सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं, साहित्यिक विशेषताएँ

निराला छायावादी युग के महत्वपूर्ण  कवि है। 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (1897 - 1962 ई.) का जन्म संवत 1953 वि. वसंत पंचमी के दिन ग्राम गढ़कोला जनपद उन्नाव में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. राम सहाय त्रिपाठी था। वे मेदिनीपुर के महिषदल राज्य में नौकरी करते थे। इनकी मां सूर्य का व्रत रखती थी, इनका जन्म भी रविवार को हुआ था इसीलिए इनका नामकरण सूर्य के आधार पर सूर्यकांत किया गया। साहित्य क्षेत्र में अपनी निराली प्रकृति के कारणस्वरूप उपनाम ‘निराला’ हो गया।

निराला की शिक्षा बंगाल में ही हुई। ये आरंभ से स्वच्छंद प्रकृति के थे। अत: स्कूली शिक्षा में इनका मन न रमा। स्कूल छोड़कर घर पर ही अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त किया। साहित्य, संगीत और कला के अतिरिक्त कुश्ती एवं घुड़सवारी का भी इन्हें अत्यधिक शौक था। हिंदी, अंग्रेजी, बंगला तथा संस्कृत का गहन अध्ययन किया। इनके काव्य पर बंगला का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

तेरह वर्ष की अवस्था में ही इनका विवाह हो गया था। इनकी दो संतानें एक पुत्रा एक पुत्राी थी। पिता की मृत्यु के पश्चात इन्होंने स्वयं महिषादल राज्य में नौकरी कर ली किंतु बाइस वर्ष की आयु में पत्नी का देहांत हो जाने पर इन्होंने नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्र रूप से साहित्य साधना करने लगे।

निराला के विराट वपु में कोमल एवं भावुक हृदय विद्यमान था। वे उदार एवं दानी प्रकृति के थे। असहाय गरीबों के प्रति उनके मन में अपार प्रेम था। ठंड से सिकुड़ते दरिद्रों को देखकर वे उन्हें अपने पहने हुए वस्त्र तक उतारकर दे देते थे। छायावादी चार स्तंभों में प्रमुख होने पर भी वे छायावादी कवियों में सर्वाधिक विद्रोही एवं क्रांतिकारी प्रकृति के थे। वस्तुत: वे स्वच्छंदतावादी थे।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाएं

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाएं suryakant tripathi nirala ki rachnaye सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाएं है -
  1. अनामिका
  2. परिमल
  3. गीतिका
  4. तुलसीदास
  5. कुकुरमुत्ता
  6. अणिमा
  7. बेला
  8. अपरा
  9. नए पत्ते
  10. अर्चना
  11. आराधना
  12. गीत कुंज
  13. सांध्य काकली
  14. राम की शक्ति पूजा
  15. सरोज स्मृति
  16. (शोक गीत)। 
काव्य ग्रंथों के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानी, आलोचना एवं निबंध आदि के क्षेत्र में अपनी लेखनी चलाई है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की साहित्यिक विशेषताएँ

निराला ने क्रांति एवं विरोध का स्वर मुखरित करते हुए समाज की व्यथा एवं वेदना को वाणी दी तथा विषमता से पीड़ित मानवता की छटपटाहट को अंकित किया है। विधवा के प्रति हिंदू समाज जिस प्रकार असहनशील होकर उस दुखों की मारी पर भीषण अत्याचार करता है उससे कवि का भावुक हृदय तड़प उठता है। 

उन्होंने ‘विधवा’ कविता में उसके हाहाकार तथा वेदना को मुखरित किया है। ‘रानी और कानी’ कविता द्वारा समाज पर करारा व्यंग्य किया है जहां कन्या के विवाह के समय उसके आंतरिक सौंदर्य को न देखकर बाह्य सौंदर्य एवं धन को प्रमुखता दी जाती है।

प्रयोगवाद के जन्मदाताओं में निराला का प्रमुख स्थान है। वे दीन दुखियों की दुर्दशा, पूंजीपतियों द्वारा गरीबों का शोषण, अछूतों का उत्पीड़न आदि देख सिहर उठे हैं जिसके परिणामस्वरूप उनके काव्य में नव जागरण का संदेश सुनाई पड़ता है। आर्थिक विषमता पर तीव्र प्रहार किया है। जिस व्यवस्था में कुछ लोग सुख भोगते रहे एवं विलासिता में निमग्न रहे तथा अन्य जी तोड़ श्रम करके भी पेट भर अन्न के लिए तरसते रहे वह व्यवस्था नष्ट-भ्रष्ट करने की कामना करते हुए कवि बादल से आग्रह करते हुए कहता है -

