रिकार्डो का आर्थिक विकास सिद्धांत

डेविड रिकार्डो के विकास सम्बन्धी विचार उनकी पुस्तक “The Principles of political Economy and Taxation” (1917) में जगह पर अव्यवस्थित रुप में व्यक्त किये गये। इनका विश्लेषण एक चक्करदार मार्ग है। यह सीमान्त और अतिरेक नियमों पर आधारित है। शुम्पीटर ने कहाँ रिकार्डो ने कोई सिद्धांत नही प्रतिपादित किया केवल स्मिथ द्वारा छोड़ी गयी कड़ियों को अपेक्षाकृत एक अधिक कठोर रूप से जोड़ने का प्रयास अवश्य किया। इसी तरह का विचार मायर एवं वाल्डविन आदि का था।

रिकार्डो का आर्थिक विकास सिद्धांत

डेविड रिकार्डो परम्परावादी अर्थशास्त्री हुए है। वह पहले अर्थशास्त्री थे जिन्होनें पुराने सिद्धान्तों को आर्थिक विश्लेषण की प्रक्रिया में ढाला है। रिकार्डो की पुस्तक The Principle of Political EconomyAnd Taxation 1917 में प्रकाशित हुई जिसमें की आर्थिक विकास के बारे में जानने के लिए कुछ रोचक तत्व मिलते है। एडम स्मिथ का अधिक ध्यान राष्ट्रों की सम्पति की ओर रहा है जबकि रिकार्डो ने अपने माॅडल में सीमान्त नियम की भी बात की है। जोकि यह बताता है कि राष्ट्रीय उत्पादन में लगान का भाग कितना है। 

इस माॅडल में इस बात की भी व्याख्या की गई है कि समस्त भूमि को अनाज के उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जाता है और भूमि पर घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है।

रिकार्डो ने विकास के बारे में कुछ इस प्रकार बताया है अर्थात विकास के लिए इन तत्वों को शामिल किया है।

1. पूंजी संचय

रिकार्डो ने विकास सिद्धान्त में तीन साधनों को महत्व दिया है 1. भूमिपति 2. पूंजीपति 3. श्रमिक। विकास के महत्वपूर्ण कार्य इन तीन साधनों द्वारा ही किए जाते हैै। सबसे महत्वपूर्ण स्थान पूंजीपति को दिया जाता है। इसका मुख्य कारण है कि ज्यादा मात्रा में बचत इसी वर्ग द्वारा की जाती है। पूंजीपतियों के जो अपने लाभ होते है उसी लाभ की कुछ अंश को बचत के रूप में रखते है और बचत पूंजी संचय में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

पूंजी - संचय में बचत लोगों की शुद्ध आय पर निर्भर करती है जोकि लोगों के जीवन निर्वाह के पश्चात जो कुल उत्पादन में से अतिरेक के रूप में बचती है। जितना यह अतिरेक अधिक होगा बचत की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। इसी अतिरेक द्वारा भूमिपति और पूंजीपति द्वारा निवेश किया जाता है। जिस प्रकार से पूंजी संचय के लिए लाभ को प्राथमिक स्रोत माना जाता है उसी प्रकार से मजदूरी और किरायो को दूसरे साधनों में शामिल किया जाता है। अब प्रश्न उठता है कि लाभ कहां से आता है। लाभ को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है कि लाभ कहां से आता है। लाभ को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है कि लाभ बने माल का बाजारी मूल्य और उसकी लागत का अन्तर है। पूंजीपतियों के लाभ द्वारा ही पूंजी संचय के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग इसलिए समझा जाता है क्योंकि सबसे बडा अर्थव्यवस्था में यही से लगाया जाता है। मजदूरो और किरायेदारों द्वारा इतनी मात्रा में बचत नहीं की जाती। लाभ को प्राप्त करने के लिए पूंजीपतियों द्वारा दो महत्वपूर्ण कार्य किए जाते है 

1. पूंजीपति को विकास करने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण समझा जाता है। वह अपने लाभ को या तो अपने वर्तमान संयन्त्रों को बढाने के लिए लगाता है या फिर नए उद्योगों को शुरू करने में लगाता है। लाभ का अत्यधिक मात्रा में निवेश किया जाता है। इस प्रकार से जिस से नए उद्योग स्थापित होते है। इसके कारण बाहरी बचते उत्पन्न होती है और बाहरी बचतों के कारण पूंजी संचय को काफी मात्रा में बढावा मिलता है और इस प्रकार से विकास की शक्तियों को बढावा मिलता है।

2. पूंजीपति जिनसे लाभ हो सकता हो ऐसी निवेश संभावनाओं की खोज में रहता है। जब उन्हें लगता है कि निवेश करने से लाभ की संभावनाएं है तो वह उनसे लाभ उठाने की सोचता है और इस प्रकार से ऐसी निवेश संभावनाएं ही राष्ट्रीय उत्पादन को अधिकतम बनाती है।

