लोकतंत्र का अर्थ, परिभाषा, प्रकार

लोकतंत्र का अर्थ है- ऐसी सरकार जो जनमत पर आधारित होती है और इसके प्रति उत्तरदायी होती है। दूसरे शब्दों में, लोकतंत्र का अर्थ है- ऐसी व्यवस्था जिसमें लोगों की शक्ति सर्वाेच्च होती है। वह सरकार के निर्धारक होते है। बहुमत का शासन होता है।

लोकतंत्र का अर्थ

लोकतंत्र पद ग्रीक शब्द “डेमोस” और “क्रेटोस” से ग्रहण किया गया है। “डेमोस” का अर्थ है जनता और “क्रेटोस” का अर्थ है शक्ति। इस प्रकार लोकतंत्र शब्द का अर्थ है “जनता की शक्ति”। अर्थात ’डेमोक्रेसी’ का अर्थ हुआ ’लोक शक्ति’ अथवा शासन का वह स्वरूप जिसमें सर्वाेच्च शक्ति लोगों के पास होती है। वर्तमान समय में यह शासन का सर्वाधिक लोकप्रिय स्वरूप बन चुका है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से स्वयं शासन करती है। 

लोकतंत्र की परिभाषा

राजनीतिक वैज्ञानिकों ने लोकतंत्र की बहुत-सी परिभाषाएं दी हैं। हर वैज्ञानिक ने अपने समय के अनुसार लोकतंत्र की व्याख्या की है। कुछ प्रसिद्ध परिभाषाएं निम्नलिखित हैं:

म्यूलर (2009) के अनुसार, “लोकतंत्र एक राजनीतिक व्यवस्था या पद्धति है जिसमें समुदाय का एक महत्वपूर्ण भाग सरकार के कार्य के निर्धारण में सहभागी होता है।” उनकी सहभागिता प्रत्यक्ष रूप से समुदाय का सामूहिक चयन अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधियों के चुनाव को सुनिश्चित कर सकती हैं। इस व्यवस्था का मुख्य मानक यह है कि इसमें नागरिकों की उपेक्षाओं तथा राज्य से उनकी प्राप्ति के मध्य एक सम्बन्ध होता है। 

उदार लोकतंत्र में नागरिक न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं बल्कि विचार और कार्य की स्वतंत्रता का भी उपभोग करते हैं। यह स्वतंत्रता संवैधानिक अधिकारों द्वारा संरक्षित होती है और न्याय तंत्र द्वारा सशक्त होती है। 

लोकतंत्र की प्रारंभिक परिभाषाएँ इसके संख्यात्मक मानकों पर केन्द्रित थी जैसा कि ग्रीकवासियों के अनुसार इस शासन का अर्थ था “बहुतों द्वारा शासन”। परंतु आधुनिक लेखक संख्यात्मक मानदंडों को अपनाने के स्थान पर लोकतंत्र के उन सिद्धान्तों पर बल देते हैं कि राज्य के निर्देशन में उन लोगों को सहभागी होना चाहिए जो नागरिक के कर्त्तव्यों का निर्वहन करने के लिए उपयुक्त हैं। 

ब्रायसी ने “माडर्न डेमोक्रेमसी” में कहा है कि “यह शासन का एक स्वरूप है जिसमें बहुसंख्य सुयोग्य लोगों की इच्छा द्वारा शासन किया जाता है।”

अवस्थी (2012) ने बहुत महत्वपूर्ण बात लिखी है कि लोकतांत्रिक सरकार बनाने के लिए केवल मात्र, लोगों की सहमति ही आवश्यक नहीं है। यद्यपि प्लेटो के शब्दों में लोगों को स्वयं का प्रहरी या रक्षक होना चाहिए। वास्तविक लोकतंत्र बनाने हेतु लोगों की सहमति भी वास्तविक, सक्रिय और प्रभावी होनी चाहिए। यदि लोकतंत्र वास्तविक रूप में जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन का 49 दावा करता है तो इसका संकल्प सरकार की नीतियों आरै सामाजिक-आथिर्क दिशा-निदेर्शों से जुड़े प्रश्नों में सर्वोपरि होना चाहिए। इस प्रकार लोकतंत्र का अर्थ है लोगों का बहुमत। 

