वस्थ काव्य की सृष्टि करती है वहीं बुद्धिवादिता का अतिरेक शुष्क, दुरूह और नव रहस्यवादी कविता को जन्म देता है। 

अज्ञेय की छोटी-छोटी कविताएं सौंदर्य और प्रभाव की सृष्टि की दृष्टि से विशिष्ट एवं सक्षम हैं - वे चाहे व्यंग्य करती हों, चाहे कोई सौंदर्य का अनुभव जगाती हों, चाहे रूप की अभिव्यक्ति करती हों।

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