सामाजिक अधिकार किसे कहते हैं? सभ्य राज्यों में नागरिकों को ये सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं

सामाजिक अधिकार

सामाजिक अधिकार किसे कहते हैं?

सभ्य राज्यों में नागरिकों को प्राय: निम्नलिखित सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं- 

1. जीवन का अधिकार: सामाजिक अधिकारों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अधिकार जीवन का अधिकार है। प्रत्येक राज्य अपने नागरिकों को जीवन का अधिकार देता है। अरस्तु के मतानुसार, राज्य जीवन की रक्षा के लिए बना और वह अच्छे जीवन के लिए चल रहा है। इस अधिकार के महत्त्व के संबंध में प्रो. लॉस्की (Laski) ने लिखा है कि फ्मनुष्य को यदि यह अधिकार प्राप्त न होगा तो वह अपना समस्त जीवन अपनी सुरक्षा के लिए ही बिता देगा। हॉब्स के मतानुसार, लोगों ने प्राकृतिक अवस्था को इसलिए छोड़ा था कि उनका जीवन सुरक्षित नहीं था। उनके मतानुसार जीवन का अधिकार सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अधिकार है। 

किसी भी व्यक्ति को आत्महत्या करने का अधिकार नहीं है। उसका जीवन समाज की अमानत है, अत: इसका प्रयोग समाज के लिए ही होना चाहिए। जो व्यक्ति आत्महत्या करता पकड़ा जाता है, राज्य उसे दण्ड देता है। राजा व्यक्ति को मृत्यु की सजा भी दे सकता है। हत्या करने वाले को प्राय: फाँसी का ही दण्ड दिया जाता है, परन्तु कई लोगों का विचार है कि राज्य का उद्देश्य मनुष्य के जीवन की रक्षा करना है न कि उसके जीवन का अंत करना। इसलिए मौत का दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए। आज इस विचार को बहुत-से लोगों का समर्थन प्राप्त है। 

2. शिक्षा का अधिकार: मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है। अनपढ़ व्यक्ति गंवार तथा पशु माना जाता है। बिना शिक्षा के उसे अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का भी ज्ञान नहीं होता है कि यह नागरिकों की शिक्षा का उचित प्रबंध करे। हो सके तो नागरिकों को अनिवार्य तथा नि:शुल्क शिक्षा दी जाए। भारत के संविधान में भी शिक्षा का अधिकार दिया गया है। जात-पाँत, धर्म, सम्प्रदाय, उफँच-नीच, रंग, वंश आदि के आधार पर नागरिकों को स्वूफल तथा कॉलिज में प्रवेश देने से इनकार नहीं किया जा सकता। भारत में कई राज्यों में कुछ सीमा तक शिक्षा नि:शुल्क है। जम्मू-कश्मीर में एम.ए. तक शिक्षा नि:शुल्क है। रूस, इंग्लैंड, अमेरिका आदि देशों में भी नागरिकों को शिक्षा का अधिकार दिया गया है। 

3. परिवार का अधिकार: परिवार समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई है। मनुष्य को परिवार बनाने का अधिकार प्राप्त है, अत: प्रत्येक नागरिक को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है वह जिससे चाहे शादी कर सकता है और परिवार का प्रबंध करने में भी उसे पूर्ण स्वतंत्रता है। परन्तु राज्य परिवार से संबंधित कुछ नियमों का भी निर्माण करता है। भारत सरकार ने सिविल मैरिज के लिए फरुष की आयु 21 वर्ष तथा स्त्री की आयु 18 वर्ष निश्चित की है। उल्लेखनीय है कि विवाह के लिए वर-वधु दोनों की अनुमति आवश्यक है। 

4. भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता का अधिकार: मनुष्य को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। यह भाषण के द्वारा अपने विचार को प्रकट कर सकता है। जे.एस. मिल व्यक्ति को अधिक से अधिक स्वतंत्रता देने के पक्ष में था। उसके मतानुसार, व्यक्ति को विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए, उसकी इस स्वतंत्रता पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए, उसके मतानुसार, मनुष्य जब अपने विचार प्रकट करता है तो वह विचार पूर्णतया ठीक हो सकता है, पूर्णतया गलत हो सकता है अथवा कुछ ठीक तथा कुछ गलत हो सकता है। आज प्राय: सभी प्रजातंत्रात्मक देशों में नागरिकों को भाषण देने तथा विचार प्रकट करने का अधिकार प्राप्त है। परन्तु इस अधिकार का प्रयोग देश तथा समाज के हित के लिए होना चाहिए। किसी मनुष्य को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह दूसरे मनुष्यों को गालियाँ निकाले अथवा झूठी अफवाहें फैलाए। क्या आप जानते हैं जब किसी भाषण अथवा लेख से शांति भंग होने तथा समाज के किन्हीं दो वर्गों के बीच घृणा फैलने की आशंका हो तो सरकार इस अधिकार पर प्रतिबंध लगा सकती है। 

