संसाधन के प्रकार
संसाधन के प्रकार (sansadhan ke prakar) संसाधन कितने प्रकार के होते हैं? संसाधन दो प्रकार के होते हैं-- प्राकृतिक संसाधन और
- मानव निर्मित संसाधन।
1. प्राकृतिक संसाधन
प्राकृतिक संसाधन पर्यावरण से व्युत्पन्न होते हैं। इनमें से कुछ संसाधन जीवित रहने के लिए अनिवार्य हैं, जबकि अन्य हमारी सामाजिक इच्छाएँ पूरी करते हैं। किसी भी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक मानव निर्मित उत्पाद कुछ हद तक प्राकृतिक संसाधनों से ही बना होता है।- वायु
- कोयला
- बिजली
- खनिज
- प्राकृतिक गैस
- तेल
- सूर्य प्रकाश
- जल
- आर्थिक संवृद्धि,
- पर्यावरण स्थिरता,
- जैव विविधता संरक्षण,
- खाद्य सुरक्षा, तथा
- स्वास्थ्य परिचर्या।
- जनसंख्या वृद्धि,
- बढ़ती सिंचाई आवश्यकताएँ,
- तीव्र शहरीकरण,
- औद्योगीकरण, तथा
- उत्पादन एवं उपभोग में वृद्धि।
2. ऊर्जा संसाधन - ऊर्जा संसाधन दो प्रकार के होते हैं : अनवीकरणीय और नवीकरणीय। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन जीवाश्म ईधन हैं, जैसे कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस। ऊर्जा औद्योगिक क्षेत्र, परिवहन क्षेत्र (जो कि मुख्यत: निजी कारों में वृद्धि के कारण ऊर्जा प्रयोग करने वाला विश्व का सबसे तेज़ी से बढत़ ा रूप है) तथा आवास एवं वाणिज्यिक क्षेत्र (यथा, भवनों, व्यापार, सार्वजनिक सेवाओं, कृशि एवं मत्स्य उद्योग में ऊर्जा प्रयोग) में प्रयोग की जाती है।
भारत कोयले का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और विश्व में पाँचवाँ सबसे बड़ा कोयला भंडार स्वामी है। भारत के पास पर्याप्त तेल नहीं है और इसलिए उसे अपनी तेल संबंधी आवश्यकता का 83 प्रतिषत आयात करना पड़ता है। भारत, चीन, जापान और अमेरिका के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा तेल आयातक है।
3. वन संसाधन - मानव मात्र जो आर्थिक लाभ वनों से प्राप्त करता है, दो प्रकार के होते हैं-प्रत्यक्ष प्रयोग मूल्य, जैसे इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, खाद्य पादप, आदि व औषधीय पादप; तथा (ii) परोक्ष प्रयोग मूल्य, जैसे कार्बन अवशोषण, जैवविविधता संरक्षण हेतु प्राकृतिक आवास का प्रावधान, पारितंत्र संरक्षण सेवाएँ, जैसे मृदा अपरदन घटाने हते ु क्षमता एवं नदियों की गाद कम करना।
- देष का वन एवं वृक्ष आवरण लगभग 7 करोड़ हेक्टेयर अथवा कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 21 प्रतिषत है;
- वर्श, 2011 के मूल्यांकन के बाद से, वनावरण में 5800 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है; तथा
- भारत के सात उत्तर-पूर्वी राज्य देष के वनावरण का लगभग एक चौथाई भाग घेरते हैं।
2. मानव निर्मित संसाधन
मानव निर्मित संसाधन प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों का प्रयोग कर उत्पादित माल व सेवाएँ हैं। प्राय:, संसाधन मनुश्य के लिए उपयोगी तभी बन पाते हैं जब उनका मूल रूप बदल दिया जाता है। ऐसी वस्तुएं प्राकृतिक रूप से नहीं होतीं बल्कि मानव द्वारा उपभागे हते ु उत्पादित की जाती है। औषधियां, जैसे कुछ मानव निर्मित संसाधन आधुनिक मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, क्योंकि, टीका द्रव्य जैसी औषधियों के बिना लोग रोग एवं मृत्यु के षिकार हो जाएँगे। किंतु, पीड़कनाषी जैसे कुछ मानव निर्मित संसाधन वैज्ञानिक रूप से प्रयोग न किए जाने पर प्राकृतिक पर्यावरण को हानि भी पहुँचा सकते हैं।कुछ मानव निर्मित संसाधन प्राकृतिक संसाधनों की भाँति ही होते हैं। उदाहरण के लिए, झीलें और ताल मानव.निर्मित संसाधन है। जबकि उनमें जल और मछलियाँ प्राकृतिक संसाधन हैं, किंतु उनमें जल मानव प्रयास द्वारा ही एकत्र होता है।
संसाधन उपयोग की सीमा
प्राकृतिक संसाधनों ने हमारे देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में सार्थक भूमिका अदा की है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कृषीय देश है। ऐसा इसलिए क्योंकि विभिन्न फसलों को उगाने के लिए यहाँ विविध जलवायविक दशाएँ और अंतहीन मौसम पाया जाता है।
भारत की विशाल खनिज सम्पदा ने इसे औद्योगिक रूप से विकसित होने में समर्थ बना दिया है। हाल के दशकों में न केवल तेजी से बढ़ती जनसंख्या को भोजन देने बल्कि विशाल भारतीय जनसंख्या के आर्थिक कल्याणों को गति प्रदान करने की इच्छा ने संसाधनों के उपयोग को चमत्कारिक रूप से बढ़ा दिया है।
संसाधनों के अधारणीय उपयोग के कारण इसने पर्यावरणीय एवं परिस्थितिकीय असंतुलन को बढ़ाया है। संसाधनों का उपयोग कुल सामाजिक लाभों को अधिक करने के स्थान पर उत्पादन एवं लाभों को अधिकतम करने की प्ररेणा से किया गया। मृदा अपरदन, वन नाशन, अति चराई तथा वनों के असावधानीपूर्ण प्रबंधन के कारण मृदा जैसे मूल्यवान संसाधन का ह्रास हो रहा है। अवैज्ञानिक कृषि क्रियाएँ जैसे- उत्तर-पूर्वी भारत में झूमिंग कृषि और रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के साथ अति सिंचाई के परिणामस्वरूप मृदा के पोषक तत्वों में कमी, जल भराव व लवणता की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण उपलब्ध जल संसाधनों का शोषण हो रहा है जिस कारण ये तेजी से कम हो रहे हैं। तकनीकी कमी के कारण भारतीय नदियों के कुल वार्षिक प्रवाह का लगभग 38 प्रतिशत ही उपयोग के लिए उपलब्ध है। यही स्थिति भू जल के उपयोग की है।
स्वतन्त्रता के पश्चात, माित्स्यकी उद्योग ने विशेषकर सागरीय माित्स्यकी ने पारंपरिक व निर्वाही व्यवसाय को बाजार चालित अरबों रुपये के उद्योग के रूप में बदलते देखा है। वर्तमान में भारत करीब 55 श्रेणियों में सागरीय उत्पादों का दक्षिण एशियाई व यूरोपीय देशों तथा संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात करता है।
मनुष्य प्रारंभिक समय से ही अपनी भौतिक व आत्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संसाधनों का उपयोग करता रहा है और यह प्रक्रिया ‘संसाधन उपयोग’ कहलाती है।
मृदा अपरदन, वन नाशन व अति चराई के कारण मूल्यवान मृदा संसाधन अवक्षय की आशंका से घिरे हैं।
Xxx videos indian actress
ReplyDeleteI u mad
ReplyDelete