आरक्षण एक उपाय है जिसके माध्यम से कुछ पदों को रोजगार में सुरक्षित किया जाता है तथा संसद, राज्य विधान मंडल एवं स्थानीय निकायों में कमजोर वर्गों अनुसूचित, अनुसूचित जन जातियों, महिलाओं, अन्य पिछडे़ वर्गों अथवा ई.वी.एस., के लिए सीटें आरक्षित की जाती है। आरक्षण का लाभ किसी भी ऐसे समूह द्वारा नहीं किया जा सकता जो कानून द्वारा उनके लिए हकदार नहीं है।
आरक्षण का अर्थ
आरक्षण का सामान्य अर्थ यह है कि अपनी जगह सुरक्षित करना। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा हर स्थान पर अपनी जगह सुनिश्चित करने या रखने की होती है चाहे वो रेल के डिब्बे में यात्रा करने के लिए हो या किसी अस्पताल में अपनी चिकित्सा कराने के लिए। साथ ही विधानसभा या लोक सभा का चुनाव लड़ने की बात हो या किसी सरकारी विभाग में नौकरी पाने की।
1. भारत में आरक्षण की शुरूआत 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ हुई थी। उस समय विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योति राव फूले ने सभी के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की माँग की थी।
1. भारत में आरक्षण की शुरूआत 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ हुई थी। उस समय विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योति राव फूले ने सभी के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की माँग की थी।
2. 1901 में महाराष्ट्र के रियासत कोल्हापुर में साहू महाराज द्वारा आरक्षण की शुरूआत की गई। यह अधिसूचना भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश था।
3. 1909 और 1919 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
4. 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया जिसमें आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।
5. 1935 के भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
6. 1937 में समाज के कमजोर तबकों के लिए सीटों के आरक्षण को ‘गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट’ में शामिल किया गया।
7. भारतीय राज्यों में स्वशासन के अलावा संघीय ढाँचे को बनाने के लिए ब्रिटिश शासकों ने कानून बनाया। इस अधिनियम के साथ ही अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल शुरू किया गया।
8. 1942 में भीमराव अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों के उन्नति एवं समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की। उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की माँग की।
9. 1946 के कैबिनेट मिशन प्रस्ताव में अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया गया।
26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया। भारतीय संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष अनुच्छेदों और धाराओं की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा 10 सालों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किये गये।
10. 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन किया गया। 1956 में आई इस रिपोर्ट के मुताबिक अनुसूचियों में संशोधन किया गया।
11. 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मण्डल आयोग का गठन किया गया था। 1980 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। आयोग ने मौजूदा आरक्षण कोटा में बदलाव करते हुए 22.5 प्रतिशत से 49.5 प्रतिशत वृद्धि करने की सिफारिश की।
3. 1909 और 1919 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
4. 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया जिसमें आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।
5. 1935 के भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
6. 1937 में समाज के कमजोर तबकों के लिए सीटों के आरक्षण को ‘गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट’ में शामिल किया गया।
7. भारतीय राज्यों में स्वशासन के अलावा संघीय ढाँचे को बनाने के लिए ब्रिटिश शासकों ने कानून बनाया। इस अधिनियम के साथ ही अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल शुरू किया गया।
8. 1942 में भीमराव अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों के उन्नति एवं समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की। उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की माँग की।
9. 1946 के कैबिनेट मिशन प्रस्ताव में अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया गया।
26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया। भारतीय संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष अनुच्छेदों और धाराओं की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा 10 सालों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किये गये।