दूसरे साधन अर्थात श्रमिक वर्ग का भी उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण साधन है। इस वर्ग को रोजगार प्राप्त करने के लिए पूंजीपतियों पर निर्भर रहना पडता है। पूंजीपतियों द्वारा श्रमिकों को रोजगार दिया जाता है और उनके द्वारा वस्तुओं के उत्पादन के लिए उन्हें आवश्यक यन्त्र और औजार भी दिए जाते है। श्रमिकों को प्राप्त होने वाली मजदूरी, वेतन कोष द्वारा निर्धारित होता है। मजदूरी दर का निर्धारण, वेतन कोष और श्रमिकों की संख्या द्वारा किया जाता है। यदि मजदूरी दर कम होगी तो श्रमिकों की ज्यादा मात्रा को काम पर लगाया जायेगा क्योंकि पूंजीपतियों द्वारा अपने उत्पादन को अधिक मात्रा में बढाना चाहेगा। इसी प्रकार से यदि मजदूरी दर ज्यादा होगी तो श्रमिकों की कम मात्रा को काम पर लगाया जायेगा क्योंकि ज्यादा मात्रा में श्रमिक लगाने से उत्पादन की लागत अधिक होगी जिससे कि पूंजीपतियों के लाभ कम हो जायेंगे जोकि पूंजी संचय को काफी मात्रा में प्रभावित करेंगे अर्थात पूंजी संचय कम होगा। यदि श्रमिकों के लिए मजदूरी - दर पर्याप्त मात्रा में हों तो श्रमिक वर्ग अपने जीवन सुविधाओं की वस्तुओं को खरीद सकते है तो इस कारण जनसंख्या बढ जायेगी। यदि श्रमिकों के लिए मजदूरी दर पर्याप्त मात्रा में नही होगी तो श्रमिक - वर्ग अपने जीवन सुविधाओं की वस्तुओं को खरीद नहीं पायेंगे तो इस कारण जनसंख्या कम होगी। अतः कहा जा सकता है कि मजदूरी दर और जनसंख्या में सकारात्मक संबंध है। रिकार्डो ने कृषक लाभ को आधार मानते है लाभ और पूंजी संचय पर मजदूरी के प्रभाव की व्याख्या करने के लिए।

पूंजी संचय के लिए रिकार्डो सिंद्धान्त में कुछ अन्य साधन भी माने है जो इस प्रकार है:

1. कर - सरकार के हाथों में कर को पूंजी संचय के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता हैै। रिकार्डो ने कर के बारे में बताया है कि करों को केवल अनावश्यक उपभोग को कम करने के लिए ही लगाना चाहिए। पूंजीपतियों, मजदूरों और भूिमपतियों पर कर लगाने से साधनों का हस्तांतरण इन वर्गो से सरकार को होगा। इसलिए निवेश पर करो का प्रतिकूल प्रभाव पडता है। रिकार्डो ने कर को सही नही बताया क्योंकि कर लगाने से लाभ काम होगें और फिर पूंजी संचय कम होगा।

2. बचत - पूंजी संचय के लिए बचत अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। बचतों के द्वारा पूंजी संचय का निर्माण होता है। बचत जितनी मात्रा में अधिक होगी पूंजी संचय भी उतना ही अधिक होगा और बचत जितनी मात्रा में कम होगी पूंजी संचय भी उतना ही कम होगा।

3. मुक्त व्यापार - रिकार्डाे ने मुक्त व्यापार को किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए अत्यनत महत्वपूर्ण बताया है। मुक्त व्यापार के द्वारा सभी देशों के साधनों का अधिक ढंग से उपभोग किया जा सकता है। इस सिद्धान्त ने भी उत्पादन के विशिष्टीकरण को माना है। विशिष्टीकरण के कारण एक देश अपनी सभी महत्वपूर्ण साधनों का ठीक ढंग से उपयोग करता है और ऐसा कम से कम लागत पर हो सकता है। रिकार्डो ने बताया कि पूंजीपतियों को निर्यात होने वाली वस्तुओं के उद्योगों में निवेश करना चाहिए। रिकार्डो ने पुष्टि की है कि मुक्त व्यापार होने से गतिहीन अवस्था को काफी हद तक कम किया जा सकता है और ऐसा होने से देश काफी मात्रा में उन्नति करेगा।