5. शांतिपूर्वक इकट्ठे होने तथा संस्थाएँ बनाने का अधिकार: संसार के प्राय: सभी देशों ने अपने नागरिकों को शांतिपूर्वक इकट्ठे होने तथा संस्थाएँ बनाने का अधिकार दिया हुआ है। नागरिक अपने भाषण के अधिकार का प्रयोग तभी कर सकते हैं जब नागरिकों को इकट्ठे होने का अधिकार प्राप्त हो। परन्तु वे हथियार लेकर इकट्ठे नहीं हो सकते। उन्हें संस्थाएँ बनाने का अधिकार भी प्राप्त होता है। वह राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक संस्थाओं की स्थापना करता है। यह ठीक है कि वह संस्थाओं की स्थापना कर सकता है, परन्तु संस्थाओं का उद्देश्य समाज के हित तथा देश के हित के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त इन संस्थाओं को शांतिपूर्ण साधनों का प्रयोग करना चाहिए। 

6. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अर्थ व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का विकास करने की स्वतंत्रता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का यह भी अर्थ है कि व्यक्ति को बिना किसी कारण गिरफ्ऱतार अथवा नषरबंद नहीं किया जाएगा। यदि किसी व्यक्ति को बिना किसी कारण जेल में बंद कर दिया जाता है तो वह व्यक्ति न्यायालय को प्रार्थना-पत्र देकर अपनी रक्षा कर सकता है। बहुत-से देशों में व्यक्ति को अधिकार दिया गया है कि वह स्वयं अथवा उसके संबंधी न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण का आज्ञा-पत्र जारी करने की प्रार्थना कर सकते हैं। इस आज्ञा-पत्र के अधीन सरकार को अपराधी को न्यायालय के सामने पेश करना पड़ता है और उसे गिरफ्ऱतार करने के लिए कारण ठीक नहीं है तो न्यायालय उस व्यक्ति को छोड़ने का आदेश दे सकता है। संकटकाल में सरकार व्यक्तियों के इस अधिकार पर प्रतिबंध लगा सकती है। 

7. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार: धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता है कि वह जिस धर्म में चाहे विश्वास करे, जिस देवी-देवता की पूजा चाहे करे और जिस तरह चाहे पूजा करे। राज्य को नागरिकों के धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जिस तरह चाहे पूजा करे। राज्य को नागरिकों के धर्म का अनुयायी बनने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। राज्य को किसी विशेष धर्म को सरकारी धर्म घोषित नहीं करना चाहिए। सभी धर्मों के अनुयायियों को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिए। भारत के नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार संविधान से प्राप्त है। भारत राज्य धर्म-निरपेक्ष राज्य है अर्थात् भारत का कोई धर्म नहीं है पर भारतवासियों का धर्म है। 

भारत में नागरिकों को धर्म के आधार पर स्कूलों तथा कॉलिजों में दाखिल करने से इनकार नहीं किया जाता। परन्तु धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में कोई व्यक्ति अनैतिक बातों का प्रचार नहीं कर सकता। न ही किसी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह दूसरे धर्मों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करे। 

8. समानता का अधिकार: सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को राज्य में समान समझा जाना चाहिए। धर्म, भाषा, रंग, जात-पाँत, सम्प्रदाय आदि के आधार पर एक नागरिक तथा दूसरे नागरिक में मतभेद नहीं होना चाहिए। 

9. घूमने-फिरने की स्वतंत्रता का अधिकार: नागरिकों को देश की सीमाओं के अंदर बिना किसी नियंत्रण के घूमने-फिरने की स्वतंत्रता होती है। नागरिक देश के जिस हिस्से में चाहें रह सकते हैं। सैर करने के लिए जा सकते हैं। बिना घूमने-फिरने की स्वतंत्रता के मनुष्य अपने-आपको कैदी समझता है। भारत के संविधान में नागरिकों को घूमने-फिरने की स्वतंत्रता दी गई है। पर कोई नागरिक यदि अपने इस अधिकार का गलत प्रयोग करता है तो सरकार उसकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध भी लगा सकती है। 

10. संस्कृति की स्वतंत्रता पर अधिकार: नागरिकों को अपनी संस्कृति में विकास रखने तथा संस्कृति का विकास करने की स्वतंत्रता होती है। वे अपनी भाषा, रीति-रिवाजों तथा नैतिकता का विकास कर सकते हैं। भारत के नागरिकों को यह अधिकार संविधान द्वारा प्राप्त है। प्रत्येक सम्प्रदाय को अपनी संस्कृति के विकास का अधिकार प्राप्त है।

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