10. 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन किया गया। 1956 में आई इस रिपोर्ट के मुताबिक अनुसूचियों में संशोधन किया गया।
11. 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मण्डल आयोग का गठन किया गया था। 1980 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। आयोग ने मौजूदा आरक्षण कोटा में बदलाव करते हुए 22.5 प्रतिशत से 49.5 प्रतिशत वृद्धि करने की सिफारिश की।
12. वर्ष 2005 में निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों और एससी एवं एसटी वर्ग के आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए 93वां संविधान संशोधन लाया गया।
आरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
समाज के
उन वर्गों की सहायता की आवश्यकता हे जो राज्य या किसी अन्य अभिकरण की सहायता
से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते। क्या आरक्षण अनारक्षित वर्गों के खिलाफ
या भेदभावपूर्ण है? यह सकारात्मक अर्थ में भेदभाव पूर्ण है न कि नकारात्मक अर्थ में। इस
तरह के भेदभाव के लिए उन्हें राज्य की सहायता की आवश्यकता होती है, ताकि अनारक्षित
वर्ग को बराबर लाया जा सके। इस अर्थ में आरक्षण को सकारात्मक भेदभाव भी कहा जाता
है। क्योंकि आरक्षण की पहल राज्य द्वारा की जाती है इसलिए इसे सकारात्मक कार्यवाही
भी कहा जाता है।
भारतीय राज्य विभिन्न समुदायों को भिन्न आधार पर आरक्षण प्रदान
करता है। अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण का प्रमुख आधार सामाजिक भेदभाव एवं
छुआछूत जैसी समस्या रही है जिन्हें उन्होंने बहुत समय से अनुभव किया है। जबकि अनुसूचित जनजातियों को उनके भौगोलिक तथा अन्य कारणों से उत्पन्न अभावों के
आधार पर आरक्षण दिया गया है। जबकि अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण उनके
सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के कारण दिया है। महिलाओं को आरक्षण समाज में
उनके खिलाफ हो रहे भेदभाव एवं पितृसत्ता जैसे मूल्यों के आधार पर दिया गया है। जबकि
गरीब वर्गों को उनके आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया गया है। आर्थिक आधार पर आरक्षण
उन समुदायों को दिया गया है जिन्हें किसी भी वर्ग में आरक्षण नहीं मिल रहा है। ये मूल
रूप से उच्च जातियों से संबंध रखते हैं।
क्या है मौजूदा आरक्षण व्यवस्था?
- वर्तमान समय में अनुसूचित जाति को 15 फीसदी आरक्षण प्राप्त है।
- अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी आरक्षण प्राप्त है तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण प्राप्त है।
१. अनु. जातियों के लिये आरक्षण
अनु. जातियों के लिये आरक्षण की उत्पत्ति पूना समझौते से से जुड़ी हुई है। जिस पर गाँधी और अंबेडकर ने हस्ताक्षर किये थे। पूना समझौते के अनुसार, अनुसूचित जातियों को विधानसभा और संसद में आरक्षण दिया गया था। 1935 के भारत सरकार अधिनियम, तहत आरक्षण को कानूनी मंजूरी दी गई थी। संविधान सभा में अनुसूचित जाति सदस्यों का प्रतिनिधित्व था जिनका ब्रिटिश भारत में विधायी स्वीकृति थी। संविधान सभा में आरक्षण की चर्चा की गयी। संविधान सभा ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें सार्वजनिक संस्थानों में अनु. जाति तथा अनु. जन.जातियों के लिये आरक्षण का सुझाव दिया गया। तदनुसार, आरक्षण के बारे में उपबंध संविधान के अनु. 15 और 16 में शामिल किये गये।1950 में संविधान में लाग ू हाने के साथ-साथ ये प्रावधान भी प्रभावशील हुए। 1947 में अनु. जाति
तथा जन जातियों के आरक्षण को रोजगार और विधानमंडल में लागू करने का निर्णय लिया
गया। 1954 में शिक्षा संस्थानों में इसका विस्तार हुआ। केन्द्र सरकार द्वारा निधिकृत उच्च
शिक्षा संस्थाओं में 22.5 प्रतिशत उपलब्ध सीटें अनु. जाति और 7.5 प्रतिशत अनु. जन.जाति
के छात्रों के लिए आरक्षित है।
2. पिछड़े वर्गों का आरक्षण का इतिहास
यद्यपि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछडे़ वर्गों जैसे अनु. जाति, अनुसूचित जन.जाति, महिला वर्ग, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही आरक्षण लागू किया गया था, लेकिन इसका इतिहास औपनिवेशिक काल से ही रहा है। सन 1880 में औपनिवेशिक सरकार के सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के लिए हंटर आयोग की स्थापना की। ज्योतिराव फूले ने हंटर आयोग के समक्ष अपील की थी। 1902 में कोल्हापुर के महाराजा साहू जी इन वर्गों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही। आधुनिक भारत के इतिहास में यह पहला उदाहरण है आरक्षण देने का। 1921 में मद्रास सरकार ने समुदाय मुताबिक आरक्षण देने का प्रावधान किया वो इस प्रकार है : 44 प्रतिशत गैर-ब्राह्मणों को, 16 प्रतिशत ब्राह्मणों एवं मुस्लिम, ईसाई और आंग्ल. भारतीय लोगो प्रत्येक के लिए।
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