दलीय प्रणाली के प्रकार और सीमाएं

दलीय प्रणाली लोकतंत्र का आधार है और यह जनता और सरकार के बीच एक कड़ी है।

दलीय प्रणाली के प्रकार

मुख्य रूप से दलीय प्रणाली की तीन श्रेणियां है :
  1. एक दलीय प्रणाली
  2. द्वि-दलीय प्रणाली
  3. बहु दलीय
1. एक दलीय प्रणाली - एक दलीय प्रणाली पर केवल एक पार्टी (दल) का शासन होता है इसका कोई विरोध नहीं होता है। इस सत्तावादी सिद्धान्त को पहले राजतंत्रों आरै बाद में एक तानाशाही के रूप में पाया गया और अब ये व्यवस्था कुछ जन तांत्रिक देशों में माजैदू है। फिर भी ऐसे शासनों में भी चुनाव कराए जाते है। यदि दर्शकों के सामने लोकप्रिय समर्थन के रूप में शासन को पेश किया जाए मतदाता चयन केवल एक उम्मीदवार के लिए सीमित होता है एक दलीय प्रणाली का अत्यावश्यक कार्य राजनीति के बड़े निर्गम पर गन संपन्न मतदाताओं के फैसले लेने लिए नहीं बल्कि अनुशासन और अनुशासन को सुनिश्चित करने के लिए है। लोगों के बीच आज्ञाकारिता प्रणाली को औपचारिकता प्रदान करती है। और उस प्रकार लोकतांत्रिक अधिकारी को कम करती है क्योंकि सत्ता औपनिवेशिक देशों या अन्य राज्यों के मामलों में होती है। इस प्रणाली में भाषा और अभिव्यक्ति, प्रेस और संघों की स्वतंत्रता को समाप्त करना शामिल है। इस प्रकार की दलीय व्यवस्था जनता के लोकतंत्र और अधिकारों का समर्थक नहीं है। इस प्रणाली में कहीं कोई विरोध न तो पार्टी के और न ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का प्रावधान हातेा है। चीन में एक दलीय व्यवस्था है। 

2. द्वि-दलीय प्रणाली - द्वि-दलीय प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें अन्य दलों की मौजूदगी के बावजूद सिर्फ दो ही पक्ष मतदाताओं का सबसे अधिक समर्थन प्राप्त करते हैं इनमें से एक सत्ताधारी तथा दूसरी विरोधी पार्टी होती है। यह इस पर निर्भर करता है कि चुनाव में किस पार्टी को बहुमत मिलता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किगडम दो दलीय प्रणाली के अच्छे उदाहरण है। अमेरिका में डैमाकेटिक और रिपब्लिकन पार्टियां प्रमुख दलें हैं और ब्रिटेन में लेबर और कंजरवेटिव पार्टी मुख्य दल हैं।

3. बहु-दलीय प्रणाली - बहु दलीय प्रणाली यह एक ऐसी प्रणाली है जिसमें दो से अधिक दल मौजूद है जो सत्ता के लिए एक दूसरे के साथ संघर्ष करते है। भारत और कई यूरोपीय देशों के पास एक बहुआयामी प्रणाली ही बहु.दलीय प्रणाली में तीन, चार या इससे अधिक दल गठबंधन सरकार बनाने और शासन के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम अपनाने के लिए एकजुट होते है। बहुदलीय प्रणाली दो प्रकार की हैं अस्थिर आरै स्थिर काम कर रहे भारत में  1996-1998 के दौरान इस प्रणाली की तरह बर्ताव करती है। और इस प्रकार सरकार को स्थिरता प्रदान करती है। हालांकि उनमें दो से अधिक राजनैतिक दल हैं। बहुदलीय प्रणाली गठबंधन सरकार को बढा़वा देती है और 1990 के दशक से भारत में गठबंधन सरकार रही है।  इस प्रणाली की कमी यह है कि मंत्री परिषद के सदस्य अपने दल के अध्यक्षों के नेतृत्व में कार्य करने के बजाय ब्लैकमेल (भयादोहन) या सरकार में फेर बदल करने के लिए प्रयास करते है। सरकार की अस्थिरता इस प्रकार की पार्टी पद्वति में एक समस्या थी।

भारत में दलीय प्रणाली ने एक ही पार्टी कांग्रेस के प्रभुत्व से लेकर कई पार्टियों के गुणन में विभिन्न चरणों में दिखाई दिया है।

भारत में दलीय प्रणाली की सीमाएं

एक सुगठित संगठन, विचारधारा, आंतरिक लोकतंत्र, लोकतंत्रात्मक नेतृत्व और नीतियों तथा कार्यक्रम लोकतंत्र में राजनीति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं है। भारत में अधिकांश राजनीतिक दल आम तौर पर इन मापदंडो को पूरा नहीं करते। हालांकि कुछ पार्टियों के संगठन होते है। लेकिन सभी तरह की पाटियाँ राष्ट्रीय राज्य या अपेक्षीकृत पार्टियों व्यक्तित्व के पीछे मिल जुलकर रही है। राज्यों के अधिकांश दलों को उनके नेताओं द्वारा ज्ञात है कि उनकी नीतियों या राजनीतिक दलो  के रूप में उनकी नीतियों या पार्टियों  का आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता है। जिसमें निर्णय लोकतंत्री ढंग से नहीं लिए जाते या पार्टियों  के भीतर व्यक्ति या व्यक्ति समूह बड़े-बडे़ निर्णय लेते है। कुछ पार्टियों सभी के बनाये  समाज के विशिष्ट वर्गों के हितों  को उठाती है। भारत में नेहरू के बाद के युग में पार्टी की संरचना (ढ़ांचा) का कमजोर होना शुरू हुआ। गुटबाजी और आंतरिक प्रतिस्पर्धा के परिणाम स्वरूप भारत में  पार्टियों के बीच फूट हुई और गुट बने। राजनीतिक दलों, अपराधियों  कारपोटेट सेक्टर, और भ्रष्टाचार के बीच संबंधों भारत में दलीय प्रणाली को सीमित बनाते है।

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