वंशानुक्रम क्या है वंशानुक्रम के नियम ?

जिस विधि के द्वारा माता-पिता के गुण बालक के व्यक्तित्व में लाये जाते हैं, उसे वंशानुक्रम कहते हैं। बालक अधिकतर रंग, रूप , आकृति , विद्धता में अपने पूर्वजों एवं माता पिता से मिलता जुलता होता है यानी उसे अपने माता पिता के शारीरिक और मानसिक गुण प्राप्त होते हैं । जैसे माता पिता है, वैसी ही उनकी संतान होती है । इसी को हम वंशानुक्रम, आनुवंशिकता, पैतृकता, वंश परम्परा आदि नामों से पुकारते हैं । वंशानुक्रम, व्यक्ति की जन्मजात, विशेषताओं का पूर्ण योग कहा जा सकता है ।’’

वंशानुक्रम की परिभाषा

रूथ, वेनेडिक्ट: वंशानुक्रम का अर्थ माता पिता से उनकी सन्तानों में विविध गुणों का संचरण है।

फेयरचाइल्ड, एच0पी0: वंशानुक्रम का अर्थ माता पिता से उनकी सन्तानों में शारीरिक (जन्मजात मनोवैज्ञानिक सहित) गुणों का संचरण है।

वंशानुक्रम की प्रक्रिया

मानव शरीर कोशिकाओं से मिलकर बना होता है । इसी शरीर का आरम्भ केवल एक कोशिका से होता है जिसे संयुक्त कोश (Zygote) कहते हैं । यह जाईगोट दो उत्पादक कोशिकाओं (Germ Cells) का योग होता है , जिसमें एक कोशिका पिता की जिसे पितृकोशिका (sperm) और दूसरी माता की होती है जिसे मातृकोशिका (Ovam) कहते हैं । माता और पिता की प्रत्येक कोशिका में 23 - 23 गुणसूत्र (Chroosomes) होते हैं और ये मिलकर संयुक्त कोषिका (Zygote) में गुणसूत्रों के 23 जोड़े बनाते हैं। इन गुणसुत्रों पर जीन (Genes) विद्यमान होते हैं, जिसमें उसके वंष की असंख्य परम्परागत विशेषताएं निहित होती है । 

प्रत्येक गुणसूत्र में अनेक जीन होते हैं और प्रत्येक जीन किसी न किसी पैतृक गुण या विशेषता को निर्धारित करता है, इसीलिए, इन जीन को वंशानुक्रम-निर्धारक (Hereditory Determiners) कहते हैं। यही जीन शारीरिक और मानसिक गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाते हैं । इसी प्रक्रिया द्वारा पूर्वजों के गुण पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी सन्तानों में पहुंच जाते हैं ।’’

व्यक्ति को वंशानुक्रम की प्रक्रिया द्वारा अपने पूर्वजों के शारीरिक और मानसिक गुण प्राप्त होते हैं परन्तु यह भी देखा गया है कि विद्वान माता पिता का बालक अल्पबुद्धि और शारीरिक लक्षणों में कुछ भिन्न भी होता है । पूरी तरह से समान तो व्यक्ति कभी भी नहीं होता है । एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की भिन्नता कम या अधिक हो सकती है । वंशक्रम कुछ नियमों तथा सिद्धांतों पर आधारित है । 

वंशानुक्रम के नियम

वंशानुक्रम का सत्य नियम है कि अपने ही अनुरूप एवं समान जीव का विकास होता है। वे ही विशेषतायें होती हैं जो माता-पिता में होती हैं। साथ ही साथ दूसरा नियम यह है कि सन्तान पूर्णतया माता-पिता के समान नहीं होती है, उसके शारीरिक बनावट में भिन्नता पाई जाती है। इसका कारण माता-पिता के जीन्स बालक में अलग-अलग स्थान ग्रहण करते हैं, अतः भिन्नता उत्पन्न हो जाती है। माता-पिता की संतानों में भी भिन्नता होती है, इसका कारण प्रमुख और गौरण जीन्स के गुण होते हैं। तीसरा नियम यह है कि प्रतिभाशाली माता-पिता की सन्तान प्रतिभाशाली तथा निम्नकोटि के माता-पिता की सन्तान निम्नकोटि की होती है। माता-पिता जो प्रतिभाशाली होते हैं उनके माता-पिता के बीजकोष उन्हें प्रतिभाशाली बनाते हैं। जब उनके बीजकोषों का समागम होता है तो बुद्धिमान बालक का जन्म होता है। परन्तु सदैव माता-पिता अथवा दादा-दादी प्रतिभावाना नहीं हुआ करते हैं। अतः जब पैतृक प्रतिभावान कम प्रतिभावना से मिलते हैं तो बालक में गुण निम्नकोटि के उत्पन्न होते हैं।