गतिहीन अवस्था

गतिहीन अवस्था से अभिप्राय है कि जब उद्यमियों द्वारा न तो उत्पादन बढाने और न ही कम करने की इच्छा होती है। अन्य शब्दों में विकास तत्वों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नही होता। रिकार्डो ने गतिहीन अवस्था को लाभ की घटती दर के रूप में परिभाषित किया है रिकार्डो ने भी एडम स्मिथ की तरह माना है कि पूंजी संग्रह के द्वारा विकास होता है और पूंजी संग्रह लाभ को पुनः निवेश करके प्राप्त किया जा सकता है। जब लोगों में बढोतरी से पूंजी संचय की मात्रा अधिक होती है तो कुल उत्पादन बढता है जिसके कारण मजदूरी कोष में भी बढोतरी होगी। जनसंख्या में वृद्धि मजदूरी कोष में वृद्धि होने से होती है जिसके कारण अनाज की मांग बढती है और अनाज की मांग में वृद्धि होने से कीमत में वृद्धि होती है। बढती हुई जनसंख्या के लिए अनाज की बढती हुई मांग को पूरा करने के लिए घटिया किस्म की जमीन पर खेती करना शुरू कर दिया जाता है और ऐसा होने पर बढिया भूमि पर लगान बढ जाता है और इन पर उत्पादित उपज का बहुत बडा भाग खुद लेते है। इन सब के कारण लाभ कम हो जाते है। लाभ के कम होने के कारण पूंजीपतियों और श्रमिकों के भाग कम हो जाते है और फिर मजदूरी की निर्वाह - स्तर तक गिरने की प्रवृत्ति होती है। घट रहे लाभों और बढ रहे लगान की यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि सीमान्त भूमि से उत्पादन काम पर लगाए गए श्रमिक की निर्वाह मजदूरी को पूरा नही करता। ऐसा रिकार्डो द्वारा बताया गया है। ऐसा होन पर स्थिर अवस्था आ जाती है क्योंकि लाभ शून्य हो जाते है और लाभ के शून्य होने पर पूंजी - संचय बिल्कुल ही रूक जाता है और फिर विकास रूक जाती है क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि नही होगी, लगान ऊंचा होता है और मजदूरी - दर निर्वाह - स्तर पर होती है। इन सब के कारण विकास रूक जाता है।

रिकार्डो का आर्थिक विकास सिद्धांत की मुख्य बाते

  1. रिकार्डो माॅडल वितरण से सम्बन्धित है। 
  2. यह सिद्धान्त कृषि पर आधारित है। 
  3. इस सिद्धान्त में यह भी माना गया है कि समस्त भूमि पर अनाज उगाया जाता है। 
  4. इस सिद्धान्त में तकनीकी परिवर्तन को स्थिर माना गया है। 
  5. इस सिद्धान्त में मुक्त व्यापार को माना गया है। 
  6. यह एक Dynamic सिद्धान्त है। 
  7. रिकार्डो ने करो के स्थान पर बचतों को पूंजी संचय के लिए अधिक महत्व दिया है। 
  8. मजदूरी और लाभ में विपरीत सम्बन्ध है। 
  9. पूंजी संचय के लिए लाभ को अत्यधिक महत्व दिया है। 
  10. अल्पकाल में मजदूरी दर को कम या ज्यादा किया जा सकता है लेकिन दीर्घकाल में नहीं दीर्घकाल में यह निर्वाह - स्तर के बराबर होती है।

रिकार्डो का आर्थिक विकास सिद्धांत की आलोचनाएं

1 वितरण का सिद्धान्त - शुम्पीटर ने बताया है कि रिकार्डो का सिद्धान्त वितरण का सिद्धान्त है जोकि मजदूरों, पूंजीपतियो और भूमिपत्तियों के भाग का निर्धारण करता है। यह आर्थिक विकास का सिद्धान्त प्रतीत होता है।

2 भूमि में अनाज के साथ - साथ अन्य वस्तुएं - भूमि में अनाज के साथ - साथ अन्य वस्तुएं उत्पादित की जाती है जबकि रिकार्डो ने यह माना है कि भूमि को केवल अनाज के लिए प्रयोग में लाया जाता है। 

3 घटते प्रतिफल का नियम - रिकार्डो ने अपने सिद्धान्त में बताया है कि घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है। भूमि के संबंध में घटते प्रतिफलों के निवारण में प्रौद्योगिकी प्रगति की क्षमताओं का कम मूल्यांकन किया। 

4 स्थिर अवस्था की धारणा - रिकार्डो ने बताया है अर्थव्यवस्था में अन्त में अपने - आप ही स्थिर अवस्था आ जाती है लेकिन यह बात असत्य है क्योंकि किसी भी अर्थव्यवस्था में जिसमें पूंजी संचय हो रहा है, लाभ बढाने के कारण और उत्पादन भी बढ रहा हो वहां पर स्थिर अवस्था हो ही नहीं सकती। 

5 अबंध नीति - रिकार्डो के अनुसार अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप पाया जाता है और इसके पूर्ण - प्रतियोगिता के अनुसार कार्य होता रहता है लेकिन वास्तविक जीवन में पूर्ण - प्रतियोगिता की स्थिति पाई ही नहीं जाती

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