ब्रह्म समाज एक सामाजिक-धार्मिक आंदोलन था जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। ब्रह्म समाज के माध्यम से समाज सुधार का प्रारंभ देश के पूर्वी भाग-बंगाल से हुआ था। हिन्दु
धर्म में पहला सुधार आन्दोलन ब्रह्मसमाज था। इस आन्दोलन का नेतृत्व राजा राममोहन राय (1774-1833)
ने किया था। इसी कारण राजा राममोहन राय को भारत के नवजागरण का अग्रदूत, सुधार आन्दोलनों
का प्रवर्तक एवं आधुनिक भारत का पहला महान नेता माना जाता है। वह एक बहुत बड़े विद्वाने थे जो
अरबी, फारसी, संस्कृत जैसी प्राच्य भाषाएं और अंग्रेजी, फ्रांसीसी, लातीनी और ब्री भाषाएँ जानते थे।
राजा राममोहन राय |
ब्रह्मसमाज की स्थापना 20 अगस्त, 1828 ई. को राजा जी द्वारा कलकत्ता में की गई थी।
राजा राममोहन
राय का जन्म 1772ई. में राधानगर नामक बंगाल के एक गांव में हुआ था। राजा जी ब्रह्म समाज के
संस्थापक ही नहीं थे अपितु वे महान समाज सुधारक भी थे। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उन्होंने सुधार
के प्रशंसनीय प्रयत्न किये।
ब्रह्मसमाज ने भारतीय समाज की अनेकानेक कुरीतियाँ यथा सती प्रथा, बालविवाह, बहुविवाह,
जातिप्रथा, पर्दाप्रथा, अस्पृश्यता आदि का प्रबल विरोध किया। इसके साथ ही स्त्री शिक्षा, अन्तर्जातीय
विवाह, विधवा विवाह आदि जैसे रचनात्मक और सकारात्मक कार्यो में भी उल्लेखनीय योगदान दिया।
ब्रह्म समाज ने धर्म के क्षेत्र में मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, धार्मिक आंडबरो और पंडित पुरोहितों के वर्चस्व के
खिलाफ आवाज उठाई। उपनिषदों व वेदों पर आधारित, दृष्टिकोण रखने वाले ब्रह्म समाज ने
एकेश्वरवाद व सर्व धर्म समभाव का प्रचार किया।
ब्रह्मसमाज एवं राजा राममोहन राय के प्रयासों के फलस्वरूप 1829 में सरकार ने कानून बनाकर
सती प्रथा पर रोक लगा दी। इसके अलावा भारतीय समाज में जाति प्रथा का प्रचलन था, राजा जी ने
ब्रह्मसमाज के माध्यम से जाति प्रथा का प्रबल विरोध किया। कट्टर लोकतांत्रिक और मानवतावादी होने
के नाते उन्होंने जाति प्रथा के विरोध में भाषण दिए और लेख लिखें। एक और क्षेत्र था जिसकी ओर
उन्होंने ध्यान दिया वह था हिन्दु धर्म। वेद और उपनिषद के अध्ययन से उन्होंने ऐसे साक्ष्य ढूंढ निकाते
जिनसे यह सिद्ध किया जा सकता था कि आरंभ में हिन्दु धर्म में एकेश्वरवाद था, इसलिए ब्रहा्र समाज
ने बहुदेववाद और मूर्तिपूजा का खण्डन किया। ब्रहा्र समाज ने यह भी घोषित किया कि सभी धर्मो और
मानवों का एक ही परमात्मा है।
ब्रह्म समाज ने हिन्दु धर्म को सुधारने और एक ईश्वर के प्रति विश्वास पर
बल दिया। इसने मानव मर्यादा का पक्ष लिया और मूर्तिपूजा का विरोध किया ब्रह्म समाज ने सती प्रथा
जैसी जघन्नय सामाजिक कुरीति का विरोध किया।
ब्रह्म समाज का उद्देश्य एक नया धर्म स्थापित करना
नहीं था अपितु एक ऐसा मंच तैयार करना था जहां एक परमात्मा में विश्वास रखने वाले लोग एकत्र
होकर प्रार्थना कर सके। इसमें न तो मूर्ति पूजा का विधान था और न बलि देने या यज्ञ करने की आज्ञा
थी।
राजा राममोहन के बाद ब्रह्म समाज का नेतृत्व देवेन्द्र नाथ टैगोर (1817-1905) के हाथ आया
उन्होंने धर्म ग्रन्थों में दोष देखे इसलिए उन्होंने उस सिद्धांत को त्याग दिया। देवेन्द्र नाथ टैगोर से केशव
चन्द्र सेन (1838-1884) ने ब्रह्म समाज का कार्यभार संभाला। इस प्रकार यह प्रथम संगठित संस्था बन
गई, जिसने राष्ट्रीय जागृति को प्रोत्साहन दिया और भारत के लोगों के लिए एक नया युग आरंभ किया।
ब्रह्म समाज के उद्देश्य
- हिंदू धर्म की कुरीतियों को दूर करते हुए, बौद्धिक एवं तार्किक जीवन पर बल देना।
- एकेश्वरवाद पर बल।
- सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करना।
ब्रह्म समाज के सिद्धांत
- ईश्वर एक है और वह संसार का निर्माणकर्ता है।
- आत्मा अमर है।
- मनुष्य को अहिंसा अपनाना चाहिए।
- सभी मानव समान है।
ब्रह्म समाज के कार्य
- उपनिषद एवं वेदों की महत्ता को सबके सामने लाया।
- समाज में व्याप्त सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह के विरोध में जोरदार संघर्ष।
- किसानों, मजदूरों, श्रमिकों के हित में बोलना।
- पाश्चात्य दर्शन के बेहतरीन तत्वों को अपनाने की कोशिश करना।
ब्रह्म समाज का मूल्यांकन
राजा राममोहन राय ने सर्वप्रथम भारत में धर्म सुधार एवं समाज सुधार आन्दोलन प्रारंभ किया । वे एक दूरदर्शी एवं महान चिन्तक भी थे । उन्होंने आधुनिक शिक्षा का प्रबल समर्थन किया । पाश्चात्य शिक्षा से प्रगतिशील विचारों की जानकारी हो सके इसी लिये उसका समर्थन किया । वे पत्रकारिता के अग्रदूत, विश्वराजनीति के ज्ञाता तथा राष्ट्रवाद के जनक थे । उन्होंने सती प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध कर नारी की स्वतंत्र व उसके अधिकारों की वकालत की ।
उपलब्धि
- 1829 में विलियम बेंटिक ने कानून बनाकर सती प्रथा को अवैध घोषित किया।
- समाज में काफी हद तक सुधार आया।
- समाज में जाति, धर्म इत्यादि पर आधारित भेदभाव पर काफी हद तक कमी आई।
Tags:
ब्रह्म समाज