सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार क्या है ?

सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार

सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार 

भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली न्यायालयों में से एक है लेकिन वह संविधान द्वारा तय की गई सीमा के अंदर ही कार्य करता है इस आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार हैं- 
  1. सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार
  2. सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार
  3. सर्वोच्च न्यायालय के रिट/आदेश संबंधी क्षेत्राधिकार
  4. सर्वोच्च न्यायालय के सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार

1. सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार

मूल क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता है ऐसे मुकदमों में पहले निचली अदालतों में सुनवाई जरूरी नहीं। किसी भी संघीय व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों के बीच अथवा विभिन्न राज्यों में परस्पर कानूनी विवादों का उठना स्वाभाविक है इन विवादों को हल करने की जिम्मेदारी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की है इसे ही मूल क्षेत्राधिकार या प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार कहते हैं क्योंकि इन मामलों को केवल सर्वोच्च न्यायालय ही हल कर सकता है।’’

2. सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार

सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है लेकिन उच्च न्यायालय को इस सम्बन्ध में प्रमाणपत्र देना पड़ता है कि वह मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने लायक है अर्थात् उसमें संविधान या कानून की व्याख्या से संबंधित कोई गंभीर मामला उलझा है। अगर आपराधिक मामले में निचली अदालत किसी को फांसी की सजा दे दे तो उसकी अपील सर्वोच्च या उच्च न्यायालय में की जा सकती है। यदि किसी मुकदमें में उच्च न्यायालय अपील की आज्ञा न दे तब भी सर्वोच्च न्यायालय के पास यह शक्ति है कि वह उस मुकदमे में की गई अपील को विचार के लिए स्वीकार कर ले। अपीलीय क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे मुकदमे पर पुनर्विचार करेगा और समस्त मुकदमे की दोबारा जांच करेगा और उन प्रावधानों की नई व्याख्या कर निर्णय को भी बदल सकता है।’’

3. सर्वोच्च न्यायालय के रिट/आदेश संबंधी क्षेत्राधिकार

नागरिकों के मौलिक अधिकारों के हनन पर वे अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय एवं अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय अपने विशेष आदेश रिट के रूप में दे सकता है अनुच्छेद 226 के तहत मौलिक अधिकारों का हनन होने पर उच्च न्यायालय भी 5 प्रकार के रिट/आदेश/प्रादेश जारी कर सकता है।’’

1. बंदी प्रत्यक्षीकरण - इस शाब्दिक अर्थ है शरीर को प्रस्तुत किया जाए। यह रिट ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी के विरूद्ध जारी की जा सकती है जिसने किसी व्यक्ति को अवैध रूप से गिरफ्तार किया हो। इसके द्वारा गिरफ्तार किये व्यक्ति को न्यायालय अपने समक्ष उपस्थित करने के निर्देश देता है। गिरफ्तार व्यक्ति निर्दोष साबित होता है तो न्यायालय उसे छोड़ने के आदेश देता है।’’

2. परमादेश - इसका शाब्दिक अर्थ है हम आदेश देते हैं। इसके तहत न्यायालय किसी व्यक्ति, लोक प्राधिकारी, अधीनस्थ न्यायालय, सरकार या निगम को उनके कर्तव्यों के उचित तरीके से पालन करने के निर्देश देता है ऐसे अधिकारी को आदेशित किया जाता है कि वह अपने सार्वजनिक कर्तव्यों का सही ढंग से पालन करें।’’

3. प्रतिषेध - इसका अर्थ रोकना या मना करना है। यह निषेधाज्ञा की भांति है। यह रिट वरिष्ठ न्यायालयों द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों तथा अर्द्ध न्यायिक अधिकरणों के विरूद्ध जारी की जाती है। इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने से निषिद्ध किया जाता है जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। यह रिट केवल न्यायिक या अर्द्ध न्यायिक कृत्यों के विरूद्ध जारी की जाती है। किसी कार्यपालिका या विधायी कृत्य अथवा किसी प्राइवेट व्यक्ति या संघ के विरूद्ध यह रिट जारी नहीं की जा सकती तथा यह रिट सिर्फ उसी स्थिति में जारी की जा सकती है जब कार्यवाही किसी न्यायालय या अधिकरण के समक्ष लम्बित हो।’’

4. उत्प्रेषण - उत्प्रेषण का शाब्दिक अर्थ है पूर्णतया सूचित कीजिये। यह रिट अधीनस्थ न्यायालयों या अर्द्ध न्यायिक कार्य करने वाले निकायों के विरूद्ध जारी की जाती है। इसके द्व ारा अधीनस्थ न्यायालयों को, अपने समक्ष आये मामलों को वरिष्ठ न्यायालयों को भेजने के निर्देश दिये जाते हैं। यह रिट इस आधार पर जारी की जाती है कि अधीनस्थ न्यायालय में अधिकारिता का अभाव या आधिक्य है अथवा उसने नैसर्गिक न्याय का उलंघन किया है या निर्णय लेने में वैधानिक गलती की गयी हो।’’ प्रतिषेध और उत्प्रेषण दोनों रिटें अधीनस्थ न्यायालयों के विरूद्ध जारी की जाती हैं किन्तु दोनों रिटों का उद्देश्य पृथक है। 

प्रतिषेध रिट कार्यवाही के दौरान या कार्यवाही को रोकने हेतु जारी की जाती है तथा उत्प्रेषण रिट कार्यवाही की समाप्ति पर दिये निर्णय को रद्द करने हेतु।’’

5. अधिकार पृच्छा - इसका शाब्दिक अर्थ है किस अधिकार से या आपका प्राधिकार क्या है? यह रिट ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध जारी की जाती है जो किसी ऐसे पद पर बैठा है जो उसके योग्य नहीं है। इसके द्वारा उस से पूछा जाता है कि वह किस अधिकार से उस पद को धारण किये हुए है? यदि वह अवैध तरीके से पद धारण किये हुए है तो उसे उस पद से हटाकर पद को रिक्त घोषित कर दिया जाता है।’’

4. सर्वोच्च न्यायालय के सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार

 भारत का राष्ट्रपति अनुच्छेद 143 के तहत लोकहित या संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी विषय को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श के लिए भेज सकता है लेकिन न तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे किसी विषय पर सलाह देने के लिए बाध्य है और न ही राष्ट्रपति न्यायालय की सलाह मानने को, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि सर्वोच्च न्यायालय के परामर्श की शक्ति की क्या उपयोगिता है? इसकी मुख्य दो उपयोगिताएं हैं - 
  1. इससे सरकार को छूट मिल जाती है कि किसी महत्वपूर्ण मामले में कार्यवाही करने से पहले वह न्यायालय की कानूनी राय जान ले। इस से बाद में कानूनी विवाद से बचा जा सकता है।’’
  2. सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मानकर सरकार अपने प्रस्तावित निर्णय या विधेयक में समुचित संशोधन कर सकती है।’’

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