लोकतंत्र प्रत्येक योग्य नागरिक को राज्य से सम्बन्धित मामलों पर अपना मत व्यक्त करने की अनुमति प्रदान करता है। लोकतंत्र स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व की अवधारणा पर आधारित है। इसका सिद्धांत है कि वे सभी व्यक्ति जो नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के योग्य हैं राज्य के दिशा-निर्देशन में उनकी सहभागिता होनी चाहिए। यह व्यक्तियों के मध्य भेद नहीं करता है। एक लोकतांत्रिक समाज में सभी धर्म, वर्ग, वंश, जाति, जन्म और सम्प्रदाय के लोग किसी भी भेदभाव के बिना समान अधिकारों और सुविधाओं का उपयोग करते हैं।

माइकल मूर के अनुसार लोकतंत्र एक देखा जाने वाला खेल नहीं हैं, यह एक सहभागिता वाली घटना है। यदि हम इसमें भाग नहीं लेते हैं, तो लोकतंत्र का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इसी प्रकार सारटोरी ने लोकतांत्रिक युग को प्रजातांत्रिक भ्रांति का युग कहा है क्योंकि लोकतंत्र राजनीतिक सिद्वान्तों की सबसे भ्रमपूर्ण धारणा है। लोकतंत्र केवल सरकार को चुनने अथवा शासन प्रणाली का एक तरीका, ही नहीं बल्कि इसे एक तरह का समाज तथा जीने का तरीका एक आदर्श अथवा एक उद्देश्य के रूप में परिभाषित किया गया है। आधुनिक युग में लोकतंत्र न केवल प्रशासनिक पक्ष, बल्कि सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक आदि सभी पक्षों का वर्णन करता है। यह व्यक्तियों की समानता, सुरक्षा व स्वतन्त्रता पर बल देता है।

सच्चे लोकतंत्र की स्थापना स्वतंत्र तथा निष्पक्ष निर्वाचन के द्वारा ही सम्भव है। लोकतन्त्रीय प्रणाली की सफलता की यह एक बड़ी शर्त है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान में एक स्वतन्त्र अभिकरण की व्यवस्था की गयी है जिसे निर्वाचन आयोग के नाम से जाना जाता है।

लोकतंत्र के प्रकार

1. शास्त्रीय लोकतंत्र

शास्त्रीय लोकतंत्र का आधार प्राचीन यनू ानी नगर.राज्यों मं े विकसित एक ऐसी शासन प्रणाली से था जो कि सम से बड़े और शक्तिशाली नगर.राज्यों में जनसमूहों की बैठक पर आधारित था। इस स्वरूप का महत्वपूर्ण स्वरूप यह था कि लोग राजनीतिक रूप से अत्यधिक सक्रिय थे। सभा की बैठकों के अतिरिक्त नागरिक निर्णय निर्माण और सार्वजनिक कार्यालयों म ंे अपना योगदान देते थे। हालाँकि इसमें महिलाओं, दासों और प्रवासियों को नागरिकता से वंचित रखा गया था। दासों और महिलाओं के काम करने की वजह से एथेंसवासी पुरुषों को राजनीतिक मामलों में भाग लेने का मौका मिलता था। इस वजह से यह दूर्भाग्यपूर्ण और अलोकतांत्रिक था कि उन्हें नागरिकता से बाहर रखा गया। 

प्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में एथेंस के लोकतंत्र की यह कहकर आलोचना की कि लोग अवधारणाएँ स्वयं पर शासन करने के लिए बौद्धिक रूप से योग्य नहीं थे, उन्हें दार्शनिक राजा और अभिभावकों से शासित होने की आवश्यकता है क्योंकि यही उनके अनुकूल है।

2. कुलीन सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन विल्फ्रेडो पैरेटो, जी. मोस्का, राॅवर्ट मिशेल्स और जोसेफ शुम्पीटर ने किया था। इस सिद्धांत का विकास समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में हुआ था लेकिन इसका महत्वपूर्ण निहितार्थ राजनीति शास्त्र के साथ भी है। मिशेल्स ने ‘अल्पतंत्र का लौह नियम’ दिया, जिसके अंतर्गत उन्होंने तर्क दिया कि अपने वास्तविक लक्ष्य से इतर प्रत्येक संगठन अल्पतंत्र के रूप में सीमित होकर ‘कुछ लोगों के शासन’ के रूप में परिवर्तित हो जाता है। 