वंशक्रम के सर्वाधिक प्रचलित नियम हैं :- 
  1. बीजकोश की निरन्तरता का नियम 
  2. समानता का नियम 
  3. विभिन्नता का नियम
  4. प्रत्यागमन का नियम
  5. अर्जित गुणों के स्थानान्तरण का नियम
  6. प्रभाविकता एवं वियोग का नियम 

1. बीजकोश की निरन्तरता का नियम

इस नियम के अनुसार बालक को जन्म देने वाला बीजकोश कभी नष्ट नहीं होता । इस नियम के प्रतिपादक बीजमैन के अनुसार बीजकोश का कार्य केवल उत्पादक कोशिकाओंका निर्माण करना है जो बीजकोश बालक को अपने माता पिता से मिलता है उसे वह अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कर देता है । इस प्रकार बीजकोश पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है ।’’

2. समानता का नियम 

इस नियम के अनुसार जैसे माता पिता होते हैं वैसी ही उनकी संतान होती है। संतान की शारीरिक रचना और मानसिक योग्यता उसके माता से मिलती जुलती होती है ।’’

3. विभिन्नता का नियम

इस नियम के अनुसार बालक अपने माता पिता के बिल्कुल समान न होकर कुछ भिन्न होते हैं । इस प्रकार एक माता पिता के बालक दूसरे से समानता रखते हुए भी बुद्धि, रंग और स्वभाव में एक दूसरे से भिन्न होते हैं । भिन्नता का नियम डार्विन तथा लैमार्क ने प्रयोगेां द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया । भिन्नता के मुख्य कारण उत्परिवर्तन (Mutations) तथा प्राकृतिक चयन (Natural Selection) बताये जिनके द्धारा वंषक्रमीय विशेषताओं का उन्नयन होता है ।’’

4. प्रत्यागमन का नियम

इस नियम के अनुसार, प्रकृति विशिष्ट गुणों के बजाय सामान्य गुणों का अधिक वितरण करके एक जाति के प्राणियों को एक ही स्तर पर रखने का प्रयास करती है । इस नियम के अनुसार, बालक अपने माता पिता के विशिष्ट गुणों के बजाय सामान्य गुणों केा ग्रहण करते है।’’

5. अर्जित गुणों के स्थानान्तरण का नियम

लैमार्क के अनुसार व्यक्तियों द्वारा अपने जीवन में जो कुछ भी अर्जित किया जाता है, वह उनके द्वारा उत्पन्न किये जाने वाली संपत्ति को स्थानांतरित कर दिया जाता है । इसका उदाहरण देते हुए लैमार्क ने कहा कि जिराफ पशु की गर्दन पहले बहुत कुछ घोड़े के समान थी पर कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण वह लम्बी हो गयी और उसका यह गुण अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होने लगा । इस नियम की समालेाचना की गई, इसे पूर्णतया स्वीकार नहीं किया जाता है ।’’

6. प्रभाविकता एवं वियोग का नियम

मैडल ने वंशानुक्रम के दो महत्वपूर्ण नियम प्रतिपादित किये । मटर पर प्रयोगेां द्धारा मैंडल ने बताया की माता एवं पिता में से जिसका गुण प्रभावी होता है वह अगली पीढ़ी में दिखाई देता है और दूसरे जनक का गुण (लुप्त) छिपा हुआ रहता है । इसे प्रभाव का नियम (Law of Dominance) कहते हैं । उन्होने बताया कि वर्णसंकर प्राणी या जातियॉ आने वाली पीढ़ियों में अपने मौलिक या सामान्य रूप की और अग्रसर होती है यानी किसी एक पीढ़ी में दो गुणों का मेल आगे चलकर अलग-अलग गुणों (शुद्ध प्रकारों) के रूप में प्रदर्शित होते हैं , इसे वियोग का नियम (Law of Segregation) कहा । इस नियम के अनुसार अंत में शुद्ध गुणों वाली संतान रह जाती है ।’’

वंशानुक्रम का व्यक्तित्व पर प्रभाव

  1. शरीर का आकार, कद, त्वचा, बालों तथा नेत्रों का रंग, लम्बाई, गठन वंशानुक्रम से प्रभावित होते हैं।
  2. शारीरिक बल, रुधिर वर्गीकरण, प्रजजन, रोगों के प्रति संवेदनशीलता आदि क्रियात्मक लक्षण होते हैं जो वंशानुक्रम से प्रभावित होते हैं।
  3. बुद्धि, मानसिकता, मूर्खता, चतुराई, वैज्ञानिक तथा साहित्यिक योग्यता लक्षणों पर वंशानुक्रम का प्रभाव पड़ता है।

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