छिन्न भिन्न कर पत्रा, पुष्प, वन, उपवन,
वज्रघोष से ए प्रचंड! आतंक जमाने वाले।

यहां पत्रा, पुष्प, पादप उन धनिकों के प्रतीक हैं जो समाज को लूट-लूटकर अपनी तिजोरियां भरने में लगे हुए हैं। कवि कहता है कि हे बादल इन शोषकों को छिन्न-भिन्न करके अपने प्रचंड निर्घोष से उन्हें आतंकित कर दे। कवि का अत्यधिक संवेदनशील एवं परदुख कातर हृदय दीन दुखी, असहायों के प्रति गहरी करुणा से भरा है। इन शोषितों के प्रतिनिधि के रूप में कवि ने मजदूर, किसान और भिक्षुक के चित्र उपस्थित किए हैं। ‘भिक्षुक’ कविता में कवि ने भिखारी की विपन्नावस्था का चित्रण किया है। ‘बादल राग’ कविता में Îकृषकों की विपन्नता का चित्र उपस्थित किया है।

स्वदेशाभिमान एवं राष्ट्र प्रेम की भावना अति ज्वलंत थी। वे भारत माता के साकार रूप की वंदना करते हैं। देश की परतंत्रता से वे इतना व्यथित एवं क्षुब्ध थे कि उन्होंने देशभक्तिपरक अनेक गीत लिखे हैं। उनके अपने उद्बोधन गीत में ‘भारतीय वंदना’, ‘तुलसी दास’, ‘छत्रपति शिवाजी का पत्र’ आदि कविताओं में उनके देशभक्ति के भाव मुखरित हुए हैं। निराला का प्रेम एवं सौंदर्य चित्रण अनुपम है। उनकी दृष्टि प्रकृति एवं मानव दोनों के सौंदर्य से अभिभूत है। उन्होंने निश्छल पुनीत प्रेम के अनेक गीत लिखे हैं जिनमें कहीं प्रेयसी के मादक एवं पुनीत प्रेम का चित्रांकन किया है, कहीं प्रिया के नूपुरों की कर्णप्रिय झंकार एवं उसकी अलकों की मोहक गंध की संभार है तो कहीं प्रेम की प्रेरणादायक भक्ति का निरूपण।

निराला छायावाद के प्रमुख चार स्तंभों में थे। अत: उनके काव्य में छायावादी प्रवृत्ति का मिलना स्वाभाविक है। प्रकृति पर चेतना का आरोप अर्थात् प्रकृति का नर-नारी के रूप में चित्रण निराला काव्य में हुआ है। ‘जूही की कली’ ऐसी ही कविता है। दर्शन तथा रहस्य भावना निराला में रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानंद के दार्शनिक विचारों से आई। प्रकृति के अनेक रम्य एवं मनोहारी चित्र अंकित किए हैं। श्रृंगार, वीर, रौद्र, करुण आदि विभिन्न रसों का सुंदर परिपाक मिलता है। करुण रस का सुंदर स्वरूप ‘सरोज स्मृति’ में विद्यमान है।

भाषा बंगला से प्रभावित संस्कृतनिष्ठ एवं समास बहुला है। भाषा भाव, विषय एवं विचारानुसार परिवर्तित होती रहती है। शैली वैविध्यपूर्ण है। छंदों के क्षेत्रा में क्रांतिकारी प्रयोग किए हैं। मुक्त छंद के जन्मदाता ही नहीं सफल प्रयोक्ता भी है। अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह आदि अलंकारों का सक्षम प्रयोग किया गया है। मानवीकरण तथा ध्वन्यार्थ योजना आदि की सार्थक योजना की है। 

निराला बहुमुखी प्रतिभा के कवि हैं। काव्य में उन्होंने भाव, भाषा तथा छंद की दृष्टि से नवीन प्रयोग किए हैं। मुक्त छंद और संगीतात्मकता उनकी विशेष देन है। निराला की देन अविस्मरणीय है तथा आधुनिक काल के साहित्य में उनका स्थान अप्रतिम है।

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