मोस्का का कहना है कि लोगों को दो श्रेणियों शासक और शासित के रूप में विभाजित किया जा सकता है। चाहे कोई भी शासन प्रणाली हो अधिकांश शक्ति, प्रतिष्ठा असैर सपंत्ति शासक वर्ग के हाथों में होती है। शासक के पास यदि नेतृत्व का गुण नहीं होता है तो वह कुलीनों का अनुसरण करने लगता है। 

यह सिद्धांत लोकतंत्र के समक्ष एक गंभीर प्रश्न खड़ा करता है और यह सलाह देता है कि यदि कुलीन शक्ति और संपत्ति और निर्णय निर्माण का नियंत्रण करेंगे तो लोकतंत्र व्यवहारिक धरातल पर नहीं आ सकता।

3. बहुलवादी सिद्धांत

कुलीन सिद्धांत के विपरीत बहुलवादी विश्वास करते हैं कि नीति-निर्माण एक विकेद्रीकृत प्रक्रिया है, जहाँ विभिन्न समूह अपने विचारों को स्वीकृति दिलाने के लिए मोल.तोल करते हैं। यह विभिन्न समूहों के बीच आपसी बातचीत का परिणाम होता है ना कि कुछ कुलीनों के। इस सिद्धांत के प्रतिपादकों में कार्ल मैंनहाईम, रेमंड आरों, राॅबर्ट, डह्ल, चाल्र्स लिंडब्लोम हैं। डह्ल और लिंडब्लोम ने ‘बहुतंत्र’ की संकल्पना दी, जिसका मतलब था सभी नागरिकों के शासन के बजाए बहुत से लोगों का शासन। 

संक्षेप में, वे कहते हैं कि यद्यपि राजनीतिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग और आर्थिक रूप से शक्तिशाली वर्ग सामान्य नागरिक की अपेक्षा अधिक प्रभाव रखते हैं, फिर भी कोई भी संभ्रांत व्यक्ति राजनीतिक प्रक्रिया में सदैव हावी रहने योग्य नहीं होता है।

4. सहभागी लोकतंत्र

इस सन्दर्भ में सभी लोकतंत्र सहभागी होते हैं कि वे लोकप्रिय सहमति पर आधारित होते हैं, जोकि इसके सहभागी प्रकृति को सुनिश्चित करता है। हालाँकि लोकतंत्र में यह संभावना रहती है कि लोगों की भूमिका मतदान तक ही समिति रह जाए। ऐसे जटिल लोकतंत्रों में निर्वाचित प्रतिनिधि और नागरिकों की बीच दूरी बढ़ जाती है जहाँ लोग जाति, वर्ग, धर्म और क्षेत्र आदि आधारों पर विभाजित होते हैं। कुलीनतंत्रीय और बहुलवादी सिद्धांत के विपरीत सहभागी लोकतंत्र सामान्य हित को प्रोत्साहित करने के लिए नीति निर्माण मं े नागरिकों की सहभागिता का समर्थन करता है, साथ ही यह सरकार की नागरितों के प्रति अधिक जिम्मेदार बनाता है। 

रूसो, जे.एस.मिल और सी.बी.मैकफर्सन ने सहभादी लोकतंत्र के विचार को समर्थन दिया। रूसो का कहना है कि लोकप्रिय संप्रभूता लोगों के हाथों में स्थित सर्वाधिक, महत्वपूर्ण शक्ति है, जोकि उनका अहस्तान्तरणीय अधिकार है और सभी नागरिकों को राज्य के मामले में शामिल होना चाहिए। मिल का कहना है कि जो सरकार अपने नागरिकों के नैतिक, बौद्धिक और सक्रिय गुणों को प्रोत्साहित करे, वह सबसे अच्छी सरकार होती है।

5. विमर्शी लोकतंत्र

लाके तंत्र विमर्शी लोकतंत्र का तर्क है कि राजनीतिक.निर्णय नागरिकों के बीच न्यायपूर्ण और तर्कसंगत विमर्श के माध्यम से होना चाहिए। सर्वहित की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम की प्राप्ति हो सके। जाॅन राल्स और जे. हैबरमास ने विमर्शी लोकतंत्र के पक्ष में तर्क दिया है। राल्स का मत है कि एक न्यायपूर्ण राजनीतिक समाज की प्राप्ति के लिए विवेक के माध्यम से हम स्वार्थ पर नियंत्रण पा सकते हैं। हैबरमास का मत है कि न्यायपूर्ण प्रक्रिया और स्पष्ट संचार के माध्यम से निर्णयों पर सहमति बनाई जा सकती है तथा वैद्यता प्राप्त किया जा सकता है।

6. जनवादी लोकतंत्र

जनवादी लोकतंत्र का आशय लोकतंत्र के उस माॅडल से है जिसका निर्माण साम्यवादी परंपरा के अंतर्गत किया गया है। माक्र्सवादियों की अभिरुचि सामाजिक समानता में रही है इस कारण लोकतंत्र का उनका अपना माॅडल है जोकि पश्चिमी माॅडल के विरुद्ध है; क्योंकि पश्चिमी माॅडल के अंतर्गत राजनीतिक समानता स्थापित करने की बात की जाती है। जनवादी लोकतंत्र की स्थापना सर्वहारा क्रांति के बाद हुई जब सर्वहारा.वर्ग ने राजनीतिक निण्र् ायो ं म ें अपनी भूमिका निभाना शुरू कर दिया। 

कार्ल माक्र्स ने सर्वहारा क े शासन की बात की, वहीं लेनिन ने इस अवधारणा को बदलते हुए सर्वहारा के अगुआ के रूप में एक दल की भूमिका से अवगत कराया। हालाँकि लेनिन ने ऐसे किसी तंत्र की स्थापना नहीं की जो कि दल की शक्ति का परिक्षण करता रहे और यह सुनिश्चित करे कि शक्तिशाली नेता सर्वहारा के प्रति जवाबदेह बने रहेंगे। ऐसे मं,े अंततः जनवादी लोकतंत्र के माध्यम से साम्यवाद को आत्मनियंत्रण का रास्ता मिला है।

7. समाजवादी लोकतंत्र 

समाजवादी लोकतंत्र माक्र्सवादी चिंतन में आधारतभूत परिवर्तन की बात करता है। यद्यपि दोनों के लक्ष्यों में समानता है, परन्तु समाजवादी लोकतंत्र क्रांति के बजाय उत्पादन के साधनों पर राज्य के नियंत्रण के माध्यम से इसे प्राप्त करना चाहते हैं। समाजवादी लोकतंत्रवादी लोकतंत्र की इस माक्र्सवादी समालोचना में विश्वास नहीं रखते क्यांेकि इसमें वर्गीय.शासन के लिए बुर्जुआ ताकतें मुखौटा पहने रखती हैं। इसके बजाए समाजवादी लोकतंत्रवादी लोकतंत्र को समाजवादी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अनिवार्य मानते हैं। इस कारण वे नागरिकों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए व्यापार और उद्योग में राज्य के नियंत्रण की बात करते हैं।

8. ई. लोकतंत्र 

यह तुलनात्मक रूप से नयी संकल्पना है, लेकिन यह पूर्व के सिद्धान्तकारों द्वारा किये गये कार्यों पर ही आधारित है। प्रतिनिधि लोकतंत्र को और अधिक बेहतर बनाने या इसे प्रतिस्थापित करने के लिए सूचना और प्रौद्योगिकी को प्रयोग ही इलेक्ट्रानिक लोकतंत्र या ई.लोकतंत्र कहलाता है। सभी लोकतंत्रों में उभयनिष्ठ समस्याएँ यथा-मापन का मुद्दा, समय का अभाव? सामुदायिक मूल्यों में गिरावट, नीतियों पर विमर्श के लिए अवसरों का अभाव आदि को डिजिटल संचार के माध्यम से ही निबटा जा सकता है। 

ई. लोकतंत्र के समर्थकों ने नीति.निर्माण में सक्रिय नागरिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सहभागी.लोकतंत्र के विचार का निर्माण किया